Thursday, December 30, 2010

शराब, युवा और कलम के सिपाही

शाही ब्याह के अवसर पर अपने रिश्तेदारों, मित्रों, स्नेहियों और शुभचिं‍तकों को सादर आमंत्रित करने के लिए छपवायी जाने वाली निमंत्रण पत्रिका भी काफी मायने रखती है। बदलते समय के साथ-साथ इसमें भी तरह-तरह के प्रयोग होते रहते हैं। वैसे यह भी हकीकत है कि अधिकांश निमंत्रण पत्रिकाओं में ऐसा कोई आकर्षण नहीं होता जिसे वर्षों तक याद रखा जा सके। दरअसल इस महत्वपूर्ण कार्य को महज रस्म अदायगी मान लिया जाता है और किसी पुराने निमंत्रण कार्ड की नकल कर नया निमंत्रण कार्ड तैयार करवा लिया जाता है। इसलिए जिन्हें इनके जरिये निमंत्रित किया जाता है वे कार्यक्रम की तारीख और स्थल की जानकारी पाने के लिए पत्रिका पर सरसरी नजर दौडाते हैं और फिर उसे किसी कोने के हवाले कर देते हैं।बीते सप्ताह मुझे शहर के युवा पत्रकार मयूर रंगारी की शादी की निमंत्रण पत्रिका मिली। संयोग से उस समय मैं फुरसत में था इसलिए पत्रिका को ध्यान से पढने लगा। पत्रिका में तथागत बुद्ध के शाश्वत संदेश को पढने के बाद मेरे अंदर काफी देर तक विचार-मंथन चलता रहा। सर्वप्रथम मैं चाहता हूं कि आप भी इस संदेश को अवश्य पढें:हे मानवतुम शेर के सामने जाते हुए मत डरना,क्योंकि वह शौर्य की पहचान है।तुम तलवार के नीचेसिर रखने से मत घबराना,क्योंकि वह शूरता की निशानी है।तुम आग में कूदने से मत हिचकिचाना,क्योंकि वह वीरता की परीक्षा है।तुम पर्वत की चोटी से कूद पडनाक्योंकि वह पराक्रम कीपराकाष्ठा है।लेकिन तुम शराब सेसदा भयभीत रहनाक्योंकि वह पाप, गरीबी और अनाचार की जननी है...।मेरे प्रिय पाठकों के मन में यकीनन यह जिज्ञासा उठ सकती है कि उपरोक्त पंक्तियों में ऐसी कौन-सी नयी बात है जिस पर इतना चिं‍तन किया जाए। दरअसल बात उस पत्रकार बिरादरी की है जो नशे की गुलाम हो चुकी है। कितने तो ऐसे हैं जो चौबीस घंटे टुन्न रहते हैं। बिना पिये उनकी कलम और जुबान ही नहीं चलती। कुल मिलाकर आज की तारीख में पत्रकारों की जो छवि बन चुकी है उसे सुखद तो कतई नहीं कहा जा सकता। लोगों के मन में यह धारणा भी घर कर चुकी है कि अधिकांश पत्रकार अपने मिशन से भटक चुके हैं। शराब और कबाब उनकी कमजोरी बन चुके हैं। युवाओं को पत्रकारिता इसलिए भी लुभाती है क्योंकि यहां पर मुफ्त की शराब की कोई कमी नहीं होती। बडे-बडे उद्योगपतियों, बिल्डरों और राजनेताओं की पत्रकार वार्ताओं में दारू और मुर्गे का जो जश्न चलता है वह नये पत्रकारों को एक ऐसी नयी दुनिया ले जाकर छोड देता है जहां से वे वापस नहीं आना चाहते। यह शराब ही है जो न जाने कितने पत्रकारों को भटका चुकी है और स्वर्गवासी बना चुकी है। यह सिलसिला अनवरत चलता चला आ रहा है। कुछ ही ऐसे होते हैं जो पत्रकारिता के तयशुदा लक्ष्य से नहीं भटकते। उन्हें शराब, कबाब, शबाब और लिफाफों की महक अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाती। ऐसे में जब मैंने एक युवा पत्रकार की शादी की निमंत्रण पत्रिका में शराब के असली चरित्र को उजागर करने वाली उपरोक्त पक्तियां पढीं तो अचंभित रह गया। मन में यह विश्वास भी जागा कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। उम्मीद की किरणें बची हुई हैं। देश के युवा वर्ग को शराब की बुराइयों से अवगत कराने और इससे दूर रहने की प्रेरणा जितने प्रेरक ढंग से पत्रकार दे सकता है और कोई नहीं।