Saturday, December 10, 2022

अब नहीं, तो कब बदलेंगे?

‘‘बहकना मत बेटियों
कुल को समझो खास।
पैंतीस टुकड़ों में कटा
श्रद्धा का विश्वास।
भरोसा मत कीजिए
सब पर आंखें मींच
स्वर्ण मृग के भेष में
आ सकता है मारीच...।’’

    बेटियों के वीभत्स और राक्षसी हत्याकांड की खबरें सिर्फ मां-बाप को ही नहीं दहलाती, डरातीं। हर संवेदनशील इंसान को भी चिंताग्रस्त कर उसकी नींद उड़ा देती हैं। श्रद्धा को अपने मोहपाश में बांधकर आफताब ने जो हैवानियत और दरिंदगी दिखायी, उससे जवान बेटियों के माता-पिता जहां भीतर तक सिहर गए, वहीं सजग कलमकारों ने भी लड़कियों को बहुत सोच समझकर अपने फैसले लेने की सलाह देते हुए बहुत कुछ लिखा। उन्हीं रचनाकारों में से किसी एक ने श्रद्धा हत्याकांड से आहत होकर जो कविता लिखी उसी की ही हैं उपरोक्त पंक्तियां, जिन्हें मैं आप तक पहुंचाने से खुद को रोक नहीं पाया। हर मां-बाप की यही तमन्ना होती है कि उनकी बेटी खुश रहे। उसका ब्याह ऐसे इंसान से हो, जो उसे दुनियाभर की सुख-सुविधाएं, मनचाही खुशियां, सुरक्षा और मान-सम्मान दे। इस पवित्र रिश्ते में जुड़ने के बाद उनकी बेटी को कभी भी यह न लगे कि उसका किसी गलत व्यक्ति से पाला पड़ गया है और उसे मजबूरी में रिश्ते को निभाना पड़ रहा है। हमारे यहां के बुजुर्ग अपनी बेटियों, बहनों, नातिनों, पोतियों के ब्याह के लिए योग्य लड़का तलाशने में जमीन-आसमान एक कर दिया करते थे। बेटी-बहन के भावी पति के बारे में हर तरह की जानकारी जुटाने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लेते थे, लेकिन अब जमाना बदल गया है। विचारों में भी परिवर्तन आ गया है। परंपराएं टूट रही हैं। पुरानी परिपाटियां तोड़ी जा रही हैं। 

    अधिकांश मां-बाप की यही ख्वाहिश होती है कि उनके चुनाव और सुझाव की अवहेलना न हो। उन्हें अपने फैसले और चुनाव पर भरपूर यकीन होता है। जल्दबाजी, नासमझी और भावुकता की तेज धारा में बहकर गलत फैसले लेने वाली लड़कियों का हश्र उनसे छिपा नहीं रहता। आफताब के प्यार में पागल हुई श्रद्धा ने जब अपने रिश्ते के बारे में अपने घर वालों को बताया तो उन्हें बिलकुल पसंद नहीं आया। श्रद्धा समझ गई कि आफताब का मुस्लिम होना उनकी अस्वीकृति की प्रमुख वजह है। श्रद्धा ने उन्हें मनाने तथा समझाने की बहुतेरी कोशिशें कीं, लेकिन वे जिद पर अड़े रहे। आखिरकार श्रद्धा ने माता-पिता को यह कहकर झटका दे दिया कि वह अब बच्ची नहीं, बड़ी हो चुकी है। वयस्क होने के कारण उसे अपने सभी फैसले लेने का कानूनन हक है। 

