Thursday, August 25, 2022

सवाल तो जरूर उठेंगे...

    भारत वर्ष का ही एक गांव है, व्यासपुरा। इसी गांव की एक नाबालिग दलित लड़की मोहल्ले की दुकान पर सामान लेने गई थी तभी दो युवकों ने इशारा कर उसे अपने पास बुलाया। कोई काम होगा, यह सोचकर वह उन तक गई। तो उन्होंने उसे बंदूक दिखायी, डराया, धमकाया और चुपचाप साथ चलने को कहा। किसी सुनसान स्थान पर ले जाकर उस पर बलात्कार कर दोनों यह कहकर चलते बने कि अगर पुलिस वालों को खबर की तो तुम्हारे मां-बाप को मार डालेंगे। लड़की के साथ हुई बातचीत और यहां तक कि उसके साथ हुए दुष्कर्म को भी गांव के ही कुछ लोगों ने अपनी आंखों से देखा, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा। देखकर भी अनदेखा कर अपने-अपने घरों में जाकर बैठ गये। लड़की ने अपने घर में जाकर अपने साथ हुई दरिंदगी की जानकारी दी तो मां-बाप का खून खौल उठा। वे फौरन बेटी को लेकर पुलिस स्टेशन जा पहुंचे। वहां पर जो खाकी वर्दीधारी विराजमान थे उनका अपने दायित्व और कर्तव्य से कोई लेना-देना नहीं था। वे बलात्कारियों के रुतबे से वाकिफ थे। हो सकता है उन्हें कुछ धन देकर समझा दिया गया हो कि उन्हें क्या करना है। बिक चुके पुलिसियों ने लड़की के मां-बाप से कहा, जो होना था हो गया। थाने और कोर्ट-कचहरी के चक्कर में पड़ोगे तो अपना घर बेचने की नौबत आ जाएगी। फिर भी न्याय नहीं मिल पायेगा। वे करोड़पति हैं, अपने बचाव के लिए महंगे से महंगे वकीलों को खड़ा करने की अथाह ताकत रखते हैं। तुम कितना भी जोर लगा लो, उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे, इसलिए अक्लमंदी इसी में है कि कुछ रुपये लेकर समझौता कर लो और चुपचाप घर में जाकर आराम करो।
    उत्तरप्रदेश के हमीरपुरा में एक लड़की अपने ब्वॉयफ्रेंड के साथ गार्डन में बैठी थी। तभी वहां छह लड़के आए और उन दोनों से पूछताछ करने लगे। कहां रहते हो? यहां क्या काम करने आए हो? दोनों ने बड़ी अदब के साथ उनके हर सवाल का जवाब दिया, लेकिन उनकी तो नीयत में ही खोट था। उन बदमाशों ने पहले तो दोनों को डंडे और बेल्ट से मारा-पीटा। दोनों हाथ जोड़ते रहे लेकिन उन्होंने लड़की को निर्वस्त्र कर वीडियो बनाया। गार्डन में मौजूद तमाशबीन इसलिए चुप्पी साधे रहे क्योंकि जिस लड़की के कपड़े उतारे गये वह न तो उनकी बेटी थी और न ही कोई करीबी रिश्तेदार।
    बिहार की राजधानी पटना से लगे नौबतपुरा में एक व्यक्ति ने अपनी बेटी पर एक-एक कर पांच गोलियां इसलिए दागीं क्योंकि उसका किसी युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था। युवती अस्पताल में मौत से जंग लड़ रही है। युवती की मां ने पूछताछ में पुलिस से कहा कि गोलियां गलती से चलीं। जब पुलिस ने सवाल दागा कि गलती से तो एकाध गोली चल सकती है, पांच गोलियां कैसे चलीं? पतिव्रता पत्नी से इस प्रश्न का जवाब देते नहीं बना। वह तो येन-केन-प्रकारेण अपने पति परमेश्वर को कानून के शिकंजे से बचाना चाहती थी।
    किसी को बचाने और किसी को फंसाने के खेल में सच फांसी के फंदे पर लटका दिखायी दे रहा है। कुछ दिन पहले एक खबर पढ़ी। शीर्षक था, दुष्कर्म के मुआवजे में घूस। राजस्थान में बलात्कार की शिकार नाबालिग बच्चियों को अधिकतम पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का प्रावधान है। राजस्थान के पाली में वासना के भूखे भेड़ियों ने आठ साल की एक बच्ची से दुष्कर्म कर सड़क पर फेंक दिया। सरकारी योजना के तहत बच्चों के भविष्य के लिए सवा चार लाख की राशि स्वीकृत की गयी थी। इस सहायता राशि को बच्ची के मां-बाप को देने में बाल कल्याण समिति के कर्ताधर्ताओं को तकलीफ होने लगी। बच्ची