Thursday, May 25, 2023

हम गवाह हैं...

    इस दुनिया में कौन है, जिसे बच्चों का हंसना-मुस्कराना न भाता हो। नवजात के आगमन पर किसका चेहरा न खिल जाता हो। बेटा हो या बेटी, मां-बाप के लिए तो दोनों दुलारे और दिलो-जान से प्यारे होते हैं। दादा-दादी, नाना-नानी उनमें अपना चेहरा देखते हैं। माता-पिता के साथ-साथ उन्हें भी यही लगता है कि उन्होंने इनके रूप-स्वरूप में फिर से धरा पर जन्म ले लिया है। फ्रेम में सजी अपने बच्चे की तस्वीर जिस खुशी से रूबरू करवाती है उसका शब्दांकन करना मुश्किल है। दरअसल, बच्चे फूल होते हैं, तितली होते हैं, मनमोहक बाग के हरे-भरे नाजुक पत्ते और टहनियां होते हैं, जिनके निरंतर फलने-फूलने का हर माली को इंतजार रहता है। कोई भी संवेदनशील इंसान उन्हें तोड़ने, बिखेरने और मसलने के पाप का भागीदार नहीं बनना चाहता, लेकिन अपवादों का क्या? उनकी बेरहमी के किस्से हर दिन अखबारों, न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया में आ-आकर डराते और चौंकाते रहते हैं। दरअसल ऐसे शैतान हमारे आसपास के ही वासी हैं। यह दिखते कुछ हैं और होते कुछ और हैं। नकली और दिखावटी जिन्दगी जीने वालों में अनपढ़ भी हैं, पढ़े-लिखे भी। हैरानी भरा सच यह भी है कि इन्हें दूर से देखो तो कभी-कभी यह भी लगता है कि यह तो शरीफों की औलाद हैं। इस धरती के भगवान हैं, लेकिन जब इनकी असलियत सामने आती है तो शैतानियत भी पानी-पानी हो जाती है। देखने और सुनने वालों की रूह कांप जाती है। 

    अदालत, सीआईडी, क्राइम अलर्ट तथा सावधान इंडिया जैसे चर्चित धारावाहिकों में जानदार अभिनय कर लाखों दर्शकों का मनोरंजन करने के साथ-साथ सतर्कता और जागरुकता का पैगाम देने वाली खूबसूरत अभिनेत्री चंद्रिका साहा के पति अमन मिश्रा ने अपने 15 माह के बेटे को बेडरूम में पटक-पटक कर अधमरा कर दिया। अमन को बच्चों से नफरत थी। जब से उसकी पत्नी ने गर्भ धारण किया तभी से वह बौखलाया रहता था। दोनों में अक्सर लड़ाई-झगड़ा होना आम बात थी। इक्कीस वर्षीय अमन की इक्तालीस वर्षीय पत्नी चंद्रिका को वर्षों से मां बनने की प्रबल चाह थी। चंद्रिका का 2020 में अपने पहले पति से तलाक हो गया था। हट्टे-कट्टे आकर्षक जवान अमन से किसी पार्टी में मुलाकात हुई और फटाफट प्यार भी हो गया। शादी करने में भी देरी नहीं लगायी, लेकिन जो प्रतिफल मिला उसके दंशों से छुटकारा पाने में अभिनेत्री की तो उम्र बीत जाएगी...। 

    छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्थित शंकरा मेडिकल कॉलेज में धरती के भगवान कहलाने वाले डॉक्टरों ने अपना जो शैतानी चेहरा दिखाया उससे तो मानवता भी कराहने को विवश हो गई। बेमेतरा के पथरी गांव निवासी एक महिला की डिलीवरी के दौरान मौत हो गई। नवजात की भी हालत अत्यंत नाजुक थी। उसे सांस लेने में अत्यंत तकलीफ हो रही थी। डॉक्टरों ने बच्चे का इलाज करने से पहले तुरंत परिजनों से दस हजार रुपये की मांग की, लेकिन उनके पास इतने रुपये नहीं थे, इसलिए उन्होंने हाथ जोड़ते हुए डॉक्टरों से कुछ घंटे का समय मांगा, लेकिन धनप्रेमी डॉक्टर नहीं माने। उन्होंने तुरंत नवजात को यह कहते हुए वेंटिलेटर से हटाकर उनके हाथ में रख दिया कि यहां उधारी में किसी का इलाज नहीं होता। कुछ ही घंटों के बाद नवजात ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। इस नृशंस हत्या की खबर को दबाने-छिपाने के लिए डॉक्टरों ने भरसक प्रयास किए। मीडिया को भी सेट करने की कोशिशें कीं, लेकिन सच उजागर हो ही गया। 

    भारत में अमीरी चंद लोगों की जागीर है। गरीबी और बदहाली अधिकांश भारतीयों की तकदीर है। मैंने जब यह खबर पड़ी कि पश्चिम बंगाल में एक गरीब असहाय बाप को एम्बुलेंस का किराया नहीं होने के कारण पांच महीने के अपने बच्चे का शव बैग में डालकर बस से 200 किलोमीटर की पीड़ादायक यात्रा तय करनी पड़ी तो मेरे दिमाग की नसें हिलने लगीं और पूरा वजूद सन्नाटे के ठंडे समंदर में समा-सा गया। आशीम देवशर्मा के पांच महीने के बच्चे की सिलीगुड़ी नार्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी। गरीब, बदहाल बाप ने अपने बच्चे को किसी भी तरह से बचाने के लिए इधर-उधर से 16 हजार रुपये जुटाकर डॉक्टरों की जेब के हवाले किए थे, लेकिन अब उसकी लाश उसके सामने थी। बेटे को खोने के गम में डूबे खस्ताहाल पिता से अस्पताल के संचालकों ने एम्बुलेंस के लिए आठ हजार रुपये की मांग कर दी तो असहाय जन्मदाता ने बच्चे के शव को बैग में डाला और चुपचाप बस में बैठ गया। इस दौरान इस बदनसीब बाप ने किसी यात्री को भनक तक नहीं लगने दी कि बैग में उसके मृत दुलारे की लाश है। दरअसल उसे भय था कि यदि किसी को पता चल गया तो उसे फौरन बस से उतार दिया जाएगा। 

    नारंगी नगर नागपुर के अस्पताल में कार्यरत नर्स मायरा गुप्ता बिना किसी स्वार्थ के मरीजों की सेवा, सहायता और देखभाल में तल्लीन रहती हैं। अधिकांश नर्सें और डॉक्टर जहां घड़ी देखकर ड्यूटी बजाते हैं, वहीं मायरा को समय का कतई ध्यान नहीं रहता। मायरा देश की पहली ट्रांसवुमन हैं। हंसमुख और मिलनसार स्वभाव की मायरा को कुछ वर्ष पूर्व तक विक्रम गुप्ता के नाम से जाना जाता था। पुरुष से स्त्री बनने के बाद उसने नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया ही इसलिए ताकि बिना किसी स्वार्थ के मरीजों की सेवा कर सके। मायरा के मन-मस्तिष्क में आज भी वो पल कैद हैं, जब एक नन्हें से बच्चे की आंख का आप्रेशन होने के बाद उसकी पट्टी निकाली गई थी। तब बच्चे के घर के लोग उसे घेर कर खड़े थे, लेकिन आंख खुलते ही बच्चा अपने परिजनों के पास जाने की बजाय मायरा के गले में हाथ डालकर बड़े प्यार से लिपट गया। उस नन्हें से बच्चे के इस तरह से गले लगने के बाद मायरा को लगा कि उसकी तपस्या सफल हो गई है। वह उन सुखद पलों को अपने जीवन की सबसे महान उपलब्धि और अनमोल उपहार मानती हैं।

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