Thursday, January 13, 2022

भूली नहीं जाती बेटी की पाती

    वे आकाश से तो नहीं टपकतीं। उन्हें भी मां-बाप ही जन्म देते हैं। तो फिर उनके हिस्से में ऐसे जुल्म और गम क्यों आते हैं कि उनकी जीने की इच्छा खत्म हो जाती है और ऐसी-ऐसी खबरें पढ़ने और सुनने में आती हैं...।
    लुधियाना में एक महिला को उसके पति और ससुर ने क्रिकेट बैट से बुरी तरह से पीटते हुए उसके मुंह में तकिया रखकर दम घोटने की कोशिश करने के बाद सड़क पर फेंक दिया। उसका कसूर बस यही था कि वह ऐसे घर-परिवार की बेटी थी, जो उनकी दहेज की मांग को पूरा करने में असमर्थ थे। पंजाब के ही शहर जालंधर में ब्याही गई 39 साल की प्रिया छाबड़ा ने नये साल 2022 का चेहरा देखने से पहले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। पति का अच्छा-खासा कारोबार था। वह अगर चाहता तो बड़े ठाठ से अपने परिवार के साथ दिन गुजारता। सभी के चेहरे खिले रहते, लेकिन उसे तो और-और धन-दौलत की अंधी भूख थी। उसके लालच ने उसे शैतान बना दिया था। धनलोलुप पति लवलीन ने अपनी पत्नी प्रिया की जिंदगी में कलह, शंका और हिंसा के ऐसे बीज बोए, जो धीरे-धीरे कांटेदार पेड़ की शक्ल अख्तियार करते चले गये। इस पेड़ में दूर-दूर तक छांव का नामो-निशान नहीं था। पत्ते हरे होने से पहले झड़ चुके थे। शाखाएं मरी-मरी-सी हो चुकी थीं। रहने को आलीशान विशाल कोठी थी, लेकिन उसका कोना-कोना अशांत और वीरान था। रोज-रोज की कलह से प्रिया तंग आ चुकी थी। शादी हुए 17 साल हो चुके थे, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी पति-पत्नी में वो विश्वास, जुड़ाव और अपनत्व नहीं आ पाया था, जो इस पवित्र रिश्ते की आत्मा होता है। प्रिया वर्षों तक पति लवलीन की गालियां तथा मार-कुटायी सहते-सहते तंग आ चुकी थी। उस पर किसी पुराने यार के संग रंगरेलियां मनाने के गंदे-गंदे आरोप भी लगाये जाते थे। लवलीन को प्रिया के फोन रिकॉर्ड करने की तो जैसे उसे लत लग गई थी। प्रिया बार-बार सफाई देती कि वह चरित्रहीन नहीं। गलत रास्ते पर चलने की तो वह कल्पना ही नहीं कर सकती, लेकिन धन से धनवान और मन से कंगाल लवलीन ने उसकी नहीं सुनने की कसम खा ली थी। प्रिया को यह गम भी हरदम खाये रहता था कि पति के जुल्म और प्रताड़ना के साथ-साथ सास-ससुर, जेठ और ननद भी दहेज के लिए तंग करने के साथ-साथ उसे हमेशा अपमानित करने के अवसर तलाशते रहते थे। उसके पलटकर जवाब देने पर सभी एकजुट हो उसके जिस्म पर खूंखार भेड़िये की तरह टूट पड़ते। बर्दाश्त करने की भी कोई हद होती है। अंतत: 39 साल की प्रिया ने रोज-रोज का नर्क भोगने की बजाय नये वर्ष के चंद दिन पहले ही खुदकुशी कर ली। फांसी के फंदे पर झूलने से पहले इस सचेत मां ने अपने 15 साल के बेटे के मोबाइल पर रिकॉर्डिंग भेजी, ‘मेरे लाल, मुझे माफ करना..., मैं हमेशा-हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़कर जा रही हूं। तुम अपनी बहन का अच्छी तरह से ध्यान रखना।’ प्रिया अंदर और बाहर से कितनी आहत और लहुलूहान थी इसका पता उसके इस सुसाइट नोट से चलता है, जो उसने जाते-जाते अपने दुर्जन पति लवलीन के लिए लिख छोड़ा था,
    ‘‘मैं प्रिया... आज तुम्हें यह कहना चाहती हूं कि तुम बहुत बुरे पति हो। तुम्हारे होते हुए भी मैं विधवा सी रही। अब मुझे तुम विदा भी एक विधवा की तरह ही करना। मेरी चिता को तो छूने की हिम्मत ही नहीं करना। मेरी मृतदेह को मेरा बेटा हार्दिक ही आग लगाए। मैं तुम्हें हसबैंड होने के नाते कभी माफ नहीं करूंगी।’’
