Thursday, March 9, 2023

माथे में ठुकी कील

    अंधविश्वास, अंधभक्ति, भ्रम, शंका, प्रतिशोध और क्रोध यह सभी ऐसे रोग हैं, जिनका कहीं न कहीं एक दूसरे से भी बड़ा गहरा नाता है। इनके शिकार और शिकारी कल भी खबरों में छाये थे, आज भी बड़ी-बड़ी सुर्खियों में हैं। अफसोस तो यह भी है कि पढ़े-लिखे लोग भी इस बीमारी और महासंकट की जंजीरों में जकड़े हैं। केरल प्रदेश की 23 वर्षीय ग्रीष्मा को कॉलेज की पढ़ाई के दौरान 24 वर्षीय जेपी शैरोन से प्यार हो गया। मिलते-मिलाते दोनों ने परिणय सूत्र में बंधने का पक्का मन बना लिया। इसी दौरान ग्रीष्मा के माता-पिता ने अपनी इकलौती बेटी की शादी किसी आर्मी आफिसर से तय कर दी। हालांकि उन्हें जानकारी थी कि उनकी बेटी शैरोन को दिलोजान से चाहती है। दरअसल, हुआ यह कि जब वे अपनी लाड़ली के लिए रिश्ता तलाश रहे थे, तभी उन्होंने किसी ज्योतिषी को बेटी की कुंडली दिखायी। धन के लालची धूर्त ज्योतिषी ने यह बताकर उनके पैरोंतले की जमीन खिसका दी कि ग्रीष्मा की पहली शादी जिससे भी होगी उसकी कुछ ही महीनों के बाद मौत हो जाएगी। हां, दूसरी शादी जरूर हर तरह से खुशहाल और पूरी तरह से सफल रहेगी। ग्रीष्मा को यह बात जब पता चली तो वह बेचैन हो उठी। उसकी रातों की नींद जाती रही। उसके अंदर बैठी स्वार्थी नारी ने नागिन बनने में भी देरी नहीं लगायी। वह किसी भी हालत में विधवा होने की वेदना से बचना चाहती थी। उसने घण्टों बैठकर हिसाब-किताब लगाया तो आर्मी अफसर से शादी कर ठाठ से उम्र बिताने में फायदा नज़र आया। 

    कभी अपने प्रेमी शैरोन को दिलो-जान से चाहने वाली अंधविश्वासी प्रेमिका ने जो राह पकड़ी उसने तो उसके नारी होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया। उसने बड़ी चालाकी से शैरोन को मंदिर ले जाकर उससे अपनी मांग में सिंदूर भरवाया और गले में मंगलसूत्र पहन कर पतिव्रता पत्नी का ढोंग करते हुए कुंडली दोष से मुक्ति पाने की क्रूरतम लीला प्रारंभ कर दी। वह सुबह-शाम अपने पति-परमेश्वर को आयुर्वेदिक जूस पिलाने लगी, जिसमें मिला होता था धीमा ज़हर। भोला पति इस भरोसे के साथ पीता चला गया कि पत्नी को उसकी सेहत की बड़ी चिन्ता है। इसीलिए पानी कम और जूस ज्यादा पिलाती है। कई हफ्ते बीत जाने पर भी जहर का असर न होता देख ग्रीष्मा ने एक दिन कीटनाशक मिला जूस पिलाया तो शैरोन की तबीयत बहुत गड़बड़ा गई। शैरोन के माता-पिता को भी ग्रीष्मा पर संदेह हो गया। अपने बेटे को तुरंत अस्पताल ले गए। डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि विषैले जूस ने शरीर के विभिन्न अंगों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। उनकी सभी कोशिशें नाकाम होती चली गईं और अंतत: शैरोन की मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने भी पूरी सच्चाई उगल दी। ग्रीष्मा पहले तो किसी भी खूनी साजिश से इनकार करती रही। फिर आखिरकार उसे टूटना ही पड़ा। अब उसकी सारी जिन्दगी जेल की सलाखों में कटने वाली है। 

