Thursday, June 26, 2025

दहशत

यह हमारे युग का कटु सच है। दिन-ब-दिन और भयावह होते इस सच ने दहशत का माहौल बना दिया है। अभी-अभी यह खबर मेरे पढ़ने में आयी है : ‘‘भारत के शहर उन्नाव में अंडे-आमलेट की दुकान लगाने वाले रोहित नामक शख्स ने घर में मनपसंद खाना न मिलने पर अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों को ज़हर देकर मार डाला। यह शराबी रोज शराब पीकर घर आता था और पत्नी से मारपीट कर अपनी मर्दानगी का शर्मनाक प्रदर्शन करता था। उसके घर में पैर रखते ही डरे-सहमे बच्चे  छुप जाते थे।’’ कुछ लोग इस धारणा के साथ जीते हैं कि सब कुछ उनकी इच्छा के अनुसार हो। विपरीत हालातों से लड़ने की बजाय मरने-मारने पर उतारू होने वाले लोगों की संख्या इन दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही हैं। उन्हें अपनों की जान लेने में जरा भी देरी नहीं लगती। यह लोग आत्महत्या करने से भी नहीं घबराते। बीते हफ्ते मेरठ में बारहवीं कक्षा के एक छात्र ने अपने घर में खिड़की से रस्सी बांधकर फांसी लगा ली। आत्महत्या करने से पहले उसने बाकायदा एक पत्र लिखा, ‘अब मेरी जीने की इच्छा नहीं रही। इसलिए मौत का दामन थाम रहा हूं।’ आदित्य नाम के इस लड़के की खुदकुशी ने उसके माता-पिता को जो सदमा दिया है, उससे वे शायद ही उबर पाएंगे। आदित्य के मन में दसवीं के बाद भी फांसी के फंदे पर झूलने का विचार आया था, लेकिन तब परिजनों ने उसे संभाल लिया था। लेकिन फिर भी उसके मन-मस्तिष्क में अपनी जान लेने के विचार नहीं थमे। माता-पिता तथा अन्य करीबियों को उम्रभर का गम देकर इस दुनिया से चल बसे आदित्य ने अपने सुसाइड नोट में सभी से माफी मांगी है।

राजस्थान में दौसा जिले के लालपोट की रहने वाली डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या ने अपनों तथा बेगानों को चकित कर दिया। डॉक्टर तो दूसरों की जान बचाने के लिए होते हैं। अर्चना शर्मा ने भी अपने निजी अस्पताल में आशा की जान बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी, लेकिन प्रसव के बाद उनकी मौत हो गई। देश और दुनिया के बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज के दौरान ऐसी मौतें होती रहती हैं, लेकिन डॉक्टरों को हत्यारा तो नहीं मान लिया जाता। जिस औरत की इलाज के दौरान मौत हुई उसके परिजनों ने इसे ईश्वर की मर्जी माना और अस्पताल की एंबुलेंस से शव को घर ले आए थे। अंत्येष्टि की तैयारी की जा रही थी कि तीन-चार छुटभैया किस्म के नेता वहां आ धमके। उन्होंने मृतका के परिजनों को अस्पताल से मोटा मुआवजा लेने के लिए उकसाया। परिवारजनों की असहमति के बावजूद वे जबरन शव को फिर से अस्पताल ले आए। उनके साथ तमाशबीनों की अच्छी-खासी भीड़ भी थी। उन लोगों ने शव को अस्पताल के बाहर रखकर नारे लगाने प्रारंभ कर दिये, ‘डॉक्टर को गिरफ्तार करो। हत्या का मामला दर्ज करो। अस्पताल पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले लगवा दो।’ नारेबाजी के साथ-साथ डॉक्टर अर्चना शर्मा और उनके पति को गंदी-गंदी गालियां भी दी जाती रहीं। पुलिस वाले मूकदर्शक बन सड़क छाप नेताओं का सुनियोजित खेल देखते रहे। तीन-चार घंटे तक ब्लैकमेलरों की दादागिरी चलती रही। आजू-बाजू का कोई भी कुछ नहीं बोला। हैरानी की बात तो यह थी कि जिस महिला मरीज की मौत हुई उसके पति ने किसी भी तरह की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज नहीं करवायी। वह तो अदना-सा श्रमिक है। जो ठीक तरह से लिखना और पढ़ना तक नहीं जानता। उससे जबरन कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए। अंतत: धूर्त नेता और उनके कपटी चेले-चपाटे पुलिस पर दबाव बनाने में सफल रहे, जिससे पुलिस ने भी सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन की अनदेखी कर गायकोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना शर्मा के खिलाफ धारा 302 (हत्या) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। बिकाऊ खाकी वर्दी, लुंजपुंज कानून व्यवस्था तथा बद और बदमाश नेताओं ने एक होनहार डॉक्टर को प्रताड़ित कर इस कदर भयभीत कर दिया कि वह डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने कभी भी ऐसे अपमान और तमाशे की कल्पना नहीं की थी। उनके मन में बस यही विचार आते रहे कि अब तो उनकी डॉक्टरी पर कलंक लग गया है। वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है। उनके कारण पति और बच्चों को भी अपराधी समझा जा रहा है। वह हत्यारिन घोषित की ही जा चुकी हैं। बुरी तरह आहत डॉक्टर अर्चना शर्मा ने मौत का दामन थामने से पहले एक पत्र लिखा, ‘मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ। प्लीज मेरे मरने के बाद इन्हें परेशान न किया जाए। मैंने कोई गलती नहीं की, किसी को नहीं मारा। मैंने इलाज में भी कोई कमी नहीं की। कृपया डॉक्टरों को इतना प्रताड़ित करना बंद करो। मेरी मौत शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे।’’ यह कितनी शर्मनाक और कायराना हकीकत है कि जब नेता, ब्लैकमेलर पत्रकार, डॉक्टर अर्चना शर्मा के अस्पताल की घेराबंदी कर नारेबाजी कर रहे थे तब किसी ने अर्चना की साथ नहीं दिया। कोई खबर नहीं ली। लेकिन जब वह चल बसीं तो सभी उनके हमदर्द बन गये।

