Thursday, December 9, 2010

कैसी-कैसी बैसाखियां

हिं‍दुस्तान के अधिकांश नेताओं की जुबान फिसलने में देरी नहीं लगती। कई बार तो बेचारे खुद ही इतना फिसल जाते हैं कि जिन्दगी भर उठ नहीं पाते। यह भी लगभग तय हो चुका है कि नैतिकता को रोंदने में सियासी लोगों को पल भर का भी समय नहीं लगता। शब्दों के प्रयोग की मर्यादा से वंचित नेताओं की तादाद में इधर के कुछ वर्षों में अच्छा-खासा इजाफा होता देखा जा रहा है। अनुशासन, शिष्टाचार और मर्यादा का पाठ पढाने वाली पार्टी के मुखिया की तीखी वाणी कई बार सीधे और शालीन लोगों को आहत कर चुकी है पर उन्हें इससे कभी कोई फर्क नहीं पडा। वे अपने में मस्त हैं। उन्हें लगता है कि लोगों को उनका यह रंग-ढंग बहुत भाता है। उनका यही भ्रम उनकी पार्टी और उनको कब ले डूबे कहा नहीं जा सकता। अपने देश में ऐसे नेता भी हैं जिनके मुंह खोलते ही विवाद खडे हो जाते हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार ऐसे मुंह फाडुओं से भरा पडा है जिनका गाली देने और कोसने का भी अंदाज निराला है। समाजवादी पार्टी के एक नेता हैं मोहम्मद आजम खां। उन्होंने हाल ही में एक जनसभा में अमर सिं‍ह को एक साथ दलाल, दल्ला और सप्लायर की उपाधि से विभूषित कर अपना रौद्र रूप दिखा दिया। आजम खां ने फरमाया कि सारा देश जानता है कि अमर सिं‍ह क्या हैं। कभी उन्हें सारा देश दलाल कहता था परंतु मेरी निगाह में वे हद दर्जे के दल्ले होने के साथ-साथ वो सडी-गली बैसाखी हैं जिसका कोई वुजूद ही नहीं होता। यह दल्ला बहुत बडा सप्लायर भी है। बात बडी सीधी-सी है कि आजम खां वर्षों तक अमर सिं‍ह के नजदीक रहे हैं। उन्होंने बहुत सोच समझ कर अपनी भडास निकाली है। यह भडास यह संकेत भी देती है कि वे अमर सिं‍ह को किसी पंजाबी स्टाईल की भारी-भरकम गाली से नवाजना चाहते थे पर 'दल्ला' घोषित कर चुप्पी साध गये। इस चुप्पी में अमर को ललकारने की खुली चुनौती छिपी थी। अमर को भी भडकने में ज्यादा देर नहीं लगी। उन्होंने सवाल दागा कि आजम खां बतायें कि मैंने उन्हें क्या-क्या सप्लाई किया है?... मैंने अगर मुंह खोला तो मुलायम सिं‍ह जेल में सडते नजर आयेंगे जिनकी बदौलत आज आजम खां इस कदर उचक रहे हैं। राजनीति में इस तरह की धमकियां देने के रिवाज का चलन बडा पुराना है। अमर सिं‍ह ने तो मुलायम की काली कमायी का पूरा चिट्ठा भी उजागर करने का ऐलान कर दिया है। पर यकीन जानिए ऐसा कतई नहीं होने वाला है। यह आरोप-प्रत्यारोप का तमाशा एक दूसरे का मुंह बंद करने का वही पुराना हथियार है जिसे सभी चोर-चोर मौसेरे भाई अजमाते और चलाते रहते हैं। यकीनन मुलायम सिं‍ह, आजम खां का और ज्यादा मुंह नहीं खुलने देंगे। यह भी तय है कि आजम खां, मुलायम सिं‍ह और अमर सिं‍ह के बहुत से राज़ जानते हैं। समाजवादी पार्टी से बाहर कर दिये गये आजम की फिर से घर वापसी हो चुकी है और अमर