Friday, September 24, 2010
असली परीक्षा की घडी है यह
राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला २४ सितंबर को आने वाला है। देश की आम जनता के साथ-साथ तमाम राजनैतिक पार्टियों और नेताओं की निगाहें भी इस फैसले पर लगी हैं। जो लोग स्वार्थी राजनेताओं की फितरत से वाकिफ हैं वे कुछ-कुछ घबराये हुए हैं। देश की राजधानी दिल्ली भी चिंताग्रस्त है। देशभर में शंकाओं आशंकाओं और कुशंकाओं से जन्मा डर चहल-कदमी करता नजर आ रहा है। फैसले को लेकर 'अयोध्या' भले ही शांत दिखायी दे रहा है पर देश के प्रदेशों में सामाजिक और राजनीति सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ जीने वालों ने सामाजिक सदभाव बनाये रखने की अपनी कोशिशों को तेज कर दिया है। हिंदु हों या मुसलमान सब यही चाहते हैं कि देश में अमन और शांति बनी रहे। इतिहास गवाह है दंगों ने सिर्फ जिंदगियां छीनी हैं और कुछ नहीं दिया। २१ सितंबर की दोपहर डेढ बजे जब मैं यह पंक्तियां लिख रहा हूं तब मुझे छ:दिसंबर १९९२ याद आ रहा है। अयोध्या में इसी दिन भारतीय जनता पार्टी, विश्व हिंदु परिषद और शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने लालकृष्ण आडवानी, साध्वी उमा भारती आदि की रहनुमाई में विवादित ढांचे को गिरा दिया था। देशभर में हिंदू-मुसलमानों के बीच भडके दंगों में दो हजार से ज्यादा लोग मारे गये थे। आपसी भाईचारा भी बुरी तरह से लहुलूहान हुआ था। इसी कांड की बदौलत कालांतर में भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना को सत्ता का सुख भोगने का अवसर भी मिला था। अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बने थे और देशवासियों ने उनसे जो उम्मीदें लगायी थीं सबकी सब धरी रह गयी थीं। राम के नाम पर सत्ता पाने वालों का सच सामने आने में जब ज्यादा वक्त नहीं लगा तो सजग देशवासियों का मोहभंग होने में भी देरी नहीं लगी। आज भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का मामला काफी संवेदनशील है और देश में ऐसे चेहरों की भी खासी तादाद है जो इस संवेदनशीलता का राजनीतिक फायदा लेने को व्याकुल हैं। इसके लिए वे कुछ भी कर और करवा सकते हैं पर सवाल यह है कि आज के नितांत बदले हुए दौर में देश का आम आदमी उनके साथ खडा होने को तैयार है? जवाब आप और हम सभी जानते हैं। दरअसल यह उस देश की परीक्षा की घडी है जहां के लोग धोखा खाने के बाद चेत चुके हैं। अधिकांश लोगों को धर्म के खिलाडिंयों की वो राजनीति भी समझ में आ गयी है जो भाई-भाई का खून बहाने और दंगों पर दंगे कराने से नहीं हिचकिचाती। अमन-पसंद लोगों को मंदिर या मस्जिद से कोई लेना-देना नहीं है। अलगाव फैलाने वाले ही मंदिर-मस्जिद की बात करते हैं। आम हिंदुस्तानी तो विवादित स्थल पर राम-रहीम चिकित्सालय, विद्यालय बनाये जाने का पक्षधर है। भंते सुरई सरसाई ने कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी को एक सुझाव दिया था कि अयोध्या स्थित राम कुंड की जगह को छोडकर उसके एक तरफ राम मंदिर, दूसरी तरफ मस्जिद, एक तरफ बौद्ध विहार, गुरूद्वारा जैसे सभी धर्मों के पूजाघरों का निर्माण किया जाए ताकि यह विवादित स्थल भारत देश की विभिन्न संस्कृतियों की एकता का प्रतीक बन जाए। मैडम जी को यह सुझाव पसंद तो बहुत आया था पर उस पर अमल नहीं हो सका। क्यों नहीं हो सका इसका जवाब राजनेता और उनकी राजनीति ही बेहतर तरीके से दे सकती है। वैसे अपने देश में नेताओं की ही चलती है। आम आदमी की कोई नहीं सुनता। खास लोगों के धूम-धडाके और शोर-शराबे में उसकी आवाज दम तोड देती है। यह अच्छी बात है कि सांप्रदायिक सौहाद्र्र का गला घोटने वालों के खिलाफ अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं। १९९२ में जो कोहरा था वो २०१० में नहीं हैं। लोग एक दूसरे को गले लगाना हितकर मानते हैं। खून खराबे का डरावना इतिहास सच्चे भारतीयों को कतई नहीं लुभाता। देश और देशवासी काफी आगे निकल आये हैं। जो लोग अफवाहों और उत्तेजनाओं को फैलाने का धंधा करते हैं वे भी जानते समझते हैं कि अब लोग खून की होली खेलने वालों के झांसे में कतई नहीं आने वाले। एक सच यह भी जान लीजिए कि राम के नाम पर सत्ता का सुख भोगने वाली भाजपा हो या फिर कांग्रेस दोनों अयोध्या के मामले को लटकाये रखना चाहते हैं। सोचिए कि अगर राम मंदिर बन गया तो उसके बाद भाजपा के लिए कौन-सा मुद्दा बचेगा? कई बार तो यह शक भी होता है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों अंदर से एक हैं। अगर दोनों पार्टियां ठान लेतीं तो इसका हल कब का निकल चुका होता। जिस मामले का साठ साल तक फैसला नहीं हो सका उसका इतनी जल्दी सुलझना आसान नहीं है। महाराष्ट्र में फैसले से पहले की सरगर्मियां तेज हो चुकी हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर सभी पालकमंत्रियों ने अपने-अपने जिलों में डेरा डालना शुरू कर दिया है ताकि कोई गडबड न होने पाये। पुलिसवालों की सभी छुट्टियां रद्द कर दी गयी हैं और चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश के गृहमंत्री आर.आर. पाटील ने लोगों को सुरक्षा की भरपूर गारंटी देने के बजाय घर से बाहर न निकलने की सलाह दी है। तय है कि जैसे हाल महाराष्ट्र के हैं वैसे ही अन्य प्रदेशों के हैं। पर इस बार असली इम्तहान तो आम जनता का है जिसे हथियार बना कर खूनी खेलों को अंजाम दिया जाता रहा है...।
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