डॉक्टर अर्चना की खुदकुशी के कुछ दिन बाद महानगर के स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा आर्या ने फांसी लगा ली। मात्र 13 साल की इस बच्ची की जब नोटबुक खंगाली गई तो उसमें जगह-जगह लिखा था ‘आई लव यू डेथ’, मुझे मौत से प्यार है, मुझे मरना अच्छा लगता है। सुसाइड नोट में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर दुनिया को सदा-सदा के लिए छोड़कर चल देने वाली लड़की के मां-बाप और भाई उसकी आत्महत्या की वजह से अनजान और हतप्रभ हैं! लेकिन, हतप्रभ कर देने वाली बात यह भी है कि लड़की लगातार अपनी नोट बुक्स में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर इशारा करती रही और मां-बाप अनजान रहे! इसी तरह से आदित्य पहले भी खुदकुशी की राह पकड़ने के संकेत दे चुका था, लेकिन माता-पिता ने भी उसका मानसिक उपचार नहीं कराया। 

जब जिन्दगी अच्छी नहीं चल रही होती है तो इंसान का विचलित और परेशान होना स्वाभाविक है। यह भी सच है कि इंसान चुभने वाली बातों और तानों से अक्सर निराश और हताश हो जाता है, लेकिन वह यह क्यों भूल जाता है कि लोगों का तो काम ही है मीन-मेख निकालना। अच्छाइयों को नजरअंदाज कर कमियों और बुराइयों के ढोल पीटना। मरना तो एक न एक दिन सभी को है, लेकिन किन्हीं भी हालातों में तथा किसी भी उम्र में की गयी खुदकुशी उन्हें अथाह पीड़ा और बदनामी की सौगात दे देती हैं, जिन्हें उम्र भर के लिए रोने-बिलखने के लिए छोड़ दिया जाता है...।

Thursday, June 19, 2025

छपरी

ऐसा लग रहा है, न जाने कब से नाराज और गुस्सायी महिलाओं ने इस दौर में पुरुषों से बदला लेने का भरपूर साहस जुटा लिया है। महिलाओं के गुस्से के प्रकटीकरण के तौर-तरीकों पर आम और खास लोग हैरान हैं। यह अनियंत्रित रोष, आक्रोश कहां पर जाकर थमेगा, कुछ भी लिखना-बताना मुश्किल है। यह भी सच है कि विद्रोही औरतें पुरुषों को ज्यादा पसंद नहीं आतीं। इक्कीसवीं सदी में भी अधिकांश पुरुष चुपचाप समझौता करने तथा कम बोलने वाली नारियों को पसंद करते हैं। उनका अत्याधिक मुखर होना पुरुषों को किसी चुनौती से कम नहीं लगता। अब वो वक्त नहीं रहा जब महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की खबरें ही पढ़ने-सुनने में आती थीं। अब तो महिलाओं के हिंसक और बेकाबू होने की खबरें भी सुर्खियां बटोर रही हैं। महिलाएं जहां अपनी सुरक्षा के लिए भी किसी भी हद तक जा रही हैं। वहीं, अपना आतंकी चेहरा भी दिखा रही हैं, ‘बिहार में मुजफ्फरपुर में साहूकार युवक ने एक महिला को कुछ रुपये ब्याज पर दिए थे। निर्धारित समय पर जब भुगतान नहीं हुआ तो युवक महिला के घर जा पहुंचा। महिला को घर में अकेली देख उसकी नीयत बिगड़ गई और वह उससे जबरदस्ती करने लगा। महिला के पुरजोर विरोध करने पर भी जब वह नहीं माना तो महिला ने युवक के प्राइवेट पार्ट को चाकू से काट डाला। महिला यदि कमजोर पड़ जाती तो युवक उस पर आसानी से बलात्कार कर गुजरता, लेकिन नारी का यह भयावह अपराध कर्म! उत्तर प्रदेश के एक हाईवे पर स्थित फ्यूल सेंटर पर पति, पत्नी और उनकी बेटी अपनी कार में सीएनजी भरवाने के लिए पहुंचे। सीएनजी डलवाते समय सुरक्षा की दृष्टि से गाड़ी से उतरना बहुत जरूरी होता है। इसीलिए सीएनजी भरवाने के दौरान सेल्समैन ने उनसे गाड़ी से उतरने को कहा, लेकिन गाड़ी में बैठे तीनों ने इसे अपना अपमान मानते हुए उतरने से मना कर दिया। उन्हें अंदर बैठे रहकर गैस डलवाने के खतरे के बारे में बताया गया। फिर भी वे गाड़ी से नहीं उतरे। ऐसे में उनकी जान की फिक्र करते हुए सेल्समैन ने सीएनजी डालने से साफ-साफ मना कर दिया। सेल्समैन का नियम-कायदे का पक्का होना उन्हें रास नहीं आया। वे उससे भिड़ गये और गाली-गलौज करने लगे। सेल्समैन के विरोध करने पर युवा बेटी का खून खौल उठा और उसने सेल्समैन के सीने पर रिवॉल्वर तानते हुए वहीं के वहीं मौत के घाट उतारने की धमकी दे दी। पुलिस ने वहां पहुंचकर किसी तरह से युवती को शांत किया।

