Thursday, December 22, 2022

कैसे अंधे मुख्यमंत्री हैं आप?

     बिहार में जहरीली शराब ने फिर 80 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद दे दी और कइयों को तड़पने और मरने के लिए अस्पताल पहुंचा दिया। फिर वही हुआ जो हमेशा होता आया है। आरोप-प्रत्यारोप की नाटक-नौटंकी और शोर शराबा। विपक्षी पार्टी भाजपा ने नीतीश सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह से कमर कस ली। सवालों के गोले दागे जाने लगे। जब शराब बंदी है तो शराब पीकर लोगों की मौत कैसे हो गई? कहां से मिली उन्हें शराब? यह मौतें नहीं, नरसंहार है। सरकार को हर मृतक को चार लाख का मुआवजा देना ही होगा। नीतीश के एक मंत्री ने तुनकते और उछलते हुए कहा कि जहरीली शराब पीकर जो मरे हैं वे सरकार से पूछ कर तो नहीं पीने गए थे। उन्हें पता तो होगा ही कि प्रदेश में दारू पीने पर पूरी बंदिश है। जिनकी गलती है, वही भुगतें। आपा खो चुके मुख्यमंत्री ने चीख-चीख कर कहा, ‘‘पियोगे तो मरोगे ही। पियक्कड़ों को तो भगवान भी नहीं बचा सकता। मैं तो अदना-सा इंसान हूं। मैंने अपने बिहार की जनता के भले के लिए शराब बंदी लागू की है। शराब बंदी के बाद मेरे प्रदेश की मां-बहन, बेटियां सभी खुश हैं। डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोगों ने शराब पीनी छोड़ दी है। जो मेहनत का पैसा कभी शराब की भेंट चढ़ जाता था अब वो बच्चों की शिक्षा, सेहत में खर्च हो रहा है। लोगों का रहन-सहन सुधरा है। अपराधों में कमी आयी है। हमारे विरोधी अक्ल और आंख के अंधे लगते हैं। मैं ही उन्हें बताये देता हूं कि देश के दूसरे प्रदेशों में भी ज़हरीली शराब पीकर लोग मरते रहते हैं। इसलिए वे मेरी सरकार के विरोध की नाटक-नौटंकी से बाज आएं। यही विरोधी जब हमारे साथ थे तब तो इन्होंने शराब बंदी का खुलकर समर्थन किया था। और हां, मेरे प्रदेश में शराब पीकर मरने वालों को किसी भी हालत में मुआवजा नहीं दिया जाएगा।’’ 

    बीते वर्ष भी जब देशवासी जगमग दिवाली की खुशियां मना रहे थे, तब भी शराब बंदी वाले प्रदेश बिहार में नकली शराब पीकर लगभग चालीस लोग परलोक सिधार गये थे। कई पियक्कड़ों की आंखों की रोशनी हमेशा-हमेशा के लिए छिन गई थी। बिहार सरकार ने पांच अप्रैल, 2016 में ही शराब के उत्पादन, व्यापार, भंडारण, परिवहन, विपणन और सेवन पर इस इरादे से रोक लगायी कि जो लोग शराब पीकर अपना बसा-बसाया घर उजाड़ देते हैं, उनके घर परिवार की औरतें और बच्चे अभावों और तकलीफों की मार झेलने को विवश हो जाते हैं, उन्हें जब शराब ही नहीं मिलेगी तो पैसा बचेगा और उनकी कंगाली दूर हो जाएगी। परिवार खुशहाल हो जाएंगे। शराब बंदी के बाद कई लोगों की जिन्दगी सुधर गई। उन्होंने सरकार का शुक्रिया और आभार भी माना, लेकिन जो अखंड पियक्कड़ थे वे खुद पर अंकुश नहीं लगा पाये। उनकी पीने की लत जस की तस बनी रही। होना तो यह चाहिए था कि शराब बंदी लागू होने के बाद पूरे बिहार प्रदेश में शराब का नामों-निशान ही नहीं रहता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वैध शराब की दुकानों पर ताले लगते ही तस्करों ने शराब के कारोबार की कमान संभाल ली। पुलिस की नाक के नीचे शराब बनने और बिकने लगी। कहीं असली तो कहीं नकली। जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समाने वालों की खबरें भी आने लगीं। इन मौतों के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जाने लगा। साथ ही कई विद्वानों, बुद्धिजीवियों के बयान भी आने लगे कि सरकार कौन होती है शराब पर पाबंदी लगाने वाली? यह तो सीधे-सीधे नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर चोट है। घोर नाइंसाफी है। जो लोग वर्षों से शराब पीते चले आ रहे हैं उनसे आप यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वे एकाएक पीना छोड़ देंगे। शराब के पक्ष में अपने-अपने तर्क रखने वालों में ज्यादा संख्या उनकी थी, जो शराब बंदी के पक्ष में थे, लेकिन यह भी सच है कि सरकार ने शराब बंदी तो कर दी, लेकिन जगह-जगह अवैध शराब के बनने और बिकने-बिकवाने पर पूरी तरह बंदिश लगाने में असफल रही। तब भी मुख्यमंत्री महोदय का बयान आया था कि आखिर लोगों को शराब कैसे मिल जाती है? शराब बंदी कानून की समीक्षा की जाएगी। 

