Thursday, July 28, 2022

लेनी है तो बस अपनी जान लो...

    संतरा नगरी नागपुर में स्थित है वर्धा रोड। यह सड़क अहिंसा के सच्चे पुजारी महात्मा गांधी की कर्मभूमि वर्धा तक ले जाती है। इसी सड़क के खापरी नाके पर भरी दोपहर लोगों ने एक मारुति 800 कार जलती देखी। देखने वालों का तो तन-बदन कांप गया। पूरे ज़िस्म के रोंगटे खड़े हो गए। तरह-तरह की अटकलें लगायी जाने लगीं। आजकल चलती कारों में अचानक आग लगना कोई नयी बात नहीं है। दमकल वाहन के घटनास्थल पर पहुंचते-पहुंचते कार पूरी तरह से आग की चपेट में आ चुकी थी। तब तक कार चालक की मौत हो चुकी थी। गंभीर रूप से झुलस चुकी महिला और युवक ने कार से उतर कर सड़क किनारे जमा हुए पानी में लेटकर अपने बदन की आग बुझायी। दोनों को तुरंत अस्पताल ले जाया गया है। दूसरे दिन जब शहर के दैनिक अखबारों में कार के साथ पूरी तरह से जलने के बाद मौत के हवाले हुए पुरुष और किसी तरह से बचने में कामयाब रहे युवक और उसकी मां के बारे में खबरें छपीं तो यह कहानी सामने आयी। 63 वर्षीय रामराज भट कभी खुशहाल जिन्दगी जी रहे थे। शहर में स्थित एमआइर्डीसी परिसर में नट-बोल्ट बनाने का उसका कारखाना था, लेकिन कोविड काल में कारोबार पर जो गहरी चोट लगी उससे रामराज का मनोबल लस्त-पस्त हो गया। मस्तिष्क ने काम करना ही बंद कर दिया। धीरे-धीरे आर्थिक संकट ने ऐसा घेरा कि उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया। दरअसल रामराज व्यापारी तो था, लेकिन आसान राह पर चलने का आदी था। अपने कारखाने के लिए उसने किसी फाइनेंस कंपनी से 10-12 लाख का कर्जा ले रखा था। समय पर किस्तें नहीं भरने की वजह से जब कंपनी के तकादे के नुकीले तीर चलने शुरू हुए तो वह बुरी तरह से घबरा गया। दिन-रात इज्ज़त लुटने का भय सताने लगा। रामराज के बेटे नंदन ने इंजीनियरिंग की डिग्री तो ले ली थी, लेकिन नौकरी करने की बजाय आगे पढ़ना चाहता था। रामराज चाहता था कि बेटा तुरंत नौकरी का दामन थाम ले, जिससे उसकी आर्थिक दिक्कतें कम हो जाएं। रामराज उन लोगों में शामिल था, जो सोचते ज्यादा हैं, लेकिन समस्याओं से जूझते कम हैं। वक्त के बीतने के साथ-साथ उसे हर पल बस यही चिन्ता सताने लगी कि उसका आने वाला कल कैसा होगा। इस चक्कर मेें एक दिन वह बाज़ार गया और ज़हर की एक बोतल खरीद लाया। रामराज ने सोचा था कि वह पत्नी और बेटे को बड़ी आसानी से जहर पीकर मरने के लिए राजी कर लेगा, लेकिन जब पत्नी संगीता और बेटे नंदन को धोखे में रखते हुए उसने पेय पदार्थ पीने को कहा तो उन्होंने उसे नहीं पिया। शायद उन्हें संदेह हो गया था कि कोई न कोई गड़बड़ तो जरूर है। रामराज ने अपनी दूसरी योजना को साकार करने की तैयारी प्रारंभ कर दी। मंगलवार की दोपहर उसने पत्नी और बेटे से कहा कि बहुत दिन हो गये हैं, हम कहीं बाहर खाना खाने नहीं गये। आज मेरा छुट्टी मनाने का मन है। आप दोनों साथ होंगे तो बहुत मज़ा आयेगा। दोनों से रामराज की हालत छिपी नहीं थी। वे भी हर हाल में उसकी खुशी चाहते थे। तीनों किसी शानदार बड़े होटल में खाना खाने के लिए कार से निकल पड़े। कार रामराज ही चला रहे था। कुछ किमी की दूरी तय करने के बाद उसने लघुशंका के बहाने कार रोकी। फिर बड़ी सावधानी से पॉलिथीन के अंदर सुसाइड नोट को रखकर बाहर फेंक दिया। दोबारा कार में बैठने के कुछ पलों के बाद उसने पेट्रोल छिड़क कर कार में आग लगा दी। मां और बेटा किसी तरह से कार से उतर कर भागे, लेकिन वह नहीं बच पाया। पांच दिन बाद आग से बुरी तरह झुलसी उसकी पत्नी भी अस्पताल में इलाज के दौरान चल बसी। बेटा भी जन्मदाता की करनी पर आंसू बहाते-बहाते मां के देहावसान के दो दिन बाद इस दुनिया से रूख्सत हो गया।