हम सबको वो जमाना भी अच्छी तरह से याद है, जब मां-बाप अपनी बेटियों की शादी अपने मनपसंद लड़कों से कर खुश हो लेते थे। बेटियां भी चुपचाप विदा हो जाती थीं, लेकिन अब अधिकांश शादी-ब्याह के रिश्ते बेटियों की मर्जी और स्वीकृति से होने लगे हैं। स्त्रियों पर अपना सर्वोपरि अधिकार जमाने और उन्हें अपनी सम्पति मानने की मां-बाप तथा पतियों की सोच की बड़ी तेजी से हत्या के साथ-साथ महिलाओं के द्वारा अपने पैरों पर भी कुल्हाड़ी मारी जाने लगी है। मध्यप्रदेश के शहर इंदौर की सोनम आत्मनिर्भर थी। पिता के प्लायवुड के कारोबार में साथ देती थी। माता-पिता ने बहुत सोच-समझकर उसकी शादी इंदौर के ही युवा ट्रांसपोर्ट कारोबारी से करवा दी। शादी से पहले सोनम ने कोई विरोध नहीं किया। चुपचाप सात फेरे ले लिये। सोनम के संदिग्ध आचरण के बारे में उसकी मां को पूरी खबर थी। उसे यह भी पता था कि वह उन्हीं के यहां काम करने वाले युवक राज कुशवाह को चाहती है, लेकिन राज दूसरी जाति का था, इसलिए मां के साथ-साथ पिता को भी वह शादी के लिए उपयुक्त नहीं लगा। शादी के बाद षडयंत्रकारी सोनम ने हनीमून के लिए अपने पति पर मेघालय जाने का दबाव बनाया, जबकि पति राजा रघुवंशी का वहां जाने का बिल्कुल मन नहीं था। 11 मई को दोनों की धूमधाम से शादी हुई थी और 23 मई को हनीमून के लिए मेघालय रवाना हो गए। अगले दिन झरने के पास एक खाई में राजा का शव मिला। सोनम ने परिवारजनों को गुमराह करने की हजारों कोशिशें की। कई दिनों तक कई-कई झूठ बोले। अंतत: हनीमून के दौरान पति-पत्नी के रिश्ते की नृशंस हत्या का सच बाहर आ ही गया। इस हत्याकांड में सोनम के प्रेमी राज की प्रमुख भूमिका रही। सोनम के परिवार ने बार-बार कहा कि, दोनों में भाई-बहन जैसा रिश्ता है। सोनम राज को राखी बांधती थी। राज सोनम से पांच साल छोटा है। इससे कुछ हफ्ते पहले मेरठ में सौरभ राजपूत हत्याकांड में पत्नी मुस्कान और उसके प्रेमी साहिल का खूनी हाथ सामने आया। इन दोनों हत्याकांडों की अंदरूनी सच्चाई ने 2006 के मुन्नार केस की याद दिला दी। चेन्नई के रहने वाले 30 वर्षीय अनंतरमन और विद्यालक्ष्मी बड़े तामझाम के साथ परिणय सूत्र में बंधे थे। शादी के 9 दिन बाद दोनों हनीमून मनाने के लिए मुन्नार गये। अगले दिन अनंतरमन को मौत के घाट उतार दिया गया। विद्या ने पुलिस को भटकाने के बहुतेरे प्रयास किये। अज्ञात लोगों के द्वारा जेवर लूटने और पति की हत्या की जो कहानी उसने सुनायी वह किसी को भी हजम नहीं हुई। जांच में स्पष्ट हो गया कि विद्या स्कूल के दिनों में जिस युवक को दिलोजान से चाहती थी उसी से शादी करना चाहती थी, लेकिन परिवार वाले नहीं माने। विद्या के प्रेमी का गरीब तथा अनंतरामन का अमीर होना शादी में बाधक बना। विद्या के प्रेमी ने अपने किसी मित्र के साथ मिलकर अनंतरामन का काम तमाम कर दिया। अपने पति का कत्ल करने और करवाने वाली