Thursday, March 16, 2023

आप क्या सोचते हैं?

    दलितों, शोषितों और अल्पसंख्यकों के साथ जुल्म थमते नजर नहीं आते। कोई भी ऐसा दिन नहीं होता जब देश में कहीं न कहीं महिलाओं और बच्चियों के साथ अमानवीय बर्ताव की खबर दिल न दहलाती हो। कुछ बेलगाम गुंडे, बदमाशों तथा धर्म-जाति के ठेकेदारों ने देश में खौफ और अराजकता फैलाने का अभियान-सा छेड़ रखा है। उन्हें कानून, प्रशासन और शासन का भी कोई भय नहीं। वे इस सच को भी अपने पैरोंतले रौंदने-कुचलने से बाज नहीं आ रहे कि भारत देश की अपनी एक संस्कृति और मान-मर्यादा है। जो भी यहां जन्मा है वह भारत माता की संतान है। हर किसी को खुली हवा में सांस लेने, जीने, रहने की पूरी आज़ादी है, लेकिन देश को तोड़ने पर आमादा विषैले चेहरे अपनी कमीनगी से बाज नहीं आ रहे हैं। लातों के भूतों के हिंसक तमाशों का पुरजोर विरोध करने की बजाय खामोशी और नजरअंदाज करने की परिपाटी बददिमाग जुल्मियों के हौसले बढ़ा रही है।

    देश की बुलंद राजधानी दिल्ली में एक जापानी लड़की को अकेली देखकर तीन गुंडे उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ते हैं, लेकिन कोई उसे बचाने नहीं आता। कहीं कोई विरोध का स्वर नहीं लहराता! पर्यटन की शौकीन यह लड़की बड़ी उमंगों, तरंगों के साथ भारत में खासतौर पर होली के रंगों में सराबोर होने को आई थी, लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से अपनी अस्मत बचायी। मध्य दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में कुछ लोगों को होली खेलते देख वह उनके निकट पहुंची ही थी कि तीन बदमाशों ने उसे जबरन काले-पीले सस्ते रंगों से पोतना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने लड़की के नाजुक ज़िस्म को जहां-तहां दबोचा, जिससे वह अपनी जान बचाने के लिए जंगल में अकेली पड़ी हिरनी की तरह छटपटाने और घबराने लगी। वासना की आंधी में नाचते-गाते बदमाशों ने उसके सिर पर धड़ाधड़ अंडे फोड़े और उसके अंगों से जीभर कर खिलवाड़ और बदसलूकी की। उसके लाख विनती करने के बावजूद जब वे नहीं माने तो उसने उन पर थप्पड़ों की बरसात भी की। विदेशी बाला की घृणा, तिरस्कार और थप्पड़ों की बरसात को वे प्रसाद की तरह ग्रहण करते रहे और भारत माता के माथे पर कलंक का काला टीका लगाते रहे। हतप्रभ लड़की ने मन ही मन कसम खायी कि अब वह कभी भी भारत देश की धरा पर कदम नहीं रखेगी। उसने जो सोचा और सुना था वो भारत तो नदारद था। इस शर्मनाक घटना का वीडियो जब असंख्य लोगों ने सोशल मीडिया पर देखा तो उनका खून खौल गया। ताज्जुब है कि उनके खून में जरा भी उबाल नहीं आया जो घटनास्थल पर तमाशबीन की तरह मौजूद थे! 

    राजधानी दिल्ली को सभ्य और सुलझे लोगों का नन्हा से प्रदेश कहा जाता है। यह भी माना जाता है कि यहां के निवासी किसी के फटे में टांग नहीं अड़ाते। अपने में ही मस्त रहते हैं। लेकिन...? यहीं के शानदार मयूर विहार में वर्षों से रहते चले आ रहे हैं, राम अवतार वर्मा। वे मूलत: राजस्थान के हैं। रोजी-रोटी की तलाश उन्हें दिलवालों की महानगरी दिल्ली ले आई। राम अवतार वर्मा शुरू-शुरू में सड़क किनारे चप्पल जूते सिलते थे। कालांतर में उन्होंने अपनी छोटी सी दूकान बना ली, जिस पर अपने नाम का बोर्ड भी लगा दिया। खुद के नाम के साथ अपना मोबाइल नंबर भी लिख दिया ताकि यदि कभी वे दुकान पर न हों तो लोग उनसे मोबाइल के माध्यम से संपर्क कर सकें। कुछ दिन पूर्व दिल्ली के किसी दबंग मालदार की दुकान के बोर्ड पर ऩजर पड़ी। नाम के आगे वर्मा लिखा देख उसका तो खून ही खौल गया। दरअसल उसके नाम के साथ भी वर्मा जुड़ा है। उसका अच्छा खासा कारोबार है। साथ ही समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा होने का अहंकार भी। कहां वह और कहां यह जूता-चप्पल सिलने वाला अदना-सा दलित मजदूर। उस ‘ऊंचे आदमी’ ने पहले भी राम अवतार पर जाति सूचक गालियों की बौछार की फिर फौरन बोर्ड पर लिखे वर्मा सरनेम को हटाने, मिटाने का फरमान सुना दिया। बाल-बच्चे वाले गरीब राम अवतार ने डरकर उसी के सामने ‘वर्मा’ के ऊपर पेपर चिपका दिया, जिससे अहंकारी रईस चला गया। कुछ दिनों के पश्चात जब तेजी से बारिश बरसी, बोर्ड भी भीग गया और उस पर चिपका कागज भी बोर्ड से उतर गया। दो-चार दिनों के पश्चात उस धनवान वर्मा का फिर से वहां से गुजरना हुआ तो वह बोर्ड पर वर्मा लिखा देख आपे से बाहर हो गया। राम अवतार ने फिर हाथ पांव जोड़े और नाम के आगे मजबूती से कागज चस्पा कर दिया। अपना नाम बदलने को मजबूर हुए राम अवतार की पुलिस ने भी नहीं सुनी।

    कुछ हफ्ते पूर्व दर्शन सोलंकी ने खुदकुशी कर ली। उसके मां-बाप ने बड़े अरमानों के साथ उसे मुंबई में केमिकल-इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए भेजा था। दर्शन को कॉलेज का माहौल रास नहीं आया। दलित और गरीब होने के कारण सहपाठी उस पर व्यंग्यबाण चलाते हुए अपमानित करने में लगे रहते थे। 12 फरवरी, 2022 के दिन उसने आईआईटी परिसर में बने हॉस्टल के सातवें माले से कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। हालांकि आत्महत्या किसी समस्या का हल नहीं। दर्शन की तरह देश में कई होनहार भेदभाव के दंशों को सहन नहीं कर पाने के कारण इस कायराना रास्ते पर चलते हुए अपने मां-बाप के सपनों का खून कर चुके हैं। अपने होनहार बेटे को खो चुके दर्शन के माता-पिता ने इसे आत्महत्या मानने से इनकार करते हुए सीधे-सीधे कहा कि यह खुदकुशी नहीं है, बल्कि यह तो एक सुनियोजित हत्या है। मेरा भी यही मानना है कि किसी को आत्महत्या के लिए विवश करना, उसकी हत्या करना ही है। इस बारे में आपका क्या कहना है? आप क्या सोचते हैं?

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