    2022 के नवंबर महीने में जब आफताब के हाथों श्रद्धा के पैंतीस टुकड़े किये जाने की खबर देश के तमाम न्यूज चैनलों तथा अखबारों में सुर्खियां बनकर गूंजीं तो देशवासी हतप्रभ रह गये। प्रेमी के हाथों टुकड़े-टुकड़े हुई श्रद्धा भी लोगों के निशाने पर आ गई : अपने मां-बाप की सलाह मान लेती तो इतनी बुरी मौत नहीं मरती। अपनी मनमानी करने वाली नालायक औलादों का अंतत: यही हश्र होता है। अरे भाई, जब इतनी समझदार थी तो अपने लिव-इन पार्टनर के महीनों जुल्म क्यों सहती रही? जिस दिन उसने हाथ उठाया, गाली-गलौच की, उसी दिन उसको अकेला छोड़कर नई राह पकड़ लेती। कॉल सेंटर की अच्छी खासी नौकरी थी। भूखे मरने की नौबत आने का तो सवाल ही नहीं था। कौन नहीं जानता कि आफताब जैसे धूर्त अपनी प्रेमिकाओं को अपने खूंटे से बांधे रखने के लिए कितनी-कितनी चालें चलते हैं, लेकिन पच्चीस साल की यह वयस्क युवती उसके इन साजिशी शब्द जालों के मायने ही नहीं समझ सकी कि यदि तुमने मेरा साथ छोड़ दिया तो मैं खुदकुशी कर लूंगा। ऐसे निर्दयी लोग मरते नहीं, मारा करते हैं। जब सिर पर मौत का खतरा मंडरा रहा था तो अपने मां-बाप के घर भी तो जा सकती थी। वो कोई राक्षस तो नहीं थे, जो बेटी को सज़ा देने पर उतर आते। अपनी गलती को स्वीकार कर माफी मांग लेती तो वे अपनी बेटी को जरूर गले लगा लेते। 

    श्रद्धा हत्याकांड को लेकर जितने मुंह उतनी बातों के शोर तथा तरह-तरह की खबरों को सुनते-पढ़ते मेरी आंखों के सामने जूही का चेहरा घूमने लगा। पांच वर्ष पूर्व जूही कॉलेज की पढ़ाई के दौरान एक मुस्लिम युवक के प्रेम पाश में ऐसी बंधी कि कालांतर में दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली। शादी से पूर्व जूही ने अपने मां-बाप को मनाने के भरसक प्रयास किये थे। मां तो मान भी गईं थीं, लेकिन पिता नहीं माने। जूही के पिता कॉलेज में लेक्चरर थे। हिंदी और अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान! अंत तक अड़े रहे। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं अपनी बेटी की शादी किसी दूसरे धर्म के लड़के से हर्गिज नहीं होने दूंगा। शादी के कुछ दिन बाद जूही को जब लगा कि अब पिता शांत हो गये होंगे तो वह उमंग और खुशी में झूमती अपने माता-पिता के घर जा पहुंची। मां जैसे ही दामाद और बेटी के स्वागत के लिए तत्पर हुई तभी जंगली जानवर की सी फुर्ती के साथ पिता ने बेटी पर गंदी-गंदी गालियों की बरसात करते हुए आदेशात्मक स्वर में कहा कि, इस घर में फिर कभी पैर रखने की भी जुर्रत मत करना। बस यह समझ लेना कि हम तुम्हारे लिए मर चुके हैं। 

    जूही को फिर कभी किसी ने उस घर में नहीं देखा, जहां वह जन्मी और पली बढ़ी थी। इस दौरान जूही दो बच्चों की मां भी बन गई। पति ने उस पर प्यार बरसाने में कभी कोई कमी नहीं की। लोग इस आदर्श जोड़ी को देखकर तारीफें करते नहीं थकते। पिछले साल अचानक हार्ट अटैक से पिता के गुजरने पर भी जूही को घर में नहीं घुसने दिया गया। यह बंदिश उसके भाइयों को अपने पिता के कारण लगानी पड़ी थी, जिन्होंने घर के सभी सदस्यों को पहले से ही कह रखा था कि मेरी मौत के बाद भी जूही के कदम घर में नहीं पड़ने चाहिए। श्मशान घाट पर पुरुषों की भीड़ थी। महिलाएं श्मशान घाट पर नहीं जातीं, लेकिन जूही श्मशान घाट पर अपने पिता की जलती चिता के सामने अंत तक आंसू बहाती खड़ी रही थी। यह मार्मिक द़ृष्य देखकर मैं भी अपनी आंखों को नम होने से नहीं रोक पाया था। श्रद्धा के माता-पिता जूही के पिता की तरह जिद्दी और कू्रर रहे होंगे इस पर ज्यादा विचार-मंथन करने का कोई फायदा नहीं। श्रद्धा तो अब लौटने से रही, लेकिन किसी युवती के साथ घर परिवार वालों का ऐसा दुत्कार भरा आहत करने वाला व्यवहार न हो इस पर चिंतन-मनन तो किया ही जा सकता है। न्यूज चैनलों और अखबारों में ऐसी खबरें आती ही रहती हैं। मीडिया इन खबरों को इसलिए प्रचारित-प्रसारित करता है कि बेटियां सतर्क और सावधान हो जाएं। बच्चे कितने ही बड़े क्यों न हो जाएं माता-पिता के लिए तो बच्चे ही रहते हैं। अपनी बेटियों का ऐसा विभत्स अंत उन्हें जीते जी मार डालता है। राजेशों, सुशीलों तथा आफताबों के चंगुल से बचाये रखने का दायित्व सिर्फ मां-बाप का ही नहीं है। 

