Wednesday, January 25, 2023

भोग और योग की तस्वीर

    चित्र - 1 : सुकेश चंद्रशेखर। जैकलीन फर्नाडींस। पहला इस धरती का अत्यंत शातिर कुख्यात ठग और लुटेरा। दूसरी भारत देश की चर्चित खूबसूरत फिल्म अभिनेत्री। दोनों में दूर-दूर तक कोई रिश्तेदारी नहीं। एक हकीकत यह भी कि करोड़ों रुपये की ठगी करने वाला चोर-लुटेरा सुकेश जेल में है। अभिनेत्री आजाद पंछी की तरह उड़ती रही है। ऐसे में दोनों में किसी किस्म की करीबी...यारी की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी दोनों में खिंचाव, जुड़ाव और लगाव हो गया। इन दो विपरीत ध्रुवों के मिलन का माध्यम बना वो अपार धन, रुपया, पैसा जो हमेशा अपना चमत्कार दिखाता आया है...। अनहोनी को होनी बनाता आया है। दोनों में एक और समानता है। दोनों को ऐशो-आराम की लत है। इस लत के लिए किसी भी हद तक गिरने में कोई संकोच नहीं। हर अय्याश ठगी और लूटमारी के धन को शाही अंदाज से लुटाता है। सुकेश ने भी यही किया। नेताओं की झोली भरने के साथ-साथ हुस्नपरियों को भी खुश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 200 करोड़ की ठगी के मामले में जेल में कैद इस ठगराज ने जैकलीन को जो उपहार दिए उनमें शामिल हैं पांच महंगी घड़ियां, जिनकी कीमत लगभग एक करोड़ रुपये है। इसके साथ ही उसने जैकलीन को 32 डिजाइनर बैग गिफ्ट किए, जिनकी कीमत 50 हजार से लेकर 9 लाख तक की है। तकरीबन बीस ज्वेलरी आइटम, जिनमें अंगूठी से लेकर चार महंगे सनग्लासेज, तीन मसाज चेयर, डिश वॉशर, कई बेल्ट, डिनर सेट एवं पेंटिंग्स उपहार में दीं, जिनकी कीमत भी करोड़ों में है। खूबसूरती के पीछे पगलाये शातिर अपराधी ने एक ही साल में 47 डिजाइनर कपड़े, 62 जूते और सैंडल्स भी गिफ्ट किए। चार्जशीट के मुताबिक जैकलीन और उसके परिवार को 7 करोड़ 62 लाख 78 हजार के उपहार दिये गए। 

    ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि जब ठग जेल में बंद था तो यह चमत्कार कैसे संभव हो पाया? दावा तो यह भी किया जाता है कि जैकलीन फर्नांडीस के अलावा दो और अभिनेत्रियां भी महाठग के उपहारों के मोहपाश में बंध कर पतन के गर्त में समाती रहीं। तिहाड़ जेल जहां हर तरह की चौकसी और सुरक्षा व्यवस्था का दावा किया जाता है, वहां पर सुकेश से मिलने-जुलने के लिए धन की भूखी अभिनेत्रियां टहलते और मटकते हुए बड़ी आसानी से पहुंच जाया करती थीं। सुकेश ने जेल के उच्च अधिकारियों को मोटी रिश्वत देकर खरीद रखा था। जब भी कोई हीरोइन उससे मिलने के लिए आती, तो उसे एक खास कमरे में बड़े आदर-सत्कार के साथ ले जाकर बैठा दिया जाता था। वहां पर सोफासेट, टीवी, एसी, फ्रिज और भोग विलास के अन्य सभी सामान सजे रहते थे। आलीशान कमरे के एकांत में घण्टों सुकेश और नायिकाओं की मिलन-मस्ती चलती रहती थी। जब वे सुकेश को ‘तृप्त’ कर जेल से जाती थीं, तो कभी खाली हाथ नहीं होती थीं। हर आनंददायक मुलाकात के ऐवज में उन्हें लाखों रुपये दिए जाते थे। फिल्मी परी जैकलीन के अनुसार सुकेश चंद्रशेखर से उसकी पहली पहचान उसके मेकअप आर्टिस्ट के जरिए हुई थी। उसे बताया गया था कि वह दक्षिण भारत के एक बड़े न्यूज चैनल का सर्वेसर्वा होने के साथ-साथ फिल्म इंडस्ट्री का बहुत नामी-गिरामी प्रोड्यूसर है। दरअसल, यह तो खुद को भोली-भाली तथा अनाड़ी दर्शाने की अभिनेत्री की चाल है। अखबारों तथा न्यूज चैनलों के माध्यम से कुख्यात ठग सुकेश चंद्रशेखर की काली दास्तान का देश के बच्चे-बच्चे को पता चल चुका था। मुफ्तखोरी की रोगी अभिनेत्री की हर बहानेबाजी धरी की धरी रह गई है। अब उसे वकीलों को महंगी फीस देते हुए अदालतों के चक्कर पर चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

    चित्र-2 : देश के रेतीले प्रदेश राजस्थान के गुलाबी शहर जयपुर में स्थित त्रिवेणी नगर के एक श्मशान घाट में बने दो छोटे से कमरों में रहती हैं मायादेवी बंजारा। वर्तमान में उनकी उम्र है लगभग पचपन वर्ष। मायादेवी श्मशान घाट की देखरेख करने के साथ-साथ यहां आने वाले शवों का अंतिम संस्कार भी करवाती हैं। मेहनत की कमायी पर गुजर बसर करती चली आ रही मायादेवी की दो बेटियों की शादी हो चुकी है। दो बेटियां और एक बेटा स्कूल में पढ़ता है। एक बेटी अच्छी तरह से पढ़-लिखकर कलेक्टर बनना चाहती है। मायादेवी की मां भी श्मशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कर घर चलाया करती थीं। मायादेवी जब मात्र 10 वर्ष की थीं तभी अपनी मां के काम में हाथ बंटाने लगी थीं। तभी से उसने अपनी परिश्रमी मां की कही यह बात गांठ बांध ली थी कि कभी भी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाना और मेहनत करने में भी कभी नहीं शर्माना। खून-पसीने से कमाया पैसा ही असली खुशी तथा सम्मान का अधिकारी बनाता है। कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता। किसी की दया पर जीने से अच्छा है, मर जाना। 

    शुरू-शुरू में तो मायादेवी और उसके बच्चों को श्मशान घाट पर देखकर लोग हतप्रभ रह जाते थे, लेकिन अब लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। उनकी कर्तव्यपरायणता की सराहना भी करते हैं। जैसे ही शव श्मशान घाट पर पहुंचता है तो मायादेवी अपने काम में लग जाती हैं। अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां नीचे बिछवा कर चिता तैयार करती हैं। जो लोग शव के अंतिम संस्कार की रीति से अनभिज्ञ होते हैं, उन्हें स्वयं सभी क्रियाएं बताती और समझाती हैं। परिजनों के चले जाने के बाद भी पचपन वर्षीय मायादेवी चिता की लकड़ियों को ठीक करती रहती हैं। वह तब तक वहां से नहीं उठतीं जब तक चिता पूरी तरह से जल नहीं जाती। मायादेवी की बेटियां भी स्कूल से लौटने के बाद उनकी मदद करती हैं। कोई उनसे जब पूछता है कि चौबीस घण्टे श्मशान घाट पर रहने पर तुम्हें भय नहीं लगता तो उनका साहस और आत्मविश्वास से भरा यही जवाब होता है कि श्मशान घाट तो एक पवित्र स्थान है। हमें यहां रहने या शवों के दाह संस्कार से कोई भय नहीं लगता, बल्कि सुकून मिलता है। फिर भयभीत तो जिन्दा इंसानों से होना चाहिए, मुर्दों से क्या घबराना।

    चित्र-3 : छत्तीसगढ़ के गांव चरमुड़िया की स्मारिका ने बड़ी मेहनत और लगन के साथ कम्प्यूटर साइंस में बीई करने के बाद एमबीए किया। उसे एक मल्टीनेशनल कंपनी में दस लाख रुपये सालाना की प्रभावी नौकरी भी मिल गई, लेकिन जब उसका ध्यान अपने पिता की लिवर ट्रांसप्लांट के पश्चात बिगड़ती सेहत पर गया, तो उसने नौकरी छोड़ी और खेती करने की जिम्मेदारी ले ली। पिता घर में आराम करने लगे। स्मारिका को शुरुआत में थोड़ी परेशानी हुई। आसपास के लोगों के तंज भी झेलने पड़े कि खेती तो पुरुषों के बस की बात है। महिलाएं इस कठिन काम के लिए नहीं बनी हैं। स्मारिका ने अपने 23 एकड़ के खेत में खेती के नये-नये प्रयोग करते हुए नई-नई फसलें उपजानी प्रारंभ कर दीं। बेहतरीन खाद और बीजों की बदौलत ऐसी अच्छी-अच्छी फसलें मिलने लगीं, जिन्हें देख बोलने और हतोत्साहित करने की कोशिश करने वाले सभी चेहरे स्तब्ध रह गये। आज स्मारिका के खेत की पोषक सब्जियों की दूर-दूर तक मांग है। विशेष गुणवत्ता के चलते दिल्ली, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, बिहार, ओडिसा तथा कोलकाता तक में इन सब्जियों ने अपनी पैठ जमा ली है। अब तो स्मारिका ने अपने खेत की विभिन्न पैदावारों को विदेश में भी भेजना प्रारंभ कर दिया है। 

    इसी तरह से छत्तीसगढ़ में महासमुंद के कमरौद गांव की 32 वर्षीय वल्लरी का भी खूब डंका बज रहा है। उन्होंने भी कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति कर दिखायी है। छह साल पहले 15 एकड़ के खेत में खेती शुरू करने वाली वल्लरी अब एक साथ तीन गांवों में खेती कर रही हैं। एमटेक करने के बाद किसी मोटी पगार वाली नौकरी से लाखों रुपये की तनख्वाह हासिल कर दिखावटी सुख-सुविधाओं भरी जिन्दगी जीने की बजाय खेती को चुनने वाली वल्लरी को भी शुरू में हतोत्साहित और निराश करने का अभियान चलाया गया, पर अब महासमुंद के हर गांव के पुरुष एवं महिला समूह उनसे उन्नत किस्म की खेती करने के तरीके सीख कर मोटी कमायी कर रहे हैं। कमरौद में 24 एकड़ जमीन में मिर्च, अमरूद, बांस, पपीता, नारियल, स्ट्राबेरी आदि से लाखों की कमाई कर रही इस जूझारू महिला ने भी बोलने वालों की सोच को बदलकर रख दिया है। वल्लरी खेती के नये-नये तरीकों का सतत अध्ययन करती रहती हैं। जब प्रयोग सफल हो जाते हैं तो दूसरे किसानों को भी साझा कर उनके लिए भी विकास के मार्ग खोलती चली जाती हैं। यही भारत का वास्तविक चित्र है, जहां के श्रमजीवी स्त्री-पुरूष खून पसीना बहाकर कमाये गए धन का उपभोग करने में यकीन रखते हैं। उनके लिए परिश्रम ही वास्तविक योग साधना है।

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