Thursday, December 7, 2023

बदलाव की दस्तक

    नशे के अंधेरे में पूरी तरह से खो गया था भूषण पासवान। वह रिक्शा चलाता था। खून-पसीना बहाकर जो कुछ भी कमाता शराब और जुए पर लुटा देता। परिवार भुखमरी के कगार पर जा पहुंचा था। मां कलावती देवी लोगों के घरों में बर्तन साफ कर कुछ रुपये कमाती तो ही चूल्हा जल पाता। कई बार तो भूषण मां से भी पैसे छीनकर नशाखोरी में उड़ा देता। पंजाब के लाखों नौजवान नशे के गुलाम हो चुके हैं। पूरे देश को यही चिंता खाए जा रही है कि नशे की अंधेरी दुनिया की तरफ भागते नौजवानों को कैसे सही रास्ते पर लाया जाए। नशे के गर्त में समा चुका भूषण अनपढ़ नहीं था। पानी की तरह शराब पीने से होने वाली तमाम तकलीफों और बीमारियों से वाकिफ था। फिर भी उसने नशे को अपना सच्चा साथी मान लिया था। वर्ष 2004 का एक दिन था जब संत बलबीर सिंह सीचेवाल उस झुग्गी बस्ती में पहुंचे जहां भूषण रहता था। उन्हें गांव के युवाओं के नशे के शिकार होने और बच्चों की शिक्षा के अभाव में हुई बदहाली की खबर मिल चुकी थी। वे जागृति का दीपक जलाकर घने अंधेरे को दूर करना चाहते थे। उन्होंने लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने हेतु प्रेरित करने के लिए एक जगह पर एकत्रित किया। लोगों को नशे की बुराइयों से अवगत कराते हुए उससे मुक्ति पाने का संदेश दिया। संत को यह देखकर बहुत पीड़ा हुई कि झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चे शिक्षा के अभाव में दिशाहीन होते चले जा रहे हैं। अशिक्षा और धनाभाव के चलते मां-बाप उन्हें स्कूल भेजने में असमर्थ हैं। उन्होंने बच्चों के जीवन का कायाकल्प करने के उद्देश्य से गांववासियों को प्रेरित करते हुए कहा कि अगर उनके बीच ही कोई पढ़ा-लिखा व्यक्ति हो तो यह काम आसानी से हो सकता है। भूषण मैट्रिक पास था, इसलिये सभी ने उसे यह दायित्व सौंपने का सुझाव दिया। भूषण को तो शराब और जुए से ही फुर्सत नहीं थी। उसने साफ इंकार कर दिया। गांव वालों ने उसे जोर देकर समझाया, लेकिन वह आनाकानी करता रहा। अंतत: मां के बहुत समझाने पर वह संत के पास पहुंचा।

