Wednesday, August 10, 2022

दुनिया तुम्हें देखे

    समय की ताकत को कोई भी नहीं पहचान पाया। यह इतना शक्तिशाली है कि बड़े-बड़े सूरमा पलक झपकते ही इसके सामने नतमस्तक हो जाते हैं, तिनके की तरह बिखर-बिखर जाते हैं। यह वक्त ही है जो राजा को रंक तो रंक को राजा बनाता है। यह भी अकाट्य सत्य है कि अनुकूल और प्रतिकूल हालात जीवन के ही रंग हैं जो हर इंसान को देखने ही पड़ते हैं। कोई इन बदलते दृश्यों से घबरा जाता है तो कोई अपने रास्ते तलाश कर लेता है। कोई भी कठिनाई कई लोगों को रास नहीं आती। उन्हें लगने लगता है कि अपने बस में अब कुछ भी नहीं रहा। हमारी तो किस्मत ही खराब है। सतत सघर्षों से जूझते और सफलताओं-असफलताओं से मेल-मिलाप करते रहे एक विख्यात लेखक और अभिनेता कहते हैं कि अगर हम हारें नहीं तो बहुत कुछ कायम रहता है। जिन्दगी से जो चाहिए, मांग कर तो देखिए। निराश होकर हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने वालों को यहां कुछ नहीं मिलता। वे तो बस दूसरों के लिए तमाशा ही बनकर रह जाते हैं।
एक ही शहर में एक ही समय में दो लोगों को अचानक अपनी आंखों की रोशनी खोनी पड़ी। एक तो निराशा के सागर में डूब गया और पेट भरने के लिए फौरन उसने भीख मांगने का रास्ता चुना। वर्षों बाद आज भी उसे शहर के मंदिर के सामने भीख का कटोरा थामे देखा जा सकता है। कई बार उसे दुत्कारा और फटकारा भी जाता है। तुम्हें शर्म नहीं आती, अच्छे खासे हट्टे-कट्टे होकर भी भीख मांगते हो! लोगों की गालियां सुनने की तो उसे आदत पड़ चुकी है। दिन भर भीख में जो चंद सिक्के मिलते हैं, उन्हीं से शाम होते ही दारू खरीद कर पीता है और नशे में बेसुध होकर यहां-वहां सो जाता है। दूसरे शख्स ने आंखों की रोशनी खोने के बाद भी निराशा का दामन नहीं थामा। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद हार नहीं मानी। संघर्ष-दर संघर्ष करते हुए अपनी राह बनायी। अंधेरे को उजाले में बदला। सड़कों पर पेन बेचे, अगरबतियां बेचीं तथा और भी कई सामान बेचकर अपना मस्तक ताने रखा। पिछले तीस साल से दृष्टि बाधित इस लड़ाकू इंसान को आज भी तामिलनाडु के शहर मदुरे में स्थित सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में किताबें, पैम्फलेट और पत्रिकाएं बनाने के लिए मुद्रित पृष्ठों को काटते, सिलते व स्टेपल करते देखा जा सकता है।
     भावेश भी दृष्टिहीन हैं। उम्र पचास के आंकड़े को पार कर चुकी है, लेकिन उनकी हार नहीं मानने की दूर-दूर तक कोई सानी नहीं। भावेश की बचपन में ही रेटिना मस्कुलर डेटोरिएशन की बीमारी के कारण आंखों की रोशनी कुछ कमजोर थी। 23 साल की उम्र में जब वह एक बड़े होटल में मैनेजर थे तभी उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से जाती रही। अच्छा-खासा इंसान बेबस और बेरोजगार हो गया, लेकिन भावेश ने खुद को कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने तो बस तकलीफों और परेशानियों के समंदर को तैर कर पार करने की ठान ली। इस दौरान कैंसर से जूझ रही मां चल बसी, लेकिन उनकी सीख बेटे के खून में दौड़ रही थी, ‘तुम भले ही दुनिया न देख सको, लेकिन दुनिया तुम्हें देखे।’ भावुक और संवेदनशील भावेश की कला के प्रति बचपन से ही दिलचस्पी थी। तीन-चार वर्षों तक घूम-घूमकर मोमबतियां बेचीं। उसके पश्चात कुछ बड़ा करने की ठानी। नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड में एक साल रहकर कैंडल मेकिंग सहित अपनी अभिरुचि के कुछ और भी कई कोर्स किए। 