Thursday, September 14, 2023

देर भी, अंधेर भी

    जब किसी ने कोई अपराध किया ही न हो, लेकिन उसे सज़ा भुगतनी पड़े तो उसकी पीड़ा दूसरों को कहां पता चल पाती है! जो सहता है, वही जानता है। बाकी के लिए तमाशा है। किस्मत का खेल है। अपनी ही रंगीनियों में खोये बहुतों को तो खबर ही नहीं कि अपने भारत का कानून कई कारणों से हर किसी को न्याय नहीं दे पाता। उसे भी विवशताओं की जंजीरों में जकड़ दिया गया है। उसके समक्ष ऐसा घना अंधेरा है, जो कभी हटता है तो कभी हमेशा के लिए कायम रहते हुए निर्दोष की जिन्दगी तबाह कर देता है। बार-बार पढ़ी-सुनी कहावत है कि ऊपर वाले के यहां देर है, पर अंधेर नहीं। मुझे भी अपने बुजुर्गों के द्वारा अनुभवों से रची इस कहावत पर बहुत यकीन था, लेकिन अब उतना नहीं रहा। भारतीय जेलों में वर्षों से लाखों बेकसूर कैद हैं। उनकी सुनने वाला कोई नहीं। देश के न्यायालयों में लंबित पड़े मामलों का आंकड़ा 4 करोड़ के आसपास पहुंच चुका है। अब तो यह भी कहने-सुनने में आने लगा है कि अन्य महंगी वस्तुओं की तरह न्याय को भी खरीदा और भटकाया जा सकता है। बस जेब में दम और जुगाड़ की कला का ज्ञान होना चाहिए।

    कुछ वर्ष पूर्व शहर में एक गुंडे ने भरे चौराहे पर अपने विरोध में गवाही देने वाले कॉलेज छात्र की हत्या कर दी थी। नंगी तलवार के अनेकों वार से की गई इस नृशंस हत्या को कई लोगों ने अपनी आंखों से देखा था, लेकिन हत्यारा अदालत से इसलिए बरी हो गया, क्योंकि उसके खिलाफ किसी चश्मदीद ने गवाही ही नहीं दी। वो कुख्यात गुंडा किसी का दोस्त तो किसी का रिश्तेदार था। यहां कोई भी किसी अपने का बुरा होते नहीं देखना चाहता। उसकी हिफाजत के लिए किसी भी हद तक गिरना मंजूर है। सच का साथ देकर दुश्मनी मोल लेने से अधिकांश भारतीय घबराते हैं, लेकिन जब खुद पर आती है तो शिकायती भाषणबाजी सूझती है। अपराध और अपराधियों पर नज़र रखना खाकी वर्दी वालों का मूल दायित्व है। चोर, लुटेरों, डकैतों, बलात्कारियों की शिकायतें लेकर आमजन इसलिए पुलिस के पास जाते हैं, ताकि उन्हें सुरक्षा और इंसाफ मिले और अपराधियों को कठोर दंड मिले। पुलिस थाने इंसाफ के प्रथम द्वार हैं, लेकिन यह दरवाजे सभी के लिए नहीं खुलते। बड़ा भेदभाव होता है यहां।

    अधिकांश खाकी वर्दीधारी किसी न किसी रूप में अपराधियों के साथ दोस्ती-यारी निभाने में अग्रणी हैं। धन की चमक के समक्ष उनका ईमान डोलने में देरी नहीं लगती। देखने और सुनने में तो यह भी आता है कि कुछ पुलिस अधिकारी ही संगीन अपराधियों को बचने-बचाने के मार्ग सुझाते हैं। अभी हाल ही में ही संतरा नगरी नागपुर में दस साल की बालिका को बंधक बनाकर उसका यौन शोषण करने वाले प्रापर्टी डीलर अरमान को पुलिस ने गिरफ्तार किया। रईस अपराधी को पूछताछ के नाम पर अधिकारी के कक्ष में ऐसे बिठाया गया, जैसे वह सरकारी मेहमान हो। अरमान से मेल-मुलाकात करने के लिए बिना किसी रोकटोक के उसके मित्र तथा रिश्तेदारों का वहां आना-जाना लगा रहा। उसके लिए लजीज खाने-पीने की व्यवस्था में कोई कमी नहीं थी। पुलिस हिरासत में भी वह मोबाइल पर अपने घरवालों तथा मित्रों से बातें करने के लिए स्वतंत्र था। दूसरों को अपना गुलाम समझने वाले अरमान के परिवार के द्वारा 2019 में बच्ची को बेंगलुरु से खरीदकर लाया गया था। तब वह मात्र छह वर्ष की थी। उसके गरीब माता-पिता को आश्वासन दिया गया था कि उनकी बच्ची के भविष्य को पढ़ा-लिखा कर संवारा जाएगा, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं हुआ। मासूम को स्कूल भेजने की बजाय घर की साफ-सफाई तथा अन्य भारी-भरकम कामों में लगा दिया गया। कालांतर में अरमान की वासना भरी निगाह बच्ची पर पड़ी तो उससे दुष्कर्म भी किया जाने लगा। बच्ची विरोध करती या उससे काम में थोड़ी सी भी चूक अन्यथा गलती होती तो गर्म तवे तथा सिगरेट के चटके उसके शरीर पर लगाये जाते। बेबस बच्ची दरिंदों के अथाह जुल्म सहने को विवश थी। यह तो अच्छा हुआ कि कुछ दिन पहले जब उसे बाथरूम में बंद कर पूरा परिवार बेंगलुरु घूमने-फिरने गया था, तब अंधेरे में घबरायी बच्ची खिड़की से कूदने में कामयाब हो गई और इतना क्रूर शर्मनाक सच सामने आ पाया। 

    त्रिपुरा में स्थित है शहर अगरतला। इस महान नगरी की एक जननी का अभिनंदन, जिसने अपने ही बेटे को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट में गवाही देकर आजीवन कारावास की सज़ा दिलवायी। ‘सच’ का साथ देने वाली इस दिलेर मां ने भरी अदालत में बिना घबराये कहा कि ऐसी बेरहम औलाद तो बार-बार फांसी की हकदार है। 

    सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करने वाली 55 वर्षीय विधवा महिला कृष्णादास की नमितादास के बेटे सुमन ने अपने दोस्त चन्दनदास के साथ मिलकर गला घोंटकर हत्या कर दी थी। मौत के मुंह में सुलाने से पहले दोनों ने उस पर बड़ी बेरहमी से बलात्कार भी किया। दोनों हत्यारों के खिलाफ किसी ने भी गवाही देने का साहस नहीं दिखाया। ऐसे में इस नमितादास यानी मां ने ही हिम्मत दिखायी। इस साहसी मां ने मोह-माया की जंजीरों को तोड़ते हुए कहा कि वह सिर्फ सच्चाई का ही साथ देंगी। उन्हें पता है कि उसके बेटे ने ही अपने दोस्त के साथ मिलकर असहाय महिला की अस्मत लूटने के बाद मौत के घाट उतारा है। 

    इस प्रेरणास्त्रोत मां की बस यही इच्छा है कि हर ऐसी औलाद को फांसी के फंदे पर लटकाया जाए, ताकि दूसरे अपराधियों के भी होश ठिकाने आएं।

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