Thursday, February 2, 2023

पुरुष-सत्ता

      रविवार की सुबह मॉर्निंग वॉक कर घर लौट रहा था। वॉक पर निकलने से पहले ही मैंने अंजली से मिलने का मन बना लिया था। लगभग आठ बजे जैसे ही अंजली के किराये के घर के सामने पहुंचा तो वहां आठ-दस लोगों की भीड़ लगी थी। अंजली भीड़ के बीच अपराधी की तरह चुपचाप सिर झुकाये खड़ी थी। अंजली का मकान मालिक जोर-जोर से चिल्लाते हुए कह रहा था, ‘‘मैं तो पहले से ही तुम्हें किराये पर रखने को तैयार नहीं था। तुमने मिन्नते कीं, एक-दो इज्जतदारों से सिफारिश करवायी, तो मैंने तुम्हें अच्छी और नेक औरत समझकर हां कर दी, लेकिन मैंने तुम्हें तभी वार्निंग दे दी थी कि रात को ज्यादा देरी से आना बिलकुल नहीं चलेगा। शुरू-शुरू में तो तुम रात को दस-साढ़े दस बजे तक बाहर से लौट आया करती थीं, लेकिन अब कई दिनों से रात-रात भर गायब रहती हो। किस्म-किस्म के पुरुषों का भी तुम्हारे कमरे में आना-जाना लगा रहता है। तुम्हारी वजह से हमें आसपास के लोग कितना कुछ सुनाते रहते हैं। कुछ लोगों के मुंह से तुम्हारी बदचलनी के किस्से भी सुनने में आये हैं। लगता है, तभी तुम्हारे शरीफ पति ने हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हें घर से बाहर कर चैन की सांस ली है। मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी देखा-देखी मेरी जवान बेटी भी हमारे हाथ से निकल जाए।’’ 

    ‘‘अंकल आप जो सोच रहे हैं, वैसा कुछ भी नहीं। अखबार में साथ काम करने वाली सहेली के अनुरोध पर उसके यहां एक-दो बार रात को ठहरना पड़ा, लेकिन अब आगे से आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगी।’’ 

    ‘‘तुम्हारे लाख हाथ जोड़ने पर भी मैं नहीं पिघलने वाला। यहां अब ज्यादा तमाशा न करते हुए अपना सामान उठाओ और तुरंत चलती बनो।’’ 

    मकान मालिक को मेरा समझाना भी बेअसर रहा। हां, उसने अंजली को शाम तक की मोहलत जरूर दे दी। शहर के दैनिक समाचार पत्र के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत रहने के साथ-साथ अंजली एक अच्छी कहानीकार तथा कवयित्री भी है। उसे कवि सम्मेलनों के मंचों पर छा जाने का भी खूब हुनर हासिल है। कभी-कभार दूसरे शहरों में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों में बड़े मान-सम्मान के साथ आमंत्रित होती रहती है। अंजली ने शहर के नामी कॉलेज के एक अंग्रेजी के प्रोफेसर से लव मैरीज की थी। दोनों एक दूसरे को कॉलेज के जमाने से जानते थे। शादी के कुछ महीनों के बाद अंजली को पति के माता-पिता से बड़ी परेशानी होने लगी। पहले तो उन्हें अपनी बहू का मंचीय कवयित्री होना पसंद नहीं था। उसकी लोकप्रियता और मिलनसारिता की वजह से जब देखो तब कवि, लेखक, पत्रकार और प्रशंसक उससे मिलने के लिए घर आ टपकते थे और सास और ननद को उनकी मेहमान नवाजी करनी पड़ती थी। अंजली का सभी से खुलकर हंस बोल लेना भी उन्हें शूल की तरह चुभता था। शादी के तीन-चार वर्ष बीतते-बीतते उस पर बच्चा पैदा करने का दबाव भी बनाया जाने लगा। सास-ससुर पोते के सुख से वंचित रहने की वजह से बेचैन हो चुके थे। उधर अंजली ने सात फेरे लेने से पहले ही अपने पति देव को बता दिया था कि पत्रकारिता और साहित्य में अच्छी तरह से स्थापित होने के पश्चात ही वह फैमिली के बारे में सोचेगी। तब पति महोदय ने भी कोई ऐतराज नहीं जताया था। बस मुस्करा कर रह गए थे। हद तो तब हो गई जब उनके करीबी रिश्तेदार भी सवाल दागने लगे कि आखिर वह बच्चा कब पैदा करेगी? अंजली के लिए सबसे ज्यादा आहत करने वाली बात थी अपने बुद्धिजीवी पति देव का पूरी तरह से चुप्पी साधे रहना। कई बार अंजली का मन होता कि वह सभी को मुंहतोड़ जवाब दे, लेकिन...! 

