Thursday, February 17, 2022

खुद को मुसलमान और हिन्दू दिखाने की होड़

    जब देखो तब कोई न कोई सनसनी फैलाती फिल्म, तस्वीरें, वीडियो और अशांति फैलाती भाषणबाजी। राजनीति और धर्म के अलावा जैसे और कुछ बचा ही नहीं है! नारों पर नारे, शोर शराबा, धमकियां और चेतावनियां ही क्या भारत देश की पहचान बनती चली जा रही हैं? देश की तो छोड़िए अब विदेशों में भी यही संदेश जा रहा है कि यहां का आपसी भाईचारा और एकजुटता बेहद खतरे में है। लड़कियों की आजादी छीनी जा रही है। महिलाओं पर जुल्म ढाये जा रहे हैं। हर कोई सकते में है। जिस पार्टी के हाथ में केंद्र की सत्ता है वह अंधी और बहरी बनी हुई है। क्या वाकई यह सच है? अपने देश भारत में नामवर होने का सबसे आसान तरीका है, जलती आग में तेल नहीं, पेट्रोल डालो ताकि हजारों मील दूर बैठे लोगों को भी उसकी तपन का एहसास हो।
    कर्नाटक के कॉलेज की छात्रा मुस्कान जानती थी कि कॉलेज में हिजाब पहनकर जाने की पाबंदी है फिर भी वह डंके की चोट पर पहुंची तो वहां पर पहले से मौजूद भगवा गमछा और स्कार्फ पहने छात्रों के उग्र झुंड ने जय श्रीराम के नारे लगाते हुए मुस्कान का रास्ता रोक लिया। अति उत्साह से भरी मुस्कान ने भी उन्हें ललकारने के अंदाज में ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे लगाते हुए सवाल किया कि वे मेरे हिजाब के पीछे क्यों पड़े हैं। यह हक उन्हें किसने दिया है? सोशल मीडिया पर मुस्कान के वीडियो के वायरल होने भर की देरी थी कि मौके की तलाश में बैठे इधर और उधर के अपने-अपने धर्म के कुछ ठेकेदारों ने अपने अस्त्र-शस्त्र बाहर निकाल लिए। राजनीति और सोशल मीडिया के पेशेवर खिलाड़ी भी छाती तानकर कूदने-फादने लगे। रातोंरात उनके आकाओं ने उन्हें पढ़ा और रटा दिया कि उन्हें किस तरह से चीखना-चिल्लाना है। देखते ही देखते कर्नाटक से निकले हिजाब विवाद की सात-समंदर पार तक तेजाबी बरसात होने लगी। अमेरिका तथा अन्य कुछ देशों को भारत पर उंगली उठाने और चेताने का मौका मिल गया। यह बात दीगर है कि भारत के ताकतवर हुक्मरानों ने उसे अपना घर संभालने और दूसरे के यहां नहीं झांकने का तीखा सुझाव देकर बेजुबान कर दिया। देश के कई नगरों-महानगरों की कॉलेज गर्ल हिजाब पहन कर पहुंचने लगीं। मध्यप्रदेश के सतना के एक कॉलेज की छात्रा जब परीक्षा देने पहुंची तब उसने मुस्कान के अंदाज में हिजाब पहन रखा था। यहां भी छात्रों ने उसका पुरजोर विरोध किया। महाराष्ट्र के पुणे में हिजाब के समर्थन में निकाले गये जुलूस में महिलाओं के अलावा छोटी-छोटी बच्चियों को भी शामिल कर लिया गया। उनके हाथ में जबरन बैनर भी थमा दिये गए जिन पर लिखा था कि हिजाब पहनना हमारा अधिकार है। धार्मिक नगरी चित्रकूट में चुनाव प्रचार करने गईं कांग्रेस की एक महिला प्रत्याशी मुस्लिम बहुल क्षेत्र पहुंचीं तो उनका सोया जोश जाग गया और उन्होंने एक मुसलमान को भगवा टोपी पहना दी। इसके बाद वहां जय श्रीराम के नारे गूंजवाये गये।
भारत के अधिकांश मौकापरस्त नेता देश के बंटवारे के बाद से ही ऐसी नाटक-नौटंकियां करते चले आ रहे हैं। कोई हिंदुओं को खुश करना चाहता है, कोई मुसलमानों को। तो किसी को दलित अति प्रिय हैं। हिजाब भी उनके लिए जलती आग की भट्टी है, जिस पर वे अपनी राजनीति की रोटियां सेंक रहे हैं। इन्हें संविधान से भी कुछ नहीं लेना और देना। सच तो यह भी है कि यदि इन्होंने भारतीय संविधान का आदर किया होता तो कि किसी की क्या मजाल जो वह अपनी मनमानी और दादागिरी दिखा पाता। हिजाब के पक्ष और विपक्ष में अपने-अपने तर्क हैं...। हिजाब पहनने से लड़कियां बदमाशों की गंदी निगाहों से बची रहती हैं। देश में आज जो हालात हैं वे महिलाओं के लिए सुरक्षित और सुखद नहीं