1994 में महाबलेश्वर में सनराइज कैंडल की स्थापना की। कुछ समय के पश्चात अलग-अलग शहरों में मोमबती के स्टॉल लगाने प्रारंभ कर दिए। 2007 में पुणे में आयोजित विशाल प्रदर्शनी में एक साथ 12 हजार मोमबतियां प्रदर्शित कर भावेश ने लाखों की संख्या में आये लोगों का दिल जीत लिया। यही वो शानदार मौका था, जिसने भावेश की किस्मत ही बदल दी। आज भावेश मोमबती व्यवसाय के अत्यंत प्रेरक सम्राट हैं। अरबपति हैं। रोशनी देने वाले व्यवसाय से कई घरों में उजाला करते भावेश लगभग दस हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने का कीर्तिमान रच चुके हैं। उनकी जिंदगी का यही उद्देश्य है, उम्मीद का हमेशा दामन थामे रहो, सब मिलकर आगे बढ़ो और आसपास ही अवसर खोजते रहो। उनके माध्यम से हजारों लोगों ने मोमबती बनाने का हुनर सीखकर अपनी जिन्दगी संवारी है और संवार रहे हैं। ध्यान रहे कि वर्तमान में एक हजार से ज्यादा मल्टीनेशनल कंपनियां सनराइज कैंडल्स की ग्राहक हैं। अपनी अटूट मेहनत और जुनून की बदौलत सफलता के शिखर को छूने वाले कर्मवीर भाटिया आज हर किसी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
    बीते दिनों देश भर में अखबारों और न्यूज चैनलों पर यह खबर छायी रही, ‘गुजरात के जूनागढ़ निवासी सोलंकी परिवार ने पांच घंटे में दो स्वजनों को खोने के बाद भी ‘मृत्यु को महोत्सव’ में तब्दील कर दिया। सोलंकी परिवार की गर्भवती पुत्रवधू मोनिका बेन की अचानक तबीयत खराब हो गई थी। अस्पताल में ले जाते समय रास्ते में उन्हें मिर्गी का तेज दौरा पड़ा। मोनिका तो इलाज के दौरान चल बसीं, लेकिन गर्भस्थ शिशु जीवित था। परिवारजनों की सहमति पर डॉक्टरों ने सीजर कर प्रसव करवाया, लेकिन कुछ देर के बाद नवजात बालिका ने भी दम तोड़ दिया। मात्र पांच घण्टों में दो स्वजनों को खोने की पीड़ा से जूझते सोलंकी परिवार को मोनिका बेन के नेत्रदान के संकल्प की याद थी। उनकी आंखों से कोई और भी ये संसार देख सके इसलिए नेत्रदान और फिर बाद में बैंडबाजे के साथ अंतिम संस्कार किया।
    आध्यात्मिक गुरू और लेखक (स्वामी मुक्तानंद) का कथन है कि हम सब सुखी और सफल जीवन जीना चाहते हैं, किंतु हमसे अधिकांश लोग या तो ऐसा जीवन जीने के लिए आवश्यक जरिए नहीं जानते या फिर हमें उसके लिए आवश्यक कीमत पता नहीं होती अथवा इस विषय में गलत अवधारणाएं होती हैं। हमारी किसी भी उपलब्धि के पीछे एक चीज़ है हमारे विचार। हम जीवन में जो कुछ भी करते हैं उसके प्रणेता हमारे ही विचार होते हैं। जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है। हौसले की उड़ान को कोई नहीं रोक सकता। कहने को तो ये शब्द हैं, लेकिन इनके अर्थ को सार्थक करने वालों को हमेशा सम्मानित और याद किया जाता है।
    स्वतंत्र भारत में हर भारतीय को अपने मन की करने की पूर्ण आजादी है। इस हक को कोई भी नहीं छीन सकता। अपनी सुख-सुविधाओं और खुशियों के साथ-साथ दूसरों की तमन्ना और प्रसन्नता में खलल डालने का किसी को कोई अधिकार नहीं है। यह अटल हकीकत है कि ओछी और गिरी हरकतें हमेशा नापसंद की जाती हैं। स्वार्थी लोगों से भी दूरी बनाने का जगजाहिर चलन है। यहां उसी को इज्जत मिलती है जो अपने स्वाभिमान को जिन्दा रखता है और कभी किसी को आहत नहीं करता। हमेशा संघर्षरत रहना जिन्दा इंसान की ही पहचान है। अच्छी  साख और मान-मर्यादा ही तो हम सभी कि एकमात्र दौलत है...। 15 अगस्त...स्वतंत्रता दिवस, अमृत महोत्सव की हर सजग देशवासी को अपार शुभकामनाएं...ढेरों बधाइयां।

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