राजनेताओं और सरकार से तो ऐसी कोई उम्मीद करना ही व्यर्थ है। उन्हें तो येन-केन-प्रकारेण अपना खजाना भरने की लगी रहती है। इनके लिए यह तथ्य कोई मायने नहीं रखता कि देश के युवाओं को शराब हिजडा बना रही है। जी हां हाल ही में डॉक्टरों के दल ने सर्वेक्षण कर सनसनीखेज खुलासा किया है कि ज्यादा शराब पीने के कारण युवकों की सेक्स की शक्ति कम होती जा रही है। वे लगभग नकारा होते जा रहे हैं। मुंबई, औरंगाबाद, पुणे और सोलापुर के युवाओं से की गयी अंतरंग बातचीत के बाद यह तथ्य उजागर हुआ है कि चालीस प्रतिशत से ज्यादा युवाओं ने अत्याधिक शराब को गले लगाने के कारण अपनी जिं‍दगी बरबादी के कगार पर पहुंचा दी है। इन युवाओं की पत्नियों से चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला है कि अपने पति के घोर शराबी होने के कारण वे काफी चिं‍तित और परेशान रहती हैं। पति के मुंह से आने वाली शराब की गंदी बदबू उन्हें कतई बर्दाश्त नहीं होती। शराब पीने के बाद पति का बदला हुआ रवैय्या और अमानवीय व्यवहार भी काफी आहत करने वाला होता है। ऐसे में कई महिलाएं पथभ्रष्ट होने को विवश हो जाती हैं। उन्हें जीवनपर्यंत 'चरित्रहीन' के कलंक के साथ जीना-मरना पडता है। जिसके साथ सात फेरे लिये उसी की नशाखोरी की लत के चलते अवैध संबंधों को मजबूरन ढोने की यातना तक भोगनी पडती है।यह हमारे उस समाज का चित्र है जहां पहुंचे हुए साधु-संन्यासी बुद्धिजीवी और चिं‍तक रहते हैं। शराब इंसान का नैतिक पतन तो करती है साथ ही न जाने कितने अपराधों और हत्याओं की जननी भी है। नागपुर शहर में सन २०१० में लगभग ९० हत्याएं हुई। इन अधिकांश हत्याओं के पीछे शराब और अवैध संबंधों का बहुत बडा योगदान रहा है। पर सरकार को मूकदर्शक बने रहने में ही अपनी भलाई नजर आती है। शहर मयखानों में कैसे तब्दील होते चले जा रहे हैं उसका सटीक उदाहरण है महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर। देश के हृदय स्थल में बसी इस संतरा नगरी में वर्तमान में ५७५ बीयर बार, ११३ अंग्रेजी वाइन शॉप, २७५ देसी शराब दुकान और ६ क्लब हैं। यह तो हुई वैध मयखानों की बात। चालीस लाख से ऊपर की जनसंख्या वाले इस शहर में शराब के अवैद्य ठिकानों की तादाद और भी ज्यादा है। इनकी पूरी लिस्ट पुलिस और आबकारी विभाग के कमाऊ पूतों की जेब में रहती है।महाराष्ट्र सरकार को शराबियों से कुछ ज्यादा ही लगाव है। उससे उनकी तकलीफ देखी नहीं जाती। यही वजह है कि अब तो नागपुर में ही सैकडों बीयर शॉप खुल रही हैं जहां पर कॉलेज और स्कूलों के छात्र-छात्राओं को भी निस्संकोच बीयर गटकते हुए देखा जा सकता है। जिन लडके-लडकियों की जेबें उन्हें यह शौक पूरा करने की इजाजत नहीं देतीं वे भी आपस में चंदा जमाकर बीयर शॉपी के सामने शान से लाइन लगाये खडे नजर आते हैं। सियासियों के लिए यह देश की तरक्की की निशानी है। मयूर रंगारी जैसे कुछ सजग पत्रकार इस बर्बादी के मंजर को देखकर चिं‍तित और दुखी होते हैं और महापुरुषों के संदेश छपवाते और कलम चलाते हैं। इतिहास गवाह है कि ऐसों की पहल और अनुसरण से ही सोये हुए लोग जागते हैं और धीरे-धीरे कारवां बनता चला जाता है...।

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