Thursday, October 12, 2023

लज्जा

     मन नहीं मानता। घबरा जाता है। खुद को समझाता है। फिर भी कहीं न कहीं उलझ जाता है। जिसकी कल्पना नहीं थी, जो कभी सोचा नहीं था। वो हो रहा है। बार-बार हो रहा है। अखबार थक रहे हैं, छापते-छापते। पाठक तो कब से माथा पकड़े हैं। फरियादी बने हैं। हमें ऐसी दिल दहलाने वाली खूनी खबरों से कब मुक्ति मिलेगी? कब इंसान शैतान बनने से तौबा करेगा। कैसे उसकी अक्ल ठिकाने आयेगी। मां, बहन, बेटियों की घरों, गली मोहल्लों और भरे चौराहों पर अस्मत लुटते देख कब सबका खून खौलेगा? बांग्लादेश में दोस्त ही दोस्त को मार कर खा गए। पहले तो यकीन ही नहीं हुआ। इंसान को इंसान का मांस कब से भाने-ललचाने लगा? खबर सच थी। पुलिस को बीस साल के युवक शिवली का पहाड़ी पर कंकाल मिला था। वह काफी दिनों से गायब था। दरअसल, पैसों के लिए दोस्तों ने ही उसका अपहरण किया था। फिरौती की रकम मिलने के बाद भी उन्होंने शिवली की हत्या कर डाली और उसकी लाश के मांस को पकाकर खा गए। पहले तो मैंने खुद को तसल्ली दी कि यह हैवानियत दूसरे देश में हुई है। अपने देश भारत में ऐसा कंपकंपाने और पैरोंतले की जमीन खिसकाने वाला पाप कभी भी नहीं हो सकता। हम पूजा-पाठ करने वाले लोग हैं। पत्थरों में भगवान देखते हैं। नारी की पूजा करने में यकीन रखते हैं, लेकिन उसी अखबार के दूसरे पन्नों पर छपी खबरें मेरे दोनों गालों पर तमाचे की तरह धड़ाधड़ बरसने लगीं। भरी बरसात में आकाश से पानी की जगह बरसे नुकीले पत्थरों ने मेरे तन-मन को लहुलूहान कर दिया। 

    खबर का शीर्षक था, ‘असम में हत्या के बाद शव से रेप’। रेलवे में नौकरी करने वाले एक युवक को अपनी गर्लफे्रंड के साथ जिस्मानी रिश्ते बनाने की जल्दी थी। प्रेमिका शादी से पहले इस हद तक पहुंचने को कदापि तैयार नहीं थी, लेकिन जिस्म के भूखे प्रेमी के सब्र का बांध टूटने लगा था। उसके बार-बार अनुरोध करने पर भी जब सचेत लड़की नहीं मानी तो गुस्साये युवक ने दोस्तों के साथ मिलकर उसको मौत की नींद सुला दिया। हत्या करने के बाद भी उसका मन नहीं भरा। उस नराधम ने अपनी प्रेमिका के शव के साथ बलात्कार कर हैवानियत की सभी हदें पार कर दीं। पढ़ने और सुनने वालों को सुन्न कर दिया। चांद पर घर बसाने के सपने देख रहे इंसानों की भीड़ में आज भी कुछ लोग अंधविश्वास के चंगुल में मुक्त नहीं हो पाये हैं। उन्हें खबर ही नहीं कि दुनिया कहां से कहां पहुंच चुकी है। दरअसल ये इस आधुनिक सदी के शैतान और राक्षस हैं, जिनका होना बार-बार भयभीत करता है। पंजाब के खन्ना शहर में किसी तांत्रिक के कहने पर एक शख्स ने 4 साल के मासूम को मौत के घाट उतार दिया। इतना ही नहीं वह उसका खून भी पी गया। इस खूंखार हत्यारे ने अमर होने तथा सिद्धियां हासिल करने के लिए बच्चे की बलि दी। दरअसल, कुछ लोगों ने अपनी अंतरात्मा को ही सूली पर लटका दिया है। ये दरिंदे मासूम बच्चियों तक को नहीं बख्शते। उनकी आत्मा को भी रौंद डालते हैं। हैवान तो गुनहगार हैं ही, लेकिन इनको दरिंदगी करते देख चुपचाप अपने रास्ते चल देने वाले लोग कौन हैं? मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में एक बारह साल की लड़की खून से लथपथ अनजानी सड़कों पर भटकती रही। शहर मंदिरों की घंटियों में खोया रहा। लोग भी अपने-अपने मायाजाल में उलझे रहे। लड़की पर जिनकी नज़र पड़ी भी वे भी यह सोचकर चुपचाप आगे बढ़ गये कि हम क्यों अपना वक्त बरबाद करें। हमने दूसरों की संतानों की सहायता करने का ठेका थोड़े लिया है। जिनके पास वक्त है, वही उसकी सहायता करें। हमारे पास तो और भी कई जरूरी काम हैं। फिर शहर में पुलिस भी तो है, वही देखे, माथा खपाये और अपनी मूलभूत जिम्मेदारी निभाये। 

