Thursday, December 28, 2023

लम्हों की खता की सज़ा

    ‘‘लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सज़ा पाई।’’ कभी न कभी आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी। ऐसी और भी कई कहावतें हैं, जो इंसान की जल्दबाजी, अधीरता, गुस्से, नादानी, बेवकूफी और बेचारगी को बयां करती हैं। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना और अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना कोई अच्छी बात नहीं मानी जाती। ऐसे चरित्रधारी अंतत: हंसी के पात्र होते हैं। क्षणिक आवेश और नादानी के चलते इनकी जीवनभर की तपस्या भी तार-तार होकर रह जाती है। मुंबई के पश्चिम उपनगर दहिसर क्षेत्र के निवासी निकेश ने अपनी प्रिय 40 वर्षीय पत्नी निर्मला की सिर्फ इसलिए गला दबाकर नृशंस हत्या कर दी, क्योंकि उसने साबूदाने की खिचड़ी में ज्यादा नमक डालने की भूल कर दी थी। निकेश अपने मन को शांत रखने के लिए पिछले कई वर्षों से शुक्रवार का व्रत रखता चला आ रहा था, लेकिन अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं रख पाया। अब निकेश जेल में है। उसका बारह वर्षीय बेटा जो इस हत्या का प्रत्यक्ष गवाह है, अकेले जीने को विवश है। 

    मुंबई के 76 वर्षीय काशीराम पाटील को निर्धारित समय पर नाश्ता नहीं मिला तो वे तिलमिला गये। उनकी बौखलाहट उतरी अपने बेटे की पत्नी पर, जिसने अपने ससुर को दिन के 11 बज जाने के बाद भी नाश्ते से वंचित रखा था। नाश्ता देने में हुई देरी की वजह जानने की बजाय उम्रदराज ससुर ने अपनी कमर में खोंसी रिवॉल्वर निकाली और बहू के सीने में अंधाधुंध गोलियां उतार दीं। इन महाशय की भी बाकी बची-खुची उम्र जेल में ही गुजर रही है। कुछ दिन पहले अखबार में खबर पढ़ी कि मुंबई में एक युवक ने इसलिए शादी ही तोड़ दी, क्योंकि वधू पक्ष ने जो निमंत्रण पत्रिका छपवायी थी, उसमें उसकी डिग्री का उल्लेख नहीं था। अपने भावी पति की जिद्दी कारस्तानी ने वधू को इतनी जबरदस्त ठेस पहुंचायी कि उसने खुदकुशी करने की ठान ली। उसे किसी तरह से घरवालों ने मनाया, समझाया-बुझाया, लेकिन शादी टूटने की शर्मिंदगी से वह अभी तक नहीं उबर पाई है। दुल्हे मियां फरार हैं। पुलिस दिन-रात उसे दबोचने की कसरत में लगी है। यह अहंकारी और क्रोधी इंसान जहां भी होगा, चैन से तो नहीं होगा। अपनी गलती पर माथा भी पीट रहा होगा। 

    ये देश के निहायत ही आम लोग हैं। इनकी अपनी सीमित दुनिया है। इन्हें भीड़ नहीं घेरती। ज्यादा लोग भी नहीं जानते, लेकिन यह चेहरे तो खास हैं। जहां जाते हैं, पहचान में आ जाते हैं। भीड़ उन्हें घेर लेती है। अखबारों, न्यूज चैनलों तथा सोशल मीडिया से वास्ता रखने वालों ने मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा का नाम अवश्य सुना होगा। उनके शीर्ष पर पहुंचने की संघर्ष गाथाएं भी सुनी होंगी। उनकी प्रेरक स्पीच के वीडियो भी जरूर देखे होंगे। इस महान हस्ती पर अभी हाल में अपनी नई-नवेली पत्नी की पिटायी करने का संगीन आरोप लगा है। कारण भी बेहद हैरान करने वाला है। विवेक अपनी मां प्रभादेवी से अपमानजनक तरीके से झगड़ा कर रहे थे। पत्नी यानिका ने विवेक को मां के साथ बदसलूकी करने से रोका तो विवेक का खून खौल गया। यह कौन होती है, मुझ पर हुक्म चलाने और रोक-टोक करने वाली? इसे पता होना चाहिए कि मैं अपनी मर्जी का मालिक हूं। किसी की सुनने की मेरी आदत नहीं है। इसे यदि आज सबक नहीं सिखाया गया तो कल ये मेरे सिर पर चढ़कर नाचेगी। विवेक ने विवेकशून्य होने में किंचित भी देरी नहीं लगायी। पत्नी को गंदी-गंदी गालियां दीं। फिर सिर के बाल खींचते हुए जिस्म पर थप्पड़ों की बरसात कर दी। असहाय पत्नी रहम की भीख मांगती रही, लेकिन विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ। राक्षसी तरीके से की गयी पिटायी से पत्नी यानिका के कान के पर्दे फट गये। अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। थाने में रिपोर्ट भी दर्ज हुई। विवेक का पहली पत्नी गीतिका के साथ अदालत में मुकदमा चल रहा है। लाखों रुपये की फीस लेकर लोगों को अनुशासन, सम्मान, धैर्य, संयम का पाठ पढ़ाने वाले विवेक के यू-ट्यूब पर दो करोड़ से भी अधिक सब्सक्राइबर्स हैं। लोगों को मान-सम्मान और धनवान बनकर जीवन जीने की कला से अवगत कराने वाले बिंद्रा की नींद उड़ चुकी है। पुराने दबे-छिपे गुनाहों के पिटारे भी खुलने लगे हैं। चेहरे का नकाब उतरने लगा है। अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के अपराधबोध में जीने को विवश मोटिवेटर को पछतावा भी हो रहा है। यह मैंने क्या कर डाला? हमेशा नारी शक्ति के सम्मान का राग गाता रहा। दूसरों को गुस्से पर नियंत्रण रखने का पाठ पढ़ाता रहा और खुद पर काबू नहीं रख पाया! 

