Thursday, April 21, 2022

राजनीति का बुलडोजर

    कुछ हफ्तों पहले तक बुलडोजर का नाम सुनते ही भगवाधारी आदित्यनाथ योगी का चेहरा आंखों के सामने घूमने लगता था। अपने पहले कार्यकाल में भगवाधारी ने कई गुंडे, बदमाशों, बेलगाम माफियाओं, काले कारोबारियों की छाती तान कर खड़ी ऊंची-ऊंची इमारतों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर जो अंधाधुंध बुलडोजर चलाया था वो आमजन को बहुत पसंद आया था। योगी ने यूपी में दूसरी बार सत्ता भी बुलडोजर का नाम जप-जप कर पायी है। उनके विरोधी जनता के मन में योगी और बुलडोजर के अंधे आतंक का खौफ पैदा कर वोट पाना चाहते थे, लेकिन उसमें वे नाकामयाब रहे। यूपी के वोटरों को बुलडोजर और योगी की जोड़ी में अपनी भलाई नज़र आयी, इसलिए उन्होंने फिर से पूरे ताम-झाम के साथ उनकी सरकार बनवायी। विधानसभा चुनाव के दौरान बुलडोजर के नाम पर सीना तान कर वोट मांगने वाले आदित्यनाथ ‘बुलडोजर बाबा’ की पदवी पाकर गद्गद् हैं। तभी तो दोबारा मुख्यमंत्री बनते ही पहले से ज्यादा तेजी के साथ बुलडोजर चलाते हुए उन्होंने अपने भावी इरादे स्पष्ट कर दिये हैं। आम और खास दोनों के अवैध अतिक्रमण धड़ाधड़ ढहाये जा रहे हैं। विवाद और आरोप तब भी लगे थे, अब भी लग रहे हैं। इस कलमकार के मन-मस्तिष्क के दरवाजे पर एक सवाल बार-बार ठक-ठक कर रहा है कि यह सभी अतिक्रमण, अवैध निर्माण रातोंरात तो खड़े नहीं किये गए होंगे?
    ‘बुलडोजर बाबा’ की देखादेखी देश के एक और प्रदेश मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बुलडोजर से एकाएक भीषण यारी कर ली है और उनकी फुर्ती ने उन्हें ‘बुलडोजर मामा’ की पदवी दिलवा दी है। जब मुख्यमंत्री जोश में हो तो मंत्रियों और संत्रियों की भुजाएं खुद-ब-खुद फड़कने लगती हैं। किसी को भी धराशायी करने के लिए उन्हें बस इशारे का इंतजार रहता है। इसी बहाने अपने शत्रुओं को भी सबक सिखा दिया जाता है। व्यक्तिगत दुश्मनियां भुना ली जाती हैं। इस बार की रामनवमी की शोभायात्रा में देश के कई शहरों में हिंसा और आगजनी हुई। मध्यप्रदेश के शहर खरगोन में रामनवमी की चहकती खुशी पर चिंता और भय की चादर डाल दी गयी। उपद्रवियों ने ठान लिया कि प्रसन्नता, उत्साह और आपसी मेल-मिलाप की निर्मम हत्या करके ही दम लेना है। कई घर और दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। घरों के बाहर खड़े वाहन फूंक दिये गए। तलवारें, पत्थर, लाठी-डंडे और तरह-तरह के उत्तेजक नारे लहराये गये। नंगी हिंसा ने शहर के अमन-चैन की हत्या कर दी। अंतत: कर्फ्यू लगाना पड़ा और इस बीच गृहमंत्री ने चेतावनी के लहजे में यह कहने में देरी नहीं लगायी कि जिन घरों से पत्थर बरसाये गए, उन्हें पत्थरों में तब्दील करने में देरी नहीं लगायी जाएगी। उनका खुला इशारा कोई भी समझ सकता है। किसी एक धर्म के लोगों के त्योहार पर दूसरे धर्म के चंद लोगों का हमलावर होना यकीनन गलत है, लेकिन जिस तरह से खरगोन में कुछ विशेष धर्म के लोगों की दुकानों और घरों पर बुलडोजर चलाया गया वो इस कलमकार को न्याय से ओतप्रोत नहीं लगा। गरीबों को तो मजबूरी में अवैध झोपड़े तानने पड़ते हैं। इसके लिए भी उन्हें अपने इलाके के नेता, अफसर और गुंडों को तरह-तरह की रिश्वत देनी पड़ती है। धनबलियों और बाहुबलियों के सामने तो सत्ता और व्यवस्था हमेशा नतमस्तक रहती है। उनके पास रहने के एक नहीं कई ठिकाने होते हैं। उनके अवैध निर्माणों को धराशायी करने की मर्दानगी देश देखना चाहता है। यह सिलसिला कुछ प्रदेशों में नहीं, बल्कि पूरे देश में बना रहना चाहिए। इस शुभ कर्म के लिए किसी राजनीतिक रंजिश और दंगों की राह भी नहीं देखी जानी चाहिए।
