Thursday, March 14, 2024

बाज़ार

    दूसरे उत्सवों की तरह शादी-ब्याह भी उत्सव का मज़ा देते हैं। विवाह बंधन में बंधने वाले जोड़े के साथ-साथ घर, परिवार यार-दोस्त और रिश्तेदार अधिक से अधिक पहचान वाले, अड़ोसियों, पड़ोसियों, दूर पास के यारों, रिश्तेदारों से आत्मीय मेल-मुलाकात का सुअवसर भी होते हैं शादी-ब्याह के विभिन्न आयोजन। अपने देश में शादियों को स्टेटस सिंबल के तौर पर भी देखा जाता है। अपना रुतबा और जलवा दिखाने के लिए बढ़-चढ़कर धन खर्च करने के इस अवसर पर होड़ भी खूब देखी जाती है। गरीब हो चाहे अमीर सभी अपनी-अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर शादी के उत्सव को यादगार बनाने की भरसक कोशिश करते हैं। यहां तक कि बैंकों तथा साहूकारों से कर्जा लेकर अपनी हसरतें पूरी करने में संकोच नहीं किया जाता। शादी को सात जन्मों का बंधन भी कहा जाता है। इस पवित्र बंधन को कितने जोड़े निभा पाते हैं। वो अलग बात है। वफा, पवित्रता, आत्मीयता और मजबूती के साथ स्त्री-पुरुष को बांधे रखने के लिए ही कभी विवाह के प्रचलन की नींव पड़ी थी। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि, आज से लगभग 4 हजार साल पूर्व शादी ने एक सामाजिक संस्था के रूप में अपनी पहचान बना ली थी। 

