Thursday, April 14, 2022

दुष्टनीति-राजनीति

अपने देश के बुद्धिजीवी भी कम करतब नहीं दिखाते। कुछ तो नीचता पर ही उतर आते हैं। अपने यहां एक नामी शायर हैं, मुनव्वर राणा। उन जैसे कुछ और भी हैं, जो अपनी वर्षों की कमायी इज्जत की ऐसी-तैसी करने पर तुले हैं। कल तक जो मुनव्वर गजलों-गीतों के बादशाह कहलाते थे, आज फकीर बनकर रह गये हैं। उन्हें राजनीतिक दलों का मुंह ताकना पड़ रहा है, जिनके सीने में भी योगी और मोदी के सत्तासीन होने पर ईर्ष्या की आग धधक रही है। फिर भी राणा का कटोरा खाली का खाली है। उलटे फटकार और गालियां मिल रही हैं। उनकी रचित गज़लों की किताब ‘मां’ ने लाखों पाठक बनाये और अब बदजुबानी ने शत्रुओं की कतार खड़ी कर ली है। बात-बात पर राजनीति के गली-कूचों के चक्कर काट कर जिस-तिस को कोसने वाला गज़लकार भूल गया कि खुदा ने उसे कलम बख्शी है, जिससे वह अपनी बात देश-दुनिया तक पहुंचा सकते हैं, लेकिन अब उसे अपनी कलम पर ही भरोसा नहीं। उसे देश के लोकतंत्र पर भी भरोसा कम है। शायर जिन्हें चाहता है, वे ही सत्ता पाएं तो ठीक... बाकी सब गलत। स्वार्थ और नफरत में डूब चुके मुनव्वर ने अपनी पुरानी खुजली के चलते बैठे-बैठाये कह दिया था कि, यदि उत्तरप्रदेश में योगी फिर से सत्ता पर काबिज होंगे तो मैं यूपी ही छोड़कर चला जाऊंगा। इनकी लाख दुआओं और प्रार्थनाओं के बावजूद योगी की नैया तो नहीं डूबी, लेकिन इनकी बची-खुच्ची इज्जत की ऐसी-तैसी जरूर हो गयी। यूपी के चुनाव परिणाम आने के पश्चात लोगों ने उनसे पूछना प्रारंभ कर दिया कि शायर महाराज आप अपना वायदा कब पूरा करने जा रहे हैं? अगर आपके पास नोट-पानी न हों तो हम टिकट का इंतजाम करा देते हैं। नफरत के शोले उगलने वाले उपद्रवी कलमकार की तो बोलती ही बंद हो गयी है। दरअसल किसी के दिमाग खपाने और सोचने से कुछ नहीं होता। लोकतंत्र में वही होता है, जो जनता चाहती है।
    पटक दो। ठोक दो। नंगा कर दो। दबोच लो। इज्जत लूट लो। होश ठिकाने लगा दो। बदतमीजी करते चले जाओ। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी सोच रखने वाले आजकल खूब उछल-कूद रहे हैं! नंगे भी हो रहे हैं। जो बलशाली हैं, कानून का पालन करने और करवाने की जिनकी जिम्मेदारी हैं वही कानून की तौहीन कर रहे हैं। लोकतंत्र का मज़ाक उड़ा और उड़वा रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि उन्हें पता नहीं कि उनकी कारस्तानियां देश का सिर झुकाने का गुनाह कर रही हैं। उत्तरप्रदेश के शहर बरेली में कामरान नाम के मुस्लिम युवक को उसी के मोहल्ले के लोगों ने अंधाधुंध धुन कर लहुलूहान कर दिया। भारतीय जनता पार्टी के प्रशंसक कामरान ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राम तो यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी को कृष्ण कहते हुए तारीफों के जो पुल बांधे वे कुछ कट्टरपंथियों को शूल की तरह चुभ गये और उन्होंने उसे घेर कर डंडे और लाठियों से मारा-पीटा, जिससे उसे अस्पताल पहुंचाने की नौबत आ गयी। कामरान से पहले उत्तरप्रदेश के कटघरही गांव के बाबर को तो उसी के पड़ोसियों तथा रिश्तेदारों ने योगी की जीत पर मिठाई बांटने के अपराध में परलोक पहुंचा दिया था। 