Thursday, April 20, 2023

सोशल मीडिया के सबल पक्ष की एक झलक

    इंटरनेट की विशालतम दुनिया में सोशल मीडिया एक ऐसा मंच बन चुका है, जिसने हर उम्र के लोगों को अपने मोहपाश में जकड़ लिया है। आज की आपाधापी में अधिकांश लोगों के पास इतना वक्त नहीं कि वे मोटी-मोटी किताबें पढ़ सकें। अखबार और पत्रिकाएं भी हर जगह सुलभ नहीं। सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखने की भी लोगों में पहले-सी अभिरूचि या फिर वक्त नहीं। लगभग हर हाथ में स्मार्टफोन है, जो अच्छी-बुरी खबरों से फटाफट मिलवा रहा है। किस्म-किस्म की शेर-ओ शायरी के साथ-साथ स्तब्ध, जागृत और भावुक कर देने वाले शब्द-संसार से अवगत करा रहा है। नये-नये लेखक और विचारक सामने आ रहे हैं। यहां पर एक से एक विद्वानों के अनुभवों, विचारों, सुझावों, लेखांशों, कविताओं, गजलों का भी अद्भुत खजाना भरा पड़ा है, जिन्हें पढ़े-समझे बिना मन नहीं मानता। गंदी राजनीति तथा भाई-चारे के दुश्मनों ने भले ही सोशल मीडिया को अपना औजार बना लिया हो, लेकिन यह कहना और मानना कहीं भी गलत या अतिश्योक्ति नहीं कि सोशल मीडिया सकारात्मक विचार-सोच को बलवति बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है। अपने नाम-काम की चाह से मुक्त दिन-रात एक से एक अद्भुत रोचक जानकारियों और सुलगते विचारों को फैलाते मानवता के हितैषियों को इस कलम का सलाम...।

* एक कुम्हार जब घड़ा बनाता है तो घड़े के 

बाहरी भाग को तेजी से थपथपाता है, लेकिन 

भीतरी भाग को प्यार से सहलाता है। 

आप भी सुंदर और मजबूत 

इंसान बनेंगे, अपने कुम्हार

पर भरोसा रखिए, वह हमें 

टूटने नहीं देगा। 

अगर आपका कुछ जलाने का मन करे 

तो अपना क्रोध जला देना।

* क्यों न खुशी से जीने के बहाने ढूंढे,

गम तो किसी भी बहाने मिल जाता है...

* मनुष्य जन्म लेता है, बिना मुहुर्त के और बगैर 

मुहुर्त के देह त्याग देता है! 

लेकिन, सारी उम्र शुभ मुहुर्त के पीछे 

भागता रहता है!

* सबसे बड़ा मूर्ख तो वो है, 

जो एक पत्थर से 

दोबारा चोट खाये।

* जूते-चप्पल भले पहने रहें, पर

जात-पात 

धार्मिक भेदभाव 

ऊंच-नीच 

छुआ-छूत 

लिंग भेद 

जैसी मानसिकताएं कृपया यहीं उतार दें, 

स्वागत है...। 

(हर घर के दरवाजे पर 

यह पोस्टर होना चाहिए।)

* जब जेब में हैं पैसे 

लोग पूछते हैं, 

आप हैं कैसे? 

जब हो जाओगे आप 

कंगाल 

तो कोई नहीं पूछने आएगा 

क्या है आपका हाल?

* याद रखें... 

सारा ज्ञान किताबों से 

नहीं मिलता। 

कुछ ज्ञान 

मतलबी लोगों 

से भी 

मिलता है...।

* जमाने में आये हो तो जीने का भी हुनर रखना...

दुश्मनों से कोई खतरा नहीं, बस अपनों पर नज़र रखना। 

* अपने काम और कर्तव्य के प्रति 

अगर आपको लगाव नहीं है 

तो आप कभी भी 

सफल नहीं हो सकते।

* ज़रा-सा ऊपर उठने को 

न जाने कितना गिर जाते हैं लोग 

पर नजरों से गिरकर कोई 

कहां उठ पाया है 

यह अक्सर भूल जाते हैं लोग।

* अदाकारी नहीं करते, 

मक्कारी नहीं करते। 

जिन्हें मेहनत से है मतलब, 

वो मक्कारी नहीं करते।

* जब पढ़े-लिखे लोग भी 

गलत बातों का समर्थन 

करने लगें तो यह समाज 

की सबसे बड़ी समस्या है। 

(डॉ. भीमराव आंबेडकर)

* तुम्हारा खुद का मन ही तुम्हारी 

नहीं सुनता और तुम निकल 

पड़ते हो दूसरों को नसीहत देने के लिए। 

(ओशो) 

* बात 

करने से ही 

बात बनती है, 

बात न करने से 

अक्सर 

बातें बनती हैं।

* खुशी का पहला... 