    देश और दुनिया में कहर बरपाने वाले कोरोना का खौफ एक महिला के मन में ऐसा बैठा कि उसके लिए उससे बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया। गुरुग्राम की रहने वाली इस महिला ने सन 2020 में अपने दस वर्ष के बेटे के साथ खुद को कमरे में ऐसे कैद किया कि अंतत: उसे बड़ी मुश्किल से 2023 के मार्च महीने में बाहर निकाला गया। कोरोना के भूत से खौफजदा महिला और उसके बच्चे ने तीन वर्षों तक सूरज की किरण नहीं देखी और न ही किसी बाहरी शख्स का चेहरा देखा। महिला को पक्का यकीन था कि अगर उसने किंचित भी बाहर झांका तो कोरोना दोनों पर भूखे शेर की तरह झपटा मार देगा। 2020 में जब कोरोना की पहली लहर आई थी तभी परिवार ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था। कोरोना की दूसरी लहर के हर तरफ आतंक बरपाने पर मजबूरन जब पति को रोजी-रोटी के चक्कर में बाहर जाना पड़ा तो महिला ने उसके लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए। अपनी पत्नी के इस हिटलरी बर्ताव से परेशान पति पुलिस थाने भी गया, लेकिन वहां से उसे भगा दिया गया। रिश्तेदारों ने भी महिला को समझाने के पचासों प्रयास किए, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही। घर में जब सिलेंडर खत्म हो गया पर कोरोना की दहशत की मारी महिला ने इंडक्शन पर खाना बनाना प्रारंभ कर दिया। पुलिस और जिला प्रशासन के लोग जब मां-बेटे को कमरे से बाहर निकालने के लिए पहुंचे तो वह दरवाजा खोलने को तैयार नहीं थी। उसने बच्चे को मारकर खुद आत्महत्या कर लेने की धमकी तक दे डाली। उसके घर में कूड़े का अंबार लगा था। चारों तरफ फैली गंदगी की बदबू के कारण वहां खड़े रहना मुश्किल था। कोरोना के खौफ में अपने होशो-हवास खो चुकी महिला को यदि उसके पति की शिकायत पर बाहर नहीं निकाला गया होता तो कुछ दिनों के बाद दोनों की मौत की खबर आती।

    अंधभक्तों और अंधविश्वासियों तथा उनके आकाओं के खिलाफ बोलने और लिखने का अब अभिप्राय हो गया है एक से बढ़कर एक शत्रु पैदा करना और तथाकथित महान धर्म प्रेमियों की निगाह में घोर नास्तिक होना। अपना भारत देश वाकई अद्भुत है। जीते-जागते इंसानों की अवहेलना और जानवरों को पूजे जाने की खबर से अवगत होने के बाद तो मैंने मान लिया है कि यहां कुछ भी हो सकता है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के खापरी गांव में वर्षों से ‘कुकुरदेव’ मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में स्थानीय लोगों के साथ-साथ आसपास के प्रदेशों के शहरों ग्रामों के निवासी बड़े ताम-झाम के साथ पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं। मंदिर के गर्भागृह में कुत्ते की भव्य आकर्षक मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दो कुत्तों की प्रतिमाएं हैं। हैरतअंगेज सच यह भी है कि इस अनोखे मंदिर का संरक्षण राज्य का संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग करता है। वीरों की भूमि बुंदेलखंड की मऊरानी तहसील में कुतिया का मंदिर बना हुआ है, जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘जय कुतिया महारानी’ लिखा हुआ है। शादी-विवाह जैसे मांगलिक आयोजनों से लेकर विभिन्न तीज-त्योहारों तक स्थानीय लोग यहां पूजा-अर्चना करना नहीं भूलते। मजे की बात तो यह भी है कि आसपास के गांवों के मांगलिक कार्यक्रमों में भोजन का पहला चढ़ावा कुतिया महारानी को अर्पित किया जाता है। इस तरह के मंदिर देश के कुछ अन्य शहरों में भी बनाए गये हैं, जहां अद्भुत... अभूतपूर्व आस्था का नजारा देखते बनता है...।

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