    हंसी के पिटारे नवजोत सिंह सिद्धू को कौन नहीं जानता। एक दौर था, जब भारतीय जनता पार्टी में उनकी तूती बोलती थी, उनके चटपटे भाषण सुनने के लिए भीड़ जुटती थी। कपिल शर्मा के कॉमेडी शो की भी कभी जान हुआ करते थे नवजोत। दर्शकों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर दिया करते थे। ठहाके पर ठहाके लगाने के करोड़ों रुपये पाते थे। इस बहुरंगी कलाकार, नेता को उनकी एक छोटी-सी गलती ले डूबी। 27 दिसंबर, 1988 में पटियाला में कार पार्किंग को लेकर उम्रदराज शख्स को नवजोत ने गुस्से में इतनी जोर का मुक्का मारा, जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये। क्रिकेटर से नेता बने सिद्धू का यकीनन हत्या करने का इरादा नहीं था, लेकिन क्षणिक आवेश ने उन्हें हत्यारा बना दिया। 35 वर्षों तक अदालतों के चक्कर काटने पड़े। बार-बार जेल भी जाना पड़ा। पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की तरफदारी करने के कारण कपिल शर्मा के शो से भी बेआबरू होकर बाहर होना पड़ा। राजनीति भी मंदी पड़ गयी। बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में लिये गये कुछ निर्णयों के कारण सिद्धू आज अकेले पड़ गये हैं। सन्नाटे भरी रातों ने उनकी नींद उड़ा दी है। मन में बार-बार यही विचार आता है कि काश! क्रोध और बड़बोलेपन के चंगुल से बचा रहता तो इतने बुरे दिन न देखने पड़ते, लेकिन सच तो यह है कि अब चिड़िया खेत चुग कर बहुत दूर जा चुकी है। 

    अभी हाल ही में 146 विपक्षी सांसदों के निलंबन ने विपक्षी दलों की नींद उड़ा दी। इस निलंबन को लोकतंत्र की हत्या करार दिया गया। यह पहली बार नहीं था जब सांसदों को विरोध प्रदर्शन के लिए यह सज़ा दी गयी। सदन के बाहर सांसदों की नारेबाजी और धरना प्रदर्शन के बीच तृणमूल पार्टी के एक सांसद ने देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को अपमानित करने के इरादे से उनकी मिमिक्री करनी प्रारंभ कर दी। वहां पर मौजूद सांसद तालियां बजाकर असभ्य मिमिक्रीबाज की हौसला अफजाई करने लगे। देश के सम्मानित उपराष्ट्रपति की चालढाल और बोलचाल का जब बेहूदा मज़ाक उड़ाया जा रहा था, तब वहां पर मौजूद कई मान्यवर आनंदित होकर ठहाके लगा रहे थे। तालियां पीटकर सांसद का हौसला बढ़ा रहे थे। उन्हीं में शामिल थे, कांग्रेस के नेता राहुल गांधी जो वर्तमान में सांसद भी हैं। उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी माना जाता है। राहुल ने भी उपराष्ट्रपति की मानहानि करते असभ्य मिमिक्रीबाज को फटकारना जरूरी नहीं समझा। वे खुद मिमिक्री की धड़ाधड़ वीडियो बनाते रहे। उनकी यह हरकत सजग देशवासियों को बहुत चुभी। राहुल का यही बचकानापन उन्हें हर बार आसमान से जमीन पर पटक देता है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिए अपने कद को बढ़ाने की भरपूर कसरत कर चुके राहुल को मानहानि के मामले में दोषी पाये जाने के बाद अपनी लोकसभा की सदस्यता खोनी पड़ी थी।

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