नारियों का यह सच भी अत्यंत हैरान करनेवाला है कि अधिकांश के कातिल प्रेमी उनके पतियों के समकक्ष कहीं भी नहीं ठहरते। न धन में, न तन में। आड़ी-तिरछी शक्ल सूरत और संदिग्ध व्यवहार। ऐसे युवकों को ‘छपरी’ कहा जाता है, जो दिखावा पसंद होने के साथ-साथ चालबाज तथा घोर नशेड़ी भी होते हैं। इनके चरित्र में कही कोई गरिमा और गहराई नहीं होती। समाज की चिंता और परवाह नहीं करने वाले ये ‘छपरी’ इन दिनों विद्रोही लड़कियों की पसंद बन रहे हैं। मेरठ के हत्यारे मुस्कान और साहिल नशे के आदी हैं। जेल में भी शराब, गांजा और चरस की मांग करते रहते हैं। सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले वीडियो में पति की हत्यारिन मुस्कान बार-बार फरियाद करती दिखी कि बिना नशा किये उसे नींद नहीं आती। मुस्कान साहिल पर इसलिए मर मिटी थी, क्यूंकि वह सौरभ से ज्यादा उसकी चिंता करता था। सौरभ के पास उतना समय ही नहीं होता था जो मुस्कान के चेहरे पर हर वक्त मुस्कान ला सके। साहिल के पास मुस्कान को खुश करने के अलावा और कोई काम नहीं था। देश के एक जाने-माने मनोरोग विश्लेषक का कहना है कि कई लड़कियां खुलकर जीना चाहती हैं पर विभिन्न बंदिशों की वजह से जी नहीं पातीं। ये लड़कियां उन लड़कों पर तुरंत फिदा हो जाती हैं, जो बेबाक और बिंदास होते हैं। मरने-मारने पर तुरंत उतारू हो जाते हैं। कल की चिंता छोड़ आज में खुलकर जीते हैं। अपने नये नवेले पति को नशे का हाई डोज देकर पहाड़ी से नीचे फेंकने वाली सोनम के साथी राज के बारे में बार-बार कहा गया कि वह तो उससे राखी बंधवाता था। राखी बंधवाने वाला किसी पर गलत नज़र कैसे डाल सकता है? आज से लगभग 45 वर्ष पूर्व की आंखों देखी हकीकत को मैं कभी भी नहीं भूल सकता। उन दिनों मैं छत्तीसगढ़ के कटघोरा में था। वहां श्रीवास्तव नामक एक शिक्षक थे। उन्हीं के साथ हाईस्कूल में एक बंगाली खूबसूरत युवा टीचर भी थीं। शिक्षक श्रीवास्तव शादीशुदा थे और शिक्षिका कुंआरी। एक साथ पढ़ाते-पढ़ाते दोनों एक दूसरे के जिस्म को पढ़ने लगे। उनके इश्क के चर्चे भी बस्ती में होने लगे। शिक्षक ने इसे दुश्मनों का षडयंत्र कहकर अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश की, लेकिन पत्नी की शंका में कोई कमी नहीं आयी। मामला बढ़ता देख एक दिन शिक्षक महोदय ने शिक्षिका को अपने घर बुलवाया और पत्नी के समक्ष कलाई पर राखी बंधवा ली। अब तो पत्नी बेफिक्र हो गई। वक्त बीतता गया लोगों ने भी दोनों पर ध्यान देना बंद कर दिया। कुछ महीने के बाद बहुत जबरदस्त धमाका हो गया। शिक्षिका के गर्भवती होने से श्रीमती श्रीवास्तव माथा पिटती रह गईं। राखी को ढाल बनाकर अपनी प्रेमिका से सतत जिस्मानी रिश्ते बनाये रखने वाले शिक्षक ने यह ऐलान कर सभी को चौंका दिया कि हम दोनों तो बहुत पहले से विवाह बंधन में बंध चुके हैं। अब जिसको जो सोचना हो... सोचता रहे।

