Friday, April 8, 2011

अंधेरा छंटने की उम्मीद

कई लोगों का यह मानना है कि भारतवर्ष से भ्रष्टाचार का कभी सफाया नहीं हो सकता। ऐसी सोच रखने वालों को शायद यह जानकारी नहीं है कि हांगकांग के भी कभी हमारे देश जैसे बदतर हालात थे। वहां पर भी हर सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार ने अपनी जडें जमा ली थीं। बाबू, अफसर, डॉक्टर, नेता, मंत्री, संत्री पैसे के गुलाम हो गये थे। रिश्वत को शिष्टाचार के सुनहरे फ्रेम में जड कर हर जगह टांग दिया गया था। 'टी मनी' और 'लकी मनी' के बिना कोई फाइल आगे नहीं सरकती थी। देखते ही देखते हालात इतने खराब होते चले गये कि भ्रष्टाचार में नामी-गिरामी मंत्रियों, अफसरों और जजों तक के नाम उजागर होने लगे। ताकतवर बेहद मजे में थे। आम जनता की चिं‍ताओं और परेशानियों की कोई सीमा नहीं थी। अफसरों और नेताओं को लग रहा था कि उनकी लूटमारी पर कभी कोई अंकुश नहीं लगा पायेगा। वे जनता के धन पर ऐश करते रहेंगे और जनता चुपचाप तमाशा देखती रहेगी। पर ऐसा नहीं हुआ। जब भ्रष्टाचार की इंतहा हो गयी तो लोग सडकों पर उतर कर भ्रष्टाचारियों को गिरफ्तार करनेकी मांग करने लगे। आमजनों के आक्रोश और नारों की गूंज से हांगकांग की सरकार हिल उठी। हांगकांग में कई ईमानदार चेहरे भी थे जिन्होंने नारों के संदेश को समझा और परिवर्तन का बीडा उठाया। मात्र दो दशक में हांगकांग भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से मुक्त हो गया। कल का भ्रष्ट हांगकांग आज ईमानदार देश कहलाता है। हांगकांग को यह तमगा बडी मेहनत के बाद मिला। भ्रष्ट नेताओं और अफसरों को जेल की हवा खिलायी गयी और आम जनता को भी सतर्क किया गया कि यदि रिश्वत दी तो खैर नहीं...। जब देने वाले ही नहीं होंगे तो लेने वालों के पैदा होने का सवाल ही नहीं उठता। अपना देश यहीं मार खा गया है। यहां देने वालों की भी भरमार है। जो सरकारी धन जनता के हित में खर्च होना चाहिए उसका ८५ प्रतिशत हिस्सा अफसर, मंत्री और दलाल मिल बांटकर हडप कर जाते हैं। यह सि‍लसिला वर्षों से चला आ रहा है। रिश्वतखोरी और तमाम भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाजें भी उठती हैं पर उनमें 'हांगकांग' जैसा दम कभी नजर नहीं आता। यदा-कदा कुछ चेहरे सडकों पर उतरे जरूर पर लोग उनके साथ खडे नजर नहीं आये। लोग किसी के साथ तभी खडे होते हैं जब उन्हें उस पर पूरा यकीन हो। धोखा-दर-धोखा खाने की भी कोई सीमा होती है। हिं‍दुस्तान की आम जनता तथाकथित क्रांतिकारियों के हाथों कई बार छली जा चुकी है। सिर्फ एक जयप्रकाश नारायण ही थे जिनकी राष्ट्रभक्ति पर किसी को संदेह नहीं था। पूरा देश उनके पीछे हो लिया था पर उस महात्मा को भी पेशेवर नेताओंने छलने और आहत करने में कोई कमी नहीं की। जे.पी. की क्रांति ने कुछ खोटे सिक्कों की भी तकदीर बदल डाली और सत्ता का स्वाद भी चखवाया। पर देश के हालात बद से बदतर होते चले गये। जो लोग देश के लुटेरों के कर्मकांडों से नावाकिफ थे उनकी समझ में भी यह बात आ गयी है कि देश अगर ऐसे ही लुटता रहा तो कुछ भी नहीं बचेगा। शहीदों की कुर्बानी व्यर्थ चली जाएगी। रिश्वतखोरी, मिलावटखोरी, धोखाधडी और फरेब के जाल में उलझी जनता को वर्षों से किसी निस्वार्थ जन सेवक की तलाश रही है। यह तलाश अन्ना हजारे के रूप में साकार होती दिखायी दे रही है।अन्ना हजारे एक ऐसे कर्मयोगी हैं जिनमें देशप्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। जयप्रकाश नारायण के बाद एक ऐसा शख्स दिखायी दिया है जिस पर हर देशवासी आंख मूंदकर यकीन कर सकता है। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खुली जंग छेड चुके बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे वर्तमान व्यवस्था से दुखी होने के कारण आमरण अनशन पर हैं। महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले अन्ना भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सरकार से कडे कानून की मांग यूं ही नहीं कर रहे। वे आम जनता के बीच रहकर निरंतर भ्रष्टाचारियों और अनाचारियों का तमाशा देखते चले आ रहे हैं। जिनके हाथ में सत्ता है वही लूट का तांडव मचाये हुए हैं। चोर जब जज बन जाए तो न्याय की अर्थी निकलना तय है। देश की विधानसभाओं और संसद में ऐसे लोगों की भरमार है जो दोनों हाथों सेदौलत समेटने में लगे हैं। कानून इनके समक्ष बेहद बौना होकर रह गया है। राजनेताओं की देखा-देखी अफसर, व्यापारी, उद्योगपति भी देश को कंगाल करने के दुष्चक्र को गति दे रहे हैं। देश में ऐसा वातावरण बना कर रख दिया गया है कि कई लोग अब भ्रष्टाचार को गुनाह नहीं मानते। ऐसे में खून-पसीना बहाकर बडी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटाने वाला आम आदमी कहां जाए और क्या करे? अन्ना की पहल को दूसरी लडाई की शुरुआत भी कहा जा रहा है। अन्ना बेहद जिद्दी हैं। कोई भी लडाई उन्होंने कभी अधूरी नहीं छोडी। सरहद पर दुश्मन के दांत खट्टे कर चुका यह ७२ वर्षीय बुजुर्ग ४३ साल तक जन लोकपाल विधेयक का इंतजार करते-करते जब थक गया तो सरकार को उसका फर्ज याद दिलवाने के लिए उसे दिल्ली के जंतर-मंतर में पहुंचकर शंख बजाना पडा। इस शंख की आवाज दूर तक सुनायी दे रही है। जन लोकपाल विधेयक बनने और उसके लागू हो जाने पर भ्रष्ट सांसदों, विधायकों, जजों, मंत्रियों और तमाम सफेदपोश डाकूओं को दिन में तारे नजर आने लगेंगे। कोई भी ताकत उन्हें जेल जाने से नहीं बचा पायेगी। सरकार के होश उडाते अन्ना को छोटा गांधी भी कहा जाता है। पर जिस तरह से वे व्यवस्था के खिलाफ लोहा ले रहे हैं उससे तो यही लगता है कि देश को एक और गांधी मिलने वाला है। यह गांधी लोगों के इस भ्रम का भी अंत कर दिखायेगा कि देश से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी खत्म नहीं किये जा सकते।

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