    गरीबों के पास तो एक ही छत होती है, जिसमें बड़े भी रहते हैं और बच्चे भी। उनके कच्चे-पक्के घरों और रोजगार के ठिकानों को इतनी तेजी से नेस्तनाबूत करने के यही मायने हैं कि बुलडोजर चलाने तथा चलवाने वाले विवेक शून्य हैं। कानून नाम की कोई व्यवस्था है इस देश में? अवैध निर्माण के दौरान तब अंधे बने रहने वालों को ज़रा यह भी तो विचारना चाहिए कि भरी गर्मी में बेघर कर दिये गये गरीब भारतीय जाएंगे कहां, रहेंगे कहां? उन्हें वक्त तो दिया ही जाना चाहिए। उनकी बात को भी सुना और समझा ही जाना चाहिए। वे बताएंगे इस देश के नेता और शासन-प्रशासन किस कदर बिकाऊ हैं। इसी बिकाऊ व्यवस्था की जेबें भरकर ही उन्होंने अवैध निर्माण का अपराध किया है, इसलिए अकेले वही दोषी और अपराधी नहीं। पहले उन्हें सज़ा दो, जिन्होंने खुद को बाजार बनाया। इस सारे सच की तह में जाने पर बुलडोजर की जल्दबाजी और उसे चलाने और चलवाने वालों के गुनाह की किताब के पन्ने एक-एक कर खुलते चले जाएंगे। रामनवमी के दिन गुजरात, झारखंड, गोवा, पश्चिमी बंगाल में भी हिंसा हुई, लेकिन खरगोन में हुई पत्थरबाजी और तोड़फोड़ की घटनाओं को जिस कदर सुर्खियां मिलीं उनसे यह शंका भी बलवती हुई कि राजनीति भी अपना स्वार्थ साधने के खेल में पीछे नहीं है। इस कलम को यह कहने और मानने में संकोच नहीं कि बुलडोजर की माया का बखान कर जिस तरह फिर से योगी यूपी में अपना झंडा फहराने में कामयाब हुए हैं उसी इरादे और चाहत के साथ बुलडोजर मामा भी आगे बढ़ रहे हैं। गुजरात में भी बुलडोजर का ‘खेल’ दिखने लगा है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते चले जाएंगे उनके बुलडोजर की रफ्तार भी तेज होती चली जाएगी। कुछ लोगों को भी ऐसे विध्वंस देखने में मज़ा आता है और इस खेल के खिलाड़ियों के वोटों की फसल भी पकती चली जाती है। भविष्य में यह फसल कितनी विषैली साबित होगी, इसकी चिंता शासक और राजनेता न कल करते थे न आज करने को तैयार हैं। वो लोग भी सुधरने की मंशा नहीं रखते, जिनकी बस एक ही इच्छा है भारत दंगों की आग से जलता रहे। हर तरफ खून-खराबा होता रहे। रामनवमी के तुरंत बाद हनुमान जयंती की शोभायात्रा में भी तनाव पूर्ण वातावरण बनाया गया। वो भी उस दिल्ली में जो कि देश की राजधानी है। राजधानी के जहांगीरपुरी में शोभायात्रा के दौरान दो समुदायों के बीच हुई हिंसक झड़पों में आठ पुलिस वालों को भी घायल कर दिया गया। देश में धार्मिक आयोजनों और शोभायात्राओं की बड़ी पुरातन परंपरा है, लेकिन इन दिनों एकाएक इनमें विघ्न डालने के षड़यंत्र हो रहे हैं। हिंदू-मुसलमान के बीच दीवारें खड़ी करने के ताने-बाने बुने जा रहे हैं। देश को दीमक की तरह खोखला कर रहे भ्रष्टाचारी बड़े मजे में हैं। कानून के रखवालों की उनकी तरफ नज़र ही नहीं है। देश की जागृत जनता शासकों और प्रशासकों से चीख-चीख कर कह रही है कि जितनी तूफानी रफ्तार से अतिक्रमण ढहाये जाने का जोश है, उसी उत्साह से देश को खोखला करती बेइमानी, रिश्वतखोरी और दिन-ब-दिन ऊंचे होते भ्रष्टाचार के पहाड़ पर भी तो बुलडोजर चलाओ। हां, जुलूसों और शोभायात्राओं में लाठी, डंडे, तमंचे, पेट्रोल बम और बदनीयत का ज़हर लेकर चलने वालों पर भी जी-जान से पाबंदी लगाओ। सच्चे भक्तिभाव से निकाले जाने वाले जुलूसों पर पत्थर बरसाने वालों को बिना किसी राजनीति और भेदभाव के ऐसा सबक सिखाओ कि उनकी आनेवाली पीढ़ियां भी ऐसी भूल करने की जुर्रत न कर पाएं। देश के विख्यात साहित्यकार सागर खादीवाला की कविता की इन पंक्तियों को भी पढ़ो और समझो जिन्हें उन्होंने बहुत सोच-समझ और देखभाल कर लिखा है,

‘‘अभी तो...राजनीति का मदमस्त स्टेरिंग
जिधर मोड़ता है बुलडोजर उधर ही
मुड़ता है, उधर ही तोड़ता है।
जिस दिन बुलडोजर का रुख।
भ्रष्टाचार के महलों की तरफ।
मोड़ने वाला पैदा हो जाएगा,
उस दिन क्रांतिकारियों के लहू का
एक और कर्ज़ अदा हो जाएगा।’’

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