Thursday, June 12, 2025

दीवानों की जान

अभी तक तो यही पढ़ने-सुनने में आ रहा था कि किसी प्रवचनकर्ता के यहां उमड़ी भीड़ में भगदड़ मचने के कारण पच्चीस-पचास श्रद्धालु चल बसे। मंदिर में पूजा करने के लिए इस कदर लोग जमा हो गए कि, उन्हें संभलना मुश्किल हो गया और फिर लोग एक दूसरे को कुचलते चले गए और बहुत भयावह हादसा हो गया। विभिन्न मेले-ठेलों में भी भीड़ के बेकाबू होने के कारण मौते होने की खबरों से हम और आप अक्सर रूबरू होते रहते हैं। कुंभ मेले में हुई भगदड़ के कारण हुई मौतों को तो कभी भुलाया नहीं जा सकता। इस ऐतिहासिक आयोजन में तीस से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ में दब-कुचलकर मौत हो गई। यह सरकारी आंकड़ा था। सरकारी आंकड़े अक्सर विश्वसनीय नहीं होते। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मृतकों की संख्या 100 से ज्यादा थी। क्रिकेट की वजह से इस तरह से जानें जाने की खबर हमने तो पहली बार सुनी। रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (आरसीबी) की जीत के जश्न ने 11 क्रिकेट प्रेमियों की जान ले ली और लगभग 40 लोगों को घायल होकर अस्पताल की शरण लेनी पड़ी। अधिकांश भारतीयों की क्रिकेट के प्रति दीवानगी से सभी वाकिफ हैं, लेकिन आईपीएल चैंपियन बेंगलुरुरॉयल चैलेंजर्स की विजय परेड के दौरान चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास मची भगदड़ में हुए हादसे ने सभी के दिल को दहला और रूला दिया। अनियंत्रित भीड़ की अफरातफरी में अपनी सदा-सदा के लिए जान खोने वाली देवी नामक युवती क्रिकेट और विराट कोहली की जबरदस्त प्रशंसक थी। शहर में होने वाला कोई भी क्रिकेट मैच मिस नहीं करती थी, लेकिन बेंगलुरु रॉयल चैलेंजर्स की विक्ट्री परेड वाले दिन वह टिकट से वंचित रह गई थी। फिर भी अपने दफ्तर के बॉस से मिन्नतें कर उसने छुट्टी ली और अपना लैपटॉप लावारिस हालत में टेबल पर छोड़ फौरन स्टेडियम की तरफ दौड़ पड़ी। खुशी के समंदर में गोते लगाती देवी को उम्मीद थी कि क्रिकेट के नये भगवान विराट कोहली से करीब से मिलने का अवसर उसे जरूर मिलेगा। उसने ऑटोग्राफ बुक भी संभाल कर रख ली थी। देवी ने ऑफिस से निकलते ही अपने दोस्त को मैसेज कर दिया था कि वह स्टेडियम जाने के लिए निकल पड़ी है। यदि उसे भी आना हो तो तुरंत आ जाए। ये देवी की आखिरी आवाज थी, जो उसके दोस्त ने सुनी। उसके बाद तो गमगीन होने के सिवा उसके पास कोई चारा नहीं था। स्टेडियम के बाहर अथाह भीड़ थी। देवी ने टिकट पाने के लिए भी भरपूर हाथ-पैर मारे, लेकिन असफल रही। 40 हजार लोगों की क्षमता वाले स्टेडियम में दो लाख से अधिक भीड़ का जमावड़ा था। फिर भी अति उत्साहित देवी जोखिम लेने पर तुल गई। देवी की तरह हर किसी को स्टेडियम के अंदर जाने की जल्दी थी। इसी बेतहशा भागम-भाग ने ऐसी भगदड़ मचायी कि देखते ही देखते लोग एक-दूसरे पर गिरने और दबने लगे। कुछ लोग ऐसे गिरे कि दम घुटने के कारण उठ ही नहीं पाये। उन्हीं में देवी भी शामिल थी। 

