Saturday, December 10, 2022

चश्मा तो बदलो ज़रा

    पहले बात सुशील शर्मा और नैना साहनी की। हो सकता है आज की नयी पीढ़ी उनके नाम से ही वाकिफ न हो। आज से 27 वर्ष पूर्व इन दोनों का नाम देश और दुनिया में आफताब और श्रद्धा से कहीं ज्यादा जोर से गूंजा था। तब भले ही सोशल मीडिया की धूम नहीं थी फिर भी इनकी खबरें पत्र-पत्रिकाओं में तो महीनों छपती और पढ़ी जाती रही थीं। 1995 के जुलाई महीने में राजधानी दिल्ली गर्मी से परेशान थी। उसी गर्मी की एक रात कांग्रेस का युवा नेता सुशील शर्मा जब अपने घर लौटा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी नैना साहनी टेलीफोन पर मतलूब करीम से हंस-हंसकर बातें कर रही है। मतलूब करीम नैना का पूर्व प्रेमी था। दोनों जी-जान से एक दूसरे को चाहते थे, लेकिन धर्म आड़े आ गया था। नैना के माता-पिता ने दोनों की शादी नहीं होने दी थी। बाद में नैना ने सुशील शर्मा से शादी कर ली। नैना भी सुशील की तरह कांग्रेस की युवा नेता थी। 29 वर्षीय नैना को आज़ाद पंछी की तरह उड़ना पसंद था। सुशील शर्मा से शादी ही उसने यह सोचकर की थी कि भविष्य में उस पर किसी भी तरह की कोई रोक-टोक और बंदिश नहीं होगी। वह जो चाहेगी वही करने के लिए स्वतंत्र होगी, लेकिन सुशील के लिए पत्नी का अर्थ था, ऐसी औरत जो पति को आंख मूंदकर अपना परमेश्वर माने। उसके हर आदेश का सिर झुकाकर पालन करे। वो दिन को रात कहे तो वह किसी भी तरह की आनाकानी न करे। खुले दिल की नैना विवाह के बाद भी अपने पूर्व प्रेमी को नहीं भूली थी। जब भी कोई मौका हाथ आता तो दोनों हंस बोल लेते। एक दूसरे का हालचाल भी जान लेते। यही हकीकत सुशील को बहुत चुभती थी। वह शंका की आग में जलता रहता था कि जिस पर उसका पूरा हक है, वह किसी और के बारे में भी सोचती है। उसका हालचाल लेती है और अपना हालचाल उसे बताती है। इसी बात को लेकर सुशील और नैना में हमेशा जुबानी जंग तो कभी-कभार मारपीट भी होती रहती थी। संदेह की आग में झुलसते सुशील ने अपने जासूसों को भी नैना के पीछे लगा रखा था। उस रात जब वो घर लौटा तो उसने देखा कि नैना टेलीफोन पर किसी से बात कर रही है। अपनी बात खत्म करने के बाद जैसे ही नैना ने फोन रखा तो सुशील ने री-डायल कर दिया। उसकी शंका में जान थी। दूसरी तरफ उसका पूर्व प्रेमी मतलूब करीम ही था। अथाह गुस्से के मारे उसका खून खौल गया। नैना कुछ जान और समझ पाती इससे पहले ही उसने उसे गोलियों से भून डाला। 