बनवास भोग रहे हैं। कोई उन्हें घास भी नहीं डाल रहा है। इसलिए अंदर ही अंदर बौखलाये और डरे हुए हैं। तभी तो अक्सर पोल खोलने की धमकियां देते रहते हैं ताकि सामने वाले की जुबान हद से ज्यादा न खुलने पाये। उनके इस अभियान में फिल्म अभिनेत्री जया प्रदा और पांच सात अन्य पिट्ठू ही खडे नज़र आये। मुलायम सिं‍ह पर अपने राजनैतिक कैरियर के कुछ ही वर्षों के दरम्यान अरबों-खरबों रुपये की माया जुटाने के जनजाहिर आरोप हैं। अमर सिं‍ह की उनसे १४ वर्ष तक गहरी मित्रता रही है। कहा तो यह भी जाता है कि राजनीति के धंधे में दोनों बराबर के हिस्सेदार थे। ऐसे में जब एक हिस्सेदार दूसरे को जेल भिजवाने की धमकी देता है तो बात हज़म नहीं होती। पर अगर यह लोग ऐसी नौटंकियां नहीं करेंगे तो फिर इन्हें नेता कैसे माना जायेगा! यह लोग नेता की पदवी को किसी भी हालत में खोना नहीं चाहते क्योंकि यही पदवी ही तो इनके लिए ऐसी ढाल है जिस पर गहरे से गहरे वार का असर नहीं होता। कानून के तेवर भी ठंडे पड जाते हैं। समाजवादी पार्टी में वापसी के फौरन बाद आजमा खां का अमर पर इस तरह से तीर छोडना सुप्रीमो मुलायम सिं‍ह को भी रास नहीं आया है। पर वे मजबूर हैं क्योंकि आजम खां एक ऐसे मुस्लिम नेता हैं जिनकी मुस्लिम वोटरों पर अच्छी-खासी पकड मानी जाती है। २००९ में आजम खां ने इसलिए समाजवादी पार्टी से नाता तोड लिया था क्योंकि मुलायम सिं‍ह ने कल्याण सिं‍ह को गले लगा लिया था। कल्याण सिं‍ह से मुलायम की दोस्ती करवाने में अमर का ही पूरा योगदान था। बावरी मस्जिद विध्वंस के आरोपियों में कल्याण सिं‍ह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। खुद कल्याण सिं‍ह को भी अयोध्या कांड का नायक कहे जाने पर कभी आपत्ति नहीं रही। ऐसे नेता के समाजवादी खेमे में आने से आजम खां का चिं‍तित और आहत होना लाजिमी भी था। पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में मुलायम को कल्याण से की गयी दोस्ती की बहुत बडी कीमत चुकानी पडी। आजम खां जैसे मुसलमान नेता के किनारा करने के बाद बेचारे मुलायम ३९ लोकसभा सीटों से २३ पर जा अटके। १६ लोकसभा सीटों का घाटा कोई छोटी-मोटी चोट नहीं थी।आजम खां ने भी पार्टी से निकलने के बाद मुलायम पर कई तीर दागे थे। इन तीरों के उन पर कितने जख्म हुए इसका हिसाब उन्हीं के पास होगा। राजनीति में विषैले से विषैले वार भी मायने नहीं रखते। आजम खां तो मुस्लिम नेता हैं। मुलायम की मजबूरी से वे अच्छी तरह से वाकिफ रहे हैं जैसे अमर सिं‍ह वाकिफ हैं। आजम खां डेढ साल बाद समाजवादी पार्टी में लौट आये हैं। मुलायम ने भी राहत की सांस ली है। आगामी विधानसभा चुनाव में मुसलमानों के भरपूर साथ मिलने की उम्मीद फिर से जाग गयी है। देर-सवेर अमर सिं‍ह को भी लौटना ही है। भले ही कितने तीर चला लें...।

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