Thursday, April 18, 2024

हर डर हो खत्म

     घी-गुड़-तिल की लाजवाब रेवड़ी की महक और मिठास में रचे-बसे मेरठ को ‘भारत के खेल शहर’ की पुख्ता पहचान मिली हुई है। वस्त्र, कागज, चीनी, रसायन, ट्रांसफार्मर के साथ-साथ विभिन्न उपयोगी दवाओं के निर्माण के लिए भी मेरठ खासा विख्यात है। दो पवित्र नदियों, गंगा और यमुना के बीचों-बीच में बसे मेरठ को तेजी से प्रगति करते शहर के रूप में भी पहचाना जाता है। जीवंत पत्रकारिता, एकता और आपसी सद्भाव भी इस शहर के आभूषण हैं। कालजयी टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ में श्रीराम की अत्यंत प्रभावी भूमिका निभा चुके अभिनेता अरुण गोविल इसी आदर्श नगरी से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी को उनके विजयी होने का शत-प्रतिशत भरोसा है। अभिनेता भी पूर्णतया आश्वस्त हैं। भगवान श्रीराम और पीएम मोदी की छवि हर हाल में नैय्या पार करवाएगी। महिला मतदाताओं के लिए तो भाजपा प्रत्याशी अरुण गोविल सचमुच के राम हैं। माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मनोहरी छवि भी उनकी सुध-बुध में अंकित है। हाथ जोड़कर भीड़ का अभिवादन करते अरुण गोविल को कदम-कदम पर फूल-मालाएं पहनायी जाती हैं तो वे फूलों को महिलाओं की तरफ उछाल देते हैं। महिलाएं उन्हें माथे से लगा सहेजकर रख लेती हैं। उनके लिए यही प्रभु श्रीराम का आशीर्वाद और प्रसाद है। 