    यह भी सच है कि आज भी अपने यहां का समाज और परिवार पूरी तरह से इतने खुले दिल के नहीं हुए हैं कि वे लिव-इन-रिलेशन और प्रेम विवाह के लिए तुरंत हामी भर दें। कुछ परिवार तो आज भी लड़के-लड़की की दोस्ती को पसंद नहीं करते। उन्हें वो खबरें डराती रहती हैं, जो अक्सर पढ़ने और सुनने में आती हैं। लेकिन किसी भी श्रद्धा और नैना को अपने प्रेमी का पूरा सच भी कहां पता होता है। साथ रहने के बाद ही हकीकत बाहर आती है। युवकों की तरह युवतियों में भी बगावत की प्रवृत्ति का होना सहज बात है, लेकिन फिर भी अधिकांश मां-बाप बेटियों से कुछ और ही उम्मीद रखते हैं। उनके लिए बेटियों का आज्ञाकारी और संस्कारवान होना जरूरी है। 

लेकिन प्रश्न यह भी है कि लिव-इन में रहने, प्रेम विवाह करने तथा किसी गैर धर्म के युवक से विवाह सूत्र में बंध जाने से संस्कारों की तो हत्या नहीं हो जाती। अपवाद और खतरे कहां नहीं हैं? परिवारों को झूठी शान के घेरे से बाहर आना ही होगा। तभी ऐसी मौतें थमेंगी। कोई भी श्रद्धा आफताब की नीयत को पहचानने के बाद एक मिनट भी उसके नजदीक नहीं रहेगी। फौरन अपने माता-पिता, भाई-बहनों के पास लौट आएगी। ऐसी क्रूर घटनाओं से यदि सबक नहीं लिया जाता तो यह नादानी और बेवकूफी की हद होगी। यह भी सच है कि इस तरह के मोहजाल में फंसने वाली युवतियों में कहीं न कहीं यह उम्मीद बनी रहती है कि उनके साथी में आज नहीं तो कल बदलाव आ ही जाएगा। कई इस इंतजार में उम्र गुजार देती हैं। बगावत कर प्रेम विवाह करने या लिव-इन रिलेशन में रहने वाली महिलाएं जब जान जाती हैं कि उनके साथ जबरदस्त धोखा हुआ है तो उन्हें कई तरह की चिंताएं घेर लेती हैं। कभी परिवार और समाज के सामने शर्मिंदगी की सोच तो कभी जीना भी यहां मरना भी यहां का भाव पैरों में जंजीरें डाल देता है। ऐसी तोड़ देने वाली भयावह स्थितियां अरेंज मैरिज में भी आती हैं। अधिकांश भारतीय परिवार अपनी बेटियों के कान में यह मंत्र फूंकने से नहीं चूकते कि हर हाल में पति से निभाते रहना। शादी के बाद बेटी बेगानी हो जाती है। उस पर मायके का नहीं पति और ससुराल का पूरा हक रहता है। वे जैसा चाहें उनकी मर्जी। अच्छी पत्नी का बस यही फर्ज है कि चुपचाप सहती रहे, उफ... तक न करे। चाहे कितनी भी तकलीफें आएं परिवार और दोस्तों के सामने खुद को खुश और संतुष्ट दिखाती रहे।

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