Thursday, July 22, 2010
गिद्ध और गिद्ध
समाजवादी मुलायम िसंह बलशाली जिस्मधारी नेता हैं। वर्षों तक पहलवानी कर चुके हैं। पता नहीं कितनों को पटकनी दी होगी और कितनों से पटके गये होंगे। कभी किसी पत्रकार ने उनसे अखाडे की पटका-पटकी को लेकर सवालबाजी नहीं की। पहलवानों के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे आसानी से नहीं झुकते। माफी मांगना तो दूर की बात है। पर मुलायम किसी और ही मिट्टी के बने हैं। वक्त के हिसाब से बदलते रहते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि वे असली नेता हैं। वोटों के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। कहीं भी और कभी भी भीख का कटोरा लेकर नमन और चरण वंदना की मुद्रा में नजर आ सकते हैं? देश की जनता के खून पसीने की कमायी को अपने बाप-दादा की जागीर समझने वाले यह मुलायम िसंह ही थे जिन्होंने कभी भारत सरकार से पाकिस्तान को एक हजार करोड रुपये की सहायता देने की मांग की थी। तब होश, जोश और रोष की स्याही में नहायी इस कलम को बरबस यह लिखने को मजबूर होना पडा था कि ''मुलायम िसंह को मारो जूते हजार-हजार।'' इस मुखौटे बाज की पाकिस्तान के प्रति रहमदिली के पीछे का एकमात्र मकसद था भारतीय मुसलमानों के दिलो -दिमाग पर छा जाना और अपनी समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वोटों से मालामाल कर देना। यह वोटखोर तब यह भी भूल गया था कि भारतीय मुसलमान पाकिस्तान परस्त नहीं हैं। उनमें दूसरे भारतीयों की तरह ही देशभक्ति का ज़ज्बा कूट-कूट कर भरा हुआ है। समाजवाद के नाम पर मुलायम िसंह इसी तरह के हथकंडे अपनाकर अपने मंसूबों में भी कामयाब होते चले आ रहे हैं। देश का विशाल प्रदेश उत्तर प्रदेश एक ऐसा प्रदेश है जिसमें धर्म और जाति की राजनीति खुल कर होती है। यहां पर डेढ सौ से ज्यादा विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाता चुनाव परिणामों को प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि भाजपा और बहुजन पार्टी के द्वारा भी मुसलमानों को चारा फेंकने और लुभाने के दावपेच चलते रहते हैं। देश की सबसे बुजुर्ग पार्टी कांग्रेस भी इस महान कार्य में कभी पीछे नहीं रहती। परंतु मुलायम िसंह को तो इस मामले में महारत हासिल है। जात-पात की जादूगरी और मुसलमानों के वोटों की बदौलत उन्होंने कई बार सत्ता का स्वाद चखा है। जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस किया गया था तब मुलायम िसंह मुसलमानों के जबरदस्त खैरख्वाह और संरक्षक के रूप में उभरे थे। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को लताडने वाले अपने तीखे बयानों से मुसलमानों का दिल जीतने में अच्छी-खासी सफलता पायी थी। शातिर राजनेता मुलायम िसंह ने जब बाबरी मस्जिद को विध्वंस करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले कल्याण िसंह को गले लगा लिया तो भारतीय मुसलमान भी अचंभित रह गये। भाजपा के वोट बैंक पर सेंध लगाने के लिए घोर साम्प्रदायिक कल्याण िसंह को गले लगाने वाले मुलायम को विधानसभा में मायावती के हाथों जबरदस्त मात मिलते ही यह सच समझ में आ गया कि अब लोग और बेवकूफ बनने के लिए तैयार नही हैं। मुसलमानों की याददास्त को इतना ग्रहण नहीं लगा है कि वे खलनायकों को भूल जाएं। यह भी सच है कि चुनावी दंगल में मुलायम का यदि कल्याण हो जाता तो वे मुसलमानों के साथ दूध में गिरी मक्खी की तरह बर्ताव करने से भी नहीं चूकते। यह चुनावी पराजय ही है जिसने मुलायम को आखिरकार मुसलमानों से माफी मांगने के लिए विवश कर दिया। मुसलमानों ने मुलायम को माफ किया या नहीं यह तो वक्त ही बतायेगा। पर नेता जी माफी मांगने के बाद बेफिक्र हो गये हैं। हमारे यहां के नेता माफी मांगने में उस्ताद हैं। जब मन में आया किसी को गाली दे दी। जब विरोध के स्वर उभरे तो ऐसे माफी मांग ली जैसे बच्चों का खेल हो। समाजवादी पार्टी से धकियाये गये सुपर दलाल अमर िसंह जो अपने 