    पत्नी की लाश कमरे के फर्श पर पड़ी थी और पति उसे ठिकाने लगाने की तरकीबें खोजने में लग गया। इसी दौरान उसने अपने किसी खास शातिर दोस्त को भी वहां बुलवा लिया। दोनों ने मिलकर पहले तो नैना के मृत शरीर को बड़े से प्लास्टिक में लपेटा फिर उसे चादर में बांधकर अपनी कार की डिक्की में रख अशोक यात्री निवास जा पहुंचे। यह होटल सुशील शर्मा का ही था। लाश को फौरन तंदूर पर रखा गया। तंदूर का मुंह छोटा होने के कारण लाश का एक साथ तंदूर में समाना संभव नहीं था, इसलिए उसे चाकू से धड़ाधड़ टुकड़ों में काटा गया। नारी जिस्म के टुकड़ों पर मक्खन का लेप लगाकर दोनों कसाई उन्हें जलते तंदूर में धड़ाधड़ डालने लगे, जिससे धधकते तंदूर की आग की लपटें तेज होती चली गयीं। इंसानी जिस्म के जलने की तीखी गंध और धुआं भी ऊपर की तरफ उठने और फैलने लगा। तभी किसी सब्जी बेचने वाली महिला का ध्यान उस तरफ गया तो वह आग...आग कहकर शोर मचाने लगी। महिला के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज जैसे ही वहां गश्त लगा रहे पुलिस कर्मी ने सुनी तो वह तुरंत मौके पर जा पहुंचा। उसे यह कहकर अंदर जाने से जबरन रोका गया कि यह नेताजी का होटल है, किसी ऐरे-गैरे का नहीं। अंदर पुराने कागजात और पार्टी के झंडे, बेनर, पोस्टर जलाये जा रहे हैं। लेकिन उस सजग और कर्तव्यपरायण खाकी वर्दीधारी ने उनकी एक भी नहीं सुनी। वह दिवार फांदकर अंदर जा पहुंचा। तंदूर में मानव शरीर को जलता देखकर उसके होश उड़ गये। पांव तले जमीन ही खिसक गई। 

    अपनी प्रेमिका-पत्नी का क्रूर हत्यारा सुशील शर्मा 23 साल की सज़ा भुगतने के बाद अपनों के साथ अब बड़े मजे से रह रहा है। जब वह जेल से बाहर निकला तो उसका तिरस्कार नहीं, स्वागत किया गया। कई मीडिया वालों ने उसके प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए उसकी तारीफों के पुल बांधने का अभियान चला दिया।

    देश के एक नामी-गिरामी अखबार ने प्रथम पेज पर हत्यारे की तारीफ करते हुए उसकी ताजी तस्वीर के साथ छापा कि जेल में रहकर शर्मा ने दिन-रात नैना की याद में आंसू बहाए। रिहाई के बाद भी नैना को याद कर उसकी आंखों से पश्चाताप के आंसू बरसने लगते हैं। वह साईं बाबा और देवी दुर्गा का कट्टर भक्त है। ऐसे धार्मिक इंसान के हाथों पता नहीं कैसे इतना बड़ा अपराध हो गया। अपनी प्रिय पत्नी की हत्या करने की उसकी कोई मंशा नहीं थी। गुस्सा अच्छे-अच्छों के दिमाग पर ताले जड़ देता है। फिर होनी तो होनी है, उसे भला कौन टाल पाया है। देश के एक और चर्चित अखबार ने पहले पेज पर उसकी तथा उसके उम्रदराज पिता की भावुक कर देनेवाली तस्वीर लगाते हुए अपने लाखों पाठकों को बताया कि सुशील बचपन से ही अपने माता-पिता का आज्ञाकारी बेटा रहा है। अपने बेटे की रिहाई की खबर सुनकर सुशील की मां घंटों खुशी के आंसू रोती रही। उसने गद्गद् होते कहा कि अब हमारी उम्र दस साल और बढ़ गई। हमारा दुलारा बेटा हमारी सेवा में कोई कसर बाकी नहीं रखेगा। देश के ही किसी और दैनिक ने अपने पाठकों को जानकारी दी कि सुशील शर्मा अपार मनोबल वाला है। हिंद देश को आज ऐसे ही नेताओं की जरूरत है। सुशील ने जेल में मानसिक तनाव से बचने के लिए पांच साल में पांच करोड़ बार गायत्री मंत्र का जाप कर अन्य कैदियों में प्रेरणा का दीप जलाया। शैतान की तारीफों के पुल बांधकर उसके प्रति अपार हमदर्दी दर्शाने वाले मीडिया ने न तो नैना साहनी को याद किया और ना ही उसके परिजनों का हालचाल जानने की सोची। उसके लिए तो नैना साहनी बस किसी के भी हाथों मरने के लिए ही जन्मी थी और यह भूल सुशील जैसे महात्मा के हाथों हो गई। 

