हम कल होंगे या नहीं, कोई नही जानता। यहां कुछ भी तय नहीं। हर शख्स यहां इम्तिहान से रुबरू होने की राह पर है। यह सच अपनी जगह है कि वह पास होता या फेल। जिन्दगी में उतार-चढ़ाव आना भी लाज़मी है यही इन्सान का परीक्षा काल होता है। यह भी हम पर निर्भर है कि समस्याओं की निदान किस तरह से करते हैं। दुनिया में हर समस्या का हल है। बस उसे तलाशना होता है। भागने से समस्या और विकराल शक्ल अख्तियार कर लेती है। संकोच और भय अच्छे-अच्छे शरीरधारियों को कुछ अलग और बड़ा करने से रोकता ही नहीं, चुनौतियां से जूझने और मुंह चुराने के तरह-तरह के बहानों का गुलाम बना कर रख देता है। हमारी इस धरा पर कई लोगों के साथ कुदरत अन्याय कर देती है। उनसे बहुत कुछ छीन लेती है। इनमें से अधिकांश लोग हताशा और निराशा के गर्त में गर्क होकर रह जाते हैं। लेकिन कुछ लोग अपनी शारीरिक अक्षमता को ऊपर वाले का घोर अन्याय और अपना मुकद्दर मानने की बजाय ऐसा करिश्मा और चमत्कार कर दिखाते हैं कि दुनिया उनकी जय-जयकार करते नहीं थकती। जहां प्रेरणा उत्प्रेरक का काम करती है, वहीं किसी भी अन्याय और शारीरिक कमी के शिकार लोगों की सहायता तथा मार्गदर्शन बहुत मायने रखता है। जिस तरह से डूबते को तिनके का सहारा होता है वैसे ही दिव्यांगों के कंधे पर हाथ रखना कैसे चमत्कारी साबित होता है इसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं। जिन्होंने ज़मीन पर परिश्रम और संघर्ष कर ऊंचे आसमान को छूने का कीर्तिमान रच कर दिखाया है। हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला शहर में एक लड़की कभी अपनी मां के साथ हाथ में कटोरा पकड़े भीख मांगा करती थी, लेकिन आज वह एमबीबीएस डॉक्टर बन चुकी है। कल तक चुप-चुप और सहमी-सहमी रहने वाली पिंकी हरयान अब फर्राटेदार इंग्लिश बोलती है। पिंकी की जिन्दगी को पूरी तरह से बदलने का करिश्मा किया है, परोपकारी तिब्बती शरणार्थी भिक्षु जामयांग ने। मैक्लोडगंज की टोंग-लेन चैरिटेबल ट्रस्ट के संस्थापक और निदेशक जामयांग ने एक बच्ची को भीख के लिए भटकते देखा तो उन्होंने उसे अपने पास बुलाकर दुलारते हुए पूछा, बिटिया क्या तुम्हारा स्कूल जाने का मन नहीं होता? तो बच्ची तुरंत बोली, बहुत होता है अंकल...मैं तो बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती हूं लेकिन...। भिक्षु जामयांग ने पिंकी के गरीब माता-पिता से अनुमति लेकर फौरन उसका स्कूल में दाखिला कराया। खान पान और रहने की संस्था के सर्व सुविधायुक्त होस्टल में पूरी व्यवस्था भी करवा दी। वह पढ़ाई में बहुत होशियार थी। 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उसने नीट की परीक्षा भी चुटकीयां बजाते हुए पास कर ली। साल 2018 में पिंकी का चीन के एक प्रमुख मेडिकल कॉलेज में एडमिशन करवा दिया गया। यहां से छह साल तक एमबीबीएस की पढ़ाई करने के बाद वह अभी कुछ दिन पूर्व ही धरमशाला लौटी हैं। उसके पिता बूट पॉलिश का काम छोड़कर चादर और दरियों के व्यापार में अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं। मां भी इज्जत भरी जिन्दगी जी रही हैं। पिंकी का छोटा भाई और बहन अत्यंत सुविधाजनक टोंग-लेन स्कूल में पढ़ाई-लिखाई कर रहे हैं।
अपनी कमजोरी को ही ताकत बना लेने वाली मुस्कान सिर्फ नाम भर की मुस्कान नहीं। मुस्कराहट और उत्साह से उसका चेहरा हरदम चमकता रहता है। उसकी बेफिक्री, चुस्ती-फुर्ती यह पता लगने ही नहीं देती कि वह पूर्णतया दृष्टिहीन है। शिमला की रहने वाली मुस्कान ने अपनी स्कूली शिक्षा कुल्लू के ब्लांइड स्कूल सुल्तानपुर और शिमला के पोर्टमोर स्कूल से पूरी की। इसके बाद राजकीय कन्या महाविद्यालय शिमला से म्यूजिक में ग्रेजुएशन और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से मास्टर की पढ़ाई पूरी की। नेट और सेट की परीक्षा भी अच्छे नंबरों से पास करने वाली जूनूनी ऊर्जावान मुस्कान की आवाज का सुरीलापन हर किसी का मन मोह लेता है। ऑनलाइन रेडियो उड़ान की प्रतियोगिता में शामिल होकर अव्वल स्थान प्राप्त करने वाली मुस्कान को बेंगलुरु के समर्थनम ट्रस्ट फॉर डिसेबल ने स्पांसर कर अमेरिका भेजा। ढाई महीने वहां रहकर उसने लाजवाब प्रस्तुतिकरण कर अमेरिका वासियों का भी दिल जीता। मुस्कान कहती हैं कि अपनी कमी की वजह से निराश होने की बजाय उसे अपनी ताकत बना लेने पर दुनिया की कोई ताकत आपको डरा और हरा नहीं सकती। निधि चित्रकार बनना चाहती थीं। लेकिन नियति कुछ और ठान चुकी थी। तीन भाई-बहनों में सबसे छोटी निधि की पंद्रह साल की आंख की रोशनी छिन गई। उसका बड़ा भाई पहले से ही दृष्टिबाधित था। निधि को समझ में आ गया कि यह अंधेरा उम्र भर उसका साथी बने रहने वाला है। उसने अपने मन को पक्का कर सफेद छड़ी के सहारे चलना सीखते हुए सॉफ्टवेयर से पढ़ना शुरु कर दिया। संकल्प और संघर्ष की यात्रा कभी निष्फल नहीं होती। उसने मॉस मीडिया की पढ़ाई में टॉप करने के बाद मास्टर्स किया। 2011 से सतत विकलांग महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्षरत निधि ने 2017 में एनजीओ राइजिंग फ्लेम की स्थापना की। उनकी यह संस्था दिव्यांग महिलाओं तथा युवाओं के हित में निरंतर सक्रिय है। निधि ने दिव्यांग महिलाओं की आपबीती अनुभवों की किताब का भी प्रकाशन किया है। इस प्रभावी किताब में उजागर दिव्यांग महिलाओं का भोगा हुआ सच वाकई आंखें और मन-मस्तिष्क के बंद दरवाजे खोल कर रख देता है...।
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