    एक समय ऐसा भी था जब मानव विभिन्न जानवरों का शिकार कर अपना पेट भरता था। स्वयं को जानवरों से सुरक्षित रखने के लिए समूहों में रहना उनकी मजबूरी थी। एक समूह में पच्चीस से तीस के आसपास लोग होते थे। इन समूहों के लीडर दो-तीन  पुरुष होते थे जो अपनी मर्जी से समूह की कई महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाते थे। बाकी तो मन मारकर रह जाते थे। इन महिलाओं से जन्म लेने वाले बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी पूरे समूह की होती थी, लेकिन इस मामले में संतानों के साथ इंसाफ नहीं हो पाता था। लीडर और एक दो को छोड़कर बाकी के मन में यह बात घर किये रहती थी कि जब बच्चे उनके हैं हीं नहीं तो वे उनकी परवरिश पर क्यों ध्यान दें। संतान के पिता की पहचान के संकट के खात्मे के उद्देश्य से की शादी-ब्याह का रास्ता चुना गया। एक महिला की एक पुरुष से शादी का पहला सबूत 2,350 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया में मिलता है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में वैदिक काल से विवाह एक जरूरी धार्मिक और पवित्र संस्कार था। पति-पत्नी मिलकर यज्ञ करते थे और पुत्र पैदा करना शादी का जरूरी मकसद होता था। पुरातन काल में भी शादी-विवाह को भव्यता प्रदान करने का चलन था। धार्मिक पौराणिक विवाहों में दान-दहेज का भी रिवाज था। रामायण में राम और सीता के भव्य विवाह के उल्लेख के साथ राजा जनक के द्वारा अपनी पुत्री सीता को हजारों हाथी, घोड़े, गाएं और सोने-चांदी के आभूषण उपहार में देने का वर्णन है। इसी तरह से महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यू और उत्तरा की भव्य शादी में गीत, नृत्य, गायन, मदिरा और महंगे उपहारों की झड़ी लगा दी गयी थी। वो राजा-महाराजाओं का जमाना था। उन्हीं की चलती थी। प्रजा तो बस मूकदर्शक होती थी। राजतंत्र कब से भारत से विदा हो चुका। आज जनतंत्र है। जनता ही राजा है, लेकिन फिर भी जनता की ही बदौलत धनवान बने धनपति खुद को राजा-महाराजा से कम नहीं मानते। उन्हें इस सच से कोई लेना-देना नहीं है कि उनकी गगन चुम्बी तरक्की में असंख्य लोगों के खून-पसीने का योगदान है। नेता, राजनेता, मंत्री, संत्री और उद्योगपति अपने बीते कल को विस्मृत करने में जरा भी देरी नहीं लगाते। अपने बेटे-बेटियों की सगाई और शादी ब्याह में अंधाधुंध धन की बरसात कर खुद को महाराजा साबित करने का मौका नहीं गंवाते। अभी हाल ही में भारतवर्ष के सबसे उद्योगपति अमीर मुकेश अंबानी ने अपने छोटे बेटे अनंत की प्री-वेडिंग सेरेमनी में  1000 करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च डाले। देश और दुनिया की हजारों अति विशिष्ट हस्तियों को इस महाआयोजन में निमंत्रित कर अपने व्यक्तिगत आयोजन को ऐसी मंडी की शक्ल दे दी, जहां बड़े-बड़े धुरंधर बिकने को मजबूर हो गए। उन्हें बस अपनी कीमत बतानी थी। तमाम न्यूज चैनल वाले भी मुकेश अंबानी तथा उनके पुत्र की दयालुता और हिम्मत की गाथाओं के पन्ने खोले जा रहे थे। बार-बार राग गा रहे थे कि कभी 208 किलो के वजन वाले अनंत ने प्रतिदिन इक्कीस किलोमीटर की छह घंटे के कड़े विभिन्न व्यायाम और जंक फूड का पूरी तरह से त्याग कर अपना 100 किला वजन कम कर दिखा दिया है कि वो जो ठान लेते हैं उसे साकार करके ही दम लेते हैं। अनंत जमीन से जुड़े पिता के आज्ञाकारी बेटे हैं। खरबपति परिवार में जन्म लेने के बाद भी उनकी जिन्दगी संघर्ष भरी रही है। आज भी वह स्वास्थ्य समस्याओं से घिरे हैं। संस्कारी परिवार के इस बेटे ने संस्कारी लड़की राधिका को अपनी जीवनसाथी बना कर सभी का दिल जीत लिया है। अंबानी परिवार ने इस अपार तामझाम भरी प्री-वेडिंग को विज्ञापित कर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों जरूर बटोरीं, लेकिन उन पर ऐसे-ऐसे सवालों की झड़ी भी लगी रही, जिनके जवाब नदारद रहे। धन कुबेर मुकेश अंबानी ने 2018 में अपनी इकलौती बेटी ईशा की शादी में 800 करोड़ उड़ा कर भी सुर्खियां बटोरी थीं। तब इसे भारत की सबसे महंगी शादी प्रचलित किया गया था। अब 2024 में अपने बीमार दुलारे को खुश करने के लिए 1000 करोड़ खर्च कर डाले। उनके लिए इतना धन हाथ का मैल है। वे जितना रुपया उड़ाना चाहें, कोई उन्हें नहीं रोकने वाला। यह तो खुद की सोच और विवेक का मामला है। धार्मिक प्रवृत्ति के मुकेश को विभिन्न साधु-संतों तथा प्रवचन कारों के सानिध्य में भी देखा जाता है। मोहन यादव वर्तमान में देश के विशाल प्रदेश मध्यप्रदेश के सम्मानित मुख्यमंत्री हैं। वर्षों से राजनीति में हैं। मुख्यमंत्री बनने के पश्चात वे अपने बेटे की शादी का न्यौता देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निवास पर गये थे। मोदी जी ने उन्हें असीम मंगलकामनाओं के साथ एक बात कही, ‘‘अब आप प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। किसी भी ऊंचे पद पर पहुंचने के बाद लोगों की अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। वे अच्छा होते देखना चाहते हैं। जनप्रतिनिधि हों या उद्योगपति, उन्हें बहुत सोझ-समझ कर चलना चाहिए। अपने परिवारिक समारोहों में अत्याधिक दिखावे और फिजूल खर्ची से बचना चाहिए। आचार, व्यवहार और विचार के प्रभावी संदेश से ही दूरगामी आदर्श स्थापित होते हैं। मुकेश अंबानी को अथाह धन फूंक कर भले ही संतुष्टि मिली हो, लेकिन आम लोगों को उनका यह रंगारंग तमाशा अच्छा नहीं लगा। उनकी यह सोच फिर से बलवति हुई है कि अपने देश के अधिकांश धनपतियों का जन सरोकार से कोई वास्ता नहीं। उनके लिए अपना परिवार ही सर्वोपरि है।

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