Thursday, March 7, 2024

भक्षक-संरक्षक

    सोचें तो माथा घूम जाता है। पैरोंतले की जमीन खिसकती लगती है। आजाद भारत में इतने जुल्म! गुंडागर्दी, लूटमार, बलात्कार। और भी न जाने कैसे-कैसे जुल्मों-सितम। हिसाब लगाना मुश्किल। पश्चिम बंगाल के संदेशखाली पहुंचे पत्रकारों के हृदय के साथ-साथ कान भी कांप रहे थे। मंजर ही कुछ ऐसा था, जो रोंगटे खड़े कर रहा था। शेख शाहजहां उसका नाम था। ऊपर से नीचे तक दुष्कर्मी, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, बलात्कारी और भू-माफिया शेख शाहजहां ने दरअसल संदेशखाली में शासन और प्रशासन को अपनी मुट्ठी में कर आतंकी दबदबा बनाया था। दूर-दूर तक उसकी तूती बोलती थी। कोई उसके विरोध में आवाज नहीं उठा पाता था। महिलाएं तो उसका नाम सुनते ही कांपने लगती थीं। रात होते ही अपने-अपने घरों में दुबक जाती थीं। फिर भी जो औरत, लड़की उसे और उसके साथियों को पसंद आ जाती, कदापि बच नहीं पाती थी। उसे जबरन उसके घर से उठवा लिया जाता था। शाहजहां पूरी तरह से हैवान बन चुका था। बांग्लादेश से चोरी-छिपे पश्चिम बंगाल आया शाहजहां कभी मजदूरी करता था। सत्ताधारी दल के नेताओं के लालची सहयोग ने देखते ही देखते उसे बेताज बादशाह बना दिया। गरीब कल्याण और स्थानीय विकास की योजनाओं में जमकर घोटाले कर उसने चंद वर्षों में अकूत धन-संपत्ति बनायी। पंचायत से लेकर विधानसभा, लोकसभा चुनाव तक स्थानीय मतदाताओं को डरा-धमका कर तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करवाने वाले शाहजहां के राजनीतिक आकाओं की लिस्ट बहुत लंबी थी। पुलिस प्रशासन भी उससे घबराता था। 2024 के पांच जनवरी के दिन ईडी की एक टीम, सीआरपीएफ के टुकड़ी के साथ बीस हजार करोड़ के राशन घोटाले के इस सरगना के ठिकानों पर छापेमारी करने पहुंची तो उसने पकड़ में आने से बचने के लिए अपने पाले-पोसे गुंडों से टीम पर ही जानलेवा हमला करवा दिया और खुद फरार हो गया। पचपन दिनों तक गायब रहने के बाद बड़ी मुश्किल से वह पुलिस के हाथ लग पाया। 

    उसकी मनचाही फरारी के दौरान उसके रक्तपात से सने गुनाहों के काले चिट्ठे एक-एक कर खुलते चले गये। महिलाओं पर ढाये गये कहर और बर्बरता के किस्सों को सुनकर हर किसी के रोंगटे खड़े होने लगे। बीस साल की वर्षा का तो तब मुंह खोलने का साहस ही नहीं था। शाहजहां की गिरफ्तारी के बाद कॉलेज की छात्रा वर्षा ने अंतत: भय को अपने अंदर से बाहर निकाल फेंका। शाहजहां का नाम लेते ही वह गुस्से से लाल हो जाती है। गालियों की बौछार करते हुए कहती है कि शाहजहां इंसान नहीं, दरिंदा है। व्यवस्था का पाला-पोसा क्रूरतम भक्षक है। इस जैसा चरित्रहीन और कोई हो ही नहीं सकता। दूसरों की मां, बहन, बेटी, बहू को बाजारू समझता है। संदेशखाली में इसकी सतायी अनगिनत महिलाएं हैं, जो किसी भी हालत में अपनी पहचान उजागर नहीं होने देंगी। इसने तथा इसके कुकर्मी साथियों ने पूरे इलाके की औरतों का जीना मुहाल कर रखा था। अंधेरा घिरते ही ये वहशी तांडव मचाने लगते थे। जिस घर-परिवार की लड़की, औरत, बहू, बेटी इन्हें पसंद आती उसकी तो जैसे शामत आ जाती। जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाते। तृणमूल कांग्रेस पार्टी के कार्यालय में ले जाकर रात भर बलात्कार करते। जब मन भर जाता तो इस आदेश के साथ छोड़ते कि फिर हम जब बुलाएं तो बिना किसी ना-नुकर के चली आना। कोई बहाना नहीं चलेगा। तुम्हारे मां-बाप, पति, भाई आदि से हम देख लेंगे। 

