Thursday, November 18, 2021

कैसे-कैसे रंग बदलते चेहरे

    शर्म क्यों नहीं आती इन्हें? इनकी बकबक अब शूल की तरह चुभने लगी है। बेइंतहा गुस्सा दिलाने लगी है। अब तो इन्हें नेता, अभिनेता, अभिनेत्री, स्टार, सुपरस्टार और समाजसेवक मानने का मन ही नहीं होता। प्रेरक नायकत्व के इनमें कहीं गुण ही नज़र नहीं आते। देवेंद्र फडणवीस भारतीय जनता पार्टी के एक बड़े चेहरे हैं। उन्हें मैं तब से जानता-समझता हूँ जब वे नगरसेवक थे। शालीनता और सौम्यता के जीवंत प्रतिरूप। छोटे-बड़े सभी के काम आते थे। कोई भी सच नहीं छिपाते थे। अपने दिल की बात कहने के लिए समय का इंतजार नहीं करते थे। विधायक बनने के बाद भी उन्होंने मुखौटे से दूरी रखी। राजनीति के काले चेहरों को बेखौफ होकर बेनकाब करते रहे। उनमें बहुत कुछ देखकर ही पार्टी ने उन्हें देश के प्रदेश महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया था। प्रदेश की जनता भी उनकी सरलता और मिलनसारिता की जबरदस्त प्रशंसक थी, लेकिन सीएम की गद्दी ने उनके रंग-ढंग ही बदल दिये। मासूम देवेंद्र को कुटिल राजनीति ने स्वार्थी और कठोर बना दिया। दूसरी बार भी सिंहासन पाने के लिए उन्होंने सत्ता के भूखे राजनेता की तरह, तरह-तरह के दांव चले। विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए वो सब तिकड़में कीं, जिनके लिए कम-अज़-कम वे तो नहीं जाने-पहचाने जाते थे। अभी हाल ही में हम सबने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और वर्तमान केबिनेट मंत्री नवाब मलिक की बिल्लियों वाली झपटा-झपटी देखी। लड़ाई तो ड्रग्स को लेकर प्रारंभ हुई थी, लेकिन धीरे-धीरे एक दूसरे के कपड़े उतारने और धमकीबाजी तक जा पहुंची। इन दोनों महानुभावों की शर्मनाक नाटक-नौटंकी के दौरान जिस एक सच ने बेहद कचोटा वो यह है कि इन दोनों को देश-प्रदेश के हित से ज्यादा अपनी राजनीति की दुकान को टिकाये रखने की चिंता है। नवाब को अपने दामाद और शाहरुख खान के बिगड़ैल बेटे को पाक-साफ बताने की पड़ी रही तो फडणवीस अपने खेल खेलते हुए अपना कद छोटा करने में लगे रहे।
    एक सच यह भी पूरी तरह से उजागर हुआ कि अब नेताओं की कौम भरोसे के काबिल ही नहीं रही। यह अपने भीतर बड़े से बड़े रहस्य को तब तक छिपाये रहते हैं, जब तक सामने वाला इन्हें न छेड़े या ललकारे। इन्हें उस आम जनता से कोई सहानुभूति नहीं, जिसके वोट की बदौलत ये सत्ता सुख पाते हैं। नवाब मलिक अभिनेता शाहरुख खान के नशेड़ी बेटे की गिरफ्तारी के विरोध में पहले तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो तथा उसके जोनल डायरेक्टर समीर वानखेड़े के पीछे पड़े रहे फिर उनका देवेंद्र फडणवीस के साथ जुबानी युद्ध प्रारंभ हो गया। उन्होंने जैसे ही फडणवीस पर ड्रग तस्करों और जाली नोटों के सरगनाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया तो तमतमाये फडणवीस ने मीडिया के सामने आकर दिवाली के बाद बम फोड़ूंगा का धमकीभरा हथियार लहराया। दीपावली के पश्चात उन्होंने अंडरवर्ल्ड के लोगों से जुड़ी अरबों की जमीनें नवाब के द्वारा कौड़ी के मोल हथियाने की फुलझड़ी छोड़ी। सवाल यह है कि यह रहस्योद्घाटन पहले क्यों नहीं किया गया? जब नवाब उनके पीछे पड़ गये, तब ही उन्हें क्यों नवाब की पोल खोलने की जरूरत महसूस हुई! जब आपको पता होता है कि फलाना नेता अपराधियों की संगत में रहता आया है। ड्रग्स माफियाओं को फलने-फूलने के मौके उसने