Thursday, February 16, 2023

यहां तो सब चलता है!

    कई तस्वीरें हैं, जो मेरी आंखों से ओझल ही नहीं हो रहीं। एक बच्ची कई घण्टों से मलबे में फंसी है। इस दौरान इस सात साल की बहादुर बच्ची ने अपने छोटे भाई की रक्षा... सुरक्षा के लिए उसके सिर पर हाथ रख रखा है। लगातार 17 घण्टे तक मौत का सामना कर मलबे में दबे रहने वाले बहन-भाई की इस तस्वीर को जिसने भी देखा हतप्रभ रह गया। मौत से जंग ऐसे भी लड़ी जाती है। हर किसी ने बहन की सराहना की। धरती के सभी संवेदनशील इंसानों को भावुकता से ओतप्रोत कर देने वाली इस अभूतपूर्व तस्वीर ने सृष्टिवासियों को यह भी बताया कि लाल खून के रिश्ते का पूरी दुनिया में एक ही रंग है। सोच और भावनाओं में भी कोई फर्क नहीं। कुछ नादान लोग इस सच से मुंह फेरे रहते हैं। इसी वजह से दंगे फसाद होते हैं। भाईचारे का कत्ल होता रहता है और निर्दोषों का खून बहता है। तुर्की और सीरिया में आए विनाशकारी भूकंप ने लगभग पचास हजार लोगों की जान ले ली। इस प्राकृतिक आपदा तथा इंसानी लालच और नालायकी ने दुनिया को फिर एक बार चेतावनी देते हुए चेताया कि अभी भी वक्त है, होश में आ जाओ। प्रकृति से छेड़छाड़ करना बंद करो। हद से ज्यादा भौतिक सुखों के लालच के गर्त में मत डूबो। याद रखो जैसा बोओगे, वैसा काटोगे। तुम्हारी गलतियां तुम्हें इससे भी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती हैं। 

    तुर्की और सीरिया में आये भयावह भूकंप ने एक से एक विशाल गगनचुंबी इमारतों को जमींदोज कर दिया। मलबे को हटाने के लिए क्रेनें और इंसानी दिमाग चलते और दौड़ते रहे। कड़ाके की सर्दी में राहत कार्यों में रुकावटें आती रहीं। ऐसे-ऐसे चमत्कारों का भी सिलसिला बना रहा, जो यह बताता रहा कि इन हैरतअंगेज चमत्कारों के पीछे कोई तो है, जिसे कई लोग मानने और स्वीकारने को तैयार नहीं होते, लेकिन जब आफत का पहाड़ टूटता है तो नतमस्तक हुए बिना भी नहीं रहते। 

    एक मासूम बच्चा बीते 45 घण्टों से ढेर सारे मलबे के नीचे दबा हुआ है। वह पूरी तरह से चेतन अवस्था में है। आंखें खुली हैं। वह कभी ऊपर तो कभी इधर-उधर ताकता है। एक बचाव कर्मी उसे बोतल के ढक्कन से पानी पिलाता दिखायी देता है। पानी के कुछ घूंट पीते ही बच्चा मुस्कराता है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे ऊपर बैठा विधाता मुस्करा रहा हो। उसकी निश्छल हंसी सभी का मन मोह लेती है। बच्चा बड़ों की भाषा नहीं समझता, लेकिन फिर भी बचावकर्मी उसे बार-बार दिलासा देते हैं कि हिम्मत मत हारना। कुछ ही पलों में तुम्हें हम बाहर निकाल लेंगे। भयंकर तबाही मचा देने वाले भूकंप ने जहां कई बलशाली तंदुरुस्त लोगों को एक ही झटके में मार डाला वहीं कई मासूम बच्चों और वृद्धों को खरोंच तक नहीं आयी। क्रेन, हथोड़े, कुदाल, फावड़े के साथ चेन वाली आरी, डिस्क कटर्स और सरिया काटने वाले औजारों के साथ इंसानी जिन्दगियों को बचाने में लगी रेस्क्यू टीम ने कांक्रीट स्लैब के नीचे बुरी तरह से दबी एक नवजात बच्ची को देखा तो देखती ही रह गई। यह कुदरत का आलौकिक चमत्कार ही था कि बच्ची अपनी मां की गर्भनाल से जुड़ी पूरी तरह से सुरक्षित जिन्दा थी और जन्म देने वाली मां की मौत हो चुकी थी। तय है कि मां ने कुछ घण्टे पहले ही बच्ची को जन्म दिया था। उस बच्ची को अपनी गोद में खिलाने के लिए परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा था। बच्ची को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। भूकंप आने के 62 घण्टों बाद सात मंजिला इमारत के मलबे से एक बारह साल के बच्चे को किसी तरह से बाहर निकाला गया तो वह हंस रहा था। उस साहसी बच्चे को हाथ में लेते ही बचाव कर्मी उसे चूमते हुए अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाने लगे। भूकंप की भयावहता से रूबरू होने वाले एक शख्स ने पत्रकारों को आपबीती सुनायी कि मैंने भूकंप के बारे में सुना तो बहुत था, लेकिन इसे देखा और महसूसा पहली बार। जब हमारा अपार्टमेंट एकाएक हिलने लगा तब मैंने मान लिया था कि अब हमारे परिवार का बचना असंभव है। अपने-अपने कमरों में रह रहे सभी परिवार के सदस्यों को मैंने अपने पास बुलाया और कहा कि, अब जब हम सब मरने ही वाले हैं तो कम अज़ कम एक साथ एक ही कमरे में एक ही जगह क्यों न मरें। यह तो हमारी किस्मत अच्छी थी कि हम सब बच गए। जब भूकंप थमा तो मैं बाहर निकला। कई गगनचुंबी इमारतें जमीन पर धराशायी हो चुकी थीं। मलबे में दबे लोगों के रोने, कराहने की आवाजें आ रही थीं। रेस्क्यू टीमें बड़ी फुर्ती के साथ बचाव कार्य में लगी थीं। 

