Thursday, July 15, 2010

नेताओं की बाजीगरी

जिस तरह से महापुरुषों से साधारण इंसान प्रेरणा लेते हैं और अपने जीवन की दिशा तय करते हैं वैसे ही महानगरों से नगर कस्बे और गांव भी प्रभावित होते हैं। दिल्ली देश की राजधानी है पर इन दिनों राजधानी में कोहराम-सा मचा हुआ है। कानून के रखवाले गहरी नींद में बेफिक्र सोये हुए हैं। वैसे दिल्ली में तमाम बडे-छोटे राजा भी रहते हैं। वे भी अपनी मस्ती में चूर हैं। उन्होंने भी जनता की ि‍चंताओं और समस्याओं से मुंह मोड लिया है। बेरोजगारी बढ रही है। अपराध आसमान की छाती चीरने लगे हैं और गर्दनें तो ऐसे कट रही हैं जैसे गाजर-मूली कट रही हो। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और बलात्कार कतई नहीं डराते। वाकई वे एक निर्भीक महिला हैं। राज करने के लिए ऐसी बेफिक्री, नजर अंदाजी और निर्ममता का होना बहुत जरूरी है। वैसे भी यह कहावत बहुत मशहूर है कि दिल्ली दिलवालों की है। छोटे-मोटे दिलधारी यहां टिक ही नहीं सकते।यह दिल्ली ही है जो हजारों मील दूर बैठे तरह-तरह के चोलाधारियों को हमेशा लुभाती रहती है। नेता और अपराधी यहां पर पहुंचने के लिए सदैव लालायित रहते हैं। इतिहास गवाह है कि दिल्ली में होने वाले अधिकांश संगीन अपराधों के पीछे जिन चेहरों को ख‹डा पाया जाता है उनमें यह शिनाख्त कर पाना मुश्किल होता है कि इन सफेदपोशों को अपराधी कहें या नेता...। नेता के पीछे अपराधी खडे नजर आते हैं तो अपराधी के पीछे नेता। बडा ही अजब किस्म का याराना है यह। दिल्ली पुलिस भी उलझन में फंसी रहती है। बडी मुश्किल से अपराधी हाथ में आता है पर उसे छुडाने के लिए सफेदपोश नेता फौरन पहुंच जाते हैं। रिश्ता पूछने पर अपनी पार्टी का कार्यकर्ता और न जाने क्या-क्या बताते हैं। दिल्ली की देखा-देखी अब यह परिपाटी पूरे देश में जोर पकड चुकी है। इसलिए अपराधों का ग्राफ बढता ही चला जा रहा है। हत्या, चोरी और बलात्कार की घटनाएं तो इतनी आम हो गयी हैं कि आम लोगों को इनसे कोई फर्क ही नहीं पडता। दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि कुत्ते की मौत मर भी आम आदमी ही रहा है।बीते सप्ताह देश की राजधानी में दो दिन के भीतर १२ शव बरामद हुए। जिससे देशभर में यह संदेश पहुंच गया कि दिल्ली में ऐसे अपराधियों की सल्तनत चल रही है जिन्हें कानून का कतई डर नहीं है। वे किसी को भी मौत के घाट उतारने के लिए आजाद हैं। राजधानी में लूटमार, डकैती और फिरौती की घटनाओं में भी अभूतपूर्व इजाफा होता चला जा रहा है। पहले इस तरह के अपराध दिल्ली से सटे हरियाना और उत्तरप्रदेश के शहरों और कस्बों में होते थे और नेताओं के फौरन बयान आने शुरू हो जाते थे कि इन प्रदेशों की पुलिस हद दर्जे की निकम्मी है पर अब जब दिल्ली ही अपराध नगरी बनती चली जा रही है तो नेताओं के मुंह खुलने बंद हो गये हैं। पुलिस कहती है कि हम कहां-कहां दिमाग खपाएं। गली-कूचों में चौबीस घंटे निगरानी रख पाना बच्चों का खेल नहीं है। शहरवासियों को भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए आंख और कान खुले रखने चाहिए। राजधानी में बडे ही रहस्यमय ढंग से अपराधी आते हैं और अपना काम कर चलते बनते हैं। कइयों को तो यहीं पर पनाह भी मिल जाती है। पनाह देने वालों की शिनाख्त करने के बजाय लोग बस यही रोना रोते रहते हैं कि आखिर पुलिस क्या कर रही है?यह सच है कि पुलिस चप्पे-चप्पे पर तो निगरानी नहीं रख सकती फिर भी पुलिस कितनी चौकसी के साथ अपने कर्तव्य का पालन करती है यह कोई अंधा भी बता सकता है। दरअसल 'खाकी' भी नेताओं के रंग में रंग चुकी है। अपने बचाव के लिए उसके पास हजार बहाने और जवाब तैयार रहते हैं। देश का भला चाहने वाले यह मानते हैं कि यदि देश में खादी और खाकी ने अपनी नीयत दुरुस्त रखी होती तो देश की इस कदर दुर्गति न होती। लोगों को अब जहर से नहीं दवा से डर लगने लगा है। यह कितनी हैरतअंगेज बात है कि जब देश के प्रधानमंत्री को खिलाये जाने वाले भोजन की जांच की जाती है तो दाल मिलावटी पायी जाती है। जहां प्रधानमंत्री को नहीं बख्शा जा रहा हो वहां आम आदमी का कीडे-मकोडे की तरह मरना तय है। सरकार भी इस शुभकर्म में पीछे नहीं रहना चाहती। लोगों को खाने पीने के लिए शुद्ध खाद्य पदार्थ मिलें या न मिलें पर नशे में डूबने के लिए शराब जरूर मिलनी चाहिए। सरकार की नाक के नीचे नकली शराब बिकती रहती हैं। लोग बेमौत मरते रहते हैं। नेताओं की बयानबाजी चलती रहती है। लोगों को असली शराब पीने को मिले इसके लिए सरकार चलाने वाले नेता तरह-तरह के उपाय करते रहते हैं। अब तो दिल्ली के बीयर बारों में महिलाओं को शराब परोसने की छूट दे दी गयी है। पीने वालों को शराब और शबाब का एक साथ स्वाद चखने को मिलेगा। हालांकि शासकों का यह मानना है कि इससे महिलाओं को रोजगार मिलेगा। उनमें पुरुषों की बराबरी का मनोभाव भी पनपेगा। शराबी नशे में क्या-क्या गुल खिलाते हैं उसकी खबर सरकार चलाने वालों को न हो ऐसा तो हो नहीं सकता। पर सरकार तो सरकार है। उसे सब कुछ करने और करवाने का अधिकार है...।

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