Thursday, November 30, 2023

राजनीति

    जो देश की बागडोर अपने हाथ में लेना चाहते हैं, उनका खुद पर नियंत्रण नहीं। जो सत्ता पर काबिज हैं उनके प्रति भी मोहभंग जगजाहिर है। देशवासी बड़ी उलझन के शिकंजे में हैं। कमियों और बुराइयों से परिपूर्ण चेहरों में से उन्हें चुनाव करना है। यह दुविधा, यह संकट पिछले कुछ वर्षों से भारत के मतदाताओं के समक्ष सतत बना हुआ है। जो नेता चुनाव से पहले सच्चे और अच्छे लगते हैं, वे भी बाद में अपना रंग बदल लेते हैं। किस-किस की बात करें। लगभग सभी ने निराश किया है। पूरी संतुष्टि किसी से नहीं मिली। याद करें तब के समय को जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए थे, तब देशवासी कितने आशान्वित तथा उत्साहित थे। हर किसी को भरोसा था कि इनके कार्यकाल में अभूतपूर्व विकास देखने को मिलेगा। आम आदमी के हिस्से में भी भरपूर खुशहाली आएगी। गरीबी और बेरोजगारी भाग खड़ी होगी। देश की नस-नस में बेलगाम छलांगें लगाते भ्रष्टाचार पर कड़ा अंकुश लगेगा। नारियों की अस्मत लुटने की खबरों पर भी विराम लगेगा। चतुर नेता नरेंद्र मोदी के बोलने और ललकारने के अंदाज ने विरोधियों के भी मुंह सिल दिये थे। सभी भ्रष्टाचारी, अनाचारी अपने भविष्य को लेकर भयभीत थे। आज भी दहशत में हैं, लेकिन यह भी सच है कि जो भारतीय जनता पार्टी की छत्रछाया में हैं वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इस पक्षपात को लेकर तरह-तरह की बातें होती रहती हैं। आम जनता भी इस बेइंसाफी से नाखुश है।  

    अभी हाल ही में देश के पांच प्रदेशों में हुए विधानसभा चुनावों में एक से एक तमाशे हुए। एक दूसरे को नंगा करने की जी-तोड़ कसरतें की गयीं। देशवासियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अथक भागदौड़ देखी। उनके लंबे-लंबे भाषण सुने। विपक्षी दलों के नेताओं को भाजपा के खिलाफ कम और नरेंद्र मोदी के खिलाफ अधिक दहाड़ते देखा। कांग्रेस के राहुल गांधी अपने पुराने अंदाज में बार-बार प्रधानमंत्री का अपमान करने से नहीं चूके। उनकी उत्तेजना और उग्र शब्दावली यही कहती रही कि मोदी को हटाने का यही मौका है। अब नहीं तो कभी नहीं। इस बार नरेंद्र मोदी को पराजय का स्वाद नहीं चखाया गया तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा।  

    ऐसा भी लगा कि चुनाव व्यक्तिगत शत्रुता में तब्दील हो गये हैं। इस चक्कर में नेताओं ने अपनी ही छवि की खूब धज्जियां उड़ायीं। एक जमाना था जब मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए हर राजनीतिक दल शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आपसी सद्भाव की बातें करते थे। देश से गरीबी को जड़ से मिटाने के आश्वासन दिये जाते थे, लेकिन इस बार के विधानसभा के इन चुनावों में सभी के तेवर बदले नजर आए। जो राजनेता मतदाताओं को उपहार देने और मुफ्त में विभिन्न सुविधाएं देने का प्रखर विरोध करते थे वे भी मतदाताओं को लुभाने की राह पर चल पड़े। वोटरों को लुभाने के लिए तरह-तरह की रेवड़ियां बांटने की घोषणाएं होती रहीं। मुफ्त राशन, सस्ते में बिजली, रसोई गैस और हजारों रुपये नकदी देने के ऐलान के डंके बजाते नेताओं, राजनेताओं ने देश को मतदाताओं की खरीद-फरोख्त की मंडी समझ लिया। उन्हें यह भी याद नहीं रहा कि मुफ्तखोरी की आदत लोगों को बरबाद कर देगी। वे मेहनत से मुंह चुराने लगेंगे। जो लोग ईमानदारी से टैक्स की राशि जमा करते हैं उन्हें आघात लगेगा। गुस्सा भी आयेगा। वैसे भी सत्ताधीशों के ऐसे तौर-तरीकों से अधिकांश देशवासी नाखुश हैं। भले ही चुप हैं, लेकिन कब तक?

    2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के पश्चात विकास कार्य नहीं हुए हैं, यह कहना कतई उचित नहीं। यकीनन बहुतेरे काम हुए, लेकिन प्राथमिकता का ध्यान नहीं रखा गया। पूर्व की सरकार के कार्यकाल में जो पुल और सड़कें वर्षों तक नहीं बन पाती थीं उन्हें देखते ही देखते देशवासियों ने साकार होते देखा है। कई नगरों, महानगरों को मेट्रो ट्रेन, वंदे भारत एक्सप्रेस की सौगात देने वाली नरेंद्र मोदी की सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कर विपक्ष की इस शंका का भी खात्मा कर दिया है कि भाजपा लंबे समय तक राम मंदिर के मामले को लटकाये रखना चाहती है। कश्मीर में भी अब पहले जैसी अराजकता नहीं। बहुत बदलाव आया है। हकीकत यह भी है कि नरेंद्र मोदी के प्रति विपक्ष के मन में अपार विष भरा पड़ा है। जनता के हित में किये जा रहे कार्यों की आलोचना करने से भी वह नहीं सकुचाता। नरेंद्र मोदी के हर फैसले में विपक्ष को खोट ही नज़र आता है। प्रधानमंत्री की आलोचना करना गलत नहीं। हर काल में होती रही है, लेकिन ऐसी नहीं, जैसी अब हो रही है। उनके प्रति स्तरहीन भाषा का इस्तेमाल करना अत्यंत निंदनीय है। नरेंद्र मोदी के शासन काल में पूरे विश्व में भारत के मान-सम्मान में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है। नरेंद्र मोदी का देश हित में सतत सक्रिय रहने का अंदाज भी करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उम्मीद की डोर अभी भी नहीं टूटी है। अधिकांश भारतीयों को यकीन है कि यही जुनूनी नेता देश का कायाकल्प कर सकता है। देश में उनकी टक्कर का फिलहाल और कोई नेता नहीं, जिसे देश की बागडोर सौंप दी जाए। विपक्ष ने यह मान लिया है कि चुनाव परिणाम यदि भाजपा के खिलाफ आते हैं तो मोदी नाम के सूरज का डूबना तय है। इसलिए 3 दिसंबर की राह देखी जा रही है।

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