    मेरठ के लोकसभा क्षेत्र का संपूर्ण वातावरण भक्तिमय है। धूप-अगरबत्ती और फूलों की महक से महकते मेरठ में हिंदुओं के साथ-साथ मुसलमान मतदाताओं की भी अच्छी-खासी आबादी है। मेरठ की फिज़ा में सवाल गूंज रहे हैं कि क्या भाजपा के उम्मीदवार अरुण गोविल हर जाति-धर्म के मतदाता पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम होंगे? लोकसभा चुनाव कोई छोटा-मोटा चुनाव नहीं। दरअसल, यह तो लोकतंत्र का महापर्व है। किसी भी उत्सव की सार्थकता तभी होती है, जब उसे सभी खुले मन से मिलजुल कर मनाएं। मनमुटाव और दूरियां उत्सव को फीका कर देती हैं। अयोध्या में राम मंदिर बन चुका है। हर देशवासी की मनोकामना है कि देश में सही मायनों में राम राज्य आना चाहिए, जहां सभी धर्मों के लोग मिल जुलकर रहें। सबको समान व्यवहार और अधिकार मिलें। सभी को एक ही निगाह से देखा जाए। महिलाओं का भरपूर मान-सम्मान हो। अगर कोई देशद्रोही है तो वह सबका दुश्मन है। अरुण गोविल रामराज्य लाने का वादा कर रहे हैं। बिल्कुल वैसे ही जैसे हर प्रत्याशी चुनावों के अवसर पर करता है। पत्रकार मित्रों ने जय श्रीराम के नारे लगाते उत्साही युवकों से पूछा कि इस बार के चुनाव में मुख्य मुद्दा क्या है? तो उन्होंने तपाक से कहा कि मुद्दा तो बस एक ही है, जय श्रीराम। योगी और मोदी जिंदाबाद के नारे लगाती भीड़ की निगाह में अरुण गोविल तो जैसे साक्षात श्रीराम हैं, जिनकी मंद-मंद मुस्कुराहट उनके दिल-दिमाग में रच-बस सी गई है। अभिनेता अरुण गोविल ने कई वर्ष पूर्व एक साक्षात्कार में बताया था कि रामायण धारावाहिक के प्रसारण के पश्चात जब उन्होंने भारत से हजारों मील दूर विदेश की धरती पर कदम रखा तो वहां के स्त्री-पुरुषों ने उन्हें घेर लिया था। कोई उनके चरण छू रहा था तो कोई बुजुर्ग उनका माथा चूम रहा था। उन्हें यह समझने में किंचित भी देरी नहीं लगी कि यह तो भगवान श्रीराम के प्रति उनकी अपार आस्था है, जो इस रूप में प्रकट हो रही है। अपने उस साक्षात्कार में उन्होंने यह भी बताया था कि जब रामायण धारावाहिक का निर्माण हो रहा था तब उन्हें सिगरेट पीने की लत थी। वे छिप-छिपा कर अपनी नशे की तलब को पूरा कर लिया करते थे। कुछ वर्षों के पश्चात उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर भी यह सोचकर सिगरेट पीनी प्रारंभ कर दी कि लोग इस सच से वाकिफ हैं कि वे सचमुच के राम नहीं हैं। अभिनेताओं का तो काम ही है कि किसी किरदार को साकार करना, जिससे लोग उनकी प्रशंसा करने को विवश हो जाएं। अभिनय अपनी जगह है और व्यक्तिगत जीवन अपनी जगह है। एक शाम किसी फाइव स्टार होटल में अरुण गोविल की सिगरेट पीने की इच्छा हुई तो उन्होंने होटल की लॉबी में तुरंत सिगरेट सुलगा ली। तभी एक बुजुर्ग महिला की उन पर नज़र पड़ गई। उसने रामायण सीरियल को कई बार देखा था। अपने भगवान श्रीराम को सिगरेट पीता देख उसे बहुत जबरदस्त धक्का लगा। उसने तुरंत उन्हें डांटना-फटकारना प्रारंभ कर दिया। ‘आपको पता भी है कि करोड़ों भारतीयों ने आपको भगवान का दर्जा दे रखा है और आप हैं कि सिगरेट पर सिगरेट फूंकते हुए उनकी आस्था से खिलवाड़ किये जा रहे हैं!’ महिला की फटकार की बुलंद आवाज की वजह से और भी कुछ लोग वहां जमा हो गये। सभी ने एकमत होकर उनकी जी भर कर थू...थू की। वो दिन था और आज का दिन है। अभिनेता ने सिगरेट को हाथ नहीं लगाया। यकीनन अच्छी छवि ही वो सीढ़ी होती है, जो शिखर तक पहुंचाती है। मान-सम्मान दिलवाती है। विद्वान व्यक्ति यदि चरित्रहीन है तो उसकी हर खूबी धरी की धरी रह जाती है। 

    राजनीति में तो स्वच्छ छवि ही अंतत: काम आती है। खोटे सिक्कों की दाल ज्यादा समय तक कहां गल पाती है...। बद और बदनाम चेहरों का काला सच उजागर हो ही जाता है। सर्वप्रिय राजनेता वही होता है, जो किसी एक का नहीं, सभी का होता है। किसी खास धर्म के मतदाताओं की बदौलत चुनाव जीतना कम-अज़-कम भारत में तो संभव नहीं। यहां मुद्दों की भरमार है। सांप्रदायिकता, भेदभाव, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई ने करोड़ों भारतवासियों का जीना मुहाल कर रखा है। गरीब वर्षों पहले जहां खड़ा था, आज भी वहीं खड़ा है। राजनेताओं की पक्षपाती, रीति-नीतियों ने उसे मुख्यधारा में शामिल ही नहीं होने दिया है। अंतिम सच यही है कि जब तक पिटे-पिटे-लुटे-लुटे और डरे-डरे लोगों की नहीं सुनी जाती, उन्हें गले नहीं लगाया जाता, तब तक चुनावी उत्सव, उत्सव नहीं दिखावा और तमाशा है...।

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