Thursday, February 10, 2022

पहेली...

    अमेरिका के न्यूयार्क में रहते हैं शौकीन मस्तमौला पुरुष माइकल अमोइया। माइकल को अपने शरीर पर टैटू बनवाने का ऐसा भूत सवार हुआ कि उन्होंने अपने शरीर पर कीड़ों के 864 टैटू बनवाकर गिनिज वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज करा लिया। माइकल का पूरा शरीर टैटू से भर चुका है। फिर भी अपने शरीर पर टैटू बनवाने की उनकी तमन्ना में विराम नहीं लगा है। जब वे मात्र इक्कीस बरस के थे, तब उन्होंने पहली बार अपनी बांह पर लाल चींटी का टैटू बनवाया था। फिर उसके बाद तो उन्हें इसका चस्का ही लग गया। माइकल के बारे में बड़ी दिलचस्प और चौंकाने वाली जानकारी यह भी है कि उन्हें कीड़ों से सख्त घृणा है। बचपन में किसी कीड़े ने उनके जिस्म को काट खाया था, तभी से उनके मन में कीड़ों के प्रति भय और नफरत ने स्थायी जगह बना ली। माइकल के शरीर पर इतने अधिक कीड़ों के टैटू देखकर कोई भी यह मानने लगता है कि इस शख्स को कीड़ों से बेइंतहा प्यार... मुहब्बत है, लेकिन माइकल हर किसी को बता नहीं सकता कि असली सच क्या है...। सच तो यह भी है कि वह सभी को हकीकत से रूबरू नहीं कराना चाहता।
    सीताराम दास जैसा इंसान मैंने तो कभी नहीं देखा था। जब मिला तो बस देखता ही रह गया। उसका एक हाथ गायब है। इस हाथ को पंद्रह वर्ष पूर्व एक मगरमच्छ ने खा-पचा लिया था। कोई और होता तो वह मगरमच्छों का जानी दुश्मन बन जाता। सत्तर की उम्र पार कर चुका सीताराम तो किसी अलग मिट्टी का बना है। जिस मगरमच्छ ने उसे हमेशा-हमेशा के लिए अपंग बना दिया उसी की सेवा और देखभाल करना उसके जीवन का एकमात्र मकसद बनकर रह गया है। सीताराम से अगर आपको रूबरू मिलना है, तो छत्तीसगढ़ के कोटमी सोनार गांव में पहुंच जाएं। वह आपको यहां के भरे-पूरे तालाब के किनारे ‘‘आओ, आओ’’ की धीमी आवाज़ें लगाते दिख जाएगा। किसी मंत्र की तरह हवा में तैरने वाली उसकी स्वर लहरी के जादू का कुछ ऐसा असर होता है कि देखते ही देखते तीन मगरमच्छ उनकी तरफ इस तरह से मस्त-मस्त अंदाज में बढ़ने लगते हैं, जैसे उसके चरणों में लोटपोट हो जाना चाहते हों। इनमें एक मगरमच्छ, जिसकी लंबाई लगभग 10 फुट है वह किसी के भी मन में खौफ पैदा कर देता है, लेकिन सीताराम को अपना जन्मों-जन्मों का दोस्त... हितैषी मानता है। मगरमच्छों के करीब जाने से सभी को डर लगता है। सीताराम सभी को आश्वस्त करता रहता है, कि यदि हम जानवरों को नहीं छेडें तो वे भी अपने में मस्त रहते हैं। सीताराम को गांव के लोग बाबाजी कहकर बुलाते हैं। बाबाजी पक्षियों पर भी खूब जान छिड़कता है। घायल पक्षियों की जान बचाने के लिए अपने सुख-चैन की कुर्बानी देने में ज़रा भी देरी नहीं लगाता। बाबाजी मंदिर में पुजारी भी है। गायें पालने का भी उसे खासा शोक है। यह उसकी प्रेम भावना ही है, जो हिंसक जानवरों को भी अपना बना देती है। खूंखार से खूंखार जानवरों को प्यार-दुलार से अपने काबू में लाते देखकर अधिकांश लोग भी समझने लगे हैं कि यदि जानवरों को उकसाया नहीं जाए तो वे किसी पर भी आक्रमण नहीं करते।
    ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ जिसने भी इस कहावत को सबसे पहले गढ़ा, रचा और प्रचलन में लाया होगा उसका कहीं न कहीं ऐसे लोगों से वास्ता पड़ा होगा, जिन्हें दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। बेगाने महान और अपने कमतर लगते हैं। मैंने जब 85 वर्षीय कात्सू सान के महात्मा गांधी और भारतवर्ष के प्रति अटूट समर्पण भाव के बारे में पढ़ा और जाना तो मुझे बरबस उपरोक्त कहावत याद हो आयी। अपने यहां ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो महात्मा गांधी की कमजोरियों का ढिंढोरा पीटते हुए खुद को बेहद अक्लमंद दर्शाते रहते हैं। जिस देश का अन्न खाते हैं उसी से गद्दारी करने से भी नहीं चूकते। भारत माता की गोद में जन्मने को वे अपनी बदकिस्मती मानते हैं। जापान में जन्मीं कात्सू सन 1956 में भारतवर्ष में आईं तो थीं भगवान बुद्ध की खोज में, लेकिन महात्मा गांधी के विचारों से इस कदर प्रभावित हुईं कि अपने देश जापान को ही भुला बैठीं। उन्होंने यहीं बसने का पक्का इरादा कर लिया। अब तो कात्सू ने हिंदुस्तान को अपना देश मान लिया है, यहीं जीना और मरना है। वे हर वर्ष 30 जनवरी को राजघाट जाती हैं। शाम को गांधी दर्शन में होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभा में जाना भी नहीं भूलतीं। उन्हें साफ-सुथरी हिंदी बोलते देख कोई भी उन्हें विदेशी नहीं कह सकता। जबसे उनका भारत भूमि पर आगमन हुआ है, तभी से गांधी साहित्य के गहन अध्ययन में लगी हैं। सच्ची गांधीवादी कात्सू कहती हैं, कि गांधी का यह भारत देश सारे संसार का आध्यात्मिक गुरु है। मुझे तो दुनिया में और कोई देश नज़र ही नहीं आता, जहां भारत की तरह सभी धर्मों का जी-जान से सम्मान किया जाता हो। यहां के लोगों में जो सादगी और सहनशीलता है वह और कहीं दुर्लभ है। हिन्द के अनेकों ग्रामों, कस्बों, नगरों, महानगरों में भ्रमण करने वाली कात्सू सान लिखती हैं कि भगवान बुद्ध और गांधी के रास्ते एक जैसे ही हैं। इन दोनों ने ही दीन-दुखियों का कल्याण करने तथा अन्याय को मिटाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। जब तक यह सृष्टि है, तब तक दोनों जिन्दा रहेंगे। हमेशा नौजवानों की तरह उत्साहित रहने वाली गांधीवादी कात्सू बहन दिल्ली में स्थित विश्व शांति स्तूप में अक्सर दिखायी दे जाती हैं। उनका नमस्कार कहने और करने का अंदाज हर मिलने वाले पर अपना अटूट प्रभाव छोड़ जाता है।

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