जिन 11 लोगों की जान गई, उनमें सभी की उम्र 33 साल से कम थी। इन्हीं में एकमात्र 13 साल का लड़का भी था। इस क्रिकेट के दीवाने बेटे की मौत की खबर सुनकर उसकी मां बार-बार बेहोश होती रही। अब तो उसकी सारी उम्र रो-रोकर बीतने वाली है। इसी तरह से पानीपूरी बेचने वाले एक उम्रदराज पिता ने भी अपने 18 वर्षीय बेटे को क्रिकेट की आंधी में खो दिया। यह संस्कारित बेटा अपने पिता के काम में नियमित हाथ बंटाता था। कई बार जब पिता बीमार होते या शहर से दूर होते तो वह खुद पानीपूरी का ठेला लगाता था। सरकार ने जब अन्य मृतकों के साथ-साथ इस बेटे के लिए भी 10 लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की तो दुखी और निराश पिता के इस कथन ने सभी संवेदनशील भारतीयों के दिल को झकझोर दिया, ‘मैं 1 करोड़ रुपये देने को तैयार हूं, लेकिन क्या इससे मेरा बेटा वापस आ जाएगा?’ इस पिता के उन सपनों की ही हत्या हो गई हैं जो उसने अपने परिश्रमी आज्ञाकारी बेटे के लिए देखे थे। बेटा, पिता के सपनों को साकार करने की राह पर बढ़ रहा था कि अंधी और जुआरी क्रिकेट ने उसकी जान ले ली। स्टेडियम के बाहर धक्का-मुक्की और अफरातफरी होने से जब लाशें बिछ रही थीं, लोग घायल हो रहे थे तब अंदर नाचते-गाते हुए जश्न मनाया जा रहा था। खिलाड़ियों से ज्यादा तो क्रिकेट के दीवानों को मौज-मस्ती सूझ रही थी। जीत की ट्राफी हाथ में लेते ही कप्तान विराट कोहली के फफक-फफक रोने पर कई लोग खुद को आंसू बहाने से नहीं रोक पाये। कोहली और उनकी पत्नी अभिनेत्री अनुष्का शर्मा का अत्यंत भावुक होकर गले लगना उनके प्रशंसकों के लिए यादगार बन गया। सच तो यह है कि करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों का क्रिकेटरों से लगाव कोई नई बात नहीं है। नई बात तो हादसे में हुई 11 लोगों की मौत है। ये मौतें पुलिस के निकम्मेपन और भीड़ प्रबंधन में हुई चूक का नतीजा हैं। इन मौतों ने पूरे देश को गमगीन कर दिया। यदि सुरक्षा इंतजामों में खामियां नहीं होतीं तो दिल दहलाने वाली यह दुर्घटना नहीं होती। क्रिकेट के पहले भगवान सचिन तेंदुलकर के तो होश ही उड़ गए। उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा, ‘बेंगलुरु के स्टेडियम में जो कुछ हुआ, वह दुखद से भी अधिक है। मेरी संवेदनाएं हर पीड़ित परिवार के साथ हैं।’ हरभजन सिंह ने अपना दर्द इन शब्दों में बयां किया, ‘इस घटना ने खेल की भावना पर एक काली चादर डाल दी है।’ फिल्म अभिनेता सुनील शेट्टी ने इन शब्दों में अपनी संवेदना व्यक्त की, ‘खुशी का एक पल...अकल्पनीय घटना में बदल गया। जान गंवाने वालों के बारे में सुनकर मेरा तो दिल ही टूट गया।’ क्रिकेट किंग विराट कोहली को आईपीएल ट्रॉफी हाथ में थामे सारी दुनिया ने रोते हुए तो देखा, लेकिन उन्होंने मृतकों के परिजनों से मिलकर संवेदना और अपनत्व के दो शब्द बोलना जरूरी नहीं समझा! घटना के अगले दिन ही बीवी बच्चों के साथ लंदन के लिए उड़ गए। यह तो निष्ठुरता की इंतिहा और घोर मतलब परस्ती है। क्रिकेट की बदौलत अरबों-खरबों कमाने वाले विराट का दिल अब भारत में नहीं लगता। उन्होंने लंदन में अपना आलीशान आशियाना बना लिया है। वहीं उन्हें सुकून और शांति मिलती है। भारत में तो क्रिकेट के पागल-दीवाने प्रशंसक उन्हें मौका पाते ही घेर लेते हैं। इससे उनका दम घुटने लगता है। हमारे देश के शासक भी बहुत बेरहम, बदतमीज और बेलगाम हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस हादसे को महाकुंभ में मची भगदड़ में जोड़ते हुए यह कहने में देरी नहीं लगायी कि कुंभ मेले में भी तो भगदड़ मचने से 50-60 लोग मारे गए थे...। यह कौन सी बड़ी बात है। जिनकी जवाबदेही बनती है, वही जब अपने बचाव के लिए ऐसे घटिया चौंकाने वाले बयान देने लगें तो आप ही सोचिए कि हादसों और दुर्घटनाओं पर लगाम लगेगी या बेकसूर बस यूं ही कीड़े-मकोड़ों की तरह मरते ही रहेंगे?

Thursday, June 5, 2025

परोपकार...तिरस्कार

मानव, महामानव और दानव। इंसान की पहचान उसकी खूबसूरत शक्ल से नहीं, उसके कर्मों से होती है। अमूमन दिखने-दिखाने में तो लगभग सभी स्त्री-पुरुष एक से होते हैं, लेकिन किसी की एक सार्थक पहल और परोपकारी सोच, संवेदनशीलता उसे देवता के समक्ष खड़ा कर देती है। लोगों का हुजूम उसके समक्ष नतमस्तक होने को विवश हो जाता है। बात उन दिनों की है, जब महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पूरी तरह से शराब पर पाबंदी थी। फिर भी कुछ अपराधी अवैध शराब बेचने से बाज नहीं आ रहे थे। मुफ्तखोरों को दूसरा कोई मेहनत मजदूरी करने वाला काम रास नहीं आता था। बेईमानी और अपराध कर्म से वे दूर ही नहीं होना चाहते थे। इससे उनके बाल-बच्चों पर भी बुरा असर पड़ रहा था, लेकिन उन्हें इसकी कोई चिंता नहीं थी। शहर के एक आदतन अपराधी, अवैध शराब विक्रेता को तत्कालीन पीएसआई मेघा गोखरे ने गिरफ्तार कर लिया। उसे थाने में लाये अभी दो-तीन घंटे ही बीते थे कि तभी पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाला एक बच्चा अपने पिता की जमानत के लिए आ पहुंचा। 