    संत ने भूषण से सवाल किया, ‘क्या तुम अपनी जिन्दगी यूं ही बरबाद कर दोगे?... क्या तुम्हें पता है कि झुग्गी के बच्चे शिक्षा के अभाव में पिछड़ रहे हैं। उनका भविष्य अधर में लटका है। गलत आदतें उन्हें आकर्षित कर रही हैं। तुम भी पढ़े-लिखे होने के बावजूद नशे और जुए की लत के शिकार हो। मुझे कई गांव वालों ने बताया है कि कई बार तुम इतनी अधिक शराब पी लेते हो कि अपनी सुध-बुध खो बैठने के बाद गंदी नाली के कीचड़ में पड़े रहते हो और बच्चे शराबी...शराबी कहकर तुम पर पत्थर फेंकते हैं। राहगीर भी तुुम्हारा मज़ाक उड़ाते हैं। तुम जैसे पढ़े-लिखे युवक को क्या यह शोभा देता है? तुम्हें अपने जीवन को इस तरह से बर्बाद नहीं करना चाहिए। अभी भी अगर तुम चाहो तो सबकुछ बदल सकता है। जब आंख खुले तभी सबेरा।’ संत की भेदती आंखों और उनके समझाने के अंदाज ने भूषण पर कुछ ऐसा असर डाला कि वह बच्चों को पढ़ाने के लिए राज़ी हो गया। पेड़ के नीचे झुग्गी बस्ती के बारह बच्चों से क्लास की शुरुआत हुई। भूषण के लिए यह नया अनुभव था। शुरू-शुरू में शराब से दूरी बनाना उसे किसी मुसीबत से कम नहीं लगा, लेकिन धीरे-धीरे बच्चों को पढ़ाना उसे अच्छा लगने लगा। वो दिन भी आया जब उसने नशे से पूरी तरह से तौबा कर ली। 2006 में भूषण ने इंटरमीडियट किया, 2010 में बीए भी कर लिया। कभी रिक्शा चलाने वाला भूषण पासवान आज शानदार इमारत में चल रहे ननकाना चेरिटेबल स्कूल में प्रिंसीपल है। गरीब मां-बाप के बच्चों की जिंदगी संवारने में लगे भूषण की जिंदगी पूरी तरह से बदल चुकी है। अब गांव के लोग भी उससे इज्जत से पेश आते हैं। उसकी तारीफें करते नहीं थकते। बच्चे भी सम्मान देने में कोई कमी नहीं करते। दूर-दराज के गांव वाले भी विभिन्न कार्यक्रमों में बुलाते हैं और मंच पर बिठाकर सम्मानित करते हैं। अब तो प्रिंसिपल साहब ने नशे के खिलाफ भी अभियान चला दिया है। किसी को पीते देखते हैं तो बड़े सलीके से समझाते हैं और अपनी बीते कल की कहानी दोहराते हैं।

    इसी देश में एक गांव है, नानीदेवती। मात्र पैंतीस सौ के आसपास की जनसंख्या वाले इस छोटे से गांव में देसी शराब के दस अड्डे थे। सभी अड्डों पर जमकर शराबखोरी होती थी। सुबह, शाम गुलजार रहते थे सभी ठिकाने। अपने काम धंधे को छोड़कर युवक इन्हीं मयखानों पर जमे और रमे रहते थे। कुछ बुजुर्ग भी रसरंजन के लिए पहुंच जाते थे। अपराध भी बढ़ते चले जा रहे थे। चोरी और लूटपाट की घटनाएं आम हो गईं थीं। पांच साल के भीतर 100 से अधिक युवक शराब की लत के चलते चल बसे। युवा बेटों की मौत के सिलसिले ने मां-बाप को तो रुलाया ही, गांव के चिंतनशील तमाम बुजुर्गों को भी झकझोर कर रख दिया। आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा? शराब की लत के शिकार होकर उनके गांव के बच्चे यूं ही अपनी जान गंवाते रहेंगे! शराबखोरी से लगातार हो रही मौतों से शराब कारोबारी भी पूरी तरह से अवगत थे। बुजुर्ग पुरुषों और महिलाओं ने उनसे कई बार गांव से अपने शराब के अड्डे हटाने की फरियाद की। धनपशुओं में इंसानियत होती तो मानते! उनके लिए तो कमाई ही सबकुछ थी। युवकों की बरबादी और बदहाली उनके लिए कोई मायने नहीं रखती थी। जागरूक गांव वालों को समझ में आ गया कि धनलोभियों से किसी भी तरह की उम्मीद रखना बेकार है। इस समस्या का हल निकालने के लिए गांव वालों ने बैठक की। स्त्री-पुरुष सभी एकत्रित हुए। यही निष्कर्ष निकला कि गांव में शराब पीने पर प्रतिबंध लगाये बिना युवकों की मौत पर विराम नहीं लगाया जा सकता। सभी ने शराब को हाथ भी न लगाने की कसम खायी। यह भी तय किया गया कि जो भी व्यक्ति शराब पीता पाया गया उससे पांच हजार से लेकर दस हजार तक का जुर्माना वसूला जायेगा। बुजुर्गों की सीख और जुर्माने के भय का युवकों पर भरपूर असर पड़ा। उनकी आंखें खुल गयीं। अब नानीदेवती गांव शराब से मुक्ति पा चुका है। शराब के सभी अड्डे भी बंद हो चुके हैं।