    जब अंजली को लगा कि उसके लिए दकियानूसी और रूढ़िवादी रिश्ते को और निभा पाना संभव नहीं तो उसने हमेशा-हमेशा के लिए पति के घर को ही त्याग दिया। कुछ शुभचिंतकों ने अंजली के इस निर्णय को उसकी नासमझी कहा तो कुछ ने हद दर्जे की बेवकूफी। उसे अकेली औरतों पर मंडराने वाले खतरों के कई किस्से सुनाकर डराया भी गया, लेकिन अंजली अपने निर्णय पर अडिग रही। अखबारी नौकरी से उसे इतनी तनख्वाह तो मिल ही रही थी, जिससे उसके रहने और जीने-खाने पर किसी संकट का कोई खतरा नहीं था। पति का घर छोड़ने के पश्चात बड़ी मुश्किल से उसे रहने के लिए यह किराए का कमरा मिला था। उसे नहीं पता था कि उसका आजादी पसंद तथा खुले दिल-दिमाग का होना नयी आफत का कारण बन जाएगा। जिस शहर में वह जन्मी वहीं उसे किराए के छोटे से कमरे के लिए कितनी ठोकरें खानी पड़ीं। जहां भी जाती कहा जाता कि अकेली औरत के लिए घर खाली नहीं है। 

    इस घर के मालिक ने भी बड़ी मुश्किल से इस शर्त पर मनमाने किराए पर कमरा रहने को दिया था कि 9 से 10 बजे तक ही घर से बाहर रह सकती हो। किसी भी पुरुष को उसके कमरे में आता देखा गया तो अच्छा नहीं होगा। तुरंत कमरा खाली करवा लिया जाएगा। कुछ पत्रकार तथा साहित्यकार मित्रों के अलावा मकान मालिक की बीए पास लड़की यदा-कदा उससे मिलने आ जाती थी। उसकी साहित्य और पत्रकारिता में खासी अभिरुचि है। पत्रकारिता के क्षेत्र में पदार्पण की अभिलाषी इस महत्वाकांक्षी लड़की से अंजली को इधर-उधर की बातें करने में बहुत अच्छा लगता था। एक शाम लड़की ने उसे यह बताकर चौंकाया था कि वह अपनी एक खास सहेली से बेइंतहा प्यार करती है। दोनों की शीघ्र ही हमेशा-हमेशा के लिए एक साथ रहने की पक्की तैयारी है। इस बात का पिता को तो नहीं, मां को जरूर पता है। मां अक्सर उसे चेताती भी है कि वह इस अप्राकृतिक रिश्ते से फौरन बाज आए नहीं तो पिता को बताकर तूफान बरपा करवा देगी। गुस्सैल पिता उसकी ऐसी दुर्गति करेंगे, जिसकी उसने कभी कल्पना नहीं की होगी। जब लड़की की मां ने देखा कि उसकी बेटी घण्टों उस किराएदार महिला के साथ कमरे में बंद रहती है, जो अपने पति से अलग हो चुकी है तो उसने अपने पति के कान भरने शुरू कर दिए। संकीर्ण सोचवाले मकान मालिक को अंजली को अपने घर से खदेड़ने का सटीक बहाना मिल गया।

    अंजली के नये ठिकाने की व्यवस्था कर दोपहर को जब मैं घर लौटा तो पुरुष सत्ता का परचम लहराती यह खबर जैसे मेरा ही इंतजार कर रही थी... कब्र में पैर लटकाये एक 70 वर्षीय वृद्ध ने 28 वर्ष की लड़की से विवाह कर लिया है। यह लड़की और कोई नहीं उसकी ही विधवा बहू है। उसका पति चार साल पहले गुजर गया था। कालांतर में दो-तीन अच्छे-भले युवकों ने लड़की से शादी करने की इच्छा जतायी थी, लेकिन ससुर महाराज ने उन्हें नजरअंदाज कर खुद ही मंदिर में ले जाकर अपने मृतक बेटे की पत्नी से विवाह कर लिया। अब यह बताने की जरूरत तो नहीं कि ससुर बहू के लिए पिता की तरह होता है, लेकिन इसे तो अपने बेटे का भी ख्याल नहीं आया, जो इस लड़की को कभी बड़े अरमानों के साथ ब्याह कर अपने घर लाया था। इस लड़की को तो हर किसी से सुरक्षा और सम्मान मिलना चाहिए था, लेकिन इस देह के भूखे ससुर ने बहू से शादी कर पवित्र रिश्ते को कलंकित करने के साथ-साथ शर्मिंदा भी कर दिया। उसकी पत्नी बारह साल पहले दिवंगत हो गई थी। उसकी देखरेख की कमी को बहू पूरा कर सकती थी। बेटियां अपने मां-बाप की सेवा करती ही हैं। वह उसका किसी बेघर युवक से ब्याह करवाने के बाद दोनों को अपने घर में रखकर एक अच्छा प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत  कर देता तो लोग नतमस्तक हो जाते। थू...थू, तो नहीं होती। नेक नीयत वाला होता तो बहू के साथ सात फेरे लेने की बजाय उसे अपने पैरों पर खड़े होने लायक बनाकर अपना कद भी बढ़ा सकता था, लेकिन उसके अंदर दुबक कर बैठी लूली-लंगड़ी, अंधी वासना ने उसे विवेकशुन्य कर उसके चेहरे पर कालिख ही पोत दी।

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