Thursday, October 3, 2024

अपनी-अपनी सोच-समझ

    बीते दिनों भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पार्टी के नेता एम एम लारेंस का 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लारेंस ने अपने जीवित रहते देहदान का संकल्प लिया था। उनकी दिली इच्छा थी कि मरणोपरांत उनकी देह का शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग हो। उनकी इच्छानुसार जब पार्थिव शरीर को सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल को दान देने की तैयारी चल रही थी तभी दिवंगत नेता की बेटी ने विरोध के स्वर बुलंद कर दिए। लारेंस के दोनों बेटों ने तो शव को मेडिकल को सौंपने की सहमति दे दी थी, लेकिन जिद्दी बेटी ने तरह-तरह के तर्कों तथा कारणों की झड़ी लगाकार मेडिकल प्रशासन को दुविधा में डालकर अच्छा-खासा हंगामा खड़ा कर दिया। एम एम लारेंस देहदान का महत्व अच्छी तरह से समझते थे। चिकित्सा जगत में मृत देह को अमूल्य माना जाता है। सिर्फ मेडिकल के सघन अध्ययन के लिए ही नहीं, सभी प्रकार के शोध एवं जटिल आपरेशन के लिए भी मार्गदर्शक साबित होती है। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि महान संत, महात्यागी ऋषि दधीचि ने जब देखा कि दानवों का आतंक सतत बढ़ता ही चला जा रहा है। लोगों का जीना मुहाल हो गया है तो उन्होेंने अपना शरीर ही त्याग दिया ताकि उनकी हड्डियों से ऐसा मजबूत धनुष बनाया जा सके, जिससे राक्षसों का पूरी तरह से संहार संभव हो। हमारे एक परिचित थे, जो लोगों को अंगदान और देहदान के लिए प्रेरित करते रहते थे। अखबार में जब भी किसी के अंगदान की मिसाल कायम करने की खबर पढ़ते तो उसकी कटिंग फेसबुक पर डालने के साथ फ्रेम करके अपनी दुकान पर टांग देते थे। इसके लिए उन्होंने एलबम भी बना रखी थी। उन्होंने अपने परिवार को भी कह रखा था कि उनकी मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को अस्पताल को सौंप दिया जाए। शहर के सभी समाचार-पत्रों में भी मरणोपरांत देहदान की सूचनानुमा खबर उन्होंने प्रकाशित करवाई थी। अभी हाल में अचानक वे चल बसे। उनकी पत्नी ने मृत देह को दान करने से स्पष्ट इंकार कर दिया। उनका कहना था कि अपने पति परमेश्वर की देह की चीर-फाड़ की कल्पना से उनका बदन कांपने लगता है। यह महिला शहर के प्रमुख अखबार में सह-संपादक के पद पर आसीन हैं। रक्तदान, अंगदान और देहदान के लिए पाठकों को प्रोत्साहित करने के लिए धड़ाधड़ लेख लिखती और प्रकाशित करवाती रहती हैं। अपने पति के देहदान के संकल्प में अटल बाधा बनी यह महिला पत्रकार खुद को सही ठहराने के लिए लोगों को यह बताना और याद दिलाना नहीं भूलीं कि दस वर्ष पूर्व नगर के विख्यात साहित्यकार, प्रवचनकार, समाज सेवक स्वतंत्र कुमार की मृत देह मेडिकल कॉलेज को सुपुर्द की गई थी, तब प्रबंधन की लापरवाही के फलस्वरूप शरीर बुरी तरह से सड़-गल गया था और उसमें कीड़े रेंगने लगे थे। मैं अपने पति के शरीर की ऐसी दुर्गति होते न देख सकती हूं और न ही कभी सोच सकती हूं। इसलिए मैंने पापा के घोषित देहदान के संकल्प को पूर्ण नहीं होने दिया। जब इस महान पत्नी को जानकारों ने बताया कि तब और अब में जमीन आसमान का फर्क है। तब की तुलना में आज का मीडिया बहुत सतर्क है। इस सोशल मीडिया के प्रबल दौर में किसी धांधली पर पर्दा डालना पहले की तरह सहज और सरल नहीं रहा। इस सच से लापरवाह, कामचोर और मुफ़्तखोर अनजान नहीं। वैसे भी आपका कर्तव्य है कि अपने पति के संकल्प को किसी भी हालत में पूर्ण करें। अपनी पत्रकारिता पर भी सवालिया दाग न लगाएं।