    मुंबई की एक शराबी महिला को जेल की हवा खानी पड़ी। यह महिला एक नामी वकील हैं। नाम है जाहन्वी गडकर। रिलायंस की टॉप लीगल एग्जीक्यूटिव हैं। नशे ने उनकी जिन्दगी तबाह कर डाली। अच्छे-खासे भविष्य का सत्यानाश हो गया। जाहन्वी ने नशे में मदमस्त होकर पांच लोगों को कुचल दिया। दो की मौत हो गयी। अपनी आलीशान ऑडी कार को लिमिट से चार गुना अधिक शराब पीकर चलाने वाली यह मदहोश वकील यातायात के सभी नियमों को नजरअंदाज कर कार दौड़ा रही थी और खूनी दुर्घटना को अंजाम दे बैठी। एक जमाना था जब यह माना जाता था कि नशे पर पुरुषों का ही एकाधिकार है। अब तो नारियों ने भी बहकने में जबरदस्त बाजी मार ली है। पिछले दिनों मुंबई में ही यातायात पुलिस ने सड़क पर अंधाधुंध कार दौड़ाती एक पढ़ी-लिखी आधुनिक महिला को रोका। वह नशे में इतनी धुत थी कि उसने कार में बैठे-बैठे ही पुलिस वालों पर भद्दी-भद्दी गालियों की बौछार शुरू कर दी। पुरुषों की बेहूदगी के अभ्यस्त पुलिसवाले उसके अभद्र और बेहूदा व्यवहार से दंग रह गए। ऐसे नजारे अब आम होते चले जा रहे हैं। यह भी देखा-भाला सच है कि महिलाओं ने ही शराब पर पाबंदी लगवाने में सक्षम भूमिका निभायी है। 

    विदर्भ के शहर चंद्रपुर में कई सजग महिलाएं शराब बंदी की मांग करती चली आ रही थीं। सरकार सुनने को तैयार ही नहीं थी। सरकार को तो शराब की कमायी ललचाती है। उसे  शराब पीकर बरबाद होने और बेमौत मरने वालों से क्या लेना-देना! विधानसभा और लोकसभा के चुनाव आते-जाते रहे। हर चुनाव के समय शराब बंदी के वायदे तो किये जाते, लेकिन उन्हें पूरा करने का साहस गायब हो जाता। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान महिलाओं ने उसी उम्मीदवार को जितवाने की कसम खायी जो चंद्रपुर जिले में जगह-जगह आबाद शराब दुकानों और बीयरबारों को बंद करवाने का दम रखता हो। वायदे का पक्का हो। वर्षों से जिले में शराब बंदी लागू करने की मांग करते चले आ रहे भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार पर महिलाओं ने भरोसा किया। उन्होंने भी अपने वायदे पर खरा उतरने में जरा भी देरी नहीं लगायी। चंद्रपुर में शराब बंदी कर दी गई, लेकिन बाद में जो सरकार आयी उसके एक तिकड़मी मंत्री ने फिर से पियक्कड़ों के लिए सभी शराब की दुकानों के ताले खुलवा दिये। शराब विरोधी महिलाएं अपना माथा पीटते रह गईं। सच्ची भारतीय नारी तो देश के हर शहर और गांव को ‘कसही’ जैसा देखना चाहती है। छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में स्थित है, गांव कसही। इस गांव का शराब और शराबियों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। पूरी तरह से साक्षर यह गांव अपराधमुक्त है। आपसी भाईचारा भी देखते बनता है। यहां की बेटी उसी घर में ब्याही जाती है, जहां शराब को नफरत की निगाह से देखा जाता हो। यह सब हुआ है कसही गांव के रहने वालों की जागरुकता की वजह से! आसपास के शहरों और गांवों के लोग भी हैरत में पड़ जाते हैं जब उन्हें पता चलता है कि इस गांव में पिछले 100 सालों से किसी ने शराब नहीं चखी। कसही की आबादी छह सौ के आसपास है। पूरी तरह से शाकाहारियों के इस गांव में बहू लाने के पहले यह खोज-खबर ली जाती है कि कहीं समधियों के परिवार का कोई सदस्य मदिरा प्रेमी तो नहीं है। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद ही रिश्ता जोड़ा जाता है। यानी इस गांव के निवासी ही नहीं, रिश्तेदार भी शराब से कोसों दूर रहते हैं।

No comments:

Post a Comment