Thursday, June 1, 2023

आइए इनसे मिलें

    कठिन परिश्रम और लक्ष्य के प्रति अटूट समर्पण हो तो हर मुश्किल और अड़चन को मात देकर मनचाही सफलता और मंजिल पाई जा सकती है। इसे सिद्ध कर दिखाया है उन जूनूनी छात्रों ने, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से डटकर जंग लड़ी और उस बुलंदी को छुआ जो दूसरों के लिए अकल्पनीय थी। उनकी आकाशी सफलता में उनके माता-पिता के योगदान के बारे में जानकर बस यही कहने को मन होता है कि ऐसे जन्मदाता अपनी संतान के लिए भगवान से कम नहीं। यह भी सच है कि प्रत्येक माता-पिता अपने बेटे-बेटी की लगभग हर चाहत को पूरा करने की कोशिश करते हैं। उन्हें उच्च शिक्षित करने के लिए रात-दिन खून पसीना बहाते हैं। कई संतानें सभी सुख-सुविधाओं में पलने-बढ़ने के बाद भी अपने माता-पिता के सपनों को पूरा नहीं कर पातीं। अत्याधिक धन उन्हें बिगाड़ देता है, लेकिन कुछ गरीबों के बच्चे वो कर दिखाते हैं, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती। शारीरिक कमजोरी को भी मात देने का उनका जिद्दी जज़्बा हर किसी को हतप्रभ कर देता है।

    सूरज तिवारी ने तो वाकई सभी को स्तब्ध कर दिया है। किसी को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि वह यूपीएससी यानी यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा इतने अच्छे नंबरों से पास कर दिखायेगा। सूरज के प्रति लोगों की सोच और धारणा का कारण था, उसका अत्याधिक अपंग होना। 26 वर्षीय सूरज को 2017 में गाजियाबाद के दादरी में एक रेल दुर्घटना में अपने दोनों पैरों के साथ-साथ अपने दाहिने हाथ और बाएं हाथ की दो अंगुलियों को सदा-सदा के लिए खोना पड़ा था। कुछ माह पूर्व ही सूरज के बड़े भाई की मौत हुई थी। इन दोनों सदमों ने माता-पिता को अथाह दु:ख के समंदर में डुबो दिया था। दरअसल पूरे परिवार के लिए यह अत्याधिक चिंता, पीड़ा भरा वो काल था, जिससे बाहर निकलना आसान नहीं था। सूरज के पिता अदने से दर्जी हैं। तय है कि कमाई सीमित है। जैसे-तैसे दाल रोटी का ही इंतजाम हो पाता है। सूरज के दो अन्य भाई-बहन भी हैं। इस दुर्घटना के बाद सूरज के दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया था। हमेशा-हमेशा के लिए व्हील चेयर पर होने को मजबूर सूरज ने परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेकने की साची,  लेकिन तब मां-बाप के साथ-साथ और भी कोई था जो अंदर से उसेे प्रेरित कर रहा था... ‘‘तुम अगर ठान लो तो कुछ भी असंभव नहीं। कब तक मां-बाप पर बोझ बने रहोगे? ऐसा जीना भी कोई जीना है?’’ सूरज ने बड़े दमखम के साथ खुद को डिप्रेशन के दौर से बाहर निकाला। टूटे-फूटे लस्त-पस्त शरीर की चिन्ता करने की बजाय दिमाग से काम लेते हुए यूपीएससी की परीक्षा की सघन तैयारियां प्रारंभ कर दीं। अपने पहले प्रयास में उसे असफलता मिली, लेकिन फिर भी हौसले का दामन नहीं छोड़ा। पिता भी दिन-रात अधिक से अधिक मेहनत कर धन कमाने और उसका मनोबल बढ़ाने में लगे रहते। अपने पिता की आशा पर खरा उतरने के लिए सूरज ने अध्ययन में दिन-रात एक कर दिया और अपने दूसरे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा में शानदार सफलता हासिल कर दिखा दिया है कि सच्ची लगन और मेहनत इंसान की हर इच्छा को पूरा करती है। शारीरिक कमी और कमजोरी कोई मायने नहीं रखती। 

    सिविल सेवा परीक्षा का इम्तिहान पास कर आईएएस अधिकारी बनने का सपना तो न जाने कितने लड़के-लड़कियां देखते हैं, लेकिन सभी की मंशा पूरी नहीं होती। दरअसल मात्र सपने देखने से कुछ नहीं होता। उन्हें हकीकत में बदलने के लिए पूरी ताकत लगानी पड़ती है। हार कर बैठने की भूल से हर पल बचना होता है। सिविल सर्विस परीक्षा 2021 में 46वीं रैंक प्राप्त करने वाली राम्या को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए असफलताओं का भी मुंह देखना पड़ा। राम्या का यूपीएससी का सफर भी मुश्किलों भरा रहा, लेकिन जिद थी कि चाहे कुछ भी हो जाए, लेकिन हार नहीं माननी है। तंज कसने वालों को सफल होकर दिखाना है। राम्या का छठा प्रयास अंतत: रंग लाया। राम्या की मां भी बेटी के साथ डटकर साथ खड़ी रहीं। उन्होंने अपनी पुत्री का मनोबल कभी भी कमतर नहीं होने दिया। 

