Wednesday, September 6, 2023

खरी-खरी

    भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षी नेता कमर कस चुके हैं। ऐसा ही कभी इंदिरा गांधी को सत्ता से दूर करने के लिए तत्कालीन विपक्ष के नेताओं ने जोर आजमाया था। सत्ता भी उनके हाथ लगी थी, लेकिन पीएम की कुर्सी की लड़ाई में अंतत: हंसी के पात्र बन कर रह गये थे। इंदिरा गांधी की तरह नरेंद्र मोदी पर भी तानाशाही से शासन चलाने के आरोप हैं, लेकिन फिर भी दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। इंदिरा गांधी ने विपक्ष की आवाज को पूरी तरह से दबाने के लिए आपातकाल तक लगा दिया था। लगभग सभी विपक्ष के दिग्गज नेताओं को जेलों में ठूंस दिया था। प्रेस पर भी नियंत्रण की तलवारें लटका दी थीं। इंदिरा गांधी के बरपाये आपातकाल का यशगान करने वाले संपादकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों के लिए रंगीन कालीन तो विरोध में खड़े योद्धाओं के लिए सजाएं निर्धारित कर दी थीं। तब के सच्चे जननायक, विद्रोही नेता राज नारायण की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को 1971 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्ट आचरण का दोषी ठहराया था, जिससे उनका माथा ठनक गया था और विरोधियों को दबाने के लिए आपातकाल की विनाशी राह चुनी थी। 

    इंदिरा गांधी की तरह नरेंद्र मोदी भी दूसरों की कम सुनते हैं, लेकिन वे अंधे और बहरे नहीं हैं। हमेशा सचेत रहते हैं। उनके नेतृत्व में एनडीए सतत एकजुट है। इंदिरा गांधी परिवार के मोह की जबर्दस्त कैदी थीं। गांधी परिवार की यह परिपाटी आज भी बरकरार है। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने अपनी मां के शासन काल में गुंडागर्दी और मनमानी की छूट हासिल कर रखी थी। अक्सर लोग सोचने को विवश हो जाते थे कि देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हैं या उनके बेटे, जिनका दूर-दूर तक आतंक और खौफ था। अपनी मां को इमरजेंसी लगाने की पुरजोर सलाह भी संजय गांधी ने ही दी थी, जिसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया था। सच कहें तो कांग्रेस के पतन की शुरुआत भी तभी हो गई थी। नरेंद्र मोदी के सत्ता पर काबिज होने से पहले दस वर्ष तक मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे। सोनिया गांधी और राहुल गांधी उनको अपने इशारों पर नचाते रहे। उन्हीं के कार्यकाल में प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा ने जिन तरीकों से अरबों रुपयों का साम्राज्य खड़ा किया, कौन नहीं जानता। नरेंद्र मोदी के केंद्र की सत्ता पर सत्तासीन होने तथा गुजरात के कई वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनके किसी परिजन ने सत्ता का लाभ नहीं उठाया। उनके भाई-बहन तथा सभी रिश्तेदार कल जैसी आर्थिक हालत में थे, आज भी वैसे ही हैं। रही बात अडानी और अंबानी की तो दोनों पहले से ही धनपति रहे हैं। हर सरकार से अपना काम निकलवाना उन्हें आता है।  

    भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की ओर कदम बढ़ाते पीएम नरेंद्र मोदी का 9 वर्ष का कार्यकाल पूरी तरह से निराशाजनक तो कतई नहीं कहा जा सकता।  नरेंद्र मोदी अति आत्मविश्वासी हैं। चापलूसों से दूर रहते हैं। उनके इसी गुण को विरोधी उनका अहंकार मानते हैं। कुछ गिने-चुने पत्रकारों को भी वे दंभी लगते हैं। दरअसल, मोदी दूसरे पूर्व के प्रधानमंत्रियों की तरह मीडिया को ज्यादा भाव नहीं देते। सिर्फ अपने काम से मतलब रखते हैं। 

    यकीनन, बेतहाशा बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी ने देशवासियों को निराश किया है। आम आदमी के लिए रोजी-रोटी तथा रोजगार प्राथमिक जरूरत हैं। पुल, सड़कें, मेट्रो, वंदेभारत ट्रेन, चंद्रमा पर झंडा फहराना, अयोध्या में राम मंदिर बनवाना तथा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाना तभी सुकूनदायी है, जब उसकी झोली मूलभूत आवश्यकताओं से परिपूर्ण हो। 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद देशवासियों को जिस भरपूर बदलाव की आशा थी वह पूरी तरह से नहीं हो पाया, लेकिन उम्मीदें पूरी तरह से धराशायी भी नहीं हुई हैं। आशा का दीपक रौशन है। मोदी के कार्यकाल में ही कोरोना की महामारी देशवासियों के हिस्से में आयी। लगभग दो साल इसी से लड़ते-लड़ते बीते। पीएम कहीं भी कमजोर नहीं पड़े। नरेंद्र मोदी जैसा कर्मवीर प्रधानमंत्री पहले देखने में नहीं आया। नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता से हटाने के लिए जो दल और नेता बेचैन हैं उनमें भिन्न-भिन्न तरह से दागी भी शामिल हैं। कुछ पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं। आम जनता में उनकी छवि अच्छी नहीं है। फिर भी वे पीएम बनने का सपना देख रहे हैं। विपक्षी पार्टियों के गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस) इंडिया को दिल्ली बहुत नजदीक दिखायी दे रही है। इस सदी के सबसे भ्रष्ट नेता लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने जानवरों का चारा तक पचा डाला, रेलवे में नौकरी देने की ऐवज में गरीबों, पिछड़ों की जमीने अपने नाम लिखवा लीं। वह आज नरेंद्र मोदी की गर्दन नोचने की दहाड़ लगाकर हीरो बनने की कोशिश में हैं। लालू की तरह और भी कुछ चेहरे हैं, जो हद दर्जे के भ्रष्ट होने के बावजूद इंडिया गठबंधन में शामिल हैं। 

    रही बात राहुल गांधी की तो उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में खून-पसीना बहाकर अपने दमखम को दिखा दिया है। जो लोग कल तक उन्हें ‘पप्पू’ कहते थे आज उनकी तारीफ करने लगे हैं। राजनीति में अपनी पैठ जमाने के लिए राहुल ने पिछले तीन-चार वर्ष में भाग-दौड़ कर देशवासियों से जो प्रभावी मेल-मिलाप किया है उससे यकीनन उनका कद बढ़ा है। झुकने की बजाय लड़ाई लड़ने की जिद ने उन्हें ऊंचा उठाया है। विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी के कंधे पर ही बंदूक रखकर बड़े-बड़े सपने देख रहे हैं। आपातकाल से देशवासियों को आहत करने वाली इंदिरा गांधी को जिस जनता दल ने लोकसभा की 298 सीटें जीतकर सत्ता से दूर किया था, उसमें एक से एक कद्दावर नाम शामिल थे। जयप्रकाश नारायण, लाल कृष्ण आडवाणी, चंद्रशेखर, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीस चंद्रशेखर, ग्वालियर की राजमाता विजय राजे सिंधिया, मोरारजी देसाई जैसे निस्वार्थ नेताओं पर देश के बच्चे-बच्चे तक को अपार भरोसा था। मोदी को हटाने के लिए बने ‘इंडिया’ में शामिल पांच-सात को छोड़कर बाकी सभी पीएम की कुर्सी के लिए पगलाये हैं। वहीं कुछ को अपनी औलादों को येन-केन-प्रकारेण सत्ता की शाही कुर्सी पर बिठाने की जल्दी है...।

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