Thursday, December 2, 2010

राजधानी दिल्ली के दाग़

वैसे तो महिलाएं किसी भी शहर में पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। पर दिल्ली की तो बात ही कुछ और है। दिल्ली तो देश की राजधानी है। यहां देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सांसद, विधायक और न जाने कितने-कितने महान लोग रहते हैं फिर भी यहां की सडकों पर युवतियों की इज्जत तार-तार कर दी जाती है...! यह चिं‍ता पूरे देश को सताये हुए है और देश के रहनुमा भ्रष्टाचार की लडाई और एक दूसरे के कपडों की उतरवाई में उलझे हुए हैं। उनके पास वक्त ही नहीं है कि इस इस गंभीर बीमारी पर ध्यान दे सकें। चिं‍तन मनन कर सकें कि उनकी नाक के नीचे बलात्कार, छेडछाड और प्रताडना के सिलसिले बेलगाम क्यों होते चले जा रहे हैं? नारियों ने यह क्यों मान लिया है कि बडे लोगों का यह महानगर नर्क बनता चला जा रहा है और उनकी अस्मत पर डाका डालने वाले दरिंदों को खुला छोड दिया गया है। यह दरिंदे जब मौका पाते हैं अपना काम कर जाते हैं और पुलिस ताकती रह जाती है। बस पीछे...पीछे भागती रह जाती है और बलात्कारी हत्यारे कहीं दूर निकल जाते हैं।माया नगरी मुंबई के बारे में कहा जाता है कि इसे कभी नींद नहीं आती। यह मायावी नगरी जागते रहने को अभिशप्त है। देश की राजधानी दिल्ली इस मामले में उलटी है। लगता है राजनेताओं ने इसे भांग पिला कर इतना मदहोश कर दिया है कि अब वह होश में ही नहीं आना चाहती। वह इस भयावह तथ्य से भी बेखबर और बेपरवाह है कि उसका दामन दागों से भरता चला जा रहा है।बीते सप्ताह काल सेंटर में काम करने वाली एक युवती पर चार मर्दों ने बलात्कार कर डाला। वह युवती चार साल पहले कई सपनों के साथ दिल्ली आयी थी। दिल्ली ने उसके सपनों के चिथडे कर डाले। वह अपने एक सहकर्मी के साथ तडके दक्षिणी दिल्ली के मोती विलेज इलाके स्थित अपने घर जा रही थी। उसी समय देश की राजधानी के जवानों ने जबरन उसे अपनी कार में खींच लिया। इस तरह के गैंगरेप दिल्ली की पहचान बन चुके हैं। यही वजह है कि दिल्ली की नब्बे प्रतिशत महिलाएं घर से अकेले निकलने में घबराती हैं। सफर करना लाखों महिलाओं की मजबूरी है पर उन्हें बस में बैठने से डर लगता है। बसों और लोकल ट्रेनों में सफर करने वाले लोफर इतने बेखौफ हो चुके हैं कि शरीफ नारियों के साथ अभद्र व्यवहार करना उनकी आदत में शुमार हो चुका है। दिल्ली की सडकें, बाजार, मॉल, सिनेमाघर, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे जैसे अधिकांश सार्वजनिक स्थल महिलाओं के अकेले आने-जाने के लायक नहीं रहे। कुछ दिन पहले की ही बात है। एक नामी अभिनेत्री बडे उत्साह के साथ दिल्ली में आयोजित मैराथन दौड में भाग लेने के लिए आयी थी। उस भीड में हजारों लोग शामिल थे पर सडक छाप मजनुओं की हिम्मत तो देखिए कि उन्होंने बिना किसी की परवाह किये अभिनेत्री को घेर कर जिस्मानी छेडछाड शुरू कर दी। ऐसी शर्मनाक बदमाशियां किसी गांव-कस्बे में अंजाम दी जाएं तो एक बारगी उन्हें नजर अंदाज किया जा सकता है पर देश की राजधानी में ऐसा तांडव यकीनन मानवीय सभ्यता और नारी सम्मान की धज्जियां उडाता प्रतीत होता है। यह भी कहा जाने लगा है कि महानगरों में ऐसा होना आम बात है और यहां रहने वाली अधिकांश महिलाएं ऐसे हादसों की अभ्यस्त हो गयी हैं। ऐसा कह देना वाकई बहुत आसान है। जो लोग ऐसा मानते हैं उनसे यह सवाल पूछने की इच्छा हो रही है कि अगर उनकी मां-बहन-बेटी के साथ राह चलते बलात्कार या घिनौनी छेडछाड हो जाए तो उन पर क्या गुजरेगी? महानगर हों या फिर शहर अथवा गांव हर जगह नारियां सम्मान और सुरक्षा चाहती हैं। जो लोग यह मानते हैं कि महानगर हर तरह के जुल्म और आतंक सहना सिखा देते हैं उन्हें अपनी सोच बदल लेनी चाहिए। यह भी सच है कि जब तक खुद पर नहीं आती तब तक ऐसे बोलवचन दागने वालों के होश ठिकाने नहीं आते। देहरादून में रहने वाले एक 'सिं‍ह' को गिरफ्तार किया गया है। वासना के इस शातिर खिलाडी ने अपने यहां बतौर पेइंग गेस्ट रह रही युवतियों के बाथरूम में बडे ही शातिराना तरीके से वेब कैमरा फिट कर रखा था। वह कई वर्षों से पेइंग गेस्ट हाऊस चलाता चला आ रहा था, जहां पर ऐसी लडकियों को ही रखा जाता था जो नौकरीपेशा या फिर किसी निजी संस्थान की छात्राएं होती थीं। बाथरूम के गीजर में हिडेन कैमरा लगाकर बतौर पेइंग गेस्ट रहने वाली कितनी युवतियों की उसने नग्न फिल्में तैयार की होंगी इस माथापच्ची में देहरादून की पुलिस उलझी हुई है। पुलिस ने जब उससे इस कमीनगी को लेकर सवाल दागा तो उसका जवाब था कि वह यह सब अपने मनोरंजन के लिए करता था। उसे युवतियों के नग्न चित्र देखने में भरपूर संतुष्टि मिलती है। यह तो संयोग ही था कि इस सेक्स रोगी के यहां रहने वाली एक छात्रा की नहाते समय अचानक कैमरे पर नजर पड गयी और भांडा फूट गया। नहीं तो पता नहीं यह सिलसिला कब तक चलता रहता। वैसे भी ऐसे न जाने कितने सिलसिले हैं जो अबाध रूप से चलते चले आ रहे हैं और कभी भी पकड में नहीं आ पाते। यदा-कदा पकड में आते भी हैं तो कुछ दिन के शोर के बाद भुला दिये जाते हैं।कहते हैं कि छोटे हमेशा बडों से शिक्षा लेते हैं और उनका अनुसरण भी करते हैं। यह बात सिर्फ इंसानों पर ही लागू नहीं होती बल्कि मशीनी सभ्यता के गुलाम होते महानगरों और शहरों पर भी लागू होती है। तभी तो जो हाल दिल्ली के हैं कमोबेश वैसे ही हालात देश के अन्य शहरों के भी होते चले जा रहे हैं।

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