    नागपुर शहर के पवित्र स्थल दीक्षाभूमि स्थित डॉ. आंबेडकर कॉलेज की मेघावी छात्रा भूमिका बोदले के पिता ऑटो चालक हैं। उन्होंने अपनी बेटी को पढ़ाने-लिखाने का जो संकल्प लिया था, उस पर डटे रहे। बेटी ने भी कला संकाय में 80 प्रतिशत से अधिक नंबर लेकर उनके भरोसे को और बलवति बनाने का कीर्तिमान रच कर दिखा दिया है कि जिनकी कुछ बनने की चाह होती है उनके लिए कोई भी व्यवधान अवरोध नहीं बन सकता। भूमिका की मां दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा लगाती हैं। भूमिका को कालेज की पढ़ाई के साथ-साथ घर की जिम्मेदारी भी संभालनी होती थी, लेकिन फिर भी उसने पढ़ने-लिखने में कभी कोई कमी नहीं की।

    नागपुर में स्थित एलएडी की छात्रा सलोनी दृष्टिहीन है। उसने बारहवीं कक्षा में कला शाखा में 80 प्रतिशत अंक प्राप्त कर दिखा दिया कि जहां चाह होती है वहीं राह होती है। अंदर का उजाला हर अंधेरे का खात्मा कर देता है। दृष्टिहीनता कोई मायने नहीं रखती। सलोनी के पिता गांव में एक छोटी सी दुकान चलाते हैं। सलोनी नागपुर में अपने किसी रिश्तेदार के यहां रहकर अध्ययन करती है। उसने दिन-रात आडियो रिकॉर्डिंग सुनकर बारहवीं की पढ़ाई कर सफलता का परचम लहराया। सलोनी प्रशासकीय सेवा में जाकर देश की सेवा करने की अभिलाषी है। 

    गिरीश डोंगरे ने 69 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। आप कहेंगे यह कौन सी बड़ी बात है। आजकल तो विद्यार्थी नब्बे-पंचानवें प्रतिशत नंबर तो चुटकियां बजाते ही पा जाते हैं। गिरीश यदि एकदम स्वस्थ होता तो उसका यहां जिक्र ही नहीं किया जाता। दरअसल, गिरीश को बचपन से सिकलसेल जैसी गंभीर बीमारी है। इस बीमारी के शिकार को जानलेवा पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसके अधिकांश मरीज बिस्तर ही पकड़ लेते हैं। इस कष्टदायक बीमारी के कारण गिरीश के लिए परीक्षा केंद्र में बैठना ही अत्यंत मुश्किल था, लेकिन उसने जबरदस्त पीड़ा को झेलते हुए भी परीक्षा दी और इतने नंबर हासिल कर दिखाए, जो अधिकांश लोगों के लिए नगण्य हैं, लेकिन वह और उसके परिजन इतने में ही खुश और संतुष्ट हैं। गिरीश की ग्रेजुएशन की पढ़ाई के बाद एक प्रभावी चित्रकार बनने की तमन्ना है। इंदौर के मृदुल पाल ने हाईस्कूल की परीक्षा में प्रदेश में शीर्ष स्थान हासिल किया हैै। मृदुल के परिवार की आर्थिक स्थिति कतई अच्छी नहीं। मां सिलाई का काम तो पिता स्विमिंग पूल के इंचार्ज हैं। उसका बड़ा भाई भी पढ़ाई कर रहा है। यानी खर्चों की तुलना में आमदनी नगण्य है। मृदुल को बचपन में ही समझ में आ गया था कि उसके जीवन का आगामी सफर संकटों और कंटकों भरा रहने वाला है। उसने इस स्थिति को खुशी-खुशी स्वीकारा। उसके साथ के छात्रों ने कोचिंग में लाखों रुपये खर्च किए, लेकिन मृदुल ने अपने दम पर यह सफलता हासिल की है। स्कूल में पढ़ाई करने के पश्चात घर में भी वह किताबों में डूबा रहता था। पढ़ाई के सिवाय उसका और कोई खास दोस्त नहीं। अपने काम से काम रखने वाला मृदुल खूब पढ़-लिखकर बड़ा आदमी तथा अपने माता-पिता का सहारा बनना चाहता है।

No comments:

Post a Comment