संतोषी, त्यागी, सहज और सरल चेहरे आजकल बहुत कम देखने में आते हैं। यहां लगभग सबको अधिक से अधिक धन दौलत, मान-सम्मान और भौतिक सुख-सुविधाओं बटोरने की प्रबल चाहत तथा लालच ने पूरी तरह से कैद कर रखा है। जो भी एकबार धन और सत्ता का स्वाद चख लेता, वो इनका सदा-सदा के लिए गुलाम होकर रह जाता है। जहां सतत और-और पाने की अंधी प्रतिस्पर्धा और मार-काट मची है, वहीं पर ऐसे परम संतोषियों का होना झुलसाती-तपतपाती धूप में ठंडक भरी बरसात का अत्यंत सुखद अहसास दिलाता है।
फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन द्वारा वर्षों से प्रस्तुत किए जा रहे, ‘‘कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी)’’ को करोड़ों लोग बड़ी उत्सुकता और उत्साह के साथ देखते हैं। इस खेल में अधिक से अधिक रकम पाने की हर प्रतिभागी की चाह होती है। केबीसी में रकम जीतने वालों का कभी मन नहीं भरता। जितना भी मिल जाए कम और पाने की लालसा बनी ही रहती है।
कुछ दिन पूर्व इस शो में एक ऐसे प्रतिभागी ने भाग लिया, जिन्होंने देश और दुनिया को स्तब्ध करते हुए नया इतिहास ही रच डाला। डॉक्टर नीरज सक्सेना बहुत अच्छा खेलते हुए छह लाख चालीस हजार रुपए जीत चुके थे और उनके और जीतने के प्रबल आसार थे, लेकिन शो का दूसरा पड़ाव पार करते ही उन्होंने अमिताभ बच्चन से कहा, ‘‘सर एक निवेदन है, मैं इस पायदान पर क्विट करना चाहूंगा। मैं चाहता हूं बाकी जो लोग बचे हैं, उनको भी मौका मिले। यहां सब हमसे छोटे हैं। अभी तक मुझे जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है।’’ उनके इस अभूतपूर्व फैसले से सदी के महानायक हतप्रभ रह गए। उनके मुख से तुरंत यह शब्द निकले, सर हमने पहले कभी ये उदाहरण देखा नहीं। यह आपकी महानता और बड़ा दिल है और हमने आपसे बहुत कुछ सीखा है।
डॉक्टर नीरज सक्सेना जेएसआई यूनिवर्सिटी में प्रो-चांसलर हैं। वे भारतवर्ष के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम कर चुके हैं तथा उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कलाम का संपूर्ण जीवन ही हर भारतीय के लिए किसी प्रकाश स्तंभ से कम नहीं। अपने व्यक्तिगत जीवन में कुरान और भगवद् गीता दोनों का अध्ययन करने वाले कलाम सभी के साथ एक समान व्यवहार करते थे। उनकी निगाह में राजा और रंक में कोई भेद नहीं था। उनका राजनीति से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में दिए गए उत्कृष्ट योगदान की वजह से उन्हें सभी राजनीतिक दलों की रजामंदी से विशाल देश भारत का राष्ट्रपति बनने का महागौरव हासिल हुआ। इनका बचपन बहुत गरीबी तथा संघर्षभरा रहा। पिता लगभग अनपढ़, लेकिन अत्यंत मेहनती नाविक थे। कलाम जब आठवीं कक्षा में थे, तब नियमित सुबह चार बजे उठकर गणित की ट्यूशन के लिए जाते और उसके तुरंत बाद पिता के साथ कुरान शरीफ का अध्ययन करते और फिर अखबार बांटने के लिए निकल जाते थे। बचपन में ही उन्होंने ठान लिया था कि विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र में तरक्की का परचम लहराना है। इसलिए उन्होंने कॉलेज में भौतिक विज्ञान का चुनाव किया। इसके पश्चात मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलाजी से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। अपने निर्धारित लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कठोर मेहनत करने वाले कलाम शादी के बंधन में नहीं बंधे। उन्हें भारतरत्न का सम्मान राष्ट्रपति बनने से पूर्व हासिल हो गया था। उन्हें लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा। वर्ष 2002 में वे राष्ट्रपति बनाए गए। अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करने के तुरंत बाद वे लेखन, शिक्षा और सार्वजनिक सेवा में व्यस्त हो गए। उनका मानना था कि शिक्षण एक बहुत महान पेशा है, जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं तो मेरे लिए ये बहुत बड़ा सम्मान होगा।
कलाम कई एकड़ में फैले सर्व सुविधापूर्ण राष्ट्रपति भवन में ऐसे रहे जैसे कोई मुसाफिर सराय और धर्मशाला में रहता है। उन्होंने आम जनता के लिए राष्ट्रपति भवन के दरवाजे खुलवा दिए थे। उनमें प्रारंभ में जो सादगी, सरलता, सहजता और समर्पण भाव था, वह अंत तक बना रहा। जब उनका निधन हुआ तब भी वे शिक्षक, लेक्चर और प्रेरक की जीवंत भूमिका में थे। इस सदी के महान विचारक, मिसाइल मैन तथा आम लोगों के राष्ट्रपति ने इन शब्दों के साथ इस धरा से अंतिम विदाई ली, आपके जीवन में चाहे जैसी भी परिस्थिति क्यों न हो पर जब आप अपने सपने पूरे करने की ठान लेते हैं, तो उन्हें पूरा करके ही रहते हैं। उनकी जीवनभर की संपत्ति थी, छह पैंट, चार शर्ट, तीन सूट और 2500 किताबें। पिछले दिनों मैने एक वीडियो देखा तो माननीय कलाम साहब का चेहरा मेरे मन-मस्तिष्क में घण्टों तरंगित होता रहा। यूरोप के एक देश नीदरलैंड (डच) के 14 साल तक प्रधानमंत्री रहे मार्क रुट का जब कार्यकाल पूर्ण हुआ तो उन्होंने मधुर मुस्कान के साथ अगले प्रधानमंत्री को सत्ता सौंपी और शुभकामनाएं दीं। उसके बाद कार्यालय से बाहर निकलकर अपनी साइकिल उठाई और उसे चलाते हुए बड़ी शान से अपने घर की ओर चल दिए। उनके स्टाफ के सदस्यों और साथियों ने हाथ हिलाकर उनका तहेदिल से अभिवादन किया। यह वही साइकिल थी, जिसे मार्क रुट प्रधानमंत्री बनने से पूर्व चलाया करते थे। नीदरलैंड की जनता उनकी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी की जबर्दस्त कायल है। क्या भारत में ऐसे नेता का होना मुमकिन हो सकता है?