    लगभग 11 वर्ष पूर्व दिल्ली में निर्भया पर सामूहिक बलात्कार कर उसे चलती बस से फेंक दिया गया था। घंटों वह नग्नावस्था में सड़क पर लहुलूहान अथाह पीड़ा से कराहती पड़ी रही थी। निर्भया पढ़ी-लिखी समझदार युवती थी। अपने दोस्त के साथ फिल्म देखने के बाद दोनों ने जो बस पकड़ी थी, उसमें सवारियों की बजाय नशेड़ी सवार थे। मौका पाकर आवारा युवकों ने निर्भया को अपनी अंधी वासना का शिकार ही नहीं बनाया, उसे और उसके मित्र को रॉड, लाठी डंडों से बुरी तरह से पीट-पीट कर अधमरा कर चलती बस से सड़क पर फेंक दिया। निर्भया कांड के पश्चात देशभर में जिस तरह से विरोध प्रदर्शित किया गया था। गुस्सायी भीड़ सड़कों पर उतर आयी थी। उससे तो यही लगा था कि लोग जाग गये हैं। अब अगर कहीं किसी नारी की अस्मत के साथ खिलवाड़ होगा तो बलात्कारियों की खैर नहीं होगी, लेकिन हुआ क्या? उसके बाद भी लगातार महिलाओं, यहां तक की बच्चियों के साथ भी हैवानियत की खबरें लगातार आती रहीं। अखबारों और न्यूज चैनलों के धुरंधरों का चिंता और सवाल करने का सिलसिला बना रहा कि इंसान के अंदर वो हैवान कहां से आता है जो बहन, बेटियों को खून से लथपथ कर जाता है? भरे चौराहे पर बेटी-बहनों की इज्जत तार-तार हो जाती है और भीड़ बेबस नज़र आती है! भीड़ की नामर्दी पर प्रश्न करने पर यह जवाब आता है कि हमें भी अपनी जान प्यारी है। मदद करने की पहल कर भी लें तो पुलिस थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर चप्पलें घिसा देते हैं। कुछ लोग गुंडे-बदमाशों से भिड़ते भी हैं। पुलिस को सहयोग भी देते हैं, लेकिन उनकी गिनती नाम-मात्र की है। गैरों के लिए भी मदद के लिए खड़े हो जाने वाले लोग जानते-समझते हैं पुलिस हर जगह नहीं हो सकती। हमेशा सरकार को कोसना भी व्यर्थ है। परिवार, समाज और विभिन्न सेवाभावी संगठनों की भी जिम्मेदारी है कि वे असामाजिक तत्वों पर नजर रखें कि उन्हें मंचों पर विराजमान कर मालाएं न पहनाएं। उज्जैन की पवित्र धरा पर मासूम बालिका को दबोचकर अपनी कामाग्नि शांत करने वाले भूखे भेड़िए भरत की गिरफ्तारी पर उसके गरीब मेहनतकश पिता ने कहा कि, इस घिनौने बलात्कारी को फांसी के फंदे पर लटकाये जाने पर उसे कोई गम नहीं होगा। वह ऐसे दुर्जन बेटे का जन्मदाता होने पर लज्जित है। ऐसे किसी भी दरिंदे को जीने का कोई हक नहीं है।

    अभी भी संभलने का वक्त है। यदि नहीं जागे तो ऐसी बेशुमार खबरें पढ़ने और सुनने को मिलेंगी और माथा पीटने के सिवाय और कोई चारा नहीं होगा। मध्यप्रदेश के ही नीमच शहर में एक स्टिंग आपरेशन में यह सच सामने आया है कि जिले में बेटियों का सौदा किया जा रहा है। बहन बेटियों को बेचने का गुनाह कोई गैर नहीं, अपने ही कर रहे हैं। एक भाई ने अपनी सोलह वर्षीय बहन की कीमत तीन लाख रुपये तय की। ग्राहक को सौंपने से पहले एक अनुबंध पत्र बनाया, जिसमें लिखा कि जो मन में आये कर सकते हो। मेरी बहन उफ तक नहीं करेगी। बिस्तर पर पूरा साथ देगी। गौरतलब है कि, यह खरीदी, बिक्री कोरे कागज या फिर स्टॅम्प पेपर में होती है। उसके बाद ग्राहक को उसके साथ किसी भी तरह की मनमानी करने की खुली छूट होती है। मां, बाप, चाचा, चाची और मौसा-मौसी भी मासूम बच्चियों से लेकर-15 से 16 साल की लड़कियों तक का पांच से सात लाख रुपये में सौदा करने से नहीं हिचकिचा रहे हैं...।

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