    देहदान के क्षेत्र में कार्यरत समाजसेवी बताते हैं कि अपने जीवित रहते लोग जब देहदान का संकल्प और घोषणा  कर देते हैं, तो उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार का पहला दायित्व और काम यह होना चाहिए कि मृतक की इच्छा का खुशी-खुशी पालन करें। इसमें किसी प्रकार की बहानेबाजी और ना-नुकुर दुनिया को छोड़कर चल देने वाले इंसान का अपमान तथा उसके साथ किया गया घोर विश्वासघात है। मेरे प्रिय पाठक मित्रो... हो सकता है आपको कम यकीन हो फिर भी देहदान और अंगदान को करने और  लोगों को प्रोत्साहित करने में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं। इसमें भी दो राय नहीं कि देहदान और अंगदान जबरन नहीं करवाया जा सकता। मृत्यु के बाद देहदान और अंगदान का फैसला कठिन तो होता है, लेकिन इससे जो संतुष्टि और खुशी मिलती है उसका पता उन परिवारों की सामने आने वाली प्रतिक्रियाओं और मनोभावनाओं से चलता रहता है...। पिछले दिनों विक्रम नामक युवक की दुर्घटना में दर्दनाक मौत हो गई। गमगीन घर परिवार के प्रमुख सदस्यों ने बेटे के अंगदान करने का तुरंत निर्णय लिया। अंगदाता विक्रम के पिता कहते हैं कि मुझे बहुत खुशी है कि मेरे पुत्र की आंख से कोई दृष्टिहीन देख पा रहा है। किसी के शरीर में उसका दिल धड़क रहा है। किसी को उसकी किडनी तो किसी के शरीर में उसका लिवर है। वह मरकर भी दूसरों के काम आया इससे बढ़कर हमारे लिए क्या खुशी हो सकती है। घर के जो सदस्य पहले राजी नहीं थे वे भी परम संतुष्ट हैं। अंगदाता अनीता के शब्द हैं, बेशक मेरी पत्नी सशरीर मेरे साथ नहीं, लेकिन वो अब भी इस दुनिया में जिंदा है। मैं यह नहीं जानना चाहता कि मेरी पत्नी के अंग किसे लगाये गए, लेकिन मुझे तो इस बात की प्रसन्नता सदैव रहेगी कि मेरी प्रिय पत्नी मौत के बाद भी चार अनजान लोगों को जीवन दे गई। तरुण की अस्सी वर्षीया मां अचानक चल बसीं। शव उसके सामने पड़ा था। अपनी ममतामयी मां के साथ बिताए असंख्य सुखद लम्हों को याद करते-करते उसके दिमाग में कभी मां के कहे शब्द कौंधे, अगर मुझे कुछ हो जाए तो बेटा आंसू मत बहाना। मेरे नाखून भी किसी के काम आएं तो उन्हें भी दान कर देना। रिश्तेदारों के विरोध की चिंता और परवाह न करना। तरुण ने उसी पल अंगदान के लिए तुरंत स्वीकृति दे दी। उनका कथन है कि मां के अंगदान के बाद उनके नहीं होने का एहसास मुझे बिल्कुल नहीं होता...।

    संतान हर मां के लिए सबसे अनमोल होती है। कोख में आने से लेकर उसके बढ़ने तक कितने ही सपने हर मां संजोए रखती है। ऐसे में जब जवान संतान किसी हादसे की शिकार हो जाए तो मां की दुनिया ही सूनी हो जाती है, लेकिन अपने इस दुख से उबरकर एक मां ने ऐसा फैसला किया कि चौबीस वर्ष की उम्र में जिंदगी से जंग हारनेवाला उसका लाल अब किसी की आंखों की रोशनी तो किसी का दिल बन चुका है। इस मां के फैसले से अपनी जिंदगी बचाने अंगदान की प्रतीक्षा कर रहे पांच लोगों को नई जिंदगी मिली है। 

    2023 में 16,542 अंगदान हुए, जिसमें अधिक महिलाएं जीवित दाता थीं। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के डेटा के अनुसार, पिछले साल 5651 पुरुषों और 9784 महिलाओं नें अंगदान किए। साथ ही कुल 18,378 अंग प्रत्यारोपण किए गए। इसमें 13,426 किडनी ट्रांसप्लांट सबसे अधिक थे। डेटा से पता चलता है कि 10 साल में अंगदान में लगभग चार गुना की बढ़ोतरी हुई है। सामने आए आंकड़ों से यह भी पता चला है कि मृत पुरुष दानवीरों की संख्या अधिक है, जिसमें 844 पुरुषों ने अंगदान किया, जबकि 255 महिलाओं ने। 2013 में जहां कुल अंगदानकर्ता 4990 थे, वहीं 2023 में यह बढ़कर 17168 हो गए। इसके बावजूद हमारे देश में अंगदान दर अभी भी प्रति दस लाख की आबादी में एक से नीचे है। गौरतलब है कि एक जीवित अंगदाता उसे कहते हैं जब वह प्रत्यारोपण के लिए किसी व्यक्ति को अन्य व्यक्ति को अंग या अंग का हिस्सा दान करता हैं। यह भी अत्यंत गौरतलब है कि सबसे आम जीवित अंगदान किडनी है। लिवर का एक हिस्सा भी दान किया जा सकता है। अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी नहीं कि कौन सा अंग कब तक ट्रांसप्लांट कर सकते हैं। दिल-4-6 घंटे में, लिवर 12 घंटे तक, किडनी-30 घंटे तक, आंख 6 घंटे तक, त्वचा 6 घंटे तक, आंतें व पैक्रियाज 4-6 घंटे में ट्रांसप्लांट किये जा सकते हैं।

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