हर किसी की खुशी और संतुष्टि का पैमाना एक सा नहीं। इस धरा पर सबके पास सबकुछ नहीं। कुछ लोगों के पास अपार धन-दौलत है। बंगले और बड़ी-बड़ी कोठियां हैं, एक से बढ़कर एक आलीशान कारें हैं।
हमारे देश में कुछ के हिस्से में बेहिसाब खुशहाली है, भरपूर सुविधाजनक जीवन जीने के अवसर हैं, लेकिन कई भारतवासी गरीबी से बदहाल हैं। दो वक्त का जैसा-तैसा भोजन भी उनके लिए दूर-दूर का सपना है। यह कष्टदायक असमानता पता नहीं कब ख़त्म होगी? देश के हुक्मरान बीते कई वर्षों से गरीबी हटाने के झूठे वादे करते हुए वोट ऐंठते चले आ रहे हैं। उन्होंने तो कोठियों पर कोठियां तान लीं, लेकिन झोपड़ियों की संख्या कम नहीं हुई। आसमान के नीचे जीवन यापन करने वालों की तादाद में लगातार इजाफा होता रहा। जिन लोगों ने अपनी-अपनी तरकीबों से अकूत धन-दौलत जमा कर ली है उनमें अधिकतर स्वार्थी, बेरहम और लालची हैं। नव धनाढ्य तो गरीबों और असहायों की परछाई से ही दूर रहते हैं। अपने बेटी- बेटों की सगाई तथा शादी में अरबों-खरबों रुपए उड़ाने वालों की तमाशे बाजी किसी से छिपी नहीं है। पच्चीस-पचास गरीबों को खाना और चंद कन्याओं का सामूहिक विवाह रचाकर अपनी पीठ थपथपाने वालों की भीड़ में जब चुपचाप इंसानियत का धर्म निभाने वालों पर नज़र जाती है, उनके बारे में पढ़ने-सुनने में आता है तो उनकी वंदना करने को जी चाहता है। बीते दिनों सोशल मीडिया में लगातार वायरल होते एक वीडियो को देखा तो बस देखता और सोचता ही रह गया कि मानवता की इससे बेहतर और दूसरी कौन सी जीवंत मिसाल और परिभाषा हो सकती है?
एक मेहनतकश आम भारतीय अपने छोटे से बच्चे को गोद में लिए गुब्बारे बेचता फिर रहा है। इसी दौरान उसकी एक चमचमाती कार पर नज़र पड़ती है और वह अपने मोबाइल फोन से कार के साथ सेल्फी लेने लगता है, तभी कार का मालिक वहां आ जाता है तो वह यह सोच कर घबरा जाता कि मालिक उसे डांटेगा-फटकारेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। कार वाला करोड़पति उससे बड़ी अदब के साथ पेश आते हुए अपने साथ खड़े कर कई फोटो खींचकर उसे अपार खुशी के झूले में झुला देता है। इतना ही नहीं वह बड़े दिल वाला उसे अपने साथ कार में भी बैठाता और घुमाता है, गुब्बारे वाले शख्स की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। उसके चेहरे पर स्पष्ट लिखा नज़र आता कि इस खास दिन को वह कभी नहीं भूल पायेगा।
हिंदुस्तान की बहादुर परोपकारी बेटी मंजूषा सिंह ने मतिमंद बच्चे-बच्चियों की देखभाल करने तथा उन्हें मातृत्व सुख-सुविधा और आत्मीयता देने के लिए शादी नहीं की। ब्याह बंधन में बंधतीं तो अपने बच्चों में उलझ कर रह जातीं। वह तीस साल से मतिमंद बच्चों को अपनी संतान मान कर उनकी सेवा और देखभाल कर रही हैं। 