    देश की राजधानी दिल्ली में 1 जुलाई, 2018 को एक ही घर में 11 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। मृतकों के हाथ-पैर बंधे थे और आंखों पर काली पट्टी बंधी थी। काला जादू, टोने-टोटके और मोक्ष पाने के चक्कर में हुई इन आत्महत्याओं के पीछे घर के मुखिया की बहुत बड़ी भूमिका थी। उन्होंने अपनी मां, पत्नी, बहन और बच्चों तथा खुद की बड़ी निर्दयतापूर्वक इस दुनिया से विदायी करवायी थी। महाराष्ट्र के सांगली जिले में भी एक ही परिवार के 9 सदस्यों के द्वारा ज़हर खाकर की गई खुदकुशी ने पूरे देश को चौंकाया था। घर के मुखिया के सुझाव और निर्देश पर ही यह मौत का रास्ता चुना गया। दरअसल, साहूकारों और बैंकों का कर्ज जीवन पर भारी पड़ गया। बीते साल मध्यप्रदेश के ग्वालियर से सटे एक गांव में स्थित एक घर में चार लाशें मिलने से सनसनी फैल गई। घर के मुखिया ने पहले तो पत्नी तथा दो साल की बेटी को जहर देकर मारा फिर बाद में अपने मासूम बेटे को फांसी पर लटकाने के बाद खुद भी आत्महत्या कर ली।
सामूहिक आत्महत्याओं का सिलसिला अनंत है। इन आत्महत्याओं में परिवार के मुखिया की जबरदस्ती, मनमानी और भारी दबाव का बहुत बड़ा हाथ स्पष्ट दिखाई देता है। खुद के साथ दूसरों की जान ले लेने वाले ये प्राणी नकारात्मक सोच से बाहर ही नहीं निकल पाते। तकलीफें तो लगभग हर इंसान के हिस्से में आती हैं, लेकिन सभी तो आत्मघाती राह नहीं चुनते जो नागपुर के रामराज ने चुनी। रामराज जैसे लोग बिना जोखिम उठाये हर खेल में जीतना चाहते हैं, जो कि संभव नहीं। ऐसे कायर भगौड़े किस्म के लोगों से यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि असफलता और हार के असली जिम्मेदार तो तुम खुद ही हो। ऐसे में तुम्हें  यह हक किसने दे दिया कि तुम अपने सारे परिवार को ही मार डालने पर तुल जाओ। उन्हें खुदकुशी करने को विवश कर दो। माना कि पत्नी के साथ तुमने सात फेरे लिए हैं, लेकिन वो तुम्हारी गुलाम नहीं। बेटा भी तुम्हारी सम्पत्ति नहीं। उसे भी अपनी जिन्दगी जीने का पूरा हक है। मरना ही है तो तुम अकेले मरो। खुद को सही ठहराने का यह सरासर बचकाना बहाना है कि मेरे मरने के बाद मेरी पत्नी, बच्चे कहीं के नहीं रहेंगे। मेरे जाने के बाद कर्जदार उनका जीना हराम कर देंगे। सारा जमाना उन्हें नोच-नोच कर खा  जायेगा। अभी हाल ही में अमरावती की रहने वाली स्नेहल ने रेलगाड़ी के सामने कूदकर अपने जिस्म के परखच्चे उड़वा दिए। वह अपने पति के अत्याचारों से परेशान थी। उसके जुल्म सहते-सहते थक गई थी। उसका एक बेटा और बेटी है, जिन्हें अकेला छोड़कर वह इस जहां से चलती बनी। यह अत्यंत राहत और संतुष्टि की बात है कि उसने अपने बच्चों को बख्श दिया। वक्त के बीतने के बाद बच्चे सच जान जाएंगे। अपनी कायर जननी के प्रति सहानुभूति का भाव तो उनके मन में भी नहीं उपजेगा। कोई भी खुदकुशी प्रशंसा की हकदार नहीं होती। वो मां-बाप जो हमेशा बच्चों की चिंता में खुद को परेशान रखते हैं। सुकून की नींद नहीं ले पाते उन्हीं के लिए पेश हैं किसी कवि की लिखी यह पंक्तियां... 

वो खुद ही जान जाते हैं
बुलंदी आसमानों की
परिंदो को नहीं दी जाती
तालीम उड़ानों की।

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