उपाय... 

पुरानी बातों को

ज्यादा न सोचा जाए। 

* सच कड़वा नहीं

होता है, बल्कि

हमारी जीभ को

मीठे झूठ की

लत लग गई है...

* किसी ने पूछा 

कि प्यार क्या है

हमने कहा

प्यार तो वो है

जो हद में रहकर

बेहद हो जाए...।

* आपकी अच्छाइयां,

भले ही अदृश्य

हो सकती हैं,

लेकिन

इसकी छाप हमेशा

दूसरों के हृदय में

विराजमान रहती है

* रिश्तों के बाजार में थोड़ा 

सोच समझकर रहना जनाब

यहां लोग वफादार कम,

अदाकार ज्यादा हो गए हैं।

* बुरे साथी के साथ बैठकर 

आप बुरे नहीं हो सकते, लेकिन

आप दागी जरूर

हो जाएंगे। इससे

साफ पता चलता है कि

संगत का भी प्रभाव पड़ता है।

* हाथों ने पैरों से पूछा

सब तुम्हें ही प्रणाम

करते हैं,

मुझे क्यों नहीं,

पैर बोला, उसके लिए

जमीन पर रहना

पड़ता है,

हवा में नहीं।

* अगर नशा करना है तो

मेहनत का करें

यकीन मानें,

बीमारी भी

सफलता वाली ही आएगी।

* मुकम्मल कहां हुई

जिन्दगी किसी की

आदमी कुछ खोता ही रहा

कुछ पाने के लिए।

* बुरे वक्त में कंधे पर रखा

गया हाथ कामयाबी पर बजायी

तालियों से ज्यादा

कीमती होता है।

* कामयाबी का बीज

हर किसी के अंदर

मौजूद है, बस

मेहनत और ज्ञान

से उसे

सीचना पड़ता है।

* इंसान कितना ही अमीर क्यों

न बन जाए...

तकलीफ बेच नहीं सकता

और सुकून खरीद नहीं सकता...

* फितूर होता है, हर उम्र में जुदा...

खिलौने, माशूका, रूतबा...

फिर खुदा...

* मेरे पास वक्त नहीं है, 

नफरत करने का उन लोगों से

जो मुझसे नफरत करते हैं...

क्योंकि मैं व्यस्त हूं

उन लोगों में 

जो मुझसे प्यार करते हैं।

* हमारी आखिरी उम्मीद

हम खुद हैं...

और जब तक हम हैं,

उम्मीद कायम है।

* आया था कोई 

पत्थरों के पास 

उन्हें देखा, 

और बोला 

मनुष्य बनो। 

पत्थरों ने भी देखा उसे 

और उसे दिया उत्तर 

हम नहीं हो पाये 

उतने अभी कठोर। 

(जर्मन कवि एरिक फ्रायड की लघु कविता)

मेरे दोस्त...

तुम कहा करते थे -

कि दुनिया इसलिए बची है

क्योंकि दुनिया में आज भी कुछ ईमानदार

बचे हुए है...

तो बुरा मत मानना मेरे दोस्त 

यह तुम्हारा भ्रम नहीं

अंधविश्वास था।

मेरे दोस्त...

ईमानदार तो आज खुद को भी नहीं

बचा सकते

बेचारे दुनिया को 

क्या बचाएंगे?

(चंद्र विद की छोटी कविता)

अंत में...

* थोड़े ठंडे दिमाग से सोचियेगा-गलती सबकी है। जिस फूलपुर सीट से कभी जवाहरलाल नेहरू चुनाव जीतते थे, वहां से जनता ने अतीक अहमद को चुना।

    जिन घरों की दीवारों पर गांधी, नेहरू, लोहिया, जयप्रकाश मौलाना, बाबा साहब जैसों की तस्वीरें सजती थीं, उन घरों में अब क्या है, सब जानते हैं। जिन फिल्मों में ‘न हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा’ जैसे गाने बजते थे, वहां भेजे में गोली मारी गई। एनकाउंटर स्पेशलिस्ट यानी हत्यारे को हीरो बनाया गया। सबने देखा, तालियां बजाईं। सवाल करने वालों को पुरातनपंथी कहा जाता है। पहले राजनीति का अपराधीकरण हुआ फिर अपराध का राजनीतिकरण। अपने धर्म जाति के गुंडे हीरो बने। किसने बनाये? सोचियेगा। सोचियेगा... कुछ मुझे सूझ रहा है। कुछ आपको सूझेगा। शायद कहीं बात पहुंचे।... वरना एक गुंडा मरेगा दूसरा पैदा होगा... होता रहेगा।

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