Tuesday, April 5, 2011
जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं
आजकल देश बाबामय हो गया है। जिधर देखो उधर बाबा। रामदेव बाबा की तोचल पड़ी है। वे शातिर राजनेताओं को भी पीछे छोड़ने लगे हैं।पिछले हफ्ते वे नारंगी शहर नागपुर में पधारे थे। उनके शहर में आने सेपहले उनके चेले-चपाटे दावा करते नहीं थक रहे थे कि बाबा को सुननेके लिए तीन से चार लाख तक की भीड़ जुटेगी। जमकर प्रचार हुआ। रामदेवकी तुलना जयप्रकाश नारायण से की गयी। जिस दिन बाबा की सभा थी, उस दिनके तमाम अखबार उनके गीत-गान से भरे पडे़ थे। हर छोटे-बडे़ अखबारको उसकी हैसियत के हिसाब से विज्ञापन देकर प्रसन्न कर दिया गया था। शहरमें जहां-तहां लगे बडे़-बडे़ बैनर और पोस्टर बता रहे थे कि बाबा केपीछे थैलीशाहों की जमात खड़ी हो चुकी है। खुद बाबा भी सत्ता पाने केलिए अपनी तिजोरी का मुंह खोल चुके हैं।शहर के नामी-गिरामी मैदान में बाबा के निर्देशन में ग्रामनिर्माण सेराष्ट्रनिर्माण रैली आयोजित की गयी। जिसमें मुश्किल से दस-बारह हजार लोगही नजर आ रहे थे। यह लोग लाये गये थे या खुद आये थे यह भी खोज काविषय है। मंच पर भी तरह-तरह के धुरंधर विराजमान थे। कुछ तो ऐसे थेजिन्हें देखकर लोग विस्मित थे और सोच रहे थे कि क्या बाबा ऐसे चेहरोंकी बदौलत देश में क्रांति लायेंगे? चेहरे बेहद प्रसन्न थे। उनके चेहरे कीरंगत उनके अरमानों की दास्तां कह रही थी। ऐसा लग रहा था कि देश कीमनमोहन सरकार शीघ्र ही धराशायी होने वाली है और बाबा के इर्द-गिर्दमंडराने वाली मधुमक्खियों के मंसूबे पूरे होने वाले हैं। बाबा भाषण देनेके लिए खडे़ हुए। भीड़ में कहीं कोई उत्साह नहीं था। बाबा भ्रष्टाचारके खिलाफ लडा़ई लड़ने और देश का कायाकल्प करने का राग अलापरहे थे कि अचानक एक जूता उछला। यह वही जूता था जो अक्सर देश केधंधेबाज किस्म के राजनेताओं पर बरसता रहा है। बाबा का जूते से स्वागतकरने वाला बाबा का ही भक्त था जो बहुत दूर से यह सोचकर आया था कियोगी के करिश्माई व्यक्तित्व से रूबरू होने का सुअवसर मिलेगा। पर यहांयोगी तो भोगी की मुद्रा में था। सत्ता पर काबिज होने की उनकी लालसाऔर कटाक्ष-कटारी बडे़-बडे़ सत्ताखोरों को शर्मिंदा कर रही थी। वेदेश के दिग्गज नेताओं के बारे जिस फूहड़ भाषा का इस्तेमाल कर रहे थेवह यकीनन संत की भाषा तो कतई नहीं थी।अर्धसैनिक बल के जवान मीतू सिंह राठौर जिसने बाबा को जूते की सलामीदी, उसका कहना था वह योगी रामदेव के पास योग सीखने गया था लेकिन वेजिस तरह की लफ्फाजी कर रहे थे, उससे उसका खून खौल उठा। उसे गुस्से नेइतना बेकाबू कर दिया कि उसने बाबा पर जूता फेंककर दे मारा। गुस्सायेजवान का यह भी कहना था कि रामदेव को योग के बारे में कुछ तोकहना चाहिए था। पर उन्होंने उस कला के बारे में एक शब्द भी नहीं कहाजिसने उन्हें देश और दुनिया में उन्हें इतना मालदार और लोकप्रिय बनाया है।राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते बाबा ‘योग के साथ गद्दारी कर रहे हैं।लोग उन्हें कभी माफ नही करेंगे। मैंने तो अभी शुरुआत भर की है।आगे-आगे देखिये क्या-क्या होता है...।राजनेताओं को जब इस तरह का ‘प्रसाद मिलता है तो वे गदगद हो जाते हैं।‘जूते को वे अपनी लोकप्रियता और तरक्की की निशानी मानते हैं। जूताप्रचार भी दिलाता है और सुरक्षा भी। जूता कांड के बाद बाबा की सुरक्षाको लेकर उनके भक्त तरह-तरह की चिंताएं और सवाल उठाते देखे गये।जेड श्रेणी की सुरक्षा के मजबूत घेरे में घूमने वाले बाबा पर आसानी सेजूता चलते ही सारा दोष पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था के मत्थे मढ़ दिया गया।लोग कई तरह के सवाल करते देखे गये। जो योगी देश और दुनिया कोभयमुक्त होने का संदेश देता है वह खुद इतना भयभीत क्यों है? जो खुद डराऔर सहमा हुआ हो वह लोगों की qचताएं और समस्याएं कैसे दूर करपायेगा? बाबा के चेले-चपाटों ने जब ‘सुरक्षा को लेकर नाराजगी का रागछेड़ा तो पुलिस आयुक्त ने सफाई दी कि बाबा रामदेव की सुरक्षाचाक-चौबंद थी। स्वयंसेवकों की लापरवाही के चलते जूता उछल गया। फिरजूता भी तो किसी गैर ने नहीं बल्कि बाबा के परम भक्त ने ही चलाया। सजगभक्तों के निशाने पर आ चुके बाबा रामदेव हिंदुस्तान का बेताज बादशाहबनना चाहते हैं। खुद को किंगमेकर की भूमिका में देखने को बेताब हैं।बडे़-बडे़ रईसों को पीछे छोड़ चुका यह विचित्र योगी टाटाओंऔर अंबानियों को मात देने की भी फिराक में है। योग शिविरों मेंमोटी फीस वसूलने और महंगी कारों में घूमने वाले बाबा दोनों हाथ मेंलड्डू रखते हुए गरज रहे हैं। पर इतिहास गवाह है कि जो गरजते हैं वो बरसतेनहीं। कुछ कर गुजरने वाले किसी और ही मिट्टी के बने होते हैं।देश के प्रदेश राजस्थान में स्थित जयपुर से कोई साठ किलोमीटर की दूरीपर स्थित है सोडा गांव। इस गांव की सरपंच हैं छवि राजवत जिन्होंने अपनेगांव की तस्वीर और तकदीर बदलने के लिए लाखों रुपये की अपनी लगी लगायीनौकरी पर लात मार दी। तीस वर्षीय छवि देश की पहली सरपंच हैं जो एमबीएहैं और युवा भी। पिछले दो साल में छवि ने गांव में ऐसे-ऐसे बदलावकिये जो आजादी के इतने वर्ष गुजर जाने के बाद भी गांववासियों के लिएसपना थे। लोगों के सपनों को साकार करने में जुटी छवि का कहना हैकि तीन साल में मैं अपना गांव बदलकर रख दूंगी। छवि के इरादों औरकुछ कर गुजरने के जुनून की स्वरलहरी विदेशों तक गूंजने लगी है। वेनेताओं और बाबाओं की तरह हो हल्ला मचाने में यकीन नहीं रखतीं। छवितो सिर्फ करके दिखाने में विश्वास रखती हैं...। यह कलम यकीनन छवि कोसलाम करती है और ...।
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