के मां-बाप जब चक्कर काट-काटकर थक गये तो उन्होंने समिति के अध्यक्ष से पूछा कि आखिर वे चाहते क्या हैं? तो उन्होंने बड़ी बेशर्मी से कहा कि जब तुम्हें मुफ्त में माल मिल रहा है तो हमें हमारा हिस्सा भी तो मिलना ही चाहिए। सरकारी मुआवजे की राशि में रिश्वत के रूप में अपना दस प्रतिशत हिस्सा मांगने वाले बेईमानों को एसीबी की टीम ने गिरफ्तार तो कर लिया है, लेकिन इस लूट परंपरा पर ज़रा भी आंच नहीं आई है। बलात्कारी भी बेखौफ हैं। यह सच कितना चौंकाने वाला है कि राजस्थान में ही कई बच्चियां दुष्कर्मियों की शिकार होकर गर्भवती तक हो जाती हैं, लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिलता। सरकारी मुआवजा तो बहुत दूर की बात है। नारियों से बलात्कार  और अन्याय के मामले में अकेले राजस्थान को कटघरे में करने का हमारा कोई इरादा नहीं। हमारे देश के हर प्रदेश में बच्चियां, और महिलाएं असुरक्षित हैं। महिलाओं को अपने घर से बाहर निकलते ही कई मुश्किलों तथा खतरों से रूबरू होना पड़ता है। अस्मत के लुटेरे ताक में लगे रहते हैं, मौका पाते ही अपनी मनमानी कर गुजरते हैं। कार्यालयों, स्कूलों, कॉलेजों, सड़कों, चौराहों, बसों, रेलगाड़ियों, बाग-बगीचों में घोषित गुंडे-बदमाशों तथा सफेदपोशों की गंदी निगाहें नारी देह पर विषैले सांप की तरह रेंगती रहती हैं। महिलाओं पर छींटाकशी करना, घूरना और अभद्र इशारे करना उनके लिए मनोरंजन का साधन है। कामकाजी महिलाएं और छात्राएं उचक्कों की सीटीबाजी, शारीरिक छेड़छाड़ और अश्लील शब्दावली को सुनते-सुनते तंग आ जाती हैं। तमिलनाडु में महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक नया कानून बनाया गया है। यदि कोई सड़क छाप मजनू या सफेदपोश रसिक महिलाओं के साथ गंदी अभद्र हरकतें करते पाया और पकड़ा जाता है तो उसे जेल की हवा खाने से कोई नहीं बचा पाएगा। उसका सलाखों के पीछे पहुंचना तय है।
    महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो पहले भी बने हैं। देश का हर प्रदेश खुद को महिलाओं के सशक्तिकरण का पक्षधर दिखाने की कोशिश करता है। केंद्र सरकार के सत्ताधीश भी नारियों के सम्मान पर कोई आघात नहीं लगाने की सीख देते नहीं थकते, लेकिन अधिकांश राजनेता खुद नारी को कितना सम्मान देते हैं, इसका पता उनकी बातों और व्यवहार से चलता रहता है। इस कलमकार ने कितने नेताओं को मां-बहन की गालियां देकर गर्वित होते देखा है। यह सच भी जगजाहिर है। कई अश्लील गालीबाज और बलात्कारी तो विधायक और सांसद भी बनने में सफल हो जाते हैं। उन पर सवाल भी उठते हैं, लेकिन उनका बस यही रट्टा-रट्टाया जवाब होता है कि उनसे ज्यादा चरित्रवान तो और कोई हो ही नहीं सकता। राजनीति में ऐसे झूठे आरोपों का सुनने और सहने की तो हमारी आदत पड़ चुकी है। कुत्ते भोंकते रहते हैं और हाथी अपनी चाल में मस्त चलता चला जाता है। खुद को हाथी बताने वालों ने ही देश के लोकतंत्र को शर्मिंदा कर रखा है। जहां पुलिस बिक रही हो, अमीर अपराध पर अपराध के बाद भी कानून के शिकंजे से दूर न्याय व्यवस्था की खिल्ली उड़ा रहे हों और गरीब न्याय के लिए तरस रहे हों तो वहां सवाल तो उठने ही हैं। वो दौर खत्म हुआ जब न्यायाधीशों को न्याय का देवता माना जाता था, लेकिन अब तो उन पर भी उंगलियां उठने लगी हैं। ये भी सच है कि सभी जज दागी नहीं, लेकिन ये भी तो सच है कि एक सड़ी हुई मछली सारे तालाब को गंदा और विषैला बनाकर रख देती है। आज देश की लगभग व्यवस्था क्यों कटघरे में है इसका जवाब भुक्तभोगी बड़ी आसानी से दे सकते हैं, लेकिन उनकी यहां सुनता कौन है?

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