प्रिया किसी की बेटी थी। उसके मां-बाप ने उसे बड़े अरमानों के साथ पाला था। उसके पंद्रह वर्षीय बेटे हार्दिक ने उसकी चिता को मुखाग्नि देकर पुत्र होने का फर्ज़ निभाया। पति लवलीन वहां झांकने तक नहीं आया। हार्दिक मन ही मन पिता को कोस रहा था। उसकी प्यारी मां ने फांसी के फंदे पर झूलने से पहले अपनी दोनों कलाई की नसें भी काटी थीं। हार्दिक को अपनी मां को खोने के गम से उबरने में वक्त लगेगा। उसके नाजुक मन में पिता के प्रति जो घृणा घर कर चुकी है वह तो खत्म होने से रही। उसे अपनी जननी को सताये जाने के तमाम मंजर ताउम्र याद आते रहेंगे। काश! वह अपनी मां को बचा पाता! पापा की तो मां को परेशान करने की आदत पड़ चुकी थी। मम्मी ने इससे पहले भी कई बार सुसाइड करने की कोशिश की थी। पिछली बार जब वह छत से कूदने जा रही थी, तब उसी ने मां को समझाया और मनाया था। पापा मम्मी को खर्चा नहीं देते थे। उन्होंने तो उसे घर से निकालने की साजिशों का जाल भी बुन डाला था। वह बेटे और बेटी को लेकर कितनी फिक्रमंद थी, इसका पता उसके इस दूसरे सुसाइड नोट से चलता है,
    ‘‘मैं अपने बच्चों के हक के लिए लड़ रही हूं। मैं हारी भी नहीं हूं। मैं अपने बच्चों को बहुत प्यार करती हूं। अफसोस है उनके लिए कुछ नहीं कर पाई।’’
सूरत के वडोद गांव में एक श्रमिक परिवार की ढाई साल की मासूम का शव बस्ती से करीब 300 मीटर दूर झाड़ियों में पड़ा मिला। बच्ची के साथ इतनी निर्दयता के साथ कुकर्म किया गया था कि उसका जननांग जिस्म से बाहर निकल गया था।
    राजस्थान में झूंझनू जिले के एक सरकारी स्कूल के हेडमास्टर पर सातवीं कक्षा की छात्रा ने आरोप लगाया कि वासना के भूखे भेड़िये ने स्कूल में ही उस पर बलात्कार कर दिया। इस दुष्कर्म में स्कूल की दो शिक्षिकाओं ने भी वहशी का साथ दिया। विरोध करने पर शिक्षिकाओं ने उसे बार-बार धमकाया।
चेन्नई में 11वीं की एक छात्रा के साथ कुछ दरिंदों ने ऐसी दरिंदगी की, जिससे उसके जीने की इच्छा ही मर गई। उसने अपने करीबी दोस्तों से दूरियां बना लीं। पुरुषों के कदमों की आहट उसके मन-मस्तिष्क में खौफ पैदा करने लगी। वह सोने की कोशिश करती तो नींद ही बगावत कर देती। उसे बार-बार अपने साथ हुए कुकर्म के वो काले पल याद आते। उसे कुछ भी नहीं सूझता। बस वह खामोश घर की दीवारों पर अपना सर पटकने लगती। उसके मां-बाप उससे पूछ-पूछ कर थक गये, लेकिन उसने किसी को कुछ भी नहीं बताया और 2021 के घनी शीत से पिघलते दिसंबर महीने में अपने कमरे में फांसी के फंदे पर लटक कर मौत का दामन थाम लिया। उसके कमरे से जो सुसाइड नोट मिला उसने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए,
‘‘स्टॉप सेक्सुअल हैरेसमेंट... मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। मैं इतने दर्द में हूं कि कोई ढांढ़स नहीं बंधा सकता। मेरे भीतर अब पढ़ने या लिखने की क्षमता चूक गई है। मुझे बार-बार बुरे सपने आते हैं, जो मुझे सोने नहीं देते। हर माता-पिता को अपने बेटों को लड़कियों का सम्मान करना सिखाना चाहिए। मैं जाते-जाते कह रही हूं कि अपने रिश्तेदारों या शिक्षकों पर भरोसा न करें। अब तो स्कूल भी लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है। लड़कियों के लिए अब एकमात्र सुरक्षित स्थान मां की कोख और कब्रिस्तान है...।’’

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