Thursday, July 14, 2022

अब नहीं तो कब?

    2022 को किस रूप में याद रखा जाएगा? कितना... कितना उन्माद... हिंसा, भय और अशांति! जैसा चल रहा है, क्या वैसा ही चलता रहेगा? सत्ताधीश चुप हैं! देश में अशांति और अराजकता फैलाते आस्तीन के सांपों के होश कौन ठिकाने लगायेगा? विभिन्न धर्मों के अंगोछे, टोपी और भगवा, सफेद, काले, पीले चोलाधारी ऐसे ही अपनी जुबानों से ज़हर उगलते रहेंगे और आदमी ही आदमी से कब तक खौफ खाता रहेगा? और भी बहुतेरे सवाल हैं, जो नेताओं, सत्ताधीशों, समाजसेवकों और जागरूक जनता से जवाब मांग रहे हैं। रेतीले प्रदेश राजस्थान में आतंकियों ने एक सीधे-सादे दर्जी को बड़ी बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। अपने आकाओं के निर्देश पर नरसंहार करने वाले नराधमों ने हत्या का वीडियो बनाया, देश और दुनिया को दिखाया। इतना ही नहीं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या तक की धमकी भी दे डाली। इतनी हिम्मत उन्होंने वहीं से पायी जहां से पहले भी धर्म के नाम पर खून-खराबा करने वाले जेहादी उन्मादी पाते चले आ रहे हैं। नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले अमरावती के दवा व्यापारी उमेश कोल्हे भी कट्टरपंथियों की खूनी हैवानियत से नहीं बच पाये। उनकी हत्या के लिए तो उन्हीं का एक दोस्त जिम्मेदार है। उसे जिगरी दोस्त (?) का नूपुर शर्मा के लिए समर्थन करना शूल की तरह चुभा और उसने खुद को आस्तीन का सांप साबित करते हुए आतंकियों के हाथों मित्र की हत्या करवा दी, जो उसकी सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था। उमेश ने युसूफ के बच्चों को स्कूल से लेकर बहन की शादी तक में खुले हाथ से आर्थिक मदद की थी। युसूफ ने उसी हमदर्द दोस्त की पीठ में खंजर घोंप कर मानवता को शर्मिंदा किया है। इस खौफनाक षडयंत्र ने हर किसी को सतर्क कर दिया है। अब तो लोग किसी दोस्त की सहायता करने से पहले हजार बार सोचेंगे...विचारेंगे। फिर वह आसिफ हो या आनंद। राम हो या रहीम। भरोसे का कत्ल करने वाले दरिंदे इधर भी हैं और उधर भी हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो चिंताग्रस्त करने वाले रक्तिम मंज़रों की झड़ी न लगी होती। कोई भी धार्मिक स्थल हो, वहां से आपसी सद्भाव और एकता के स्वर सतत गूंजने चाहिए। मंदिर, मस्जिद, दरगाह, चर्च, गुरुद्वारा आदि की स्थापना का एक ही उद्देश्य होता है, अमन, शांति, आपसी भाईचारा और मानव कल्याण, लेकिन इन दिनों कुछ इबादत के पवित्र स्थलों में अपवित्र आतंकी सोच वाले चेहरे घुसपैठ कर चुके हैं।
    अजमेर शरीफ दरगाह के नाम से हिंदू, मुसलमान, सिख, इसाई, बौद्ध आदि सभी वाकिफ हैं। देश और विदेशों से हर धर्म के लोग अजमेर शरीफ दरगाह में जाकर सिर झुकाते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं, चादर चढ़ाते हैं। खुले हाथों दान-दक्षिणा देने में कोई कमी नहीं करते। इसी अजमेर शरीफ को अपना ठिकाना बना चुके कुछ असामाजिक तत्व लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आते। अजमेर शरीफ के खादिम सलमान चिश्ती ने तो नूपुर शर्मा की गर्दन उड़ाने वाले को अपना मकान तक देने का ऐलान कर अपने अंदर छुपे, बैठे शैतान के दीदार करवा दिए। यह उसकी नीचता, कू्ररता और हैवानियत ही तो है, जिसके वशीभूत होकर वह सोशल मीडिया पर वायरल किये गए वीडियो में बकता नज़र आया कि, ‘‘वक्त पहले जैसा नहीं रहा, वरना वह बोलता नहीं, कसम है मुझे पैदा करने वाली मेरी मां की, मैं उसे सरेआम गोली मार देता, मुझे मेरे बच्चों की कसम, मैं उसे गोली मार देता और आज भी सीना ठोककर कहता हूं, जो भी नूपुर शर्मा की गर्दन लाएगा मैं उसे अपना घर दे दूंगा और रास्ते पर निकल जाऊंगा, ये वादा करता है सलमान।’’ धर्म  की बेहद नशीली अफीम चाट-चाटकर पगलाया यह शख्स कहीं से भी शरीफ आदमी नहीं लगता। उसके संगी-साथी भी जहरीली बोली बोलने में पीछे नहीं हैं।