उसके फर्राटे से अंग्रेजी में बात करने के आकर्षक अंदाज से मेघा स्तब्ध रह गईं। उन्होंने उससे कहा कि अभी तुम बच्चे हो। तुम्हारी जमानत पर तुम्हारे पिता को छोड़ना संभव नहीं है, लेकिन बच्चा जिद पर अड़ा रहा। मेघा ने बड़े प्यार से उसे अपने करीब बिठाते हुए पूछा कि, क्या तुम नियमित स्कूल जाते हो? तब उसके पिता ने सिर झुकाकर बताया कि मेरे कहने पर अपने स्कूल बैग में शराब की बोतलें रख कर नियमित ग्राहकों को पहुंचाने जाता है। एक दिन स्कूल वालों ने उसके बैग में जब शराब की बोतल देखी तो उन्होंने उसी दिन से हमेशा-हमेशा के लिए स्कूल से निकाल दिया है। बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ कहा, पर मैडम जी इसी काम से ही उनके घर का खर्चा चलता है। वैसे भी अपने पिता की सहायता करना उसका पहला फर्ज है। वहीं बच्चे के पिता को यकीन था कि बेटे की उम्र कम होने की वजह से उसे सजा नहीं मिलेगी। पुलिस उस पर दया कर चलता कर देगी। मेघा को बच्चे का अपराधी होना आहत कर गया। उन्होंने तुरंत स्कूल के प्रिंसिपल से मुलाकात की और बच्चे के हित में कदम उठाने का निवेदन किया। प्रिंसिपल बोले, इसमें सुधार आना मुश्किल है। यह पूरी तरह से बिगड़ चुका है। कई बार मना करने के बावजूद बैग में शराब की बोतल लेकर आता था। इसकी वजह से दूसरे बच्चे भी बिगड़ रहे थे। मेघा की मिन्नत का मान रखते हुए अंतत: प्रिंसिपल ने बच्चे को स्कूल में रख लिया। कालांतर में बच्चे के पिता की भी जमानत हो गई। मेघा ने उसे पांच हजार रुपए देते हुए कहा कि यदि बच्चे का भला चाहते हो तो तुम शराब बेचना बंद कर मछली बेचना प्रारंभ कर दो। उसने मेघा की सलाह का पालन करते हुए शराब बेचनी छोड़ दी और बच्चे की पढ़ाई पर ध्यान देने लगा। स्कूल की पढ़ाई के पश्चात बच्चे को चंद्रपुर स्थित राजीव गांधी इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिल गया। अंतत: उसकी मेहनत रंग लाई और वह इंजीनियर बन गया। 2023 में हैदराबाद की एक कंपनी में अच्छी खासी पगार पर नौकरी भी मिल गई। वर्तमान में वह दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में लाखों रुपए के वेतन पर काम कर रहा है। बच्चे के इंजीनियर बनते-बनते मेघा भी तरक्की करते हुए पीएसआई से एपीआई बन गईं। उस बच्चे ने कई बार उनसे संपर्क करने का प्रयास किया, लेकिन मोबाइल नंबर बदल जाने के कारण बात नहीं हो सकी। अभी हाल में जब मेघा एक मामले के सिलसिले में मूल गईं तो उस बच्चे के पिता से अचानक मुलाकात हो गई। तब पिता ने उन्हें बताया कि शराब बेचने वाला बच्चा अब इंजीनियर बन चुका है। मेरा मछली का कारोबार भी बहुत बढ़िया चल रहा है। यह आपके प्रयास और उपकार का ही प्रतिफल है। बेटा आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाला है और आपसे मिलने को अत्यंत उत्सुक है...।

भिखारी कौन होते हैं? किसी के लिए भी जवाब देना मुश्किल नहीं। अधिकांश भिखारी अपंग और असहाय होते हैं। कोई काम धाम नहीं कर पाते, इसलिए कटोरा हाथ में लेकर भीख मांगने निकल पड़ते हैं। लोग उनकी हालत पर रहम खाकर चंद सिक्के उसके कटोरे में डाल देते हैं। इसी से जैसे-तैसे उनका जीवन कटता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके हाथ-पैर सलामत हैं, लेकिन निहायत बेशर्मी के साथ भीख मांगते फिरते हैं। उन्हें लोगों के दुत्कारने और फटकारने से कभी कोई लज्जा नहीं आती। उनके लिए भीख आसानी से पैसा कमाने का टिकाऊ धंधा है। ऐसे कुछ धंधेबाज प्रतिदिन हजारों रुपए पीट लेते हैं। उनके बच्चे अच्छे स्कूल कॉलेजों में पड़ते है। भीख की बदौलत फ्लैट, कार और दुकानों के मालिक बने इन भिखारियों को आखिर कहा तो भिखारी ही जाता है और मान-सम्मान भी इन्हें नहीं मिलता।

