Thursday, October 19, 2023

बेटा-बेटी

    भाटिया जी यही मानकर चल रहे थे कि बेटी-बेटों की शादी के बाद किसी किस्म की कोई चिंता नहीं रहेगी। बाकी जिंदगी बेफिक्री से गुजरेगी। दोनों बेटे विदेश में मोटी पगार पर नौकरी कर रहे थे। छोटा कनाडा में था। बड़ा सिंगापुर में। बेटी की पिछले साल बड़ी धूम-धाम से कॉलेज के प्रोफेसर से शादी कर देने के पश्चात कुछ दिन कनाडा में भी रह आये थे। वैसे वहां उनका मन बिलकुल नहीं लगा था। कोरोना काल में पत्नी के चल बसने के गम से गमगीन रहने वाले भाटिया बीते हफ्ते अचानक चक्कर आने की वजह से घर के फर्श पर औंधे मुंह गिर पड़े। घर के नौकर ने ऑटो बुलाकर उन्हें अस्पताल पहुंचाया। भाटिया के गिने-चुने यार-दोस्तों को यह जानकर बहुत धक्का लगा कि उन्हें ब्लड कैंसर हो गया है। डॉक्टरों ने भाटिया को बता दिया कि यह खर्चीली बीमारी लंबी खिंचने वाली है। उनके इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। उन्हें भी सब्र रखना होगा। भाटिया के दोनों बेटों को बीमारी की जानकारी दे दी गई। बेटी को जैसे ही पता चला वह पति के साथ दौड़ी चली आयी। पत्नी के दिवंगत होने के कुछ दिनों के बाद ही भाटिया ने अपनी सारी जमीन-जायदाद दोनों बेटों के नाम कर दी थी। दरअसल बेटों ने ऐसा करने के लिए उन पर काफी दबाव बनाया था। उन्होंने भी मना करना मुनासिब नहीं समझा था। अपनी सारी जमा पूंजी बेटे-बहू को सुपुर्द करने के पश्चात भाटिया के दिमाग की घंटी बजी थी। इकलौती बेटी को तो उन्होंने फूटी कौड़ी नहीं दी थी। बी.काम. करने के पश्चात बेटी की चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने की प्रबल चाहत थी, लेकिन भाटिया को उसके ब्याह की जल्दी थी। बेटी ने जब  बी.काम. के लिए कॉलेज में एडमिशन की जिद की थी तब भाटिया ने उस पर शर्त लाद दी थी, यदि उसने किसी दिन किसी सहपाठी लड़के से हंसते, खिलखिलाते बात की तो वो कॉलेज का उसका अंतिम दिन होगा। दरअसल, भाटिया लड़कियों के खुले आसमान में उड़ने के घोर विरोधी थे।

    अपने देश में आज भी बेटियां चिंता का विषय हैं। ऐसे लोगों की कमी नहीं, जो उन्हें बोझ मानते हैं। उन्हें लड़कियों का लड़कों के साथ प्रतिस्पर्धा करना और कंधे से कंधा मिलाकर चलना पसंद नहीं। पितृसत्तात्मक समाज में औरतों के लिए वर्षों पूर्व जो सैकड़ों नियम-कायदे बनाये गये थे उन्हें जिंदा रखने की जिद अभी भी कुछ लोग पाले हुए हैं। ये वो लोग हैं, जो अपने बेटों को तो लड़ाकू तथा आक्रामक होने की सीख देते हैं, लेकिन लड़कियों को सहनशील और विनम्र होने का पाठ पढ़ाते रहते हैं। उन्हें यह भी याद दिलाते रहते हैं कि बेटियां तो पराया धन हैं। उनकी डोली मायके से तो अर्थी ससुराल से उठती है। 

    अपने देश में भले ही कानून की निगाह में बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं। मां-बाप की संपत्ति के जितने हकदार बेटे हैं, उतनी ही बेटियां, लेकिन कई परिवारों में बड़ी चालाकी के साथ बहन-बेटियों का हक छीनने का चलन है। कहीं घाघ बाप धोखेबाजी करते हैं, तो कहीं शातिर भाई। ज्यादातर लड़कियां अपने अधिकार की मांग करने में सकुचाती हैं। अपनों की बेइंसाफी पर चुप रह जाती हैं। कवयित्री हरप्रीत कौर की कविता की निम्न पंक्तियां काबिलेगौर हैं, जिनमें भारत की अधिकांश नारियों की तस्वीर पेश की गई है :

‘‘कुछ स्त्रियां बंद किताबों-सी रह जाती हैं

आ जाती हैं वो हिस्से किसी अनपढ़ के

जो नाकाम हैं पढ़ने में उनके अनकहे ज़ज्बात

कुछ स्त्रियां खुली किताब-सी होती हैं

साफ स्वछंद हवा में सांस लेते तितली-सी उड़ती

पर पंख काट देती है उनके दुनिया की ये आवाज़

कुछ स्त्रियां जिल्द चढ़ी किताबों-सी रह जाती हैं

कभी नहीं उतरता उन पर चढ़े कवरों का बोझ

उस बोझ से दबे दम तोड़ देते हैं उनके अल्फ़ाज़...’’