10 मार्च, 2022 को यूपी विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे, तब खुशी से फूले नहीं समाये बाबर ने गांव भर में मिठाई बंटवाई थी। तभी से कट्टरपंथी हिंसक सोच वाले लोगों का मुंह फूल गया था और उन्होंने उसके जीवन पर फुलस्टाप लगाने की ठान ली थी। बाबर की बर्बरता से पिटायी करने वालों में मुस्लिम महिलाएं भी शामिल थीं। बाबर ने खुद को बचाने की बहुतेरी कोशिश की। वह तो अपने घर की छत पर यह सोचकर जा चढ़ा था कि शातिर जुल्मी वहां तक पहुंचने का साहस नहीं करेंगे, लेकिन योगी और मोदी को अपना घोर शत्रु मानने वालों ने बिना कोई लिहाज किये उसे छत से नीचे ऐसे फेंका, जैसे वह कोई इंसान नहीं, बेकार का सामान हो। अस्पताल में लाख कोशिशों के बाद भी बाबर को बचाया नहीं जा सका। ईश्वर ने भी ईर्ष्यालू और नफरती शैतानों की मंशा पूरी कर दी! इन हत्यारों और शायर मुनव्वर राणा के बीच जो समानता है वह बारूद के ढेर जमा करने में लगी है। देख और सुनकर हैरत होती है कि नफरत, हिंसा और बदले की आग है कि बुझने का नाम ही नहीं ले रही है। सच लिखना, कहना और करना जैसे अक्षम्य अपराध होता चला जा रहा है। इन दिनों तो इस धधकती ज्वाला ने पद-पदवी की गरिमा और मान-मर्यादा को जला कर राख करने की अंधी कोशिशें शुरू कर दी हैं। पत्रकारों का काम तो आईना दिखाना और दबे-छिपे सच को सामने लाना है। उनका यही दायित्व उन्हें रास नहीं आता, जिनका काम ही भाई-भाई को आपस में लड़ाना और समाज में वैमनस्य का गंद फैलाना है। अराजक तत्वों, भष्टाचारियों, रिश्वतखोरों को सजग पत्रकारों से बड़ी चिढ़ है। भ्रष्ट नेताओं का बस चले तो एक-एक कर खात्मा कर दें। ईमानदार पत्रकार, संपादकों के पिटने और मौत के हवाले कर दिये जाने के समाचार अब आम हो गये हैं। इस हिंसक दुष्कृत्य में नेताओं, हत्यारों, गुंडे, बदमाशों का जब पुलिस साथ देने लगे तो मानिये न मानिये हर सजग भारतीय का खून खौल जाता है। यह सच अलग है कि वह खुद को असहाय पाता है, बिलकुल वैसे ही जैसे मध्यप्रदेश के सीधी में शांति भंग करने की आशंका के चलते यू-ट्यूबर और न्यूजनेशन के पत्रकार कनिष्क तिवारी और दस आरटीआई कार्यकर्ता और रंगकर्मियों को पुलिस ने जबरन जेल में डाल दिया। इतना ही नहीं उनके कपड़े भी उतरवा दिये। उनकी अर्धनग्न तस्वीरें भी धड़ाधड़ सोशल मीडिया में वायरल कर दीं। विधायक की दादागिरी के खिलाफ खड़े होने की सजा पाने वाले कनिष्क तिवारी की अखबार में छपी अर्धनग्न तस्वीर पर जब उनकी दस वर्षीय बेटी की नज़र पड़ी तो उसने पिता को अश्रुभरी निगाहों से देखते हुए पूछा, ‘पापा आपने ऐसा क्या कर डाला कि आपको वस्त्रहीन होना पड़ा?’ एक पिता... एक पत्रकार क्या जवाब देता! फिर भी उसने अपनी बिटिया को सबकुछ बता तो दिया, लेकिन बेटी शर्मिंदगी की उस काली स्याही में डूबी-डूबी रही, जो पड़ोसियों, रिश्तेदारों और सहेलियों ने सवाल पूछ-पूछ कर उसके मुंह पर पोती थी। जब पत्रकार और उनके साथियों की नग्न तस्वीरें सोशल मीडिया पर छायीं थीं तभी एक और वायरल फोटो ने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींचा। इस वायरल फोटो में एक पुलिस कॉन्सटेबल, जिसका नाम नेत्रेश शर्मा है, वह एक बच्ची को जलते हुए घर से निकाल कर भागा चला जा रहा है। शर्मा की इस बहादुरी की सभी ने भरपूर तारीफ की। शर्मा ने कहा कि उन्होंने तो अपना फर्ज निभाया है। पुलिस मैन का यही तो काम है...। काश! भ्रष्ट और बिकाऊ खाकी वर्दी वाले नेत्रेश शर्मा से कुछ तो सीख ले पाते...।

No comments:

Post a Comment