    जहां पर प्रशासन और माफिया मिले हुए हों वहां मुख्यमंत्री का ऐसा खोखला और बनावटी बयान गुस्सा दिलाता है। आप किसे मूर्ख बना रहे हैं सीएम साहब! आप राजनीति के चाणक्य कहलाते हैं, दूरबीन के बिना भी आपको दूर-दूर तक दिखायी देता है। आपको सब पता है। आप जानते हैं कि आपकी अधिकांश पुलिस तथा आबकारी विभाग बिका हुआ है। कुछ मंत्री भी शराब माफियाओं से रिश्वत की थैलियां पा कर खुश और संतुष्ट हैं। बड़े-बड़े शराब माफियाओं, तस्करों और असली-नकली शराब के निर्माताओं तथा धंधेबाजों को तमाम ऊंचे लोगों का पूरा संरक्षण मिला हुआ है। तभी तो जब से प्रदेश में शराब बंदी हुई है, तभी से अखंड पियक्कड़ों को शराब मिलती चली आ रही है। जहरीली शराब पीकर हर बार गरीब ही मरते हैं। अमीरों को तो उनकी मनपसंद महंगी शराब उनके घर तक पहुंचा दी जाती है। आपका शराब बंदी का कानून भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाया। अवैध, नकली और सस्ती-कच्ची शराब, शराब बंदी से पहले भी नशेड़ियों को परलोक पहुंचाती थी और आज भी जान की दुश्मन बनी हुई है। 

जब शराब की दुकानों पर कानूनन ताले लग चुके हैं तब किसी को भी पीने के लिए शराब नहीं मिलनी चाहिए। यदि मिलती है, तो यह शासन और प्रशासन की घोर विफलता है। शराब के नशे के गुलामों को कहां पता होता है कि वे शराब के नाम पर जहर पीने जा रहे हैं। यह कहर तो अचानक टूटता है। तब पियक्कड़ों की भी नींद टूटती है। जब तक कोई बड़ा धमाका नहीं होता तब तक शासन और प्रशासन भी बेफिक्र रहता है। जहरीली शराब पीकर मरने वालों की कतारें लगते ही सरकारी बंदोबस्त की दौड़ धूप शुरू हो जाती है। खेतों, खलिहानों, जंगलों, नदियों तथा तालाबों के आसपास अवैध शराब बनाने की भट्टियां नजर आने लगती हैं। नकली शराब के कारखानों का भंडाफोड़ हो जाता है। तोड़फोड़ होती भी दिखती है, लेकिन उनका क्या जिनकी जहरीली शराब पीने से मौत हो चुकी होती है? उनके परिवारों का क्या कसूर जिन्होंने सरकार की अक्षमता और लापरवाही के चलते अपने पिता, भाई चाचा आदि को हमेशा-हमेशा के लिए खो दिया। क्या अब यह भूखे मर जाएं? हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने को निकल पड़ें? मुख्यमंत्री महोदय अब आप ही तय करें कि आपको क्या करना है। शराब बंदी कानून को यदि सफलतापूर्वक आप लागू नहीं करवा सकते तो यह आपकी घोर असफलता का ऐसा जीवंत दस्तावेज है, जिसके पन्ने तब-तब खोले जाते रहेंगे, जब-जब विषैली शराब पीने वालों की जान और उनकी आंखों की रोशनी छिनती रहेगी और उनके परिवार वाले रोते-कलपते रहेंगे। तब-तब आपको भी कसूरवार मानकर कोसा जाता रहेगा कि कैसे अंधे मुख्यमंत्री हैं आप?

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