    जब-जब सन 2022 की बात होगी तो श्रद्धा हत्याकांड और कुछ अन्य दिल दहला देने वाले ऐसे पाप काण्डों का भी जिक्र जरूर निकलेगा। श्रद्धा भी अपने प्रेमी... पति के हाथों गला घोंटकर मार डाली गयी। मुंबई की 27 वर्षीय श्रद्धा वालकर ने आफताब पूनावाला से बड़ी शिद्दत के साथ प्यार किया था। उसके साथ लिव-इन में रहने के लिए उसने अपने मां-बाप की भी नहीं सुनी थी। श्रद्धा और आफताब दोनों कॉल सेंटर में नौकरी बजाते थे। आफताब की फेमिनिस्ट, समलैगिकता का समर्थक, फोटोग्राफर, फूड ब्लॉगर तथा शेफ होने की खुबियों ने श्रद्धा को अपना अंधभक्त बना दिया था। घूमना-फिरना दोनों को पसंद था। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों की मदमस्त हरियाली के सैर-सपाटे के साथ और भी कई जगह दोनों खूब घूमे थे। दोनों में तीखे मनमुटाव तथा झगड़े भी होते रहते थे। श्रद्धा कई बार उसके हाथों पिटी, लहूलुहान हुई। एक बार मुंबई के पुलिस थाने में उसके खिलाफ रिपोर्ट भी दर्ज करवायी। फिर रजामंदी होने पर ठंडी पड़ गई। 10 मई, 2022 को आफताब श्रद्धा को दिल्ली ले आया। आफताब और हिंसक हो गया। फिर भी नैना को कहीं न कहीं यह भरोसा भी था कि आफताब सुधर जाएगा। लेकिन उसने तो अपनी उस प्रेमिका के 35 टुकड़े कर डाले जो उसे मेरी जान... मेरी जान कहते नहीं थकती थी। सुशील शर्मा की तरह आफताब ने भी जल्लाद होने का जो भयावह सबूत पेश किया उस पर सोचने भर से ही रूह कांप जाती है। नैना और श्रद्धा दोनों आजादी पसंद भी थीं और बोल्ड भी। अच्छी-खासी समझदार और पढ़ी-लिखी होने के बावजूद पिटती रहीं। लांछन, आरोप तथा अवहेलना झेलती रहीं। दोस्तों ने बार-बार कहा कि ऐसे शंकालु वहशी प्रेमी...पति के साथ एक दिन भी रहना ठीक नहीं। पढ़ी-लिखी हो। अपने पैरों पर खड़े होने की क्षमता है। क्यों जुल्म सह रही हो? दोनों ने फैसला लेने में देरी कर दी और शैतानों ने उनके टुकड़े-टुकड़े कर अपना असली रूप दिखा दिया। आफताब और सुशील में कोई फर्क नहीं। दोनों की हैवानियत एक जैसे तिरस्कार और दुत्कार की हकदार है, लेकिन जब कुछ लोग हत्यारों को धर्म के चश्मे से देखते हुए चीखते-चिल्लाते हैं तो किसी गहरी साजिश की शंका होने लगती है। आफताब क्रूर हत्यारा है। उसने एक ऐसी नारी के टुकड़े कर जंगली जानवरों को खिला दिए जो उस पर बेइंतहा भरोसा करती थी। भरोसे का बड़ी बेरहमी से कत्ल करने वालों की बहुत बड़ी फेहरिस्त है, जिसमें हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि सभी के कलंकित नाम हैं। श्रद्धा मर्डर केस में ‘लव जिहाद’ के एंगल पर माथापच्ची करने वालों का ध्यान हिंसा और हिंसक प्रवृत्तियों की तरफ क्यों नहीं जाता? श्रद्धा वालकर हत्याकांड के बाद एक वीडियो ने सजग संवेदनशील भारतीयों को चिंता में डाल दिया, जिसमें राशिद नाम का व्यक्ति यह कहता नज़र आया कि गुस्से में आदमी 35 तो क्या 36 टुकड़े भी कर सकता है। बाद में पुलिसिया पूछताछ में यह सच सामने आया कि इस वीडियो को बनाने और उसमें नजर आने वाले शख्स का नाम राशिद नहीं, विकास कुमार है...। आदतन अपराधी विकास के खिलाफ पहले से पांच मुकदमें दर्ज हैं।

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