देश की राजधानी दिल्ली में जीतेश कुमार वर्षों से बसों में भीख मांगते नजर आते हैं, लेकिन लोग उनका अथाह मान-सम्मान करते है और उनका मनोबल बढ़ाते हैं। हर तरह से स्वस्थ और सेहतमंद जीतेश बसों में यात्रा करने वाले स्त्री-पुरुषों, युवकों और बच्चों से भीख में मात्र दस रुपए देने की मांग करते हैं। स्वेच्छा से कुछ सवारियां इससे ज्यादा भी दे देती हैं। जीतेश भीख में मिले एक भी पैसे का अपने लिए इस्तेमाल नहीं करते। मात्र कक्षा दूसरी तक  पढ़े जीतेश मासूम नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए यह काम करते हैं।बदरपुर इलाके में पिछले दस वर्षों से स्कूल चलाते आ रहे जीतेश की नेक नीयत को देखकर एक शिक्षा-प्रेमी, दरियादिल व्यक्ति ने अपने मकान का एक हिस्सा उन्हें स्कूल चलाने के लिए दे दिया है। वह महीने में 12 से 15 दिन विभिन्न बसों में भिक्षाटन करते हैं। हर रोज ढाई से तीन हजार रुपए बड़ी आसानी से मिल जाते हैं। उनके स्कूल में नर्सरी से कक्षा पांचवीं तक पढ़ाने वाले शिक्षक नाममात्र का वेतन लेते हैं। कुछ स्वेच्छा से बिना वेतन अपनी सेवाएं देते हैं। झुग्गी झोपड़ी में रहनेवाले गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त में कॉपी-किताब भी उपलब्ध करायी जा रही है। जीतेश अब तक 500 से ज्यादा बच्चों को पांचवी तक पढ़ाने के बाद आगे की शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल में दाखिला करा चुके हैं...। पुलिस अधिकारी मेघा गोखरे और शिक्षा की अलख जलाते जीतेश कुमार पर जनहित के लिए किसी ने दबाव नहीं डाला था। परोपकार करने के पीछे उनकी कोई मजबूरी भी नहीं थी। वे भी अपनी राह पर चल सकते थे, जिस पर अन्य लोग चलते हैं। 

अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टरों, नर्सों तथा अन्य कर्मचारियों को मरीजों की देखरेख के लिए मोटी-मोटी तनख्वाहें मिलती हैं। सतर्क रहकर अपनी डयूटी निभाना उनका प्राथमिक कर्तव्य है, लेकिन वे क्या कर रहे हैं! जो सच सामने है वह तो...बेहद दु:ख के साथ गुस्सा भी दिलाता है। मन होता है कि इनकी जीभरकर धुनाई की जाए और नौकरी भी छीन ली जाए। कानपुर के निकट स्थित एक ग्राम में सुनील नायक नामक शख्स की गर्भवती पत्नी सरिता को रात को प्रसव पीड़ा हुई। रात को 1 बजे सुनील ने पत्नी को कानपुर के मेडिकल कॉलेज के महिला अस्पताल में भर्ती करवा दिया। रात 2 बजे प्रसव पीड़ा बढ़ने पर उन्होंने इधर-उधर देखा, लेकिन उन्हें अस्पताल का कोई कर्मचारी नजर नहीं आया। उन्होंने दो कमरों में सो रहे कर्मचारियों को जगाने का प्रयास किया। मगर कोई भी नहीं उठा। इसी दौरान गर्भवती का प्रसव हो गया। शर्मनाक और पीड़ादायी हद तो तब हुई जब प्रसव के तुरंत बाद नवजात बेड के किनारे रखे कचरे के डिब्बे में जा गिरा और देखते ही देखते उसने गंदगी में ही दम तोड़ दिया। बिहार की राजधानी पटना के सरकारी अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के हड्डी विभाग में भर्ती उम्रदराज अवधेश प्रसाद की उंगलियों को चूहों ने बुरी तरह से कुतर कर लहूलुहान कर दिया। वे रात भर दर्द के मारे तड़पते रहे। अवधेश मधुमेह के मरीज हैं और अपने टूटे हुए दाएं पांव का इलाज कराने आये थे। किसी के भी मन में यह प्रश्न खलबली मचा सकता है कि आखिर जब चूहे ने मरीज का पांव कुतरना प्रारंभ किया तो उन्हें मालूम क्यों नहीं चला? दरअसल अवधेश डायबिटिक न्यूरोपैथी से ग्रसित हैं, जिसका सबसे ज्यादा असर पांव पर पड़ता है। डायबिटिक न्यूरोपैथी में अलग-अलग स्टेज हैं। इसमें एक स्टेज ऐसी भी आती है, जब मरीज के पांव का सेन्सेशन खत्म हो जाता है। यानी पांव में कुछ भी हो उसे अनुभव नहीं होता। यह तो हुई असहाय बेबस मरीज की हकीकत और मजबूरी लेकिन सरकारी अस्पताल के डॉक्टर, नर्सें एवं अन्य कर्मचारी क्यों अंधे, बहरे और दिमागी तौर पर लकवाग्रस्त हो जाते हैं कि उन्हें अपने कर्तव्य के स्थान पर हरामखोरी रास आती है?