    हिस्ट्रीशीटर सलमान को जब पुलिस ने दबोचा तब भी वह बड़ी बेशर्मी के साथ मुस्कुराता और खिलखिलाता नज़र आया। ऐसे दरिेंदे से नफरत करने की बजाय एक खाकी वर्दीधारी को उस पर रहम खाते और बचने के उपाय सुझाते देख लोग गुस्से की आग में धधक उठे। ‘‘यदि तुम यह कह दोगे कि मैंने शराब पी रखी थी उसी के नशे में अंट-शंट बक गया। वैसे मैं बहुत भला आदमी हूं। किसी की हत्या करने या करवाने की तो सोच भी नहीं सकता।’’ देशवासियों की भावनाओं को भड़काने के लिए इन दिनों एक से एक शैतानी सोचवाले चेहरे सामने आ रहे हैं। कनाडा में रह रही एक भारतीय नारी, मणिमेकलाई ने ‘काली’ नाम की फिल्म बनायी, जिसमें हिंदुओं की अराध्य देवी मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया है। ये खेली-खायी औरत जानती थी कि उसकी इस धूर्तता का पूरे भारत में विरोध होगा। फिर भी उसने हिंदुओं की आस्था पर जबर्दस्त प्रहार किया और खुद को सही ठहराने के लिए कई कुतर्क भी पेश कर दिए। शर्म और आक्रोश भरी हकीकत ये भी है कि हिंदू देवी-देवताओं का उपहास उड़ाने वालों के पक्ष में भी कुछ असली-नकली नेता, सांसद, विधायक, लेखक, संपादक, पत्रकार तक तुरंत खड़े हो जाते हैं। आतंकवादियों अपराधी तत्वों के साथ भी ऐसे लोगों को खड़ा देखा जाता है। पुलिस जब कट्टर आतंकियों को गोलियों से भूनती है तो उनकी आंखों से ऐसे आंसू टपकने लगते हैं, जैसे वे इनके करीबी रिश्तेदार हों। दुष्ट और ओछी राजनीति करते चले आ रहे स्वार्थी नेताओं ने ही इस देश का बेड़ा गर्क करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इन्हीं की जहरीली सोच और साजिशों ने देश को अभूतपूर्व संकट के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। इतिहास गवाह है कि, अपने देश के कुछ टुच्चे नेता सत्ता के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं। गेंडे से भी अधिक मोटी चमड़ी वाले ये मतलबी अपने फायदे के लिए नीच से नीच हरकत कर सकते हैं। किसी का भी रक्त बहता देख सकते हैं। देश इन दिनों अग्निपरीक्षा से गुजर रहा है। साम्प्रदायिक सद्भाव को खत्म करने के बीज बोने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करना अत्यंत जरूरी है। कट्टर विचारधारा के हर शख्स से समाज को दूरियां बनानी होंगी। उन्हें अपने नजदीक भी नहीं आने देना होेगा। सरकार को भी मजबूर करना होगा कि उन पर भूलकर भी रहम न करे। उन्हें वोट देने के अधिकार से भी वंचित करने के साथ-साथ फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जिससे वे किसी भी हालत में अपने दुष्कर्मों की सज़ा भुगतते नजर आएं। और हां...शासन की किसी भी योजना का फायदा भी उन्हें न मिलने पाए। देश को अब तो केवल और केवल राष्ट्रप्रेमी जनता ही बचा सकती है। अराजकता तो अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है। जनता यदि अभी भी नहीं जागी तो हालात और भी बदतर होने तय हैं।

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