Thursday, June 26, 2025

दहशत

यह हमारे युग का कटु सच है। दिन-ब-दिन और भयावह होते इस सच ने दहशत का माहौल बना दिया है। अभी-अभी यह खबर मेरे पढ़ने में आयी है : ‘‘भारत के शहर उन्नाव में अंडे-आमलेट की दुकान लगाने वाले रोहित नामक शख्स ने घर में मनपसंद खाना न मिलने पर अपनी पत्नी और दो मासूम बच्चों को ज़हर देकर मार डाला। यह शराबी रोज शराब पीकर घर आता था और पत्नी से मारपीट कर अपनी मर्दानगी का शर्मनाक प्रदर्शन करता था। उसके घर में पैर रखते ही डरे-सहमे बच्चे  छुप जाते थे।’’ कुछ लोग इस धारणा के साथ जीते हैं कि सब कुछ उनकी इच्छा के अनुसार हो। विपरीत हालातों से लड़ने की बजाय मरने-मारने पर उतारू होने वाले लोगों की संख्या इन दिनों कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही हैं। उन्हें अपनों की जान लेने में जरा भी देरी नहीं लगती। यह लोग आत्महत्या करने से भी नहीं घबराते। बीते हफ्ते मेरठ में बारहवीं कक्षा के एक छात्र ने अपने घर में खिड़की से रस्सी बांधकर फांसी लगा ली। आत्महत्या करने से पहले उसने बाकायदा एक पत्र लिखा, ‘अब मेरी जीने की इच्छा नहीं रही। इसलिए मौत का दामन थाम रहा हूं।’ आदित्य नाम के इस लड़के की खुदकुशी ने उसके माता-पिता को जो सदमा दिया है, उससे वे शायद ही उबर पाएंगे। आदित्य के मन में दसवीं के बाद भी फांसी के फंदे पर झूलने का विचार आया था, लेकिन तब परिजनों ने उसे संभाल लिया था। लेकिन फिर भी उसके मन-मस्तिष्क में अपनी जान लेने के विचार नहीं थमे। माता-पिता तथा अन्य करीबियों को उम्रभर का गम देकर इस दुनिया से चल बसे आदित्य ने अपने सुसाइड नोट में सभी से माफी मांगी है।

राजस्थान में दौसा जिले के लालपोट की रहने वाली डॉक्टर अर्चना शर्मा की आत्महत्या ने अपनों तथा बेगानों को चकित कर दिया। डॉक्टर तो दूसरों की जान बचाने के लिए होते हैं। अर्चना शर्मा ने भी अपने निजी अस्पताल में आशा की जान बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी थी, लेकिन प्रसव के बाद उनकी मौत हो गई। देश और दुनिया के बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज के दौरान ऐसी मौतें होती रहती हैं, लेकिन डॉक्टरों को हत्यारा तो नहीं मान लिया जाता। जिस औरत की इलाज के दौरान मौत हुई उसके परिजनों ने इसे ईश्वर की मर्जी माना और अस्पताल की एंबुलेंस से शव को घर ले आए थे। अंत्येष्टि की तैयारी की जा रही थी कि तीन-चार छुटभैया किस्म के नेता वहां आ धमके। उन्होंने मृतका के परिजनों को अस्पताल से मोटा मुआवजा लेने के लिए उकसाया। परिवारजनों की असहमति के बावजूद वे जबरन शव को फिर से अस्पताल ले आए। उनके साथ तमाशबीनों की अच्छी-खासी भीड़ भी थी। उन लोगों ने शव को अस्पताल के बाहर रखकर नारे लगाने प्रारंभ कर दिये, ‘डॉक्टर को गिरफ्तार करो। हत्या का मामला दर्ज करो। अस्पताल पर हमेशा-हमेशा के लिए ताले लगवा दो।’ नारेबाजी के साथ-साथ डॉक्टर अर्चना शर्मा और उनके पति को गंदी-गंदी गालियां भी दी जाती रहीं। पुलिस वाले मूकदर्शक बन सड़क छाप नेताओं का सुनियोजित खेल देखते रहे। तीन-चार घंटे तक ब्लैकमेलरों की दादागिरी चलती रही। आजू-बाजू का कोई भी कुछ नहीं बोला। हैरानी की बात तो यह थी कि जिस महिला मरीज की मौत हुई उसके पति ने किसी भी तरह की रिपोर्ट पुलिस थाने में दर्ज नहीं करवायी। वह तो अदना-सा श्रमिक है। जो ठीक तरह से लिखना और पढ़ना तक नहीं जानता। उससे जबरन कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए। अंतत: धूर्त नेता और उनके कपटी चेले-चपाटे पुलिस पर दबाव बनाने में सफल रहे, जिससे पुलिस ने भी सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन की अनदेखी कर गायकोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना शर्मा के खिलाफ धारा 302 (हत्या) के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। बिकाऊ खाकी वर्दी, लुंजपुंज कानून व्यवस्था तथा बद और बदमाश नेताओं ने एक होनहार डॉक्टर को प्रताड़ित कर इस कदर भयभीत कर दिया कि वह डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने कभी भी ऐसे अपमान और तमाशे की कल्पना नहीं की थी। उनके मन में बस यही विचार आते रहे कि अब तो उनकी डॉक्टरी पर कलंक लग गया है। वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया गया है। उनके कारण पति और बच्चों को भी अपराधी समझा जा रहा है। वह हत्यारिन घोषित की ही जा चुकी हैं। बुरी तरह आहत डॉक्टर अर्चना शर्मा ने मौत का दामन थामने से पहले एक पत्र लिखा, ‘मैं अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ। प्लीज मेरे मरने के बाद इन्हें परेशान न किया जाए। मैंने कोई गलती नहीं की, किसी को नहीं मारा। मैंने इलाज में भी कोई कमी नहीं की। कृपया डॉक्टरों को इतना प्रताड़ित करना बंद करो। मेरी मौत शायद मेरी बेगुनाही साबित कर दे।’’ यह कितनी शर्मनाक और कायराना हकीकत है कि जब नेता, ब्लैकमेलर पत्रकार, डॉक्टर अर्चना शर्मा के अस्पताल की घेराबंदी कर नारेबाजी कर रहे थे तब किसी ने अर्चना की साथ नहीं दिया। कोई खबर नहीं ली। लेकिन जब वह चल बसीं तो सभी उनके हमदर्द बन गये।

डॉक्टर अर्चना की खुदकुशी के कुछ दिन बाद महानगर के स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा आर्या ने फांसी लगा ली। मात्र 13 साल की इस बच्ची की जब नोटबुक खंगाली गई तो उसमें जगह-जगह लिखा था ‘आई लव यू डेथ’, मुझे मौत से प्यार है, मुझे मरना अच्छा लगता है। सुसाइड नोट में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर दुनिया को सदा-सदा के लिए छोड़कर चल देने वाली लड़की के मां-बाप और भाई उसकी आत्महत्या की वजह से अनजान और हतप्रभ हैं! लेकिन, हतप्रभ कर देने वाली बात यह भी है कि लड़की लगातार अपनी नोट बुक्स में ‘आई लव यू डेथ’ लिखकर इशारा करती रही और मां-बाप अनजान रहे! इसी तरह से आदित्य पहले भी खुदकुशी की राह पकड़ने के संकेत दे चुका था, लेकिन माता-पिता ने भी उसका मानसिक उपचार नहीं कराया। 

जब जिन्दगी अच्छी नहीं चल रही होती है तो इंसान का विचलित और परेशान होना स्वाभाविक है। यह भी सच है कि इंसान चुभने वाली बातों और तानों से अक्सर निराश और हताश हो जाता है, लेकिन वह यह क्यों भूल जाता है कि लोगों का तो काम ही है मीन-मेख निकालना। अच्छाइयों को नजरअंदाज कर कमियों और बुराइयों के ढोल पीटना। मरना तो एक न एक दिन सभी को है, लेकिन किन्हीं भी हालातों में तथा किसी भी उम्र में की गयी खुदकुशी उन्हें अथाह पीड़ा और बदनामी की सौगात दे देती हैं, जिन्हें उम्र भर के लिए रोने-बिलखने के लिए छोड़ दिया जाता है...।

No comments:

Post a Comment