यह हमारे युग की सच्चाइयां हैं, जो दिन-ब-दिन और भयावह होती चली जा रही हैं। इंसान जन्म लेता है, पूरी उम्र, पूरी जिन्दगी जीने के लिए, लेकिन यह जो हो रहा है वह मुझे दिन-रात हैरान और परेशान किये है। पता नहीं कितनी और ऐसी मौतें देखनी हैं, जो नहीं होनी चाहिए थीं, लेकिन हो रही हैं। बार-बार हो रही हैं। इन भयावह, चिंताजनक मौतों को आत्महत्या का नाम दे दिया गया है। आत्महत्या... यानी अपनी हत्या अपने ही हाथों! आत्महत्याओं का यह सिलसिला पता नहीं कब से चला आ रहा है और यह सवाल भी सतत बना हुआ है कि क्यों... आखिर क्यों? बीते हफ्ते महाराष्ट्र के जिंदा दिल शहर नागपुर में बारहवी कक्षा के एक छात्र ने अपने घर में खिड़की से रस्सी बांधकर फांसी लगा ली। आत्महत्या करने से पहले उसने बाकायदा एक पत्र लिखा, ‘अब मेरी जीने की इच्छा नहीं रही। इसलिए मौत का दामन थाम रहा हूं।’ आदित्य नाम के इस लड़के की खुदकुशी ने उसके माता-पिता को जो सदमा दिया है, उससे वे जीते जी तो उबर ही नहीं पायेंगे। अपने बेटे का चेहरा उनकी आंखों के सामने ताउम्र घूमता रहेगा। आदित्य के मन में दसवीं के बाद भी फांसी के फंदे पर झूलने का विचार आया था, लेकिन तब उसने खुद को संभाल लिया था, लेकिन तभी से उसके मन-मस्तिष्क में अपनी जान लेने के विचार आते रहते थे। अपनों को उम्रभर का गम देकर इस दुनिया से चल बसे आदित्य ने अपने सुसाइट नोट में सभी से माफी मांगी है। घरवालों को संदेह है कि कम अंक मिलने के कारण उसने एकाएक मौत को गले लगाया है।
राजस्थान में दौसा जिले के लालपोट की रहने वाली डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या करने की वजह दिल दुखाने और उन दुष्टों पर गुस्सा दिलाने वाली है, जिनकी वजह से उन्हें यह आत्मघाती कदम उठाने को विवश होना पड़ा। डॉक्टर तो दूसरों की जान बचाने के लिए होते हैं। अर्चना शर्मा ने भी अपने निजी अस्पताल में आशा बैरवा की जान बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी, लेकिन प्रसव के बाद हुई ब्लीडींग से उनकी मौत हो गई। देश और दुनिया के बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज के दौरान यदाकदा ऐसी मौतें होती रहती हैं, लेकिन डॉक्टरों को हत्यारा करार नहीं दे दिया जाता। उनको धमकाया-चमकाया नहीं जाता। जिस औरत की इलाज के दौरान मौत हुई उसके परिजनों ने इसे ईश्वर की मर्जी माना और अस्पताल द्वारा प्रदत्त एंबुलेंस से शव को घर ले आए थे। अंत्येष्टि की तैयारी की जा रही थी कि भाजपा के दो नेता वहां आ पहुंचे। वे अस्पताल से मुआवजा दिलाने की बात कहते हुए शव को फिर से अस्पताल ले आये। उनके साथ अच्छी-खासी भीड़ भी थी। उन लोगों ने शव को अस्पताल के बाहर रखकर नारे लगाने प्रारंभ कर दिये, ‘डॉक्टर को गिरफ्तार करो। हत्या का मामला दर्ज करो। अस्पताल पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले लगवा दो।’ तीव्र नारे बाजी के साथ-साथ डॉक्टर अर्चना शर्मा और उनके पति को गंदी-गंदी गालियां भी दी जाती रहीं। पुलिस वाले मूकदर्शक बन गुंडेनुमा नेताओं का सुनियोजित खेल देखते रहे। ब्लैकमेलरों की दादागिरी चलती रही। कोई कुछ नहीं बोला। हैरानी की बात तो यह रही कि जिस महिला मरीज की मौत हुई उसके पति ने किसी भी तरह की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज नहीं करवायी। वह तो अदना-सा श्रमिक है, जो लिखना तक नहीं जानता। भीड़ के शातिर, चालाक और लुटेरे चेहरों ने जबरन कागज पर हस्ताक्षर