Thursday, September 9, 2010

अफ्रीका बनने के खतरों से जूझता हिं‍दुस्तान

कुछ खबरें बहुत चौंकाती हैं। हतप्रभ कर जाती हैं। लगातार सोचने का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं लेता। सुलगते हुए सवाल जिस्म और आत्मा को झुलसा कर रख देते हैं...। यह जो पुरुष नाम का जीव है इसकी शैतानियत और हैवानियत का दूर-दूर तक क्यों अंत होता नजर नहीं आता? यह सवाल उन तमाम मांओं और बेटियों का है जो देश और दुनिया में फैले कामुक दरिंदों की हवस से जूझने को विवश हैं। भारतवर्ष में सदियों से ऐसी कई मान्यताएं और परंपराएं चली आ रही हैं जो नारियों को तरह-तरह के बंधनों और सामाजिक वर्जनाओं की जंजीरों में बांधे रखने की पक्षधर हैं। देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो आज भी बेटियों को अभिशाप मानते हैं। कइयों को अपनी बच्चियों के घर से बाहर निकलने पर भय सताता है। ऐसों की भी अच्छी-खासी तादाद है जो घर में बेटी के पैदा होते ही उम्र भर के लिए चिं‍तित हो जाते हैं। इन चिं‍ता की लकीरों ने दूर सरहद पार तक अपने पैर पसार रखे हैं। पुरुषों की वासना के दंश से बचाने के लिए अफ्रीका में छोटी-छोटी बच्चियों पर जो अत्याचार किया जाता है उसकी कल्पना मात्र से ही संवेदनशील इंसान की रूह कांप जाती है। खुद मांएं ही अपनी बेटियों पर जुल्म ढाती हैं। विवशता में किये जाने वाले इस जुल्म को 'प्रथा' का जामा पहना दिया गया है। यहां कई इलाके ऐसे हैं जहां पर आठ-दस साल की बच्चियों के स्तनों को इस्त्री किया जाता है। आग में घंटों गर्म किये गये सिलबट्टे से उनकी मासूम छातियों को क्रुरता के साथ मसला जाता है। यह क्रुर कर्म सालों साल तब तक चलता रहता है जब तक उनके लडकी होने के निशान मिट न जाएं। शैतानों की नजरों से बचाये रखने के लिए जो मांएं अपनी बेटियों पर यह कहर ढाती हैं दरअसल वे भी इसका शिकार हो चुकी होती हैं। जीवन भर जिस पीडा से वे जूझती रहती हैं वही पीडा अपनी बच्चियों को सौगात में देने के पीछे उनका एक ही मकसद होता है अपनी बेटियों को वासना के दरिंदों से सुरक्षित रखना। दरअसल अफ्रीका में उन शैतानों की बहुतेरी तादाद रही है जिनकी भूखी निगाहें नारी देह तलाशती रहती हैं। वे मासूम बच्चियों को भी नहीं बख्शते। दस-बारह साल की लडकियों के साथ बलात्कार होते रहते हैं और खेलने-कूदने की छोटी-सी उम्र में वे गर्भवती बना दी जाती हैं। वे जब मां बन जाती हैं तो ताने देने वाले मुंह फाडकर खडे हो जाते हैं। घरों और स्कूलों के दरवाजे भी बंद हो जाते हैं। व्याभिचार और अत्याचार की शिकार हुई मासूम लडकियों का जीवन अंतत: नर्क बनकर रह जाता है। औरत के रूप में जन्म लेने की पीडा उन्हें मरते दम तक रूलाती रहती है। कामुक पुरुषों को इससे कोई फर्क नहीं पडता। अपना देश भी तो देह के भूखे भेडिं‍यों से भरा पडा है। पर हां यहां अफ्रीका जैसे भयावह और बदतर हालात नहीं हैं। फिर भी जो चि‍ताजनक हालात हैं उन्हें नजर अंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। विषैले जख्म को नासूर बनने में कितनी देर लगती है। अखबारों और न्यूज चैनलों में आये दिन छोटी उम्र की बच्चियों के अपहरण के समाचार छाये रहते हैं। इसी हफ्ते उत्तरप्रदेश के शहर बिजनौर की एक नाबालिग लडकी का अपहरण कर उसे एक लाख रुपये में एक ऐसे शख्स को बेच दिया गया जिसकी शादी नहीं हो पा रही थी। इसी तरह से न जाने कितनी मासूम बच्चियां काल कोठरी में कैद हैं जिनके बडे होने की राह देखी जा रही है ताकि उन्हें देह के बाजार में उतारा जा सके। यह सिलसिले आज से नहीं बल्कि वर्षों से चला आ रहा है। अपने ही घर-परिवार में छोटी लडकियों के शोषित होने की न जाने कितनी खबरें दिल दहलाती रहती हैं। आज का अखबार मेरे सामने है। छत्तीसगढ की औद्योगिक नगरी भिलाई में स्थित दो स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा छात्राओं के साथ की गयी छेडछाड की खबरों की सुर्खियां भयावह भविष्य के संकेत दे रही हैं। ज्ञानदीप हायर सैकेंडरी स्कूल में सातवीं कक्षा में पढने वाली एक छात्रा के साथ स्कूल का प्राचार्य ही पिछले डेढ वर्ष से छेडछाड करता चला आ रहा था। यह कमीना इंसान छात्रा को कभी कम्प्यूटर कक्ष तो कभी अपने कमरे में बुलाकर अपनी मर्दानगी दिखाया करता था। जब भेद खुला तो हंगामा मच गया। लोग अय्याश प्राचार्य को पीटने के लिए दौड पडे पर कायर गायब हो गया। इसी तरह से कन्या प्राथमिक शाला में पांचवी कक्षा में पढने वाली बच्ची को वहशी शिक्षक कमरे में साफसफाई के लिए बुलाता और फिर छेडछाड पर उतर आता। इस तरह की न जाने कितनी घटनाएं रोज देशभर में घटती हैं। कुछ सामने आती हैं और बहुतेरी पर्दे के पीछे रह जाती हैं। जिस देश में नारी को पूजने का ढोंग किया जाता है वहां पर जिस तरह से स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक और प्रोफेसर गुरू-शिष्य के पवित्र रिश्ते की धज्जियां उडाने पर तुले हैं उससे पालकों के मन में भय घर करता जा रहा है। मांएं बुरी तरह से डरी और सहमी हुई हैं। शिक्षालयों को मंदिरों का दर्जा भी दिया गया है पर यह मंदिर आज शोषण के अड्डों में तब्दील होते चले जा रहे हैं और सभ्य समाज का सिर शर्म से झुकता चला जा रहा है। बीते सप्ताह एक खबर पढने और सुनने में आयी। मथुरा में एक शिक्षक अपनी शिष्या के साथ कई दिन तक मुंह काला करता रहा। मथुरा जैसे और भी अनेक शहर और गांव हैं जो यौन शोषण अड्डों में तब्दील होते चले जा रहे हैं। लोगों का गुरुजनों से विश्वास हटता चला जा रहा है। अगर हालात काबू में नहीं लाये गये तो एक दिन ऐसा भी आयेगा जिस दिन हिं‍दुस्तान और अफ्रीका में फर्क करना मुश्किल हो जायेगा।

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