हैं। कदम-कदम पर वहशी-बलात्कारी चहल-कदमी करते नजर आते हैं। अकेली लड़कियों और औरतों के लिए हिजाब और बुर्का किसी मजबूत कवच से कम नहीं। जब उनका बदन और चेहरा ही नहीं दिखेगा तब दुष्कर्म भी नहीं होंगे। हिजाब के विरोधी कहते हैं कि शिक्षा के मंदिरों में नारियों पर खतरे की बात वही लोग करते हैं, जिन्हें अपनी बेटियों पर भरोसा नहीं और उनके भविष्य की भी कतई चिंता नहीं। दरअसल वे पूरे मन से बेटियों को आगे बढ़ता नहीं देखना चाहते। ऐसे लोग आज भी बाबा आदम के जमाने की जमीन पर ठिठके खड़े हैं। इन्हें पता ही नहीं है कि आज नारियां पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। पग-पग पर उन्हें चुनौती और टक्कर दे रही हैं। ऐसे में उन्हें पर्दे में कैद करना, उन पर पहरे लगाना घोर अपराध ही है। दुनिया के जिन-जिन देशों में सार्वजनिक स्थानों पर चेहरा ढंकने या इस्लामिक नकाबों पर रोक लगायी गई वहां पर महिलाओं में काफी उत्साह तथा परिवर्तन आया है। पुरुषों की तरह वे भी बेझिझक कहीं भी आना-जाना करती हैं और ऊंची से ऊंची शिक्षा अर्जित करते हुए सफलता के नये-नये शिखरों को छू रही हैं।
    हिजाब को लेकर जो शोर-शराबा और अशांति फैली और बड़े ही सुनियोजित तरीके से फैलायी गयी उस पर कलम चलाना व्यर्थ है। कलमकार को तो उन हुक्मरानों पर गुस्सा आता है, जिनकी प्राथमिकताएं ही समझ में नहीं आतीं। जो काम पहले करना चाहिए उसे तो करना ही भूल जाते हैं। जिस देश में बेइंतहा गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और अशिक्षा का घनघोर अंधेरा है, वहां पर सरकारें जनता की आंख में धूल झोंकती चली आ रही हैं। तरह-तरह के सपनों और जुमलों से दिल बहलाती चली आ रही हैं। कोरोना काल में हम सबने देख ही लिया है कि स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में हम कितने गरीब और नकारा हैं। डॉक्टरों और अस्पतालों की कमी की वजह से हजारों मौतें हो गईं और हम बेबस देखते रह गये। ऐसी और भी कितनी-कितनी गंभीर समस्याएं हैं, जो देश के विकास में बाधा बनी हुई हैं। शासकों का तो पहला कर्तव्य है कि जन-जन की नींद उड़ाती समस्याओं का पहले हल खोजा जाए। देश में कानून व्यवस्था की जो हालत है वह किसी से छिपी नहीं है। कोई भी मां-बाप अपनी बेटियों को किसी तरह की बंदिशों की बेड़ियां पहनाकर खुश नहीं होते, लेकिन लगभग हर रोज सामने आने वाली बलात्कार और व्याभिचार की खबरें उन्हें डराती हैं। शासन-प्रशासन की कमी और कमजोरी ने ही गुंडे-बदमाशों के हौसलों को बेलगाम कर रखा है। यह देखने में आया है कि जिन देशों में शासन-प्रशासन लुंज-पुंज नहीं, बेरोजगारी नहीं, गरीबी नहीं, शिक्षा का भरपूर उजाला है, वहां पर किसी भी बदलाव और पहल को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया जाता है। भारत में  बरगलाने और उकसाने वालों की कतारें लगी हैं। मैंने जो जाना और समझा है वह यह भी है कि भारतीय जनता पार्टी की बजाय कांग्रेस या किसी अन्य राजनीतिक पार्टी की प्रदेश सरकार ने हिजाब पर रोक लगाने का निर्णय किया होता तो इतना हो-हल्ला नहीं होता। इस पार्टी की मुस्लिम विरोधी छवि बनाने में इसी पार्टी के कुछ मुंहफट नेताओं का भी खासा योगदान रहा है, जो किसी की भी राष्ट्रभक्ति पर सवाल खड़े करने लगते हैं। यह देश समावेशी विकास बदलाव और व्यवहार चाहता है, लेकिन कुछ लोग विनाश के सपने देख रहे हैं। उन्हें तो बस खुद को हिंदु और मुसलमान दिखाने के महारोग ने जकड़ रखा है। जहां मन पहले से शंकाग्रस्त हो, आहत हो, भरोसे की डोर कमजोर हो चुकी हो, वहां पर अपने हित में हुए फैसलों में भी साजिश की शंका होती है...और यही भारत देश में हो रहा है।

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