    शारदा पचास की हो चुकी है। उसकी तीन बेटियां हैं। दो जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी हैं। शारदा को वो मंजर भुलाये नहीं भूलता जब शाहजहां के गुंडे उसकी बड़ी बेटी को रात को उठा कर ले गये थे। दो दिन के बाद लहुलूहान, लुटी-पिटी बेटी घर लौटी थी तो घंटों फूट-फूट कर रोती रही थी। वह बार-बार कहती रही थी कि वह अपवित्र हो चुकी है। उसकी वापस घर लौटने की हिम्मत ही नहीं थी। कुएं में छलांग लगाकर मर जाना चाहती थी, लेकिन अपनी दोनों छोटी बहनों की चिंता ने उसके पांव में बेड़ियां पहना दीं। वह गुंडों के समक्ष हाथ जोड़ती रही, लेकिन उन्होंने अपनी मनमानी करके ही दम लिया। जिस्म को रौंदने के साथ-साथ जालिमों ने उसे अंधाधुंध मारा-पीटा। पच्चीस वर्षीय रानी को संदेशखाली आये अभी पंद्रह दिन ही हुए थे। शादी के पांचवे दिन उसका पति नौकरी बजाने शहर चला गया था। हाथों में लाल चूड़ियां और माथे पर बड़ी-सी बिंदी लगाये रानी खुशी-खुशी बाजार में सब्जी लेने के लिए गई थी, तभी शाहजहां की उस पर काली नजर जा पड़ी थी। आधी रात को किसी गुंडे ने घर के दरवाजे की कुंडी खटखटायी थी। बूढ़े ससुर ने डरते-डरते दरवाजा खोला था। रानी गहरी नींद में थी। उसे जबरन खटिया से उठा कर शाहजहां के हवेलीनुमा घर में बिस्तर पर पटक दिया गया था। शाहजहां और उसके साथी भूखे भेड़िये की तरह उस पर टूट पड़े थे। तीसरे दिन की सुबह जब रानी को उसके घर ले जाकर छोड़ा गया था, तब वह अधमरी हो चुकी थी। शाम को उसे होश आया था। उसके ससुर का रो-रोकर बड़ा बुरा हाल हो चुका था। रानी को घर लेकर पहुंचे गुंडों ने उसे चेताया था कि जब भी बुलावा आए तब फौरन इसे शाहजहां की कोठी में लेकर पहुंच जाना। कोई होशियारी की तो हड्डी-पसली तोड़कर अपाहिज बना देंगे। रानी के ससुर ने दूसरे ही दिन सामान बांधा था और बहू को साथ लेकर अपने बेटे के पास शहर जा पहुंचा था। हताश-निराश ससुर ने बस में बहू से हाथ जोड़कर विनती की थी कि उसके साथ जो हुआ उसे वह बुरा सपना समझ कर भूल जाए। अपने पति को कुछ भी न बताए। 

    संदेशखाली जहां पर शाहजहां ने अपने भाई तथा चंद शैतान साथियों के साथ वर्षों तक अपना शासन चलाया, वह बांग्लादेश का सीमावर्ती क्षेत्र है। सुंदरवन से घिरा यह इलाका अनुसूचित जाति और जनजाति बहुल है। शाहजहां के ठिकाने पर यदि ईडी नहीं पहुंचती तो यहां की असंख्य दलित और आदिवासी महिलाओं पर हुए घोर अत्याचार और बलात्कार की अनगिनत घटनाओं का देशवासियों को पता ही नहीं चल पाता। यह भी सच है कि शाहजहां की गुंडई को यदि राजनीतिक संरक्षण नहीं मिलता तो उसकी हैवानियत इस कदर नहीं फल-फूल पाती। यह उसका दबदबा ही था कि पुलिस भी उसकी साथी बनी हुई थी। लोग उसकी शिकायतें लेकर थाने जाते और वर्दीधारी शाहजहां और उसके पाले-पोसे गुंडों को शिकायतकर्ताओं के नाम और पत्तों से अवगत करा देते। मुंह खोलने का साहस दिखाने वाले की फिर वो शामत आती कि उसकी हड्डी-पसली एक हो जाती। बहन, बेटी, बहू की इज्जत भी सलामत न रह पाती। तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां ने लोगों की खेती की जमीनें छीन कर वहां छोटे-बड़े तालाब बना दिए और उनमें खारा पानी भर दिया। जहां कभी विभिन्न फसलों की पैदावार होती थी वहां मछली पालन कर करोड़ों की कमायी की जाने लगी। शाहजहां तथा उसके आतंकी गुर्गों ने खेल के अनेकों मैदान भी कब्जा लिए। जिन किसानों की जमीनें छीनी गयीं उन्हें एक धेला भी नहीं दिया गया। उलटे मार-पीटकर कही दूर भागने को मजबूर कर दिया गया। हजारों बांग्लादेशी घुसपैठियों को भारत की ज़मीन पर बसाने वाला जन्मजात अपराधी शाहजहां वर्षों तक खतरनाक हथियारों से लेकर गो-तस्करी और सोना तस्करी करता रहा, लेकिन शासन और प्रशासन ने आंखे और कान बंद रखे। इस सच को याद रखा जाना चाहिए कि जैसे ही लोगों को पता चला कि शेख शाहजहां लंबे समय तक जेल में सड़ने वाला है और उसके आकाओं ने फिलहाल उसके सर से संरक्षण के हाथ खींच लिये हैं, तो उन्होंने एकजुट होकर शाहजहां और उसके साथियों के घर पर हमला बोल दिया और यह संदेश भी दे दिया कि अपराधियों के आतंक का भय तभी तक रहता है, जब तक राजनेता और नौकरशाह उनके साथ बने रहते हैं।

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