Thursday, January 20, 2022

थूको... थूको, जीभरकर थूको

    हो सकता है कि आपने भी कुछ महीने पूर्व अखबारों में छपी इस खबर को पढ़ा हो, ‘‘बड़े शहर के एक रिहायशी इलाके में एक गुपचुप का ठेला लगाने वाला भइया खुद को थका महसूस कर रहा था। कुछ देर पहले उसके ठेले पर ग्राहकों की भीड़ थी। अब उसके लिए सुस्ताने और आराम करने का समय था। स्टूल पर बैठे-बैठे उसे अचानक ख्याल आया कि खट्टे-मीठे-तीखे जायकेदार पानी वाली मटकी लगभग खाली हो चुकी है। वो बाल्टी भी खाली थी, जिसमें वह घर से ग्राहकों को पिलाने के लिए पानी भरकर लाया था। यदि अभी कहीं भूले-भटके कोई गुपचुप प्रेमी आ धमका तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी। इस इलाके की लड़कियां और औरतें तो उसके जलजीरे और खट्टे और तीखे-मीठे पानी की दिवानी हैं। उन्हें यह मसालेदार पेय खास तृप्ति देता है। सार्वजनिक नल भी नजदीक नहीं था। फिर आज उसका नौकर भी छुट्टी पर था। सोचते-सोचते उसने इधर-उधर देखा।
    जब आसपास उसे कोई नज़र नहीं आया तो उसने अपनी धोती ऊपर की और कच्छे का नाड़ा खोलकर खाली लोटे में अपने पेशाब की धार छोड़ने लगा। वह बड़ी सतर्कता के साथ पानी की समस्या का हल करने में लीन था कि इसी दौरान अचानक एक युवती वहां आ पहुंची। उसकी आंखों के सामने ही उसने अपने द्रव्य को मटकी में उंड़ेल दिया था। युवती के लिए यह बेहद हतप्रभ कर देने वाला नज़ारा था। वह अपने मोबाइल से तस्वीरें लेने के पश्चात वीडियों बना चुकी थी। जैसे ही भइये ने युवती को देखा तो वह हक्का-बक्का रह गया। बुरी तरह से गुस्सायी युवती के समक्ष उसने अपनी मजबूरी का रोना रोया, लेकिन युवती ने ऐसा शोर मचाया कि देखते ही देखते अच्छी-खासी भीड़ जमा हो गयी। लोगों ने उसके ठेले का कचूमर निकालने के साथ उसकी भी अंधाधुंध धुनायी कर लहुलूहान कर दिया। बड़े ही सतर्क और जोशीले अंदाज में ‘आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है’ की कहावत को चरितार्थ करने वाला भइया हाथ-पांव जोड़कर माफी मांगता रहा, लेकिन भीड़ ने उसकी वो गत बनायी कि उसने जमीन पर नाक रगड़कर सपने में भी कभी गोलगप्पे का ठेला नहीं लगाने की कसम खायी और चुपचाप अपने गांव खिसक गया।’’
    फैशन की रंगारंग दुनिया से वास्ता रखने वाले हर शख्स ने मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब का नाम जरूर सुना होगा। मिलना-मिलाना भी हुआ होगा। देश और विदेश के कई शहरों में उसके नाम पर सैलून चलते हैं। सच तो यह है कि यह किसी फिल्मी हीरो-सा दिखने वाला हाई-फाई रंगीला नाई बड़ा पहुंचा हुआ व्यापारी और खिलाड़ी है। अभी हाल ही में इस खानदानी नाई का मुजफ्फरनगर में एक सेमिनार चल रहा था। इसी चमकदार सेमिनार में कई ब्यूटीपार्लर चलाने वाली महिलाएं आमंत्रित थीं। सेमिनार में फैशनपरस्त महिलाओं से घिरा जावेद हेयर कटिंग के जब नये-नये गुर सिखा रहा था तभी एक महिला के सूखे बालों को उसने अपनी थूक से गीला कर वाहवाही लूटनी चाही। यहां पर भी पानी की कमी इस नये अविष्कार की जननी बनी। थोड़ी देर बाद बाल कटवाने वाली महिला की छठवीं इंद्री जागी और वह कुर्सी छोड़ जावेद पर बरसने लगी। उसकी देखा-देखी दूसरी महिलाओं और पुरुषों ने भी उसे भला-बुरा कहा, लेकिन किसी ने भी उसकी वैसी पिटायी करने की हिम्मत नहीं की जैसी गुपचुप बेचने वाले की धुनाई कर दिखायी। अमीर हर जगह फायदे में रहता है। रंगीले नाई ने पानी की समस्या के समाधान के लिए एक नई परंपरा की नींव रखने की सोची थी, लेकिन होशियार महिला ने उसके मंसूबे पर पानी फेर डाला। बदनामी भी करवा दी। मैं जहां तक जानता और समझता हूं कि किसी पर थूकने की जुर्रत तब की जाती है, जब उससे घोर नफरत होती है। उसने कोई दगाबाजी, व्याभिचार और अत्याचार किया होता है। थूक से नवाजी गई महिला तो कुछ नया सीखने को आई थी। क्या सीखा उसने? उत्तरप्रदेश के किसी जोशीले नेता ने एलान कर दिया है कि, ‘नाई के मुंह पर थूकने वाले को अपनी जेब से इक्यावन हजार रुपये का इनाम दूंगा।’
    यह तो ठीक है, लेकिन यही नेता कभी यह भी तो डंके की चोट पर कह दें कि वे सभी नेता चुल्लू भर पानी में डूब मरें, जिनका जनता को बेवकूफ बनाना ही एकमात्र पेशा है। जब वोट लेने आते हैं तो हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हैं। विधायक, सांसद, मंत्री बनते ही अपनी असली औकात पर आ जाते हैं। यह बहुरूपिये मतदाताओं को पहचानते तक नहीं। चुनावी वादे भी कभी पूरे करते नहीं। उन सफेदपोशों के मुंह पर थूको, जिन्हें दूसरों की बहन, बेटियो की कद्र करनी नहीं आती। भारत की बरबादी के सपने देखने वाले जयचंदो और भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाकर देशभक्तों का खून खौलाने वाले ‘कन्हैया छाप’ जमूरों तथा नक्सलियों के हितैषी नालायक बुद्धिजीवियों की थू-थू करने की बजाय थूक की बोछारें करो। उन्हें भी कतई नजरअंदाज मत करो, जो बार-बार हिंदू देवी-देवताओं और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं का मज़ाक उड़ाते हैं। उन्हें भी सबक सिखाते रहो, जो खुद के धर्म को महान और दूसरे के धर्म और आस्था को नीचा दिखाने में लगे हैं। सच को छिपाने और झूठ को सिंहासन पर बैठाने वाले खोखले क्रांतिवीर पत्रकारों, संपादकों और मीडिया मालिकों को भी थूक की बरसात से नहला दो, जिससे वे अपना चेहरा तक न पहचान सकें। आपसी भाईचारे, ईमानदारी और इंसानियत के किसी भी शत्रु को बिलकुल मत बख्शो। यह भी जान लो कि महज शाब्दिक तीरों से कुछ भी नहीं होने वाला। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

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