करवा लिए। अंतत: धूर्त नेता और उनके कपटी चेले-चपाटे पुलिस पर दबाव बनाने में सफल रहे, जिससे पुलिस ने भी सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन की अनदेखी कर गायकोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना शर्मा के खिलाफ धारा 302 (हत्या) के तहत मुकदमा दर्ज करने में अभूतपूर्व फुर्ती दिखायी। बिक चुकी खाकी वर्दी, लुंजपुंज कानून व्यवस्था तथा बद और बदमाश नेताओं ने एक होनहार डॉक्टर को इस कदर भयभीत कर दिया कि वह डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने कभी भी ऐसे अपमान और तमाशे की कल्पना नहीं की थी। उनके मन में बस यही विचार आते रहे कि अब तो उनकी डॉक्टरी पर कलंक लग गया है। वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है। उनके कारण पति और बच्चों को भी अपराधी समझा जा रहा है। वह खुद तो हत्यारी घोषित की ही जा चुकी हैं, ऐसे में जीना किस काम का! बुरी तरह आहत डॉक्टर अर्चना शर्मा ने मौत का दामन थामने से पहले एक पत्र लिखा, ‘मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूं। प्लीज मेरे मरने के बाद इन्हें परेशान नहीं करना। मैंने कोई गलती नहीं की, किसी को नहीं मारा। मैंने इलाज में कोई कमी नहीं की। डॉक्टर को इतना प्रताड़ित करना बंद करो। मेरा मरना शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे। डोंट हैरेस इनोसेंट डॉक्टर्स प्लीज।’ यह कितनी शर्मनाक और कायराना हकीकत है कि जब नेता, गुंडे, ब्लैकमेलर डॉक्टर अर्चना शर्मा के अस्पताल को घेरे खड़े थे, तब किसी ने उनकी खबर नहीं ली। कोई साथ नहीं खड़ा हुआ। किसी की जुबान नहीं खुली, लेकिन जब वह चल बसीं तो सभी हमदर्द बन गये। सड़कों पर उतरकर शैतानों के खिलाफ नारेबाजी करने लगे!
डॉक्टर अर्चना की खुदकुशी के चंद रोज बाद ही नागपुर की आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा आर्या ने फांसी लगा ली। मात्र 13 साल की इस बच्ची की जब नोटबुक खंगाली गई तो उसमें जगह-जगह ‘आई लव यू डेथ’, मुझे मौत से प्यार है, मुझे मरना अच्छा लगता है, जैसी नकारात्मक सोच वाली बातें लिखी मिलीं। स्कूल से लौटने के बाद लड़की ने यह आत्मघाती राह चुनी। सुसाइड नोट में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर दुनिया को सदा-सदा के लिए छोड़कर चल दी लड़की के मां-बाप और भाई उसकी आत्महत्या की वजह से अनजान और हतप्रभ हैं! लेकिन, हतप्रभ कर देने वाली बात यह भी है कि लड़की लगातार अपनी नोट बुक्स में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर इशारा करती रही और मां-बाप अनजान रहे! उसे समझाया-बुझाया नहीं!! इसी तरह से आदित्य पहले भी खुदकुशी की राह पर जाने के संकेत दे चुका था, लेकिन किसी ने भी उसका मानसिक उपचार नही कराया।
जब जिन्दगी अच्छी नहीं चल रही होती तो इंसान का विचलित और परेशान हो जाना स्वाभाविक है। यह भी सच है कि आदमी मौत से ही नहीं बात से भी मरता है, लेकिन वह यह क्यों भूल जाता है कि लोगों का तो काम ही है मीन-मेख निकालना। अच्छाइयों को नजरअंदाज कर कमियों और बुराइयों के ढोल पीटना। मरना तो एक न एक दिन हर किसी को है, लेकिन किन्हीं भी हालातों में तथा किसी भी उम्र में की गयी खुदकुशी उन्हें अथाह पीड़ा और बदनामी की सौगात दे देती हैं, जिन्हें उम्र भर के लिए रोने-बिलखने के लिए छोड़ दिया जाता है।
Thursday, April 7, 2022
दहशत
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