'लोकदल मंच' पर खडे होकर आजकल अपनी भडास निकालते रहते हैं, ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि मुलायम का कल्याण को गले लगाना एक ऐसा कुकर्म और धोखा था जिसके दाग कभी भी नहीं मिट सकते। यह तो मुसलमान ही हैं जो बहुत जल्दी फरेबी नेताओं के बहकावे में आ जाते हैं। मुलायम ने भी ऐसा पांसा फेंका था कि मुसलमान भाइयों ने उन्हें अपना रहबर मानते हुए मौलाना मुलायम के खिताब से नवाज दिया था। अयोध्या की बाबरी मस्जिद को ढहाने के प्रमुख आरोपी कल्याण िसंह को जिस दिन समाजवादी पार्टी में शामिल किया गया था उसी दिन मुलायम मुसलमानों की निगाहों से उतर गये थे। नेताजी की कोई भी माफी उनकी सियासी चुनरी पर लगे दाग नहीं धो सकती। अमर िसंह मानते हैं कि मुसलमानों को जज्बाती बनाकर उनके वोट हथियाने की सियासी चाल अब कतई कामयाब नहीं हो सकती। यहां पर यह भी बता दें कि पिछले दिनों अमर िसंह खुद को मुसलमानों का एकमात्र हित रक्षक घोषित कर चुके हैं। अमर िसंह इस सवाल का जवाब कतई नहीं देंगे कि उन्हें मुलायम के द्वारा मुसलमानों को ठगने का ध्यान अब जाकर ही क्यों आया जब वे समाजवादी पार्टी से बाहर खडे कर दिये गये हैं। यह सच तब भी तो बरकरार था जब अमर िसंह मुलायम के लिए दलाली करते हुए उनकी और अपनी तिजोरियां भरने में लगे थे। मुसलमानों को अपने पाले में लाने के लिए उनकी बोल-भाषा भी मुलायम जैसी ही होती थी। कल्याण को मुलायम से मिलवाने में उनका रोल भी कम नहीं था। अलग होने के बाद चाल और चरित्र बदलने का भ्रम फैलाने वाले अमर पर क्या आज मुसलमान आंख मूंद कर विश्वास कर लें? अमर िसंह की तर्ज पर और भी नेता हैं जो एकाएक मुसलमानों को भाव देने की राह पर चल पडे हैं। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के हृदय में मुसलमानों के प्रति कैसा स्नेह है यह बताने की जरूरत नहीं है। फिर भी यह कलम बाल ठाकरे को अमर िसंह, कल्याण िसंह, मुलायम िसंह और तमाम उन भाजपा नेताओं से एकदम अलग मानती है जो अपने कहे और किये से पलटने में जरा भी देरी नहीं लगाते। बाल ठाकरे इस मामले में मर्द नेता हैं जो करते हैं उसे डंके की चोट पर कुबूल करने से कतई पीछे नहीं हटते। देश में जब बाबरी मस्जिद विध्वंस हुआ था तब ठाकरे ही थे जिन्होंने छाती तानकर स्वीकारा था कि हां मेरे सैनिकों ने ही यह काम किया है। दूसरी तरफ भाजपा और उससे जुडे संगठन के नेता मुंह छिपाते दिखे थे और गोलमोल भाषा में जवाब देते नजर आये थे। शिवसेना की पाठशाला में वर्षों तक प‹ढने-लिखने और चाचाश्री की राजनीति से पारंगत होने के बाद अपनी 'महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना' बनाने वाले राज ठाकरे का पिछले माह जन्म दिन था। इस शुभ अवसर पर कुछ मुस्लिम धर्मगुरू खास तौर पर उनके आवास पर आमंत्रित किये गये। सबने राज ठाकरे के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए शुभकामनाओं का अंबार लगा दिया। शुभकामनाओं तक तो बात ठीक थी पर जैसे ही यह खबर बाहर आयी कि राज ठाकरे को पवित्र कुरान के मराठी अनुवाद की प्रति भी भेंट की गयी है तो राजनीति के गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं। तमाम दल और नेता चौकन्ने हो गये। बिलकुल वैसे जैसे मुलायम के माफी मांगने पर हुए। २०१२ में मुंबई नगर निगम के चुनाव होने हैं। अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे से खार खाये राज ठाकरे को किसी भी तरह से शिवसेना-भाजपा को चुनावी मात देकर मुंबई नगर निगम पर अपनी हुकूमत चलानी है। इसके लिए अगर उन्हें अपने चाचा के पढाये पाठ के विपरीत भी चलना पडे तो वे तैयार हैं। वैसे भी राजनीति में कायदा, पाठ और पाठशाला भला कहां कोई मायने रखते हैं...!
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hamesha ki tarah dhardaar lekhan ke liye badhai..koi to ho, jo himmat k sath apni baat kahe.
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