दिये हैं तो आप फौरन पर्दाफाश क्यों नहीं करते? इस इंतजार में क्यों रहते हैं कि वक्त आने पर मुंह खोलेंगे। यह तो घोर मतलबपरस्ती है। कहीं न कहीं देश-प्रदेश के साथ दगाबाजी भी है। लुच्चे बदमाश ऐसी हरकतें करें तो उन्हें यह सोचकर नजरअंदाज किया जा सकता है कि यह तो ऐसी ही टुच्चागिरी के लिए जन्मे हैं। यही इनके घटिया चरित्र की असली पहचान है, लेकिन जो चुने हुए जनप्रतिनिधि हैं... जिनकी देश में छवि बनी हुई है, उन्हें तो बहुत सोच समझकर बोलना चाहिए।
फिल्म एक्ट्रेस कंगना रानौत मेरी पसंद की अदाकारा रही हैं। उनकी कुछ फिल्में काफी प्रभावी रही हैं। अपने बड़बोलेपन की वजह से अक्सर चर्चाओं और विवादों के घेरे में रहना उन्हें बहुत पसंद है। जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, तब से उनका खुद पर नियंत्रण नहीं रहा। अभी हाल ही में अभिनेत्री ने अपने अंदर के महाज्ञान को उगलते हुए कहा कि 1947 में देश को जो स्वतंत्रता मिली थी, वह भीख थी, असली आजादी तो 2014 में मिली। मतलब साफ है कि मोदी जी के देश की सत्ता पर काबिज होने के बाद ही कंगना को लगने लगा कि अब देश ने आजादी पायी है। दरअसल उन्हें कहना तो यह चाहिए था कि 2014 में जैसे ही मोदी पीएम बने वैसे ही वे स्वतंत्र हो गईं। पहले वह कुछ बोलने, कहने, सुनाने से डरती थीं, लेकिन 2014 के बाद बेलगाम होने की छूट मिल गई। यह कोई संयोग नहीं, सोची समझी योजना नजर आती है।
    जैसे ही अभिनेत्री को कला के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए भारत के चौथे सबसे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया उसके बाद उनकी चेतना तूफानी हो गई और स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों का अपमान करने पर उतर आयीं। ऐसे प्रयोग अब अपने भारत देश में प्रचार पाने का हिस्सा भी हैं और किसी को कमतर और नीचा दिखाने का षडयंत्री खेल भी है। एक तरफ मोदी के पक्षधर हैं, दूसरी तरफ मोदी विरोधी हैं, तो वहीं दिन-रात हिंदू-मुसलमान कर-कर के राजनीति में धर्म का तड़का लगाने वाले किस्म-किस्म के मदारी हैं, जो वक्त और मौका देखकर अपने-अपने पिटारे खोल देते हैं। फिल्मी पर्दे के नायक-नायिका तो दूसरों के इशारों पर नाचते हैं। दूसरों के दिमाग की मेहनत की कमायी पर बाहर भी उछलते-कूदते रहते हैं। प्रशंसकों की भीड़ उनका दिमाग घुमा देती है। मेरी निगाह में सबसे बड़ी स्टार... सुपरस्टार तो राजेश्वरी जैसे चेहरे हैं। कर्तव्य परायण राजेश्वरी के नाम से ज्यादा लोग वाकिफ नहीं हैं। चेन्नई में जब मूसलाधार बारिश ने अफरा-तफरी मचा दी थी। घरों में पानी भर गया था। कई लोग जहां-तहां पानी में फंस गये थे, तब महिला पुलिस इंस्पेक्टर राजेश्वरी ने पानी में बेसुध पड़े एक अनजान शख्स को कंधे पर लादकर ऑटो तक पहुंचाया ताकि उसे जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचाया जा सके। यदि राजेश्वरी उसे समय पर अस्पताल नहीं ले जातीं तो उसकी मौत भी हो सकती थी। अस्पताल में उन्होंने उस शख्स की मां को हर तरह की मदद करने का आश्वासन तो दिया ही, डॉक्टरों को भी उसकी अच्छी तरह से देखरेख करने का निवेदन कर उस खाकी वर्दी की गरिमा बढ़ायी, जिसे अक्सर उतनी अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता, जिसकी वास्तव में वह हकदार है। यह बात अलग है कि कुछ गलत लोगों के कारण खाकी बदनाम होती रही है।

No comments:

Post a Comment