    कुछ दिन अस्पताल के महंगे बिस्तर पर रहने के पश्चात भाटिया ने बेटों का इंतजार करते-करते अंतत: दम तोड़ दिया। उनकी इकलौती बेटी ने ही उनका अंतिम संस्कार कर किसी को भी अपने भाइयों की बेरहम गैर मौजूदगी का एहसास नहीं होने दिया। जिस वक्त भाटिया जी की चिता जल रही थी, ठीक उसी समय एक 81 वर्षीय बुजुर्ग मायानगरी मुंबई में स्थित सांताक्रुज पुलिस स्टेशन में लस्त-पस्त बैठा गुहार लगा रहा था, ‘‘मुझे मेरी बेटी से बचाओ। यह मेरी जान ले लेगी। पिछले कई महीनों से इसने मुझे मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान कर रखा है।’’ बेटी से घबराये मेहरा का कभी अच्छा खासा टेक्सटाइल प्रिंटिंग का व्यवसाय था। पत्नी मधु, बेटे राज और बेटी पूजा के साथ जिंदगी की गाड़ी बड़े मजे से दौड़ रही थी। वर्ष 2005 में पत्नी के कैंसर से निधन होने के बाद उनके बेटे ने अलग रहने की जिद पकड़ ली। मेहरा ने अपनी विशाल संपत्ति बेचकर उसके हिस्से की रकम उसे सौंप दी। बेटा उन्हें अकेला छोड़कर अपने बीवी-बच्चों के साथ अलग रहने चला गया। मेहरा की बेटी फैशन डिजाइनर है। लंदन में रहती है। भाई की देखा-देखी उसने भी पिता पर दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया कि वे जिस घर मेें रहते हैं उसे तुरंत बेचकर सारे रुपये उसे दे दें। पिता ने जब उसकी जिद पूरी नहीं की तो वह लंदन से बार-बार आकर मारने-पीटने लगी। कई बार तो उसने अपने वृद्ध पिता को चारपाई से गिरा दिया, जिससे उन्हें गंभीर चोटें भी आईं। बेटी की प्रताड़ना से परेशान पिता को अनेकों बार कार में सोना पड़ा। वर्तमान में हालात ये हैं कि वे होटल में रहने को मजबूर हैं। बेटी कोई काम-धाम नहीं करती। पिता के साथ बदसलूकी करती है और उनके बैंक में जमा रुपयों को निकालकर मौज-मस्ती करती रहती है। बेटी के सताये इस असहाय पिता को राहत दिलाने का उपाय तो पुलिस के पास भी नहीं है। अपने ही जन्मदाता की शत्रु बनी इस निष्ठुर, नकारा बेटी की बस यही तमन्ना है कि उसे घर बेचकर पैसे दे दिये जाएं, ताकि वह लंदन में अपना आलीशान फ्लैट खरीद कर मज़े से रहे। वैसे भी पिता की ऊपर जाने की उम्र हो चली है...। 

    अपनी बेटी के भय से बार-बार अपने ठिकाने बदलते पिता से जब पूछा गया कि, बेटे ने भी तो आपको कम प्रताड़ित नहीं किया था। उसने भी अपने हिस्से को पाने के लिए आपकी नींद हराम कर दी थी, लेकिन तब तो आपने पुलिस की शरण नहीं ली थी? अब जब बेटी अपना अधिकार मांग रही है तो आप कानून के दरवाजे खटखटा रहे हैं? प्रत्युत्तर में पिता का जवाब था कि बेटे तो जन्मजात नालायक होते ही हैं, लेकिन बेटियां इतनी बेरहम और स्वार्थी कहां होती हैं। उनमें तो आत्मीयता, धैर्य, शीतलता का वास होता है। वह बेटों की तरह अंधी और बहरी नहीं होतीं। मेरी इस दुष्ट बेटी को अच्छी तरह से खबर है कि यदि मैंने अपना घर बेच दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। मेरे मरने के बाद तो सबकुछ इसी का ही है..., लेकिन यह मेरी मजबूरी को समझना ही नहीं चाहती। उसे तो बस अपने स्वार्थ की पड़ी है। अब आप ही बतायें कि किसी बेटी को इतना क्रूर होना चाहिए?

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