    अपने देश भारत में भी हमने भूकंपों और बादलों के फटने के बाद हुई तबाही को कई बार देखा और झेला है। हाल ही में देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में स्थित जोशीमठ में जमीन के धसने से लोगों को किस तरह से अपने घर-कारोबार को छोड़ने को मजबूर होना पड़ा, इससे भी हम सभी देशवासी खूब वाकिफ हैं। कई विनाश लीलाएं इंसानों की खुदगर्जी और अनदेखी का प्रतिफल रही हैं। भू-धंसाव का खतरा तो जोशीमठ पर 1970 से मंडराने लगा था। भू-वैज्ञानिकों ने भी कई बार चेताया था कि पहाड़ी जमीन पर धड़ाधड़ घरों, भवनों, होटलों का निर्माण तथा बेतहाशा खनन कार्य अंतत: जानलेवा साबित होगा। संभावित खतरों से वाकिफ होने के बावजूद भ्रष्टाचार और इंसानी लालच ने अपनी मनमानी जारी रखी और 2023 के आते-आते तक पहाड़ों पर स्थित जोशीमठ के घरों, होटलों और सड़कों की बेतहाशा दरारों ने हजारों लोगों को बेमन से बेघर होने को विवश कर दिया। सभी जगह बड़ी तेजी से जनसंख्या में इजाफा हो रहा है। लोगों के रहने के लिए छत तो चाहिए ही, लेकिन उन्हें बनाने, खड़ा करने में जिन सावधानियों की आवश्यकता है, उसकी तो अनदेखी नहीं होनी चाहिए। भारत वर्ष के महानगरों, नगरों में खड़ी की गईं अनेकों बहुमंजिला इमारतें भूकंप रोधी नहीं हैं। तुर्की और सीरिया में भूकंप ने ही हजारों लोगों को मौत की नींद ही नहीं सुलाया, वहां की विशाल इमारतों ने भी कई जानें ले लीं। ऐसा भी नहीं कि सभी इमारतें धराशायी हुई हों। कुछ बिल्डिंगें ऐसी भी रहीं, जिनका भूकंप बाल भी बांका नहीं कर पाया। वहां की सरकार ने उन सैकड़ों भवन निर्माताओं को हथकड़ियां पहनाकर जेल में सड़ने के लिए डाल दिया है, जिन्होंने बिल्डिंग की नींव और दीवारों की मजबूती की ओर ध्यान देने की बजाय सिर्फ अपनी तिजोरियों का वजन बढ़ाया। तुर्की में एक तरफ वैश्विक मदद से राहत एवं बचाव अभियान चलता रहा तो दूसरी तरफ बेईमानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी शुरू कर दी गई। ‘हिंदुस्तान में तो सब चलता है’ की परिपाटी चलती चली आ रही है। यहां शायद ही किसी बेईमान भवन निर्माता को जेल में डाला गया हो...।

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