54 साल पुरानी सेरेब्रल पॉल्सी एसोसिएशन ऑफ इंडिया की प्रभारी और विशेष शिक्षिका मंजूषा ने बताया कि जब मैं मात्र 13 साल की थी तब मेरी मां का देहावसान हो गया था, इसलिए मैं मां की अहमियत को अच्छी तरह से जानती-समझती हूं। मां के गुजरने के गम ने मुझे पूरी तरह से निराश कर दिया था। काउंसलिंग तक करानी पड़ी। काउंसलिंग टीचर ने तब कहा था कि जरूरी नहीं कि आप हमेशा स्वयं के बारे में ही सोच कर परेशान होते रहें। अपना जीवन दूसरों को समर्पित करने से हमारे सभी दु:ख उड़न छू हो जाते हैं और अभूतपूर्व शांति और खुशी की प्राप्ति होती है। टीचर की बात ने मेरी सोच बदल दी और मैं इन विकलांग बच्चों की मां बन गई। ये बच्चे मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। इनका शरीर भले ही किसी भी उम्र का हो, लेकिन दिमाग एक जैसा होता है। हमारे पास 9 महीने से लेकर 74 साल तक के बच्चे आते हैं। इन बुजुर्गों को भी हम बच्चा मानते हैं, क्योंकि दिमाग से वे भी बच्चे ही होते हैं। इन सबको इलाज के साथ-साथ ऐसी खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे दिलेरी के साथ जीवन व्यतीत कर सकें और अकेले संघर्षरत रहते हुए वह सब हासिल करें जो दूसरों के हिस्से में आता है।
भारत के अत्यंत संवेदनशील और परोपकारी उद्योगपति रतन टाटा का हाल ही में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। वे ऐसे कारोबारी थे, जिन्होंने नितांत ईमानदारी और परिश्रम से हजारों अरबों-खरबों रुपए के उद्योग और संपत्ति का विशाल साम्राज्य खड़ा किया, लेकिन अहंकार और दिखावे से जीवन पर्यंत दूर रहे। उन्हें दूसरों की सहायता करने में अपार आनंद आता था। दूसरे उद्योगपतियों की तरह धन को खुद पर तथा अपने परिवार जनों पर लुटाने की बजाय गरीबों, असहायों तथा जरूरतमंदों पर खुले हाथ खर्च करना उन्हें बहुत सुहाता था। उन्हें बच्चों से भी अत्यधिक स्नेह था। उनके बीच पहुंचते ही वे बच्चे हो जाते थे। वैसे भी उनके चेहरे की मासूमियत और भोलापन आम भारतीयों जैसा ही था। छल-कपट और ऊंच -नीच की संकुचित विचार-भावना से कोसों दूर...। जब किसी के भले और सहायता की बात आती तो तुरंत पहुंच जाते। एक बार रतन टाटा ने 200 व्हील चेयर विकलांग बच्चों को भेंट में देने की सोची। जब वे बच्चों के बीच पहुंचे तो वे खुद को बच्चा महसूस करने लगे। बच्चों को व्हील चेयर सौंपते हुए उनका चेहरा खुशी से चमक रहा था। बच्चे भी बेहद प्रसन्न थे। उन्हें व्हील चेयर पर बैठकर घूमते और मस्ती करते देख रतन टाटा का मन मयूर नाच उठा। जब रतन टाटा वापस जाने को हुए तभी एक बच्चे ने कसकर उनकी टांग पकड़ ली। उन्होंने धीरे अपने पैर को छुड़ाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन तब भी बच्चा टस से मस नहीं हुआ। तब उन्होंने बच्चे को बड़ी आत्मीयता से पुचकारा और बड़े स्नेह से पूछा, बेटे तुम्हें कुछ और भी चाहिए? बच्चे ने कहा कि, मैं जीभरकर आपका चेहरा देखना चाहता हूं ताकि हमेशा-हमेशा याद रहे। जब मुझे स्वर्ग में आपके दर्शन हों तो आपको तुरंत पहचान लूं। मासूम बच्चे के इस कथन ने रतन टाटा को इस कदर झकझोरा कि उसी क्षण जीवन के प्रति उनका नजरिया ही बदल गया। इस सदी के प्रेरक महामानव रतन टाटा को इंसानों के साथ-साथ जानवरों से भी अत्यधिक स्नेह था। उनके निधन पर करोड़ों देशवासी ही नहीं गमगीन हुए, उनके लाडले पाले-पोसे कुत्ते ने भी आंसू बहाये। इस कुत्ते को वे पर्यटन स्थल गोवा से लाये थे इसलिए उन्होंने उसका नाम ‘गोवा’ रखा था। महादयालू रतन टाटा के अंतिम संस्कार में उनका कुत्ता ‘गोवा’ अंतिम सम्मान देने आया था.....
No comments:
Post a Comment