Thursday, July 29, 2010
यह कैसा ढोंग?
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश का चोली-दामन का साथ है। दोनों की सरहदें एक दूसरे से लगी हुई हैं। इसका फायदा और कोई ले न ले पर अराजक तत्व जरूर ले लेते हैं। उनकी तो मौज ही मौज है...। विदर्भ के शहर वर्धा का नाम देश के साथ विदेशों में भी लिया और जाना जाता है। यह शहर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि रहा है। यहां पर स्थित बापू की कुटिया को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और महात्मा की सादगी के प्रति बरबस नतमस्तक होते हैं। लोकमत ग्रुप के सर्वेसर्वा और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विजय दर्डा ने हाल ही में केंद्रीय पर्यटन विभाग से सेवाग्राम के पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने और दर्जा देने की मांग की है।बापू घोर नशा विरोधी थे इसलिए सरकार ने उनके मान और सम्मान स्वरूप वर्धा जिले में शराब बेचने पर प्रतिबंध लगा रखा है। तय है कि सरकार के रिकॉर्ड में इस जिले में कहीं कोई शराब की दुकान नहीं है। देश और दुनिया के जो लोग महात्मा गांधी के अनुयायी हैं उन्हें बापू का वर्धा जरूर लुभाता होगा। उनके मन में यह विचार भी आता होगा कि यहां के निवासी कितने महान हैं जिन्होंने वास्तव में राष्ट्रपिता के आदर्शों को अपनाते हुए दारू और नशे से दूरी बना कर रखी हुई है। महाराष्ट्र सरकार और यहां के नेताओं का दारू बंदी पर वर्षों से कायम संकल्प भी बहुतों को लुभाता होगा क्योंकि लोग इस हकीकत से भी वाकिफ हैं कि शराब और तमाम नशे के की दुकानों की नीलामी से जो करो‹डों-अरबों का टैक्स मिलता है उसी से ही सरकारें चलती हैं। नेता जीते-खाते और पचाते हैं। इसलिए उनकी तो यही मंशा रहती है कि जगह-जगह शराब के सरकारी ठेकों और नशे के सौदागरों की भरमार हो और उनका काम चलता रहे। पर क्या वाकई वर्धा बापू के सपनों को साकार कर रहा है? इसका जवाब जानने के लिए सबसे पहले इस खबर से रूबरू हो लेते हैं। ''महाराष्ट्र की तुलना में मध्यप्रदेश में शराब की कीमतें कम हैं। यही वजह है कि शराब की तस्करी करने वाले नागपुर के निकट स्थित िछंदवाडा और पांढुरना से शराब लाकर वर्धा में खपाने में बडी आसानी से कामयाब हो जाते हैं। बीते सप्ताह मध्यप्रदेश के पांढुरना से लाखों रुपये की शराब लेकर आ रही एक कार रास्ते में पेड व लोहे के एंगल से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। चालक नशे में धुत था इसलिए उसका संतुलन बिगड गया। दुर्घटना इतनी जबरदस्त थी कि कार चालक व उसके बगल में बैठा व्यक्ति उछल कर बाहर सडक पर आ गिरे। वहीं पीछे फंसे एक अन्य व्यक्ति को ग्रामवासियों ने बडी मेहनत कर कार से बाहर निकाला। सजग ग्रामवासियों को कुछ संदेह हुआ तो उन्होंने कार की डिक्की को खोला। उनकी आंखें हैरत के मारे फटी की फटी रह गयीं क्योंकि डिक्की में अंग्रेजी शराब की पेटियां ही पेटियां दिखायी दे रही थीं। ग्रामवासी तब तो और भी हतप्रभ रह गये जब वहां पर एकाएक एक और कार आकर रुकी। दुर्घटनाग्रस्त कार से तीनों व्यक्तियों ने फटाफट शराब की पेटियां निकालीं और उस कार में भरकर चलते बने। पुलिस जब तक वहां पर पहुंची तब तक तस्कर गायब हो चुके थे। सिर्फ और सिर्फ दुर्घटनाग्रस्त हो चुकी असहाय कार खडी थी जिसके आगे और पीछे बडे-बडे अक्षरों में 'प्रेस' लिखा था।''दरअसल 'प्रेस' और अखबार का नाम तस्करों के लिए ढाल का काम करता है। बापू की कर्मभूमि को दारूमय बनाने के लिए जिन वाहनों का दारू की तस्करी के लिए उपयोग किया जाता है उन पर अक्सर प्रेस या किसी अखबार का नाम लिख दिया जाता है। तय है कि पत्रकार या अखबार मालिक की गाडी होने की धौंस दिखाकर बेखौफ होकर तस्कर अपने काम को अंजाम देते रहते हैं। ऐसी भी कई गािडयों से शराब की तस्करी होती है जिन पर किसी राजनीतिक पार्टी का नाम लिखा होता है। पहले वाहनों पर राजनीतिक पार्टियों के नाम लिखने का चलन नहीं था पर इन दिनों यह चलन कुछ ज्यादा ही बढ गया है। पुलिस वाले कभी-कभार भूले से ही इन ऊंचे लोगों की गािडयों को रोकते हैं पर यह किसी अखबार का प्रेस कार्ड या राजनीति पार्टी के सुप्रीमों के नाम की धौंस दिखाकर आगे निकल जाते हैं। वैसे यह मान लेना बेवकूफी होगी कि पुलिस वालों की इनसे जान-पहचान और मिलीभगत न हो। सारा खेल-तमाशा पूरी एकजुटता और रजामंदी के साथ चल रहा है। वर्धा जिले में साल भर में कई करोड की अवैध शराब बिक जाती है और सरकार बेखबर रहती है! दरअसल वह खबरदार होना भी नहीं चाहती। उसने कसम खायी हुई है कि बापू की कर्म स्थली को दारू बंदी से कभी मुक्त नहीं होने देना है। भले ही पियक्कड नकली विषैली शराब पीकर मरते रहें। वैसे भी सरकार फरिश्ते नहीं चलाते, नेता चलाते हैं। अपने यहां के अधिकांश नेता महात्मा गांधी के नाम की कसमें खाकर ही चुनाव जीतते हैं। जब चुनाव निकट आते हैं तब दारू माफिया नेताओं को घर बैठे थैलियां पहुंचा देते हैं। इसलिए भी वे हमेशा बापू के शुक्रगुजार रहते हैं जिनके कारण वर्धा में आजादी के बाद से दारू बंदी जारी है...। कल के वो छुटभइये नेता भी बापू के नाम की माला जपते नहीं थकते जिनकी दारू बंदी के चलते बेरोजगारी दूर हो गयी है और आज वे करोडों में खेल रहे हैं। उनकी तरक्की का ग्रॉफ इतना ऊंचा हो गया है कि वे अब विधायक और सांसद बनने के सपने देखने लगे हैं। उनकी अंटी में इतना माल आ गया है कि वे चुनावी गंगा में करोडों रुपये बहा सकते हैं। गुंडे बदमाशों की आर्थिक तरक्की में भी अच्छा खासा इजाफा हुआ है। वर्धा के कारण नागपुर में कई छोटे-मोटे नकली शराब के कारखाने जगह बदल-बदल कर चलते रहते हैं। मध्यप्रदेश से तस्करी करके लायी गयी हल्की शराब, महंगी शराब की बोतलों में भरकर बडे इत्मीनान से वर्धा जिले में भेज दी जाती है। आबकारी विभाग को इस सारे गोरखधंधे की खबर रहती है। बिलकुल वैसे ही जैसे खाकी, खादी और पत्रकारों को। तेरी भी चुप मेरी भी चुप की तर्ज पर वर्षों से बापू के नाम पर नशे का व्यापार चलता चला आ रहा है। कई बार कुछ सजग महानुभावों ने ऐसी अजब-गजब दारू बंदी का विरोध भी जताया तो गांधीवादी दहाडते नजर आये कि वर्धा जिले में दारू बंदी का विरोध करने वाले चेहरे महात्मा गांधी के आदर्शों को कुचल कर रख देना चाहते हैं। बापू की कर्मभूमि की पवित्रता को बनाये रखने के लिए ही कांग्रेस सरकार ने यह प्रेरक निर्णय लिया था। इस निर्णय को बदलने का मतलब होगा बापू का अपमान। हम किसी भी हालत में राष्ट्रपिता का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसके लिए हमें अपनी जान भी देनी पडे तो पीछे नहीं हटेंगे।इन बापू के भक्तों से जब यह सवाल किया जाता है कि दारू बंदी के होते हुए भी वर्धा जिले में दूसरे जिलों की तुलना में सबसे ज्यादा शराब बिकती है तो उन्हें बापू के अपमान की िचंता क्यों नहीं सताती! अगर उनमें बापू के प्रति सच्चा समर्पण है तो फिर वे शराब की तस्करी से लेकर बिकने-बिकवाने के अबाध सिलसिले पर लगाम क्यों नहीं लगवाते? सच्ची निष्ठा तो कुछ भी करवा सकती है, फिर यह कोई ऐसा बडा काम नहीं है कि जिसे वे अगर चाहें तो न करवा सकें...। देश और प्रदेश में उसी कांग्रेस की सरकार है जो आजादी के बाद से राष्ट्रपिता के नाम पर वोट लेकर सत्ता का असली मजा चखती चली आ रही है। क्या सरकार गांधी के अहसानों का बदला चुकाने के लिए इतना भी नहीं कर सकती? अगर नहीं तो उसे बापू के नाम पर ढोंग करने का कोई भी हक नहीं बनता...।
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gandhi ka is desh mey jitana apaman ho raha hai, duiniya mey kahi nahee ho raha. gandhi ki pratima ke neeche baithakar log sharab peete hai. sarakaren bhi gandhi ka naam lekar sharab bechati hai. jahaan nashabandi hai, vahaa zyada khapat ho rahi hai sharaab ki. achchha lekh hai. teekha. lekin hoga kyaa. fir bhi baat samane aayee.
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