Thursday, February 24, 2022

रिश्ते... रिश्ते

    पति का नाम सौरभ, पत्नी का स्वाति। छह साल की एक बेटी। देहरादून के रहने वाले। सब कुछ ठीक चल रहा था। अचानक अवतरित हुए कोरोना ने गड़बड़ कर दी। सौरभ की नौकरी जाती रही। कुछ महीने जमा धन काम आया। बाद में इधर-उधर से कर्ज लेकर गृहस्थी की गाड़ी खींचते रहे। इसी दौरान सौरभ की बहन की शादी भी तय हो गई। सौरभ ने किसी साहूकार से मोटे ब्याज पर पांच लाख का कर्जा ले लिया। घर में आई इस लक्ष्मी को देखकर पत्नी ने विवाह में पहनने के लिए सोने के हार की मांग कर दी। सौरभ को बड़ा गुस्सा आया। कैसी जीवनसाथी है, जिसे बस अपने शौक की पड़ी है। उसने गुस्से में पत्नी को फटकारा, लेकिन वह सोने का हार दिलाने की जिद पर अड़ी रही। इतना ही नहीं उसने बिना हार के ननद की शादी में शामिल होने से भी इंकार कर दिया। पति और पत्नी के बीच कहा-सुनी इस कदर गर्मा-गर्म हो गई कि दोनों के बीच हाथापायी  की नौबत आ गयी। स्वाति का आक्रामक होना सौरभ से सहा नहीं गया। उसने अपना आपा खोते हुए बेटी के सामने स्वाति को बिस्तर पर पटका। पहले तो बेल्ट और आयरन की तार गले में कसी फिर चाकू से गला रेतकर हत्या कर दी।
    नागपुर में एक 28 वर्षीय शराबी पति की पत्नी जब शारीरिक संबंध बनाने से मना करती तो वह उसके हाथ-पाव बांधकर अपनी वासना की आग बुझाता था। पत्नी शोर न मचाए, इसलिए वह उसके मुंह में कपड़ा भी ठूंस देता था। पति की हैवानियत से त्रस्त हुई पत्नी ने पारिवारिक न्यायालय की शरण ली। कानून तो यही कहता है कि बिस्तर पर पत्नी के साथ पूरे सम्मान के साथ पेश आना चाहिए। वह गुलाम नहीं, इंसान है। उसकी भी अपनी भावनाएं हैं।  
    मेरठ शहर में एक युवक ने अपनी वर्षों पुरानी प्रेमिका की भरे चौराहे पर इसलिए हत्या कर दी, क्योंकि पिछले कुछ दिनों से वह उससे मिलने में आनाकानी कर रही थी। दो हफ्ते बाद ही उनकी शादी होने वाली थी। ब्याह हुए एक महीना भी नहीं हुआ था कि पत्नी बिना बताये पति का घर छोड़कर भाग खड़ी हुई। कुछ दिनों के बाद उसने तलाक का नोटिस भी भिजवा दिया। मामला कोर्ट में पहुंच चुका है। युवती पचास लाख रुपये की मांग कर रही है। कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते युवक और उसके मां-बाप को अभी तक अपने कसूर का पता नहीं चला है। ऐसे पता नहीं कितने तलाक के मामले कोर्ट में फैसले का इंतजार कर रहे हैं। इनमें कई तलाक के मामले तो ऐसे जोड़ों के हैं, जिनकी शादी वर्षों पहले हुई थी, लेकिन अंदर ही अंदर पता नहीं क्या हुआ कि अलग होने का निर्णय ले लिया गया। यह भी देखा जा रहा है कि कुछ माता-पिता अपनी बेटियों की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोलने में लगे हैं। हां यह भी सच है कि अधिकांश मां-बाप अपनी बेटी को दु:खी नहीं देखना चाहते। उन्हें अपनी बेटियों को दूर ब्याहने में भी डर लगता है। मांओं की तो हमेशा अपनी बेटियों को अपने नजदीक रखने की इच्छा रहती है। देश के प्रदेश झारखंड के दो गांवों के लोगों ने तो अपनी बेटियों से नजदीकी बनाये रखने के लिए अपने गांव के निकट ही दामादों यानी जमाइयों का पूरा गांव ही बसा दिया। 54 साल पहले तीन परिवारों ने यह अनोखी पहल की थी। जमाइयों के इस गांव को जमाईपाड़ा नाम दिया गया है, जहां पर 100 परिवारों में से 60 परिवार जमाइयों के ही हैं। बेटी को लक्ष्मी और जमाई को राजा का सा मान-सम्मान देने वाले माता-पिता बेफिक्र हैं। गांव के नाम को लेकर जब लोगों ने मजाक उड़ाना प्रारंभ किया तो अब जमाईपाड़ा को लक्ष्मीनगर कहा जाने लगा है। ऐसी कई खबरें हैं, जो इंसानी बर्बरता का दस्तावेज हैं। वहीं कुछ हकीकतें ऐसी भी हैं, जो आग-सी तपती धूप में ठंडक का एहसास कराती हैं...।
    नब्बे वर्ष के हो चुके भोलानाथ आलोक साहित्यकार हैं। उन्होंने कई कथाएं और कविताएं लिखी हैं, लेकिन उनकी सबसे अच्छी रचना जो अभूतपूर्व है और यादगार बन कर रहने वाली है, वह है उनका अपनी पत्नी के प्रति अटूट प्रेम और पवित्र समर्पण भाव। आलोक और उनकी पत्नी की बस यही चाहत थी कि उनकी एक साथ ही इस दुनिया से विदायी हो, लेकिन ईश्वर ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं होने दी। 25 सितंबर, 1990 को उनकी पत्नी की अचानक मौत हो गई। तब आलोक के मन में आत्महत्या करने का भी विचार आया, लेकिन छोटे-छोटे बच्चों के अनाथ हो जाने की चिंता ने उनकी इच्छा का गला घोट दिया। फिर उन्होंने वो किया, जिसने हर किसी को यह कहने और मानने के लिए मजबूर कर दिया कि प्रेम एक पवित्र एहसास है, जो दिमाग से नहीं दिल से होता है। सच्चे प्रेमी अपनी जिन्दगी को एक-दूसरे के नाम कर देते हैं। जब तक मौत नहीं आती तब तक एक-दूसरे के बने रहते हैं। भावुक साहित्यकार ने उसी पल पत्नी की अस्थियों को जीवन के अंतिम क्षणों तक संभालकर रखने का निर्णय ले लिया। उनकी पत्नी को गुजरे 32 वर्ष हो चुके हैं। घर के बरामदे में लगे पेड़ पर उन्होंने पत्नी की अस्थियां लटका रखी हैं। उन्होंने अपने बच्चों को कसम दी है कि जब उनकी मौत हो तो पत्नी की अस्थियों के साथ ही उनका दाह-संस्कार कराएं। आलोक तो रोज अस्थियों की पूजा करते ही हैं, उनके परिजन भी भगवान की पूजा के बाद पेड़ पर टंगी अस्थियों की पूजा करना नहीं भूलते। घर में जब भी बाहर से कोई रिश्तेदार आते हैं या घर के कोई भी सदस्य बाहर जाते हैं, तो पेड़ के पास में जाकर प्रणाम करते हैं। घर-परिवार में होने वाले मांगलिक कार्यों में उनका आशीर्वाद लिया जाता है।
    प्यार तो प्यार होता है। हिंदुस्तान हो या अमेरिका। इसकी पवित्रता और तड़प कहीं भी नहीं बदलती। जब पूरी दुनिया कोरोना के चंगुल में थी तब कई जोड़ों को अपने साथी को खोना पड़ा। उनकी जुदाई में बिलख-बिलख कर रोना पड़ा। ऐसी ही एक तस्वीर आज भी मेरे दिल-दिमाग में ताजा है...। 89 साल के एक पति को 87 साल की पत्नी से कोरोना की वजह से मजबूरन अलग रहना पड़ा। पूरे चालीस दिनों के बाद दोनों जब मिले तो उनके आंसू रुक नहीं रहे थे। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थामकर वादा किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अब बाकी बची जिंदगी का एक-एक पल एक साथ जीएंगे। उनके मिलन की तस्वीर जिसने भी देखी वह अपने जज्बात पर काबू नहीं रख पाया